मंजू …
मैंने तुमसे कितनी बार कहा है..कि तुम सुबह उठकर चाय नहीं बनाओगी…
फिर भी तुम नहीं मानती हो …
और बहू को सर पर चढ़ा दिया है..
क्या जरूरत है सुबह-सुबह खुद चाय बनाने की…
घर में बर्तन ,कपड़ा ,झाड़ू पोछा सब चीज के लिए नौकरानी लगी है…
फिर भी बहू सुबह उठकर क्या चाय भी नहीं बना सकती है..
जब देखो तब तुम किचन में लगी रहती हो…
कभी खाना बनाने में ,कभी बरतन लगाने ,कुछ करने में,बच्चों को तैयार करने में…
तुम्हारी इतनी उम्र नहीं रही…
हम दोनों 85 साल के हो रहे हैं…
बहुत सेवा कर ली तुमने सबकी ..
आप भी ऐसी बातें करते हैं जी…
क्या हो गया ,थोड़ा हाथ पैर चला लिए तो मैंने …
बहू भी थक जाती है..
उसका छोटा बालक है..
अगर मैं चाय बनाकर पिला देती हूं तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है..
तुमने देखा नहीं है ,कितनी बार ऐसा होता है कि वीरू हमारे कमरें में नहीं आता ,सीधा अपने कमरे की ओर ही भागता है …
और जेब में भी कई बार कुछ छुपा कर लाता है …
क्या हम उसके मां-बाप नहीं..
हम कौन सा उससे छीन लेंगे..
अगर हमसे पूछ लेगा कि हमें खाना है या नहीं तो हमें भी तो अच्छा लगेगा ना…
क्या हमने कभी ऐसा किया अपने बच्चों के साथ…??
बोल मंजू ..??
और तो और जब उसके ससुराल वाले आते हैं..
तो देखा है कैसे हमें अंदर कर देता है ..
और खुद आवभगत में लग जाता है…
बिल्कुल जोरू का गुलाम है …
कितनी बार ऐसा देखा है कि बहू जिन चीजों के लिए मना कर देती है वो सभी घर में ,रसोई घर में मौजूद होती हैं…
लेकिन फिर भी वह हमें नहीं देती है …
कितना दुख होता है …
वो दिन याद है तुझे ना ,उस दिन तेरा रसमलाई खाने का कितना मन था ….
गोपाल दास की दुकान से लेकर आया था वीरू ..
लेकिन फिर भी उन्होंने कह दिया कि थोड़ी सी बची है ,बिट्टू खाएगा…
उसने तुम्हें नहीं दी…
जबकि तुमने रात में रसोई के फ्रिज में जाकर देखा तो आधा कटोरा रसमलाई रखी थी …
जिसे देखकर तुम वहीं थमी रह गयी …
आंखों में आंसू भी आ गए थे तेरे ..
लेकिन तुमने मुझे आकर नहीं बताया…
क्या मुझे नहीं दिखता यह सब …
कभी बहू तेरे लिए अच्छी साड़ी नहीं लेकर आती …
दूसरी तरफ अपने लिए और अपने बच्चों के लिए ,सबके लिए कितनी अच्छे कपड़े लाती है…
क्या तुम अच्छी साड़ी पहनने की हकदार नहीं…??
कभी उसने देखा है कि तुम्हारे कानों के कुंडल टूट रहे हैं …
तुम कहीं जाती हो तो किस तरह से टांका लगवा कर पहनती हो…
बहू के पास इतने जोड़ी है ,वह भी तुम्हारे दिए हुए ही..
क्या वह उनमें से एक जोड़ी तुम्हें नहीं दे सकती पहनने के लिए… ना तुम मांगती हो…
मुझे इस तरह का व्यवहार बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा है बच्चों का ..
अब मन में गांठ पड़ चुकी है ..
वह नहीं जाएगी..
मंजू जी सोचने पर मजबूर हो गई..
कह तो सही रहे हैं जी…
बहू बेटे के व्यवहार में सच में बहुत परिवर्तन आ गया है…
हमें तो वह इस घर के नौकर की तरह समझते हैं..
वह तो हम ही हैं जो उनके आगे पीछे घूमते फिरते रहते हैं …
चलिए परेशान मत होइए …
सो जाइए ..
सब कुछ राम पर छोड़ दीजिए..
दोनों आपस में बहस कर सो गए. . .
दिन बीत रहे थे ..
हर दिन उनके मन में खटास बढ़ती जा रही थी…
लेकिन कुछ भी अपने बेटे बहू से नहीं कहते थे …
एक दिन जब बहू नीलम अपनी सास मंजू पर चिल्लाई …
क्या है मम्मी जी..??
आप सोने भी नहीं देती..
आपको क्या चाहिए किचन में …
खटर पटर लगा रखी है आपने दोपहर को ..
वो बेटा सुबह जल्दी खाना खाया था तो इस वजह से सोचा कुछ रखा हो तो खा लूं …
आप लोगों को पूरे दिन भूखी लगती रहती है …
यह नहीं सोचा बिट्टू स्कूल से आएगा वह खा लेगा ..
इस उम्र में कम ही खाना चाहिए..
तब तक वीरू भी आ गया था…
आज राजेश जी पर बर्दाश्त नहीं हुआ..
वह भी बहू के आगे बोल पड़े थे…
बहू चुप हो जा अब…
इतना अपमान मैं अपनी पत्नी का बर्दाश्त नहीं कर सकता…
अर्धांगिनी है ये मेरी ..
मेरा घर है ये …
अगर तुझे कोई आपत्ति है हम लोगों से तो तुम सब घर को छोड़कर जा सकते हो…
बहुत देख लिया तुम लोगों का गलत व्यवहार…
पापा ,,ये आप क्या कह रहे हैं …??
आपको पता हैं आप किसे बोल रहे हैं ये सब…
हां जानता हूं किसे बोल रहा हूं ..
बहुत दिनों से बर्दाश्त कर रहा हूं ..
और देख भी रहे हैं हम तू भी कुछ नहीं बोलता …
और हमारे घर पर इस तरह रौब झाड़ती है …
कैसे हमें घर में नौकर जाकर का दर्जा दे रखा हैं…
तूने सुना बहु ने क्या कहा तेरी मां को …
हां सब सुना पापा…
क्या हो गया उसका थोड़ा सा सख्त बोल गयी नीलम …
मानता हूँ आप लोगों को कुछ बातों का बुरा लगा है …
मुझे पता है ..
जैसे हम आपको कोई चीज नहीं देते हैं …
आपको पता है आपकी और मां की शुगर कितनी बढ़ गई है …
हम नहीं चाहते कि आप लोग इस दुनिया से हमें छोड़ कर जाएं…
मां – बाप का सहारा बच्चों के लिए बहुत बड़ा होता है…
उनकी छत्रछाया में हम रहना चाहते हैं…
सामने वाली राजवती जी ने ही टोका था नीलम को…
कि तुम्हारी सास इस उम्र में भी इतने चटकीले रंग की साड़ियां पहनती है..
बड़े-बड़े झाले पहनती है इसलिए नीलम कुछ पैसे इकट्ठे करके मन के लिए टाप्स बनवाने का ऑर्डर दे आई है…
इसलिए नीलम आपके लिए कॉटन की साड़ियां लाने लगी …
जिसमें आप बहुत अच्छी भी लगती है …
लेकिन शायद वह आपको पसंद नहीं आती है…
आपके चेहरे से दिखता है …
आपकी और पिताजी की उस दिन हमने सारी बातें सुन ली थी…
और भी कुछ छोटी -छोटी बातें हैं जो आप लोग कर रहे थे…
ज़िसका शायद आप लोगों को बुरा लगा था …
हमें मां के हाथ की चाय बहुत अच्छी लगती है…
इसलिए स्वार्थी बन जाते हैं,,हम उठ भी जाते हैं तब भी बाहर नहीं आते कि
मां के चेहरे पर भी एक मुस्कान रहती है..
