मन के रिश्ते – भगवती सक्सेना गौड़ : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सजग अपने आफिस में बैठे जल्दी फाइल्स चेक कर रहे था, तभी मोबाइल मे मैसेज आया, नजर पड़ी, अरुणिमा मां एक्सपायर्ड…..

अचानक बोल पड़ा, ओह माय गॉड !!

तुरंत चेक करके लखनऊ की फ्लाइट बुक कराई।

निकल पड़ा, फ्लाइट में बैठते ही, विचार भी उसके साथ चालीस वर्ष पीछे अतीत में उड़ चले।

अपनी कक्षा में बैठा दस वर्षीय सजग किताब खोल ही रहा था, कि लंच की घंटी बजी और देखा, सब छात्र जल्दी जल्दी अपना टिफिन बॉक्स निकालने लगे। हर दोस्त के चेहरे की खुशी देखकर ही वो प्रसन्न हो गया, पर जैसे ही अपने डब्बे की याद आयी वो परेशान सा हो गया, फिर से सूखी ब्रेड खानी पड़ेगी। हर दोस्त के डब्बे खुल चुके थे, परांठा, सब्जी और कई तरह के व्यंजन की खुशबू उसको ललचा रही थी। ये खुशबू उसको अपनी मम्मी की याद दिला रही थी, आंखों में आंसू भरकर किसी तरह सूखी ब्रेड काटने लगा। डर भी लग रहा था, नही खाया तो नयी मम्मी बहुत डाँटेगी, पापा से शिकायत करेंगी, देखिए खाना नष्ट करता है, फिर मार पड़ेगी।

तभी दूसरी घंटी बजी और हिंदी की टीचर आयी और बोली, “आज शिक्षक दिवस है, आज सिर्फ एक पन्ने पर बच्चो जो तुमको बहुत अच्छा लगता है, उसको पत्र लिखो।”

और सजग जिसके दिमाग मे अभी तक मम्मी विचरण कर रही थी, वो अपनी मम्मी को ही पत्र लिखने लगा।

मेरी प्यारी मम्मी,



तुम अचानक कहाँ चली गयी, हमेशा कहती थी, तू मेरा राजा बेटा है। पहले कहीं भी जाती थी, तो जल्दी आ ही जाती थी। पापा पहले मुझसे बोलते थे, मम्मी आप भगवान के घर मे हो, किसी दूसरे के घर इतने दिन नही रहते, आ जाओ न।

जानती हो, घर मे पापा दूसरी मम्मी ले आये, जो मुझे बिल्कुल अच्छी नही लगती, बार बार मेरा अपमान करती हैं, मेरा चेहरा भी नही देखना चाहती, सबसे अंत मे बचा खुचा खाना देती हैं। अब पापा भी बहुत रात में आते, उनसे मुलाकात भी कम होती। तुम जानती हो, मुझे रात को बहुत डर लगता था, तुम्हारे पल्लू से सिर ढक कर ही मुझे नींद आती थी। आधी रात को कई बार उठकर तुम्हारी फ़ोटो लेकर सोता हूँ। जानती हो मम्मी, लंच में आज वही आलू की भुजिया सब्ज़ी की खुशबू फैली थी और मेरी आँखों मे आंसू आ गए, जब से तुम गयी, मैंने नही खाया। एक बात और एक वर्ष पहले एक छोटी सी प्यारी सी बहन आयी है, जब मेरा हाथ पकड़ती है, मुझे लगता तुम आयी हो, पर नयी मम्मी उसे तुरंत ले जाती हैं।

ये पत्र मिलते ही आ जाना, अब बस, जोर से रुलाई आ रही है।

और तभी टीचर जी ने बोला, अब मैं ये पत्र कल देखूंगी, आज छुट्टी होने वाली है।

और सजग दौड़कर अपना पत्र का पन्ना फाड़कर टीचर जी के पास गया और बोला, “मैम, मेरा प्लीज एक काम कर दीजिए।”

“ये पत्र एक लिफाफे में डालकर भगवान जी का पता लिख दीजिए, मेरी मम्मी वहीं पर हैं।”

अब टीचर जी हक्की बक्की हो उस पत्र को पढ़ने लगी, टूटे फूटे शब्दो मे भी भावुकता कूट कूट कर भरी थी और अंतिम लाइन तक वो हिचकी लेकर रोने लगी।

“अरे, मैम, आपकी भी मम्मी कहीं गयी है क्या, क्यों रो रही है।”

टीचर अरुणिमा जी ने उसको लिपटा लिया और बोली, “बेटा, सुनो, आज से तुम मुझे अपनी माँ ही समझो, सब बातें किया करो, मैं रोज तुम्हारे लिए लंच बनाकर लाऊंगी।”

वो अरुणिमा मां  उस दिन से चलिश वर्षों तक उस पर अपनी ममता लुटाती रही, आज उसे अनाथ कर गयी, कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से भी अनमोल होते हैं।

#अपमान

स्वरचित

भगवती सक्सेना गौड़

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!