“मेरी रचना मन की गाँठ में पांच पात्र हैं जिनके मन की गाँठ खुल नहीं रही ।आगे देखते हैं क्या होता है ।इस कहानी में राघव जी उनकी पत्नी सीमा,उनका बेटा विनय उसकी पत्नी विभा और एक शादी शुदा बेटी रीना है ।पहले राघव जी की सुनते हैं—मेरा बेटा विनय बहुत अच्छा और आज्ञाकारी है।मैं अपनी कम्पनी से रिटायर हो गया हूँ ।सभी लोग साथ में रहते हैं ।बेटा बहू भी नौकरी करता है ।
दिल्ली जैसे शहर में भागम-भाग की जिंदगी है ।किसी के लिए किसी के पास समय नहीं है ।बेटा बहू सुबह निकलता है तो रात को आठ बजे तक लौटना होता है ।बहू थकी हुई होती है ।आकर पड़ जाती है ।चाय मेरी पत्नी सीमा को बनाना पड़ता है ।बस यहीं से खिच खिच शुरू हो जाती है ।सीमा कहती है,मै दिन भर घर की देखभाल करती हूँ,खटती रहती हूँ तो मुझे भी तो लगता है
बहू आकर संभाल ले रसोई ।सीमा बड़बड़ाती हुई रसोई में लग जाती है ।मै समझाने की कोशिश करता हूँ कि आखिर वह भी तो इनसान है ।थक जाती होगी बेचारी ।वैसे बेटा मेरा समझदार है लेकिन मुझे भी लगता है कि आफिस से आकर मेरे पास बैठे, हालचाल पूछे।रिटायर होकर मै एकदम अकेला हो गया हूँ
।अपने छोटे से शहर में था तो रोज कितनों से मिलना जुलना होता था ।हालचाल, दुआ सलाम होता था समय कब भाग जाता , कुछ पता ही नहीं चलता था।मै जहाँ नौकरी पर था वहां पेंशन की सुविधा नहीं थी ।हाथ खाली हो गया ।जीवन में जो कमाई हुआ वह सब बच्चों की शिक्षा, शादी ब्याह, छठी मुंडन में खत्म हो गया ।
एक छोटा सा आशियाना जो पिता जी का बनवाया हुआ है बस वही बच गया है ।अपने हाथ खाली होने के कारण बेटे के साथ रहना पड़ा ।बच्चे भी यही चाहते थे कि सब एक साथ रहेंगे तो समस्या का हल होगा ।लेकिन मन का मिलना मुश्किल हो गया ।घर की भी चिंता लगी रहती है कि कोई नहीं रहने पर चूहे, और दीमक सबकुछ बरबाद कर देंगे ।कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें?
—-देखते हैं सीमा क्या सोच रही है ।”–मेरी भी तो उम्र हो रही है ।कितना करूँ? सबको समय पर नाशता,खाना चाहिए ।विभा सुबह आठ बजे जाती है तो रात में विनय के साथ ही आठ बजे तक आती है ।फिर महारानी के जैसी आराम फरमाने लगती है ।कहती हैं कि परिवार के लिए ही तो यह कर रही हूँ ।बड़े शहर का खर्च भी तो बहुत है।अम्मा जी समझती नहीं है ।थोड़ा काम करना पड़ा तो हंगामा मचा देती है ।
मै भी इनसान हूँ ।अरे तुम बहू हो हमारी, कुछ जिम्मेदारी निभाना तो पड़ेगा ही।एक तो बेटे को फुसला लिया ।लव मेरिज कर लिया ।क्या हमारे कुछ अरमान नहीं थे? सोचा था कि एक ही तो बेटा है ।अपनी पसंद की, खूब देख सुन कर बहू लायेगें ।खूब शानदार शादी होगी ।सबकुछ तुम्हारे परिवार ने मटियामेट कर दिया ।
क्या करती हार कर बेटे की पसंद को स्वीकृति दे दी ।मन के सारे अरमान धरे रह गये ।चलूँ रसोई भी तो देखनी है ।पता नही कब तक महारानी किचन में आयेगी? वैसे देखने में बहुत सुन्दर है ।स्वभाव भी बुरा नहीं है ।लेकिन अपने मन का क्या करें? बहू आधुनिक कपड़े पहनकर कहीं भी चली जाती है ।मुझे बहुत गुस्सा आता है ।
चलती हूँ—।विनय क्या सोचता है,आइये देखते हैं—-अम्मा घर में कभी खुश ही नहीं रहती ।समझ में नहीं आता कि क्या करें? सब सुविधाएं जुटा रखी है ।काम के लिए बाई है ।कहा तो था कि एक रसोई बनाने के लिए भी रख लेते हैं ।पर अम्मा ने मना कर दिया ।बोली की अपने हाथ की रसोई अच्छी होती है,तो बनाओ ।फिर विभा को देखते ही पारा चढ़ क्यो जाता है ।
कितना तो करती है बेचारी सबके लिए ।बाहर काम करती है तो थोड़ा जींस वगैरह पहन लेतीं है।वह अम्मा को जरा भी पसंद नहीं है ।कितना समझाया था कि अम्मा, साड़ी और घूंघट मे ही अगर बड़ो का आदर सम्मान न करे तो वह बेकार है ।विभा कितना सम्मान करती है ।कभी अपने लिए कुछ नहीं खरीदती ।हमेशा कहती है कि पहले अम्मा जी और पापा जी की जरूरत पूरा होने चाहिए ।
कल पापा का चश्मा टूट गया तो अम्मा ने पूरे घर को सिर पर उठा लिया “अरे,तुम लोगों को मा बाप की जरूरत दिखता नहीं है “पत्नि के फैशन में कमी नहीं होने चाहिए ।पापा घर बैठ गए हैं तो खाना खिलाना अखरने लगा है ।”ऐसी बात नहीं है अम्मा,कल बनवा दूँगा चश्मा ।आज समय नहीं मिल पाया “मैंने समझाया ।
लेकिन वह समझने को तैयार ही नहीं ।कितना मानता हूँ इनको ।लेकिन जरा भी नहीं समझते ।मै तो दो पाटों के बीच पिस कर रह गया हूँ ।रोज थक-हार कर लौटता हूँ तो घर लड़ाई का अखाड़ा बना रहता है ।अम्मा के मन में हमारे प्रति जो गाँठ पड़ी रहती है, कैसे खोलूं? समझ में नहीं आ रहा है ।आज भी लगता है नाशता नहीं बना है ।
विभा भी देर से उठी है।अपनी तैयारी में लग गई है ।जबसे मैंने अपनी पसंद की शादी की तभी से अम्मा नाराज रहती है ।पहले ही मना कर देती ।चलता हूँ आफिस भी तो समय पर पहुंचना होता है ।वरना बाॅस की नाराजगी और निकाले जाने की समस्या आ सकती है– ।विभा—अम्मा जी को रोज रोज न जाने क्या हो जाता है ।
आफिस से आकर दस मिनट आराम करने से ही नाराज हो गई थी ।फिर तो लग ही जाती हूँ न? उनके सुख सुविधा, खाने पीने का कितना सोचती हूँ ।कभी अपने लिए कुछ नहीं खरीदती ।जो कुछ भी पहन रही हूँ वह सब अभी तक मेरी माँ का दिया हुआ है ।हां विनय ने जबसे दो जींस लाकर दिया तभी से वह नाराज हो गई थी ।
आज तो आफिस से आयी तो मालूम हुआ कि उनहोंने दिन भर कुछ नहीं खाया है ।पापा बता रहे थे कि बहू मुँह उघाड़ कर, जींस पहनकर सबके सामने जाये मुझे अच्छा नहीं लगता है ।मैंने अम्मा जी को बहुत मनाया ।हाथ पांव जोड़े , वादा किया अबसे जैसा वह चाहेगी वैसा ही करेंगे ।तब जाकर कुछ शान्त हुई ।रोज विनय के आते ही शिकायत का पुलिंदा ले कर बैठ जाती ।
“कल तुमहारी बहू ने सिर उघाड़े बाजार चली गई थी ।और बड़ी दीदी का लड़का मिल गया था तो हाथ जोड़ कर प्रणाम किया “भला बताओ तो परिवार में ऐसे भी किया जाता है? हमारे यहाँ बहू पैर पकड़ कर प्रणाम करती है।क्या कहेंगे वह?कैसी निर्लज बहू है?फिर विनय ने बहुत समझाया,माफी मांगी तब जाकर शान्त हुई थी अम्मा जी अब के जमाने में इतना जोर जबरदस्ती? कैसे निभेगी?
समझना पड़ेगा अम्मा जी को ।अम्मा जी के लिए उनकी हर जरूरत का खयाल रखती हूँ ।फिर भी खुश नहीं रहती ।जबसे हमारी शादी हुई, उनके मनमें गाँठ पड़ गयी है कि बहू और उसके मायके वालों ने बेटे को फुसला लिया ।इस गाँठ को मुझे खोलना ही होगा अपने व्यवहार से ।कोशिश करूंगी ।देखें कब सफलता मिलती है ।
–और अब–रीना की बात–आज सुबह अम्मा से मिलने का मन हो गया ।इतवार भी था और छुट्टी भी ।सोचा चलते हैं ।बहुत दिनों से नहीं गई थी ।हालांकि एक ही शहर में रहने से कुछ सुविधा भी थी।नौ बजे ही पहुंच गयी वहां ।भैया सोया हुआ था ।भाभी अभी सोकर उठी थी ।बाथरूम जा रही थी।पापा अखबार में लगे हुए थे ।
और अम्मा—?वह तो मुँह फुलाए बैठी हुई थी ।”अभी सो कर उठी है महारानी,भला बताओ कि यह भले घर का तरीका है? कबसे पापा चाय मांग रहें हैं ।नाश्ते का समय हो रहा है ।कब बनेगा? कब लोग खायेंगे? मुझे तो विभा रानी के कोई भी लक्षन ठीक नहीं लगता ।जब भी मै वहां गयी।अम्मा को भाभी से नाराज ही देखा ।
भैया दोनों के बीच सैंडविच बने रहते ।दोनों उनके अपने थे।माँ भी,और पत्नी भी ।किसे समझाएं? कोई समझने को तैयार ही नहीं ।सबके मन में एक दूसरे के लिए गाँठ पड़ी रहती है अब मुझे ही उसे खोल कर सुलझाना होगा ।भाभी कहती”विभा,मैंने अम्मा जी के सेवा में कोई कमी नहीं होने दी ।हरदम उनका खयाल रखा है ।
जो कहा वो माना है फिर भी खुश नहीं रहती है मुझसे ।लगता है कि अब घर छोड़ कर कहीं चले जायेंगे ।”नहीं भाभी,आप ऐसा कुछ भी नहीं सोचिए,”मै देखती हूँ अम्मा को ।अम्मा बरामदे में अकेली बैठी थी ।जाकर घेर लिया ।कैसी हो अम्मा?वह फट पड़ी “देख रही हो न घर की हालत? “न खाने का समय का ठिकाना है न बनाने का ठिकाना “–“अरे—अम्मा तुम भी क्या बहू पुराण ले कर बैठ जाती हो।भाभी बहुत
अच्छी है ।सबका कितना खयाल रखती है ।अब सप्ताह में एक दिन तो छुट्टी मिलती है तो थोड़ा आराम कर लेती है,अपने मन से जी लेती है “इसमें बुरा क्या है? और अम्मा,मै जब भी यहाँ आती हूँ तो तुम बहू की शिकायत का टोकरा लेकर बैठ जाती हो।जो मुझे अच्छा नहीं लगता है ।मै भी तो अपनी गृहस्थी की समस्या को छोड़ कर खुशी की तलाश में दौड़ कर यहाँ आती हूँ ।दिन भर भाई और भाभी मेरे पसंदीदा बना कर
खिलाती है ।दुख सुख पूछती हैं ।अच्छी सलाह देती है ।और सबसे बड़ी बात आप दोनों का बहुत आदर सम्मान करतीं है।हमेशा आपदोनो के लिए चिन्तित रहती है ।वह भी तो आदमी है अम्मा ।क्या हुआ कभी जींस पहन लिया ।क्या हुआ थोड़ा बाजार घूमने चली गई? घर की जरूरत तो पूरा करती है ना? और क्या चाहिए ।जितना हो सके उनकी मदद करने के लिए तैयार रहिए ।अपना शरीर भी चलाना अच्छा होता है ।जो
नहीं होता भाभी से कह दीजिए कि नहीं होगा हमसे ।वह क्या जबरदस्ती करेगी आपसे? अम्मा कुछ कुछ समझने लगी थी ।”हाँ बिट्टी,मेरी भी हमेशा गलती रही है,पता नहीं क्यों मुझे बार-बार लगा कि मेरे बेटे को उसने अपने वश में कर लिया है ।खयाल तो बहुत रखतीहै वह।”मै अपने मन को सुधारने की कोशिश करती हूँ “–“हाँ अम्मा,अबसे भाभी की शिकायत करना बंद “तभी मुझे यहाँ आने पर अच्छा लगेगा ।
मुझे लगा अब कुछ कुछ गाँठ खुल रही है ।मैंने अम्मा में बदलाव महसूस किया ।दिन भर हंसी खुशी मे बीत गया ।भाभी से अब लौटने की इजाजत ली तो वे दौड़ कर अन्दर गयी और एक कांजीवरम की सुन्दर सी गुलाबी साड़ी लेकर आई और मुझे थमा दिया “यह आपके लिए छोटी सी भेंट “मेरी प्यारी ननद के लिए ।भैया ने मुझे छोड़ने के लिए गाड़ी निकाल लिया ।भाभी गले लग गई ।अम्मा पापा के पैर छूने लगी
तो उनके आखों में खुशी के आँसू भर आए थे ।दुख भी था बेटी से बिछड़ने का ।लेकिन भाभी अम्मा को संभाल कर अंदर ले गई ।पापा ने आशीर्वाद दिया “तुमने हमारी आखें खोल दी बिट्टी,जाओ खुश रहो “जैसे यहाँ सबको जोड़ा, अपने घर परिवार में जुड़ी रहो।अपनी आखों के आँसू पोंछ कर गाड़ी में बैठ गयी ।भैया बार बार हाॅरन बजा रहे थे ।—।मुझे नहीं पता कि मैं मन की गाँठ को कितना खोल पाई।
—उमा वर्मा,नोएडा से ।स्वरचित ।मौलिक ।