आज शर्मा जी ने अपनी अंतिम सांसें ले ली।उनका पार्थिव शरीर कमरे में पड़ा था ।भरा पूरा परिवार था शर्मा जी का । पत्नी थी चार चार बेटे बहुएं थी ।एक बेटी थी जो अपने ससुराल में थी ।एक बेटे बहू को छोड़कर सब बेटे अलग-अलग रहते थे। सबसे बड़े बेटे ने कुछ लोगों को खबर दी कि पापा नहीं रहे तो धीरे-धीरे लोगों का आना जाना शुरू हुआं तो शर्मा जी के पार्थिव शरीर के पास कुछ लोग आकर बैठे। पत्नी पुष्पा भी घर में मौजूद थी लेकिन वो सामने नहीं आ रही थी ।
पुष्पा का मायका इसी शहर में था तो पुष्पा की भाभी आई और अंदर जाकर बोलीं पुष्पा जीजी जीजा जी नहीं रहे अब तो पुरानी मन की गांठें खोल दो ।अब तक मन में यूं ही गांठ बांध कर बैठी रहोगी ।लोग क्या कहेंगे इस समय तो उनके पार्थिव शरीर के पास आपको बैठना चाहिए अब तो वो दुनिया से चलें गये । कुछ घंटों के और मेहमान है ।बस सभी बेटों के आ जाने पर बस उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा ।और हमेशा हमेशा के लिए इस घर से उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
सुरेश और पुष्पा शर्मा दोनों पति-पत्नी थे । सुरेश जी रेलवे में आफिसर के पद पर कार्यरत थे। उनके चार बेटे और एक बेटी थी । शर्मा जी अपनी नौकरी में और पुष्पा जी अपने घर गृहस्थी और बच्चों में व्यस्त थी । सबकुछ अच्छे से चल रहा था। अभी तो शुरुआत के दिन थे तो अक्सर शर्मा जी के इधर उधर ट्रांसफर होते रहते थे।
अब सभी बच्चे बड़े हो रहे थे धीरे धीरे तो इधर उधर सबका बार बार भागना संभव नहीं हो पा रहा था।पढ़ाई लिखाई पर भी असर पड़ रहा था।अब एक जगह रहकर स्कूल में दाखिला लेकर पढ़ाई-लिखाई करानी थी।तो ये तय हुआ कि कहीं पर स्थाई मकान बनवाया जाए । वहां परिवार रहे पुष्पा के साथ और शर्मा जी अकेले इधर उधर जाकर अपनी नौकरी करें ।
अब ग्वालियर के पास मुरैना जगह है यही पुष्पा जी का मायका भी था तो वहीं पर जमीन लेकर मकान बनवाया गया । फिर पूरा परिवार वहीं रहने लगा । सबसे बड़े बेटे किशना ने हाई स्कूल कर लिया था और बहन आरती ने आठवीं कर लिया था। सभी भाइयों में दो दो साल का अंतर था तो सब ऐसे ही कोई छठी में तो कोई चौथी में चल रहा था।
चूंकि शर्मा जी घर पर रहते नहीं थे इधर उधर ट्रांसफर होता रहता था उनका तो बच्चे पूरी तरह मां के ही कहे अनुसार चलते थे। हां शर्मा जी थोड़े सिद्धान्त वादी थे। जरा वसूलों पर चलने वाले थे । जैसे किसी से रिश्वत नहीं लेना न देना, किसी की मदद नहीं लेना । यदि नौकरी करनी है तो अपनी मेहनत से पाओ किसी की सिफारिश से नहीं।
पुष्पा जी बहुत कम पढ़ी लिखी थी तो वो पढ़ाई का ठीक से अहमियत नहीं समझती थी।उनका मानना था कि पिता रेलवे में आफिसर है तो बच्चों की सिफारिश लगाकर नौकरी दिलवा दे इतना पढ़ने लिखने की क्या जरूरत है जितनी नौकरी के लिए जरूरी है बस उतना पढ़ लो।
चूंकि शर्मा जी घर से बाहर रहते थे तो बच्चों की पढ़ाई लिखाई से अनभिज्ञ थे ।बस उनका काम था पैसे देकर सबकी जरूरतें पूरी करना बस।जब माता-पिता दोनों की तरफ से लापरवाही हो तो बच्चों को भी जो समझ आया वो किया। बच्चों ने पढ़ाई को गम्भीरता से नहीं लिया।बस मौज मस्ती में ही समय बिताने जाते थे।
सबसे बड़ा बेटा किशना इंटर कर चुका था और पुष्पा जी चाहती थी कि किसी तरह बेटे की नौकरी सुरेश जी लगवा दें बेटे को कुछ मेहनत न करना पड़े। सुरेश जी ने कहा बड़े बेटे से भी देखो रेलवे में जगह निकली है पढ़ाई करो और लिखित परीक्षा पास कर लो तो इंटरव्यू में मैं कुछ कर सकता हूं ।
लेकिन ये सोचों की तुम कुछ मेहनत न करो और मैं पैसे देकर तुम्हारी नौकरी लगवा दूं तो ये मैं नहीं करूंगा। बड़े बेटे ने कुछ समझा और थोड़ी तैयारी की उस समय इतना ज्यादा काम्पटिशन नहीं था तो उसका सलेक्शन हो गया और बड़े बेटे की रेलवे में नौकरी लग गई। अब बेटी ने भी बीए कर लिया था तो कुछ समय बाद बड़े बेटे किशन की और बेटी आरती की शादी कर दी।
अब दूसरा बेटा विपुल उसका तो बिल्कुल भी मन नहीं लगता था पढ़ने में आवारा लड़कों के साथ मिलकर नशे की चपेट में आ गया।ये बात जब शर्मा जी को पता लगीं तो बेटे को बहुत डांटा और पुष्पा जी को भी क्यों पैसा देती है बच्चों को का ऐसे काम करना सीख गए।ग़लत होने पर भी पुष्पा जी बेटों का पक्ष लेती।
जिसका नतीजा ये निकला कि बेटे पिता को ही ग़लत समझने लगे और मां को अपना हितैषी। जबकि शर्मा जी पढ़ाई-लिखाई का मतलब जानते थे।अब शमां जी ने कहा जो भी खर्च होगा अब वो मैं करूंगा पत्नी के साथ में पैसा नहीं दूंगा।लड़के बर्बाद हो रहे हैं ।बस यही से मन में गांठें बनने लगी ।
रेलवे में गुड्स ट्रेन में ड्राइवर की जगह निकली तो विपुल को फार्म भरवाए गए। विपुल का एक दोस्त था अजय उसने भी फार्म भरा ।उस समय कोई नौकरी पाने के लिए पांच लाख ,दस लाख रुपए देना और नौकरी पाना आम बात होती थी ।पर शर्मा जी इसके पक्ष में बिल्कुल भी नहीं थे। विपुल का पढ़ाई-लिखाई में मन बिल्कुल भी नहीं लगता था। पुष्पा जी सुरेश जी पर दबाव डाल रही थी कि पैसे देकर विपुल की नौकरी पक्की करवा दो लेकिन सुरेश जी ने ऐसा करने से मना कर दिया ।
अब जब रिजल्ट आया तो विपुल के दोस्त अजय का सलेक्शन हो गया था क्योंकि उसके पिता जी ने पांच लाख रुपए दे दिए थे और विपुल का ंनहीं हो पाया।अब पुष्पा जी सुरेश पर चढ़ बैठी कि तुमको बच्चों के भविष्य की चिंता नहीं है।लाओ पैसे मुझे दो मैं देखूंगी कहां पर कैसे खर्च करना है । पुष्पा जी ज्यादा पढ़ी लिखी तो नहीं थी लेकिन एक तेजतर्रार महिला थी ।
पुष्पा जी के भाई भी रेलवे में काम करते थे वो कहने लगी मैं उनसे कहकर पैसे देकर काम करवा लूंगी।इस तरह रोज़ रोज़ के झगडे होने लगे घर में । ऐसे ही एक दिन पासबुक की छीना-झपटी हो रही थी पुष्पा और सुरेश जी में तो सुरेश जी ने एक थप्पड़ मार दिया पुष्पा जी को । फिर क्या था अब तो पुष्पा जी सुरेश जी की दुश्मन बन गई।न शर्मा जी से बात करती न लड़कों को बात करने देती और न ही खाना पीना देती ढंग से ।घर का माहौल बेहद तनाव पूर्ण हो गया था।
अब शर्मा जी का ट्रांसफर भोपाल हो गया था। वहां पर शर्मा जी ने घर का काम करने को एक महिला को रख लिया था।जो करीब चालीस साल के आसपास विधवा औरत थी।जो घर का सारा काम कर जाती थी और शर्मा जी से खूब बातें किया करती थी । धीरे धीरे उसने घर का सारा भेद जान लिया। बहुत तेज और चालू किस्म की औरत थी वो।
फिर एक दिन शर्मा जी बीमार पड़ गए बुखार आ गया तो वो महिला जिसका नाम रमा था दिनभर घर में रूककर उनकी देखभाल करने लगीं।और सुरेश जी से नजदीकी या बढ़ाने लगी। उसका मकसद ही कुछ और था।वो सुरेश जी से किसी न किसी बहाने से पैसे भी अक्सर मांगकर ले जाती थी। ऐसे ही एक दिन रमा ने पचास हजार की मांग कर दी सुरेश जी कुछ अचकचाए लेकिन उसने कहा बेटी की शादी करनी है मैं धीरे धीरे आपको लौटा दूंगी पैसे ।
सुरेश जी और रमा में नजदीकियां बढ़ने लगी थी अब असलियत क्या था किसी को कुछ पता नहीं । किसी ने पुष्पा जी को खबर दी कि शर्मा जी किसी औरत को रखें है और ज्यादातर वो घर में देखी जाती है। फिर क्या था पुष्पा जी पहुंच गई भोपाल और फिर दोनों पति-पत्नी में खूब झगड़ा हुआ।
शर्मा जी बोले जब तुम पत्नी होकर मेरा कोई ख्याल नहीं रखती है तो ,घर आता हूं तो खाना पीना नहीं पूछतीं , तबियत ख़राब हो तो कोई देखने वाला नहीं तो कोई और कर रहा है तो तुम्हें क्यों परेशानी हो रही है और पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया।अब पुष्पा जी को डर लग गया कि कहीं उस औरत के चक्कर में पड़कर सबकुछ बर्बाद न कर दे ।रमा भी बड़ी चालाक दीख रही थी।
विपुल भी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर किसी लड़की के चक्कर में पड़कर शादी कर ली । सुरेश जी ने घर पर ही एक छोटा सा जनरल स्टोर खुलवा दिया । तीसरा बेटा अतुल किसी तरह किसी छोटी सी जगह से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर ली और फिर पढ़ाई पूरी होने पर हाथ पैर मारता रहा किसी तरह नौकरी मिल गई ।
शुरू में तो बहुत कम तनख्वाह थी पर मेहनत करता रहा तो धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा।और सबसे छोटा सोनू किसी प्राइवेट कंपनी में जाब पकड़ ली और सबने किसी तरह से शादी कर ली । जहां जो कुछ पैसे खर्च करने की जरूरत पड़ती थी सुरेश जी खर्च कर देते थे । लेकिन पुष्पा जी के व्यवहार से वो भी बहुत आहत हुए तो वो अपने पैसे कहां किस बैंक में रखते थे
कितनी पेंशन मिलती है कहां क्या खर्च करते हैं पुष्पा जी को कुछ नहीं बताते थे।दो तीन घटनाएं ऐसी हुईं पुष्पा जी के साथ एक वो थप्पड़ जड़ दिया था, दूसरे घर से बाहर निकाल दिया था , तीसरे कोई पैसा नहीं देते थे मन में नफ़रत की गांठ और गहरी होती चली गई।
इसी तरह पति पत्नी में बगैर बातचीत किए पंद्रह साल बीत गए।और अब शर्मा जी रिटायर हो गए तो फिर लौटकर घर आए ।रमा का भी साथ छूट गया। लेकिन घर पर भी पुष्पा जी उनको कोई महत्व नहीं देती थी ।न खाना पीना और कोई भी काम करती थी । फिर शर्मा जी ने विपुल की पत्नी से बात की उसको पैसे का लालच दिया कि हम तुम्हें दस हजार रुपए देंगे महीने के और तुम्हारी बेटियों की पढ़ाई लिखाई का भी खर्च उठाएंगे तुम हमारे खाने पीने और सब चीजों का ध्यान रखेगी।
विपुल की पत्नी मान गई पैसा जो मिल रहा था। सुरेश जी बोले अब मुझे पुष्पा से कोई मतलब नहीं है। पैसे के लालच में बहू तो तैयार हो गई लेकिन बेटा विपुल से बात नहीं होती थी।इस तरह दोनों पति-पत्नी में नफ़रत की गांठें इतनी गहरी पैठ चुकी थी कि आज शर्मा जी की मृत्यु पर भी नहीं खुल रही थी।
भले जिंदगी भर शर्मा जी ने पैसे के लिए पुष्पा जी को तरसाया लेकिन शर्मा जी के जाने के बाद पचास हजार की पेंशन अब पुष्पा जी को मिल रही है । भले जिंदगी भर परेशान किया पत्नी को पैसे की खातिर लेकिन सुरेश जी के जाने के उस अचानक से इतना पैसा मिल जाने से पुष्पा जी बहुत खुश थी ।
दोस्तों जीवन में कभी कभी कुछ ऐसी बातें हो जाती है जिनकी गांठें मन में गहरे तक पैठ जाती है ।जिनको यदि समय रहते न खोला गया तो वो मरते दम तक शायद न खुल पाती है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि एक इंसान जीते जी तो जीवन में दुख का कारण बना रहता है लेकिन उसके दुनिया से चले जाने से सुख मिल जाता है । चाहे वो इंसान आपका कितना ही करीबी क्यों न हो । इसलिए यदि कोई बात मन को बुरी लग गई है तो और आपका स्वाभिमान आहत हुआ है तो समय रहते उसे दूर कर लें। नहीं तो यही हाल होता है जैसा सुरेश जी और पुष्पा जी के साथ हुआं । पुरानी गांठों को खोलना बहुत मुश्किल हो जाता है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश