सुबह के सात बज रहे थे। विभा जी रसोई घर मे अभी चाय बनाने ही जा रही थी कि उनका मोबाईल बजा।इतनी सुबह सुबह किसने फोन किया होगा,यह सोचते हुए उन्होंने मोबाईल उठाया। स्क्रीन पर अपनी ननद निशा का नाम देखकर थोड़ा चिंतित हुई। पता नहीं इतनी सुबह उसने क्यों फोन किया है। उन्होंने जैसे ही कॉल उठाया उधर से निशा ने कहा भाभी प्रणाम, कैसी हो?
विभा जी ने पूछा इतनी सुबह फोन किया, क्या बात है? सब ठीक है ना? हाँ भाभी सब ठीक है।अब क्या मै आपको सुबह मे फोन नहीं कर सकती? