ओह्ह माँ.. तुम मना मत करना। तुमको आना ही होगा। आओगी न!
“पर बेटा, मैं बूढ़ी अपना ही काम खुद से नहीं कर पाती वहां जाकर क्या करूंगी। वहाँ और बोझ बन जाउंगी तुम लोगों के माथे पर!”
” माँ ..वो सब मैं कुछ नहीं जानता बस तुम हाँ कर दो। तुमको यहां कुछ करने की जरूरत नहीं है ,तुम्हारा रहना ज्यादा जरूरी है। हाथ बटाने के लिए बाई रख लिया है। “
माँ- बेटे का मान -मनौवल सुन रहे पिताजी ने बीच में ही टोका “- बेटा इतना कह रहा है तो तुम्हें हामी भरने में क्या जा रहा है ।अभी उसका मन रखने के लिए हां कर दो। बाद में सोच लेना क्या करना है क्या नहीं। “
“आप समझ नहीं रहे हैं बिट्टू चाहता है कि मैं उसके पास जाकर रहूं। कितनी बार उसे समझाया कि बहू को यहीं रख जाओ। बच्चा होने तक यहीं रहेगी। जच्चा-बच्चा दोनों की देख -भाल अच्छे ढंग से होगा ।यहां पूरा परिवार है,अपना पराया सब लोग है। किसी भी चीज की कमी नहीं होगी। सबसे बड़ी बात है कि आप सर्वे-सर्वा गार्जियन मौजूद हैं। यहां कुछ भी कम-बेस होने पर सम्भाल लेंगे। पर कौन समझाये उसे एक ही जिद ठाने बैठा है कि तुम आ जाओ ! मैं क्या करूंगी इस लाचार शरीर को वहां ले जाकर कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।”
एक काम कर सकती हो तुम ! बिट्टू को यहां आने के लिए मनाओ। मान जाता है तो ठीक है नहीं तो छोटी को साथ लेकर चली जाना। वह साथ में रहेगी तो तुम्हारा और बहू दोनों का ध्यान रख लेगी। साथ में उसका मन थोड़ा बदल जाएगा।
पिताजी की बात सुनकर थोड़ी देर के लिए माँ खुश हो गई, लेकिन पल भर में उनके चेहरे पर एक दर्द सा फैल गया जो आंखों के कोने से आंसू बन गालों पर लुढ़क गया।
खुद को संभालते हुए बोलीं- ” किस मूंह से मैं उस वक्त की मारी चिड़िया से कहने जाऊँ कि मेरे साथ चलो जिसका घोंसला आबाद होते होते उजाड़ हो गया। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं उसके दर्द को कुरेदने जाऊँ और उसको कहूं कि मेरी खुशियों में शामिल होने के लिए चलो।”
पिताजी ने माँ को तसल्ली देते हुए कहा-” देखो यह सब नियति का खेल है। जो होना था सो हो गया। उसके बच्चे को इस दुनियां में नहीं आना था। कुछ न कुछ तो बहाना चाहिए था न! सो बेचारी माँ पर ही थोप दिया भगवान ने!
एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ी….सबने यही इल्जाम लगाया कि मॉडर्न लड़की है जान बूझकर बच्चे को हटवा दिया जबकि वह सीढियों से गिर पड़ी थी। कोई माँ कितनी ही आधुनिक और पढ़ी लिखी क्यूँ न हो वह अपने बच्चे के लिए माँ ही होती है। कहां तक ससुराल वाले उसे ढाढस बंधाते उसके दर्द को बांटते जिससे बेचारी का अपने औलाद खोने का दर्द कुछ कम हो जाता ।उल्टे इतना प्रताड़ित किया कि जीना दुश्वार कर दिया। वह तो भला हो भाई का जो अपनी बहन को यहां जबरदस्ती से ले आया बुलाकर । नहीं तो उनलोगों के ताने और अपने हूक से ही वह अपने आप को खत्म कर लेती।
छोड़ो उनलोगों का करतूत याद कर मन कसैला हो जाता है। अब हमें अपनी बेटी को नयी जिन्दगी देनी चाहिए जिससे वह इस सदमे से उबर पाये।
माँ ने एक गहरी साँस ली और बेटे को फोन लगाया-” रिंग होते ही उधर से आवाज आई हाँ माँ…मुझे पता था तुम ना नहीं करोगी । कब आ रही हो? बताओ मैं टिकट भेज दूँ। बेटा मैं…मैं कह रही थी कि …
माँ , ऐसे रुक- रुक कर क्यों बोल रही हो कोई प्रॉब्लम है क्या?
बेटा मैं सोच रही थी कि छोटी को भी साथ…..
माँ,तुमने तो मेरे मूंह की बात कह डाली। मैं तो सोच रहा था पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था कहने की। आखिर किस तरह और कैसे कहता…समझ नहीं आ रहा था। चलो अच्छा हुआ तुमने मेरे मन की बात खुद ही कह दिया। छोटी को देख रिया भी खुश हो जायेगी। मैं तीन टिकट भेज दूँगा। अभी ऑफिस के लिए लेट हो रहा हूं। ओके कह कर फोन काट दिया।
अपने आप में खोई छोटी पहले तो जाने के लिए तैयार नहीं हुईं लेकिन माँ के मनुहार और भाई की खुशी के लिए भारी मन से हामी भर दिया उसने ।
दो दिन बाद का टिकट था। माँ- पिताजी चाहते थे कि जगह परिवर्तन होने से और माहौल बदलने से उसका मन बदलेगा। थोड़ी खुशियां उसके जीने का सहारा बन जाएगी। उसकी पतझड़ बनी जिंदगी में फिर से नई कोपलें फुटेगी। सबने जाने की तैयारियां पूरी कर ली।नियत समय पर सब स्टेशन पहुंचे। माँ पिताजी अपने आने वाले पोते या पोती के लिए काफी खुश थे।
तीनों लोग दो दिन के सफर के बाद बेटे के पास मुंबई पहुँच गए। माँ ने बेटे को और भाई ने बहन को गले से लगा लिया ।छोटी जब भाभी के गले मिली तो उसके सीने में दबा दर्द फट पड़ा। भाभी बहुत अच्छी और छोटी की पक्की सहेली थीं। उसने छोटी को अपनी छोटी बहन की तरह पुचकारते हुए ढाढस बंधाया। फिर धीरे-धीरे छोटी अपना गम भूलने लगी और भाभी के साथ घुलमिल गई।
सुबह -सुबह माँ बैठी चाय पी रही थीं तभी बेटा आकर उनकी गोद में सिर रखकर लेट गया। माँ ने घबड़ाते हुए कहा-” क्या हुआ बेटा? “
“कुछ नहीं माँ…बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मेरा भी हक है कि मैं तुम्हारे गोद में लेट जाऊँ । है न!”
“सब जोड़ से हँस पड़े। माँ …रिया की मम्मी आना चाहती हैं रिया से मिलने। यह तो बहुत अच्छी बात है बुला लो उन्हें हम भी मिल लेंगे उनसे। “
हाँ माँ,रिया की इच्छा है कि क्यों न हम एक छोटी सी पार्टी रखें गोद भराई की और उसी में सबको बुला लिया जाय। माँ डर गईं क्योंकि अभी -अभी उनलोगों ने बेटी की गोद भराई की तैयारी की थी जो अधूरी रह गई थी। फिर भी कुछ बोलीं नहीं क्योंकि बेटे बहू की खुशी का सवाल था। उन्होंने सशंकित मन से हामी भर दी। बेटे ने धूमधाम से सारी तैयारियाँ पूरी कर ली। छोटी ने भी कभी जाहिर नहीं होने दी कि उसके दिल पर क्या गुजर रही है। उसने अपने चेहरे पर झूठी मुस्कान लिए भाग -भाग कर भाभी को सजाती रही। शाम होते ही पार्टी शुरू हो गई। सारा घर मेहमानों से भरा हुआ था। बीच हॉल में सजी-धजी रिया को बैठाने के लिए छोटी दौड़ कर कमरे में उसे लेने गई।
अंदर रिया की माँ अपने रिश्तेदारों से बोले जा रहीं थीं-” क्या जरुरी था दामाद जी को अपनी बहन को यहां बुलाने का ! हमें तो डर लग रहा है कि कहीं उसकी मनहूसियत तुम्हारे बच्चे पर न पड़ जाए। “
छोटी आगे के शब्द सुन न सकी ।जिस दर्द को उसने अपने भाई और भाभी की खुशी के लिए दिल के किसी कोने में दफ्न कर दिया था उसे भाभी की माँ ने अपने घटिया शब्दों से कुरेद दिया था।
देर होते देख माँ के कहने पर भाई पीछे से देखने गया। वहां जाकर देखा तो छोटी कमरे के बाहर सीढियों पर अचेत पड़ी थी। वह जोर से चिल्लाया…छोटी… मेरी बहन …क्या हुआ तुझे…।
स्वरचित एंव मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर,बिहार