मतलबी रिश्ते – प्रियंका सक्सेना : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi

सुधा ने ऑफिस से लौटते वक्त घर में सब के लिए अलग-अलग फ्लेवर की आइसक्रीम ले ली। माॅ॑, मोना, नवीन सबको आइसक्रीम में अलग-अलग स्वाद पसंद हैं।

घर में घुसते कि उसने मोना को आवाज लगाई और कहा ,” आइसक्रीम को फ्रिज में रख दो।”

मोना बोली, “जी दीदी,अभी रखती  हूॅ॑।”

“माॅ॑, ये लो सैलरी। बनिया का उधार कल चुकता कर देना।” सुधा ने कहा

आज पहली तारीख है। सुधा को तनख्वाह मिली है वह सब के लिए उनकी पसंद की चीजें लाई है। सुधा के पिता जी का स्वर्गवास हुए चार साल हो गए हैं सुधा उस वक्त बाइस साल की थी। उसने ग्रेजुएशन ही किया था। पिताजी की जगह उसने नौकरी ज्वाइन कर ली। भाई नवीन उस समय नवी क्लास में पढ़ता था और बहन मोना ग्यारहवीं का एग्जाम दे रही थी।उस वक्त घर भी किराए का था।

नवीन का इस साल इंजीनियरिंग में एडमिशन हो गया। मोना ने पोस्ट ग्रेजुएशन ज्वाइन कर लिया है। सुधा संतुष्ट है कि वह अपने घर का खर्च उठा पा रही है।

सुधा अब छब्बीस साल की हो चुकी है। अपने विभाग में कर्मठ के रूप में जानी जाती है। लगन और मेहनत से सुधा नौकरी में आगे बढ़ती जा रही है। एक आध बार माॅ॑ ने कहा भी कि अब उसकी शादी की उम्र हो गई है और उसे शादी कर लेनी चाहिए पर उसने कहा कि पहले वह अपने भाई और बहन को व्यवस्थित (सेटल) करेगी। उसके बाद ही शादी का सोच पाएगी।

माॅ॑ ने कह-सुन कर सुधा की तनख्वाह से किस्तों में एक घर दो बेडरूम और ड्राइंग कम डाइनिंग रूम वाला खरीद लिया है। घर माॅ॑ के नाम से खरीदा गया।

अगले तीन साल में बहन मोना ने पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्लीट करके बीएड कर के एक विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी प्राप्त की।

मोना के नौकरी करने के बाद सुधा ने सोचा कि अब वह माॅ॑ से कह देगी कि अब वह शादी के लिए तैयार है। परंतु माॅ॑ ने मोना की शादी के लिए कहना शुरू कर दिया और एक अच्छा लड़का देखकर मोना की शादी कर दी गई। वह अपनी ससुराल में पति के साथ खुश है।



नवीन का इस साल इंजीनियरिंग कंप्लीट हो गया है और उसका कैंपस सेलेक्शन हो गया है। एक अच्छी कंपनी में अपने शहर में उसे इंजीनियर की पोस्ट मिल गई।

इसी तरह तीन साल और निकल गए। सुधा अब सीनियर मैनेजर है।  अब घर में कोई भी सुधा की शादी के बारे में बात नहीं करता है। सुधा इस वर्ष बत्तीस साल की हो गई है। आस पड़ोस में, रिश्तेदारों में अगर कोई उसके बारे में पूछता भी है तो घरवाले कहते हैं कि सुधा शादी नहीं करेगी। अब नवीन के लिए लड़की बताओ। कोई रिश्ता सुधा के लिए आया भी तो मीनमेख निकाल कर मना कर दिया जाता।

गाहे-बगाहे सुधा के कानों में यह बातें पड़ ही  जाती। कभी कोई चाची या पड़ोस की भाभी कहती कि तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए तो सुधा हल्का सा मुस्कुराकर रह जाती तो वे कहते कि हां भाई घर वाले कह रहे हैं कि तुम शादी करने में इंटरेस्टेड नहीं हो। रात की तन्हाई में सुधा मन में सोचा करती मैंने तो ऐसा कभी कहा नहीं है।

बहरहाल इसी तरह दो साल कब बीत गए पता ही नहीं चला।

एक दिन सुधा ऑफिस से घर लौटी तो देखा कुछ मेहमान घर में आए हुए हैं। अभिवादन करके सुधा अंदर गई तो देखा मोना भी आई है अपने पति और बच्चों के साथ। उसने पूछा कि यह बाहर‌ आए लोग कौन है तो पता चला कि नवीन अपनी सहकर्मी अनु से शादी करना चाहता है। उसी के माता-पिता घर आए हैं।

सुधा अचंभित हुई कि उसे छोड़कर घर में सभी को यहां तक कि मोना को यह बात पता थी और वह सपरिवार यहां बुलाई भी गई है, बस उससे ही यह बात छुपाई क्यों गई? खैर‌ अपने विचारों को झटककर  सुधा हाथ मुंह धोकर ड्राइंग रूम में पहुंची।

वहां डाइनिंग रूम में चाय नाश्ता चल रहा था। माॅ॑ ने सुधा को सबसे मिलवाया यह कहते हुए कि वह उनकी बड़ी बेटी है और पिताजी के गुजर जाने के बाद उसने घर संभाला है और इसी कारणवश उसने शादी नहीं की है और अब वह शादी नहीं करना चाहती है।

सुधा सभी के बीच में मूकदर्शक की तरह बैठी रही‌। बातें होती रही। लगन सगाई व शादी की बातें फाइनल की गईं और तारीख पक्की हो गई।

अनु नवीन की दुल्हन बनकर घर में आ गई। माॅ॑ की तो मानो खुशी की सीमा ही नहीं रही। माॅ॑ को खुश देखकर सुधा भी खुश थी।

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इसी बीच में सुधा का दूसरे शहर में स्थानांतरण का प्रस्ताव आया। घर में चर्चा करने पर सबने कैसे भी करके ट्रांसफर रुकवाने पर जोर दिया। सुधा ने उच्च अधिकारियों से कहकर ट्रांसफर रुकवा लिया, इन सब में उसका एक प्रमोशन मारा गया।

घर अभी भी सुधा की तनख्वाह से पूरा चलता है। नवीन और अनु की सैलरी बैंक में जमा हो जाती है।

नवीन और अनु की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही है। माॅ॑ को शादी के अगले ही साल अनु ने पोती नूपुर देकर उनकी खुशियों में चार चांद लगा दिए। माॅ॑ पोती में व्यस्त रहने लगीं।

सुधा की जिंदगी सुबह ऑफिस से शुरू होती और शाम को घर आने पर अपने काम में लग जाती या घर संबंधित कार्य करती, यही उसकी दिनचर्या है।

दूर के चाचा ने एक रिश्ता सुधा के लिए सुझाया। छत्तीस साल की सुधा के लिए अपने ही शहर में एक विधुर डाॅक्टर राजीव का रिश्ता बताया। राजीव की पत्नी मीरा का पांच वर्ष पहले कैंसर से देहावसान हो गया था। एक छह साल की बच्ची मानसी है।मीरा की मृत्यु के समय मानसी मात्र एक वर्ष की थी। राजीव की माताजी ने राजीव से शादी के लिए कहा परंतु उन्होंने मना कर दिया। अब माताजी की भी उम्र हो चली है तो उन्होंने कैसे भी करके राजीव को पुनः शादी करने के लिए राज़ी कर लिया है। राजीव की आयु सैंतीस वर्ष है।

सुधा के दूर के चाचा जिस समय घर आए तब तक सुधा ऑफिस से घर आ चुकी थी।

चाचा के बताने पर माॅ॑ ने तेज स्वर में कहा कि उन्हें दुहेजु, यानी जिसकी पहले भी शादी हो चुकी है, से सुधा की शादी नहीं करनी है। उन्हें राजीव की छह साल की लड़की मानसी से भी ऐतराज था।

चाचा के बताने पर कि सुधा की उम्र छत्तीस साल हो चुकी है। अब ज़रूरी नहीं कि कुंवारा लड़का मिले । माॅ॑ समझने को तैयार नहीं हुईं।

बात की बात में उन्होंने चाचा से कहा दिया कि न मिले कुंवारा पर ऐसे नहीं करेंगे शादी। ये भी कहने लगीं कि सुधा तो स्वयं भी शादी नहीं करना चाहती है। सुधा का परिवार अब उसके भाई-बहन, नवीन और मोना का परिवार है।

सुधा चुपचाप सुन रही थी।

चाचा ने सुधा से कहा,” सुधा, एक बार सोचना ज़रूर इस रिश्ते के बारे में। लड़का वास्तव में अच्छा है। भाई-बहन का परिवार अपना होता है पर फिर भी तुम्हारी इतनी उम्र नहीं हुई है कि तुम शादी न करने का निर्णय ले लो। यह नहीं तो कोई और सही, पर शादी कर लेना। अभी सब साथ हैं पर बाद में अपनी अपनी गृहस्थी में सभी मस्त हो जाएंगे। देख लो सोचना तुम्हें है।”

माॅ॑ चाचा पर भड़क गईं कि वह सुधा के दिमाग में उल्टा सीधा भर रहें हैं। नवीन भी कहने लगा कि हम लोग दीदी को पूरी इज्ज़त देते हैं।

नवीन ने सुधा से पूछा,” दीदी, आपको हमारे घर से या हमसे क्या कोई शिकायत है?”

नवीन के ऐसा पूछते ही सुधा का सारा भ्रम छनाक से कांच की भांति टूट गया। जिस घर को सुधा ने अपने खून पसीने की कमाई से बनाया है और जिसकी किस्तें अभी भी वो भर रही है। वह उसका नहीं है, नवीन पूछ रहा है कि नवीन के घर में उसे कोई तकलीफ़ तो नहीं है।

अचानक से सुधा ने चाचा से कहा,” आप ठीक कह रहे हैं, चाचा जी। एक बार मिल लेने में कोई हर्ज नहीं है।”

माॅ॑ और नवीन एक साथ बोले,”ये क्या कह रही हो?”

अनु भी पीछे से बोली,”ऐसी भी क्या पड़ी है आपको इस उम्र में शादी करने की?”



सुधा ने सभी को इग्नोर करते हुएऊ कहा,”चाचाजी आप दिन तय कर लीजिए, मैं पहुंच जाऊंगी।”

चाचाजी के जाने के बाद माॅ॑ ने साम दाम दंड भेद सभी से सुधा को समझाया। सुधा ने एक ही बात कही कि अगर उसे सही लगेगा तभी वह आगे बढ़ेगी।

नियत दिन व समय पर सुधा डाॅक्टर राजीव  से मिलने गई। राजीव उसे सुलझे व समझदार लगे। अगली मुलाकात में मानसी भी आई। सुधा और मानसी की दोस्ती भी हो गई। राजीव ने भी जाना कि सुधा ने शादी अभी तक घर की जिम्मेदारियों के कारण नहीं की है तो उनके मन में सुधा के लिए इज्ज़त बढ़ गई।

एक दिन सुधा घर आई तो देखा मोना और उसके पति आए हुए हैं। उन्होंने हर तरह से उसे यह समझाने की कोशिश की कि अब उसकी शादी की उम्र निकल गई है। और जहां तक बच्चों की बात है तो भाई नवीन और बहन मोना  के बच्चे उसके ही हैं‌। अत: सुधा को शादी नहीं करना चाहिए, इस उम्र में उसे शोभा नहीं देगा।

सुधा के बताने पर कि उसे डाॅक्टर राजीव अच्छे लगे। उन लोगों ने ताने मारने शुरू कर दिए कि बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम लगोगी।

सुधा ने कहा कि अब उसने फैसला कर लिया है। वह शादी कर रही है। जिस पर सभी मुंह बिचकाकर रूम से चले गए।

थोड़ी देर बाद माॅ॑ नवीन के साथ  एक कागज लेकर आईं कि वह उस पर साइन कर दे। सुधा ने पूछा कि यह क्या  है?

नवीन ने बोला,” इसमें लिखा है कि इस घर पर तुम्हारा हक नहीं है।”

सुधा हंसने लगी,” बस इतनी सी बात। यह तो मैंने माॅ॑ के नाम से ही खरीदा था, उनका है। इतनी छोटी बात के कारण शादी के लिए आप लोग मना करते आए। सभी रिश्तों में कमी बताकर मना कर दिया।”

अब हड़बड़ाने की बारी नवीन और माॅ॑ की थी।

वे दोनों एकसाथ बोलने लगे,” ऐसी कोई बात नहीं है।”

सुधा माॅ॑ से बोली,” माॅ॑,आप तो हम तीनों की माॅ॑ है। माॅ॑ के लिए सभी बराबर होते हैं, फिर आप ने मुझे क्यों अकेला कर दिया। एक बार भी आपने मुझसे नहीं पूछा कि मैं क्या चाहती हूॅ॑। आपने सबसे कह दिया कि मैं शादी नहीं करना चाहती हूॅ॑। पापा के जाने के बाद मैंने घर की पूरी जिम्मेदारी उठाई। मोना की और नवीन की गृहस्थी बस गई है। अब जाकर यदि मैं कह रही हूॅ॑ तो आप सब मुझे समझा रहे हो कि शादी नहीं करूं। यदि यही बात मैं मोना या नवीन के लिए कहती तो आप कहती मैंने कर्त्तव्य पूरा नहीं किया। “

माॅ॑ और नवीन की समझ में आ गया कि सुधा को अब बहला नहीं पाएंगे।

सुधा आगे बोली,” माॅ॑, यह घर आपके नाम पर मैंने खरीदा है। अभी तक किस्तें भी मैं भर रही हूॅ॑। घर आप लोग रखिए। और बची हुई किस्तें भर दीजियेगा। नौ साल की मैं भर चुकी हूॅ॑। तीन साल की बची हैं।”

नवीन और माॅ॑ अपना सा मुंह लेकर अपने कमरे में चले गए। मोना भी अपने पति के साथ अपने शहर लौट गई।

आठ दिन बाद डॉक्टर राजीव के साथ सुधा ने कोर्ट में विवाह किया।

घर से कोई भी नहीं आया, सुधा और‌ राजीव घर जाकर माॅ॑ का आशीर्वाद लेने पहुंचे तो माॅ॑ सहित सभी ने मुंह फेर लिया। 

सुधा देहरी को प्रणाम कर अपने नवजीवन की शुरुआत करने चल दी।राजीव ‌ने सुधा को तमाम खुशियां दी। सुधा और राजीव अपनी बेटी मानसी के साथ सुखपूर्वक रहने लगे।

 कोशिश बाद में भी की सुधा और राजीव ने परंतु सुधा के घरवालों के मुंह टेढ़े ही रहे।

नवीन की अपनी पत्नी अनु से खर्चें को लेकर आए दिन चिक-चिक हो जाती है। घर की किस्त भरनी होती है, खाने-कपड़े, स्कूल , बाई सभी खर्चों के लिए उन्हें अपनी तनख्वाह लगानी पड़ती है। यह सब पहले सुधा ही करती थी। नवीन और अनु की जमा-पूंजी बैंक से निकलने लगी।

मोना भी हर तीन चार महीने में ममता से पैसों की मांग करती थी, उसका भी यह सब खर्चा पानी बंद हो गया।

सब के स्वार्थ सुधा के अविवाहित रहने से सिद्ध हो रहे थे। अब सभी को आटे-दाल‌ के भाव वास्तव में पता चल रहे हैं।



सभी रिश्तेदारों में अब वो ही लोग यानि माॅ॑, नवीन और मोना, सुधा को स्वार्थी बता रहें हैं। लेकिन पीठ पीछे सभी रिश्तेदार भी कहते हैं कि सुधा ने शादी कर के ठीक किया,  ऐसे मतलबी घरवालों से पीछा तो छूटा!

दोस्तों, आप का क्या कहना है, सुधा ने शादी करके ठीक किया? क्या सुधा स्वार्थी है या सुधा के घरवाले अपने स्वार्थ में इतने अंधे हो गए थे कि बेटी की शादी ही नहीं होने दे‌ रहे थे… आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।

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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

#स्वार्थ

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