जब वह हमें चाय देती है …
लेकिन शायद आप लोगों के मन में गांठ पड़ गयी…
आप समझते हैं हम उन्हें नौकर की तरह समझ रहे हैं…
रही बात आज की तो हां आज का व्यवहार मुझे नीलम का सही नहीं लगा ..
तुम्हें मां पापा से माफी मांगनी चाहिए …
तुम्हे ऐसा नहीं कहना चाहिए था…
माफ कर दीजिए मां, पापा…
वो मेरी तबीयत ठीक नहीं थी…
क्यूँ …क्या हुआ तेरी तबीयत को…??
मंजूजी का तो सारा गुस्सा ही छूमंतर हो गया…
लेकिन अभी भी राजेश जी का स्वभाव बहुत सख्त था …
नीलम कुछ ना बोली…
थोड़ा सा मुस्कुरा दी …
मंजू जी समझ गई कि फिर से घर में खुशियां आने वाली है…
तो इस समय चिड़चिड़ापन होना वाजिद है …
उन्होंने सब बातों को भुलाकर नीलम के सर पर हाथ रख दिया..
दूधो नहाओ, पूतो फलो …
अगर आपको समस्या है तो आप बता दीजिए…
हम इस घर को छोड़कर चले जाएंगे …
लेकिन आप लोग इस घर में कैसे रहेंगे…
अगर आपको लगता है आपके साथ नौकर की तरह हम व्यवहार करते हैं तो आप जैसे चाहे वैसे रह सकते हैं …
बिल्कुल मना नहीं करेंगे हम…
आपको ऐसा लगता है कि मैं रात में कैसे चीज लाता हूं जो आपको नहीं देता…
वो चीज इस तरीके की होती भी नहीं है जो आप लोग खा सके…
आपको पता है आपका कोलेस्ट्रॉल कितना बढ़ा हुआ है पापा…
आपको ऑयली चीजों की डॉक्टर ने मना कर रखी है…
बिट्टू और नीलम का मन नहीं मानता तो मोमोज या चाऊमीन वगैरह ले आता हूं.
जिसके लिए आप हमेशा ही डांटते रहते हैं..
इसलिए छुपा कर लाता हूं…
आपके मन में जो भी गांठ हो पापा,मां आप उसे आज ही खोल लीजिए
हम नहीं चाहते कि आप लोग गलत फहमी में रहे कि हम लोगों ने आपका ध्यान नहीं रखा …
आज बेटे वीरू की आंखें भी नम थी…
गलती से अगर आपको हमने कोई भी ठेंस पहुंचाई हो तो हमें माफ कर देना…
हो सकता है गलती हमसे हुई हो…
नहीं बेटा ..
अच्छा हुआ आज तूने मेरे मन की गांठे खोल दी ..
ऐसा नहीं है कि हर बार बहू और बेटे ही गलत होते हैं…
हो सकता है कि कुछ गलतफहमियां मां बाप को भी हो जायें…
अगर वीरू आज तू मन की गांठों को नहीं खोलता तो शायद हम इसे लेकर दुनिया से विदा भी हो जाते…
इसलिए समय रहते ही गलत फहमी दूर हों बहुत ही जरूरी है…
मुझे माफ कर दे …
अरे पापा …
आप ऐसी बात करते हैं ..
आप माफी मांग रहे हैं..
हमें माफ कर दीजिए …
सच में हमारा व्यवहार आप लोगों के प्रति हमेशा से रुखा रहा है…
आज मन की गांठे खुल गई थी ..
राजेश जी ने अपने बेटे को गले से लगा लिया था …
और उनके मन में आई हुई खटास दूर हो गई थी…
अगले दिन से बहू बेटे की बातों पर उन्हे गुस्सा नहीं आता था, चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती थी …
और हां चाय आज भी मंजू जी ही बनाती हैं …
स्वरचित
मौलिक
अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा