मैं नहीं चाहती कि मैं नेनी बन कर पूरी जिंदगी बिता लूं… – भाविनी केतन उपाध्याय 

”  भाभी, आज तो आप बहुत देर से उठी… चाय नाश्ता भी बच्चों ने आप के हाथों में लाकर दे दिया । मैं तो इंतजार कर रही थी कि आप आकर अपने बच्चों के साथ साथ मेरे बेटे का टिफिन भी बना लेंगे रोज की तरह…!! आप नहीं आई तो फिर मैंने उसे परांठा और अचार दे दिया… वो मुंह फुलाकर नाराज़ होते हुए लेकर गया… उसे आप के बने हाथों से बने खाने की आदत जो पड़ गई है।  तबियत तो ठीक है ना आप की ? ” अवनि ने अपनी जेठानी काव्या को कहते हुए घड़ी की ओर देखा।

 

” हां अवनि, तबियत बिल्कुल ठीक है मेरी…… बहुत दिनों तक घरवालों को और बच्चों को संभाल लिया,अब संभालने की बारी खुद की हैं। बहुत दिन हो गए चैन से सुकून की नींद लिए हुए,अब बच्चे बड़े हो गए हैं… तुम्हारे जेठजी रिटायर तो किसी को समय पर पहुंचने की जल्दबाजी नहीं है तो सोचा थोड़ी देर ओर सो जाऊं तो सो गई। बच्चे खुद का काम कर सकते हैं तो क्यों ना मैं थोड़ा सा समय अपने लिए निकालू ? पहले सासूमां की घर गृहस्थी को संभाला फिर अपने बच्चे, आगे तुम्हारे बच्चे और फिर मेरे बच्चों के बच्चे…. ऐसे ही मेरी तो सारी उम्र निकल जाएगी और मैं नहीं चाहती कि मैं  नेनी बन कर पूरी जिंदगी बिता लूं…. इसलिए मैं चाहती हूॅं कि तुम अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करो।

 

मैं तुम्हारे बेटे को भी देखूंगी अपने बच्चों की तरह ही पर अब अपने हिसाब और समय से…. ये गलतफहमी मत पालना कि जेठानी का सबकुछ निपट गया तो उन्होंने अपनी बगलें ऊंची कर ली पर एक बार मेरी जगह पर खुद को देखकर सोचो तो तुम्हें सब समझ में आएगा। तुम्हारे आने से पहले मैं तो काम करतीं थीं और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थी पर क्या मेरी पूरी जिंदगी सब का काम करने में और जिम्मेदारी उठाने में ही चली जाएगी ? नहीं ना ? मेरी जिंदगी पर मेरा भी तो कुछ अधिकार है कि नहीं ? बस वो ही अधिकार अब जता रही हूॅं …” कहते हुए काव्या ने चाय पी और नाश्ता करने लगी।

अवनि खड़ी खड़ी बदली हुई काव्या को देख रही थी जिसकी आंखों में नये साल की नई आशाएं और नए सपने जगमगा रहे हैं…..अब वो खुद के लिए जीना चाहती है……

दोस्तों, काव्या का निर्णय सही है या ग़लत मुझे कमेंट के जरिए बताइए और कहानी पसंद आए तो शेयर और लाइक करे तथा मुझे फोलो भी करें 🙏🙏

 

स्वरचित और मौलिक रचना ©®

धन्यवाद,

आप की सखी भाविनी केतन उपाध्याय 

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