आज का दिन मेरी जिंदगी का बेहद खूबसूरत और यादगार दिन है… आज मेरे बेटे राज की शादी है… मेरे घर में चांद सी दुल्हन आएगी… खुशी के साथ साथ डर भी लग रहा है… क्या बहु मेरे साथ खुश रहेगी… एक हीं बेटा है.. बहु को बेटी बना कर रखूंगी… ख्यालों को झटक कर सारे इंतजाम का जायजा लेने चलती हूं.. कभी पति की पुकार कभी बेटे की मम्मी मम्मी की मनुहार रिश्तेदारों की खातिरदारी सब अकेले हीं संभालना साथ में अम्माजी के नखड़े उठाती मै पस्त हो जा रही हूं पर बेटे की शादी का उत्साह….
बारात विदा करते समय बेटे की परिछावन के बाद हमारे बिहार में मां बेटे को अपना दूध पिलाने की रसम करती है… मेरी और बेटे की आंखों से इस रसम में आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा.. मैं वापस घर आ गई.. रात में डोमकच की तैयारी करनी है और सुबह बहु के स्वागत की तैयारी..
अगले दिन रिसेप्शन…. सब को चाय नाश्ता करा भारी बनारसी साड़ी खोल कर रखा तो थोड़ा हल्का लगा… अम्माजी के लिए कुक से कह कर सूजी का हलवा बनवाया… थोड़ी देर के लिए कमरे में चली गई.. एक घंटा कमर सीधी कर लो बहु बुआ सास बोली… सारी रात डोमकच में बीत जायेगा..
बिहार में बारात जाने के बाद लड़के वालों के घर औरतें पुलिस वकील डॉक्टर मर्द और भी बहुत तरह का वेश बना रात भर मनोरंजन करती हैं.. एक तो मनोरंजन होता है दूसरा घर के सारे मर्द बारात चले जाते है …चौकीदार या किसी को रख कर जाते है, पर शादी ब्याह में औरतें गहने लेकर आती है तो उनका भी सुरक्षा हो जाता है और सुबह से दुल्हन के आने के पहले खीर पूड़ी बनता है वो भी बन जाता है..
कमरे में आते हीं अतीत में विचरण करने लगी… अल्हड़ सी मै अठारह वर्ष की उम्र में ससुराल आई तो सोचा नहीं था ऐसे अनुभव होंगे… अम्माजी के #मन की गांठ #मेरी जिंदगी के खूबसूरत लम्हों में भी मुझे रोने सिसकने के लिए मजबूर कर दिया… मेरे पति के बड़े भाई ने अम्माजी के व्यवहार से तंग आ कर घर छोड़ दिया था और पत्नी बच्चों के साथ दिल्ली बस गए थे… छुट्टियों में ससुराल चले जाते पर यहां नहीं आते.. और अम्माजी की सासू मां ने उन्हें बहुत तंग किया था…
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वो कसर भी उन्हें अपनी बहु निकालना था.. मेरे पति मनोज जब कभी मेरी तरफ से बोलते अम्माजी चिल्लाने लगती तू भी चला जा अपनी पत्नी को लेकर.. मैं सब जानती हूं वो रहना नहीं चाहती है मेरे साथ इसलिए तुम्हारा कान भरते रहती है.. बेचारे चुप हो जाते.. रात में सोने जाती तो मेरे आंसू पोंछ मुझे समझाते शुभा तुम हीं बताओ मैं क्या करूं.. कई बार मुझे अम्माजी तबियत खराब होने का बहाना कर महीनों अपने पास सुलाती .. कोशिश करती पति से मै दूर हीं रहूं.. कभी हल्की नोक झोंक हमारे बीच होती तो आग में घी डालने का काम करती…
कोई भी बात व्यंग और ताना के बिना पूरा नहीं होता…मेरी सास ऐसे करती थी..तू उनके साथ रहती तो पता चलता सास क्या होती है…मेरा खाना पहनना सब उनके आदेश से होता.. मनोज कसमसा कर रह जाते.. कहीं घूमना होता तो वो भी साथ साथ जाती..
कभी हमारा मन होता रोमांटिक मूवी देखने जाए पर वो धार्मिक मूवी हीं देखती थी इसलिए मन मारकर… बेटे राज का जनम मेरे लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं था.. उसके साथ मैं अपने सारे ग़म भूल जाती… धीरे धीरे राज बड़ा हो रहा था.. पढ़ने में होशियार राज घर के माहौल और अपनी दादी का मेरे प्रति व्यवहार उसे समझ आ रहा था.. कुछ भी गलत देखता तो रिएक्ट करता.. अम्माजी कहती मेरे बेटे को तो वश में कर हीं लिया अब अपने बेटे को भी सिखा पढ़ा दिया है..
वक्त गुजरता गया.. राज डॉक्टर बन गया है… कुछ साल अपने शहर के हॉस्पिटल में हीं रहेगा.. बहु भी डॉक्टर है… उसके पसंद की लड़की है…
राज की शादी के दो साल गुजर गए पता हीं नहीं चला.. बहु नव्या कब बेटी बन गई पता हीं नहीं चला… मैने दिल खोलकर उसपर ममता लुटाई और उसने मेरी ममता का मान रखा… राज अम्माजी के लिए एक नर्स रख दिया है… अम्माजी की कंघी मालिश सब वही करती है… अम्माजी उससे मेरी खूब शिकायत करती है.. मैने अनुभव कर लिया था #मन की गांठ #प्रेम ममता दया सारे रस को सोख लेती है… नव्या हॉस्पिटल से आकर हाथ मुंह धोकर मम्मी मम्मी का गुहार लगाते गले में लिपट जाती है..
. कुछ खिलाओ मम्मी थक गई हूं.. कई बार अपने हाथों से उसे खिला भी देती हूं.. राज और मनोज खूब हंसते हैं.. कुक के रहते हुए कई बार बच्चों के लिए मालपुआ आलूदम , पकौड़े पावभाजी लिट्टी चोखा अपने हाथों से बनाती हूं.. नव्या और राज को प्रेम से खाते देखती हूं तो मन तृप्त हो जाता है… एक दिन नव्या अपनी थाली से एक निवाला लेकर मेरे मुंह में डाल दिया उसी समय अम्माजी बेसिन पर हाथ धो रही थी… देखते हीं चिल्लाना शुरू कर दी.. सारा संस्कार नाली में बहा दिया.. बहु का जूठा खा रही है..
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हे ठाकुर जी कैसा दिन दिखा रहे हो… ऊपर उठा लो मुझे… नव्या दुखी मत हो… तुम बेटी हो मेरी…. बहु का जूठा नहीं खाते हैं बेटी का नहीं… मैने माहौल को हल्का कर दिया.. क्योंकि मेरे मन में गांठ नहीं है.. निर्मल मन से अपनाया है मैने नव्या को.. उसकी खुशी से मैं खुश होती हूं… पिछले महीने मलेरिया हो गया था मुझे.. नव्या तीन दिन हॉस्पिटल नहीं गई… जी जान से मेरा ध्यान रखा… अपने हाथों से खिलाया.. मेरे लंबे उलझे बालों को धीरे धीरे सुलझा कर चोटी बनाई… रात में मेरे सिरहाने कुर्सी पर बैठे बैठे सो गई..
मनोज राज को बुलाकर नव्या को जबरदस्ती भेजा.. मनोज बोले शुभा की थोड़ी सेवा मुझे भी करने दो बच्चे… ये मेरी अर्धांगिनी है.. बहुत अच्छी नींद आई… दिल से जिस रिश्ते को अपना ले वहीं अपना हो जाता है वरना# मन की गांठ #रिश्ते से प्रेम को सोखकर खोखला बेजान और जटिल बना देती है..
#मन की गांठ
Veena singh