मकान का किराया – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

मूसलाधार बारिश हो रही थी, एक बूढ़ा आदमी अपने कमरे का दरवाजा खोलकर फर्श पर बैठा बरसात को देख रहा था।निशा(छोटी बहू)…पिताजी (ससुर) के लिए पकौड़े बना रही थी तभी निशा के मोबाइल की घंटी बजती है निशा फोन रिसीव करती है,वह कुछ बोलती उससे पहले ही जेठ जी की कड़कती आवाज उसके कर्ण को भेद जाती है।

हमारे मकान का किराया दो…दस साल का पांच हजार के हिसाब से मकान का किराया पचास हजार होता है। निशा आश्चर्यचकित हो जाती है,वह कुछ पूछती उससे पहले ही फोन कट जाता है.

निशा पिताजी के पास जाती है और बताती है कि आपके बड़े बेटे का फोन आया था।कह रहे थे कि मकान का किराया दो…दस साल का पांच हजार के हिसाब से पचास हजार हुआ ह।यह सुनते ही उनकी आंखें फटी की फटी रह जाती है…जैसे उनके हृदय पर किसी ने बज्र पात कर दिया हो। निशा की आंखो से आंसू झरने लगते है। उसे कुछ समझ मे नही आ रहा…मन मे हजारों सवाल उठ रहे थे। निशा अपने पति विवेक के आने का इंतजार करने लगती है जो प्राइवेट स्कूल में अध्यापक था

विवेक के आने पर निशा सारी बात बताती है। विवेक को यह सब सुनकर तकलीफ़ होती है और गुस्सा भी आता है।

विवेक निशा को बताता है…कि उसका बड़ा भाई विकास विन कमांडर अफसर हैं उन्होंने यह मकान चोरी से अपनी सास के नाम से खरीदा था।पिताजी अध्यापक थे… रिटायर हो गए पेंशन बनने मे समय लग रहा था इसलिए वे कोचिंग मे पढ़ाने लगे, कोचिंग में ज्यादा पैसे नही मिलते थे, इसलिए मकान का किराया और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था…घर में मेहमानो का भी आना-जाना बहुत अधिक था। मेरा भी  ग्रेजुएशन का आखिरी साल था। ऐसे मे पिताजी वनारस अपने पैतृक गांव लौट जाना चाहते थे। लेकिन भाई साहब ने कहा जब तक आपकी पेंशन नही बन जाती तब तक आप हमारी सास के मकान मे रहिए कोई दिक्कत नही होगी।

उनका मकान इनकम्पलीट था न खिड़की, न दरवाजे, न बिजली, न पानी…फर्श भी कच्चा था । भैया ने पिताजी से पचास हजार रुपए लेकर मकान को कामचलाऊ तैयार करवा दिया। तब से हम लोग ऐसे ही यहां रहे है।



रिटायर होने के बाद जो पैसा मिला उससे पिताजी ने मेरी और छोटी बहन की शादी कर दी.शादी में भी उन्होंने पिताजी का आर्थिक रूप से कोई सहयोग नही किया। कभी भी किसी चीज की कोई जिम्मेदारी नही उठाई।

   निशा बोली कि मकान का किराया पहले क्यों नही मांगा ? और अब  मुझसे क्यो मांग रहे है? मेरी शादी को तो अभी कुछ ही महीने हुए है।

पिताजी को बड़े बेटे से घोर निराशा हुई उन्होंने मौन धारण कर लिया।कभी-कभी निशा के पास आते और कहते बहू मुझे माफ कर देना मैंने तेरे लिए कुछ भी नही किया।वह हमेशा यही सोचते रहते कि मेरे मरने के बाद मेरे छोटे बेटे और उसके बीवी बच्चे का क्या होगा? सोचते- सोचते वे अवसाद में चले गए पागलो जैसी हरकतें करने लगे और धीरे-धीरे उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया।

निशा को पता ही नही चला कि शादी का सुख क्या होता है।इतनी तंगहाली मे निशा को एक साल बाद बेटा होता है। उसे ऐसे लग रहा था जैसे उसके पास एक नही दो-दो बच्चे है। चार साल बच्चे तथा पिताजी की देखभाल मे बीत गया। उलझनों में धीरे धीरे निशा का भी स्वास्थ्य खराब रहने लगा।

चार सालो मे उनके बड़े बेटे विकास ने एक बार भी फोन नही किया और ना ही पिताजी का हालचाल लिया। पिताजी की तबीयत अधिक खराब हो गई डाक्टर ने भी जवाब दे दिया अब बचने की कोई उम्मीद नही है। विवेक ने बड़े भाई विकास को फोन करके बताया कि पिताजी का देहांत हो गया।वे लोग यह सुनते ही खुशी-खुशी पिताजी की तेरही करने के लिए आ गए।

तेरहवीं निपटाने के बाद सभी लोग अपने-अपने घर चले गए। एक दिन छुट्टी थी निशा विवेक बैठे हुए थे तभी विवेक के बड़े भाई विकास का फोन आता है विवेक ने फोन उठाया “हैलो” हां…प्रणाम भैया।


“खूश रहो”  मकान का किराया दो – “पचास हजार रुपए”। विकास ने गम्भीर स्वर मे कहा।

कैसा किराया? – विवेक ने कहा।

इस पर दोनों भाइयों मे फोन पर ही बहस शुरू हो गई। विवेक ने रोते-रोते फोन निशा को पकड़ा दिया और कहा यह लो पकड़ो फोन और आज जो कह सकती हो कह दो। निशा ने आज अपनी चुप्पी तोड़ दी…भाई साहब आपने दस साल पहले पिताजी से पचास हजार रुपए लेकर अपने मकान की मरम्मत करवाई और अपने ही पिता को अपना मकान किराये पर दे दिया। ऐसे मे देखा जाए तो पिताजी दस साल पहले ही आपको मकान का किराया दे चुके है।नियमानुसार किरायेदार अगर किराये के मकान मे पैसा लगाता है तो वह पैसा किराए में कट जाता है।अब तो आपको उस पचास हजार रुपए का ब्याज देना चाहिए क्योंकि किराया तो आपने दस साल पहले ही पिताजी से ले लिया था। यह सुनते ही विकास आग बबूला हो जाता है।

“बहुत बोलती हो तुम।” – विकास बोला।

“जी मजबूर तो आप ही ने किया भाई साहब।”-  निशा बोली।

“अच्छ… अच्छ… कहकर विकास ने फोन काट दिया।”

दो बहन एक भाई के होते हुए भी आज विवेक अपने आप को अनाथ महसूस कर रहा था। उसके साथ कोई भी नही खड़ा हुआ ना ही कभी किसी ने सांत्वना के दो शब्द बोले….किसी प्रकार की मदद करना तो बहुत दूर की बात थी।

विकास ने मकान बेच दिया। विवेक अपनी पत्नी व  बच्चे के साथ किराये के मकान मे रहने लगा। विवेक के लिए किराए के मकान मे रहना आसान नही था क्योंकि सैलरी बहुत कम मिलती थी और सैलरी कभी भी समय पर नही मिलती थी, महिना खतम होते-होते काफी कर्जा हो जाता था। विवेक के घर का कोई भी सदस्य कभी झांकने नही आया।किसी ने सच ही कहा है गरीबी बहुत बुरी चीज होती है। गरीबो के रिश्ते नही होते – इस तरह से विवेक के सभी रिश्तो का दिल से अन्त हो गया।

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश में

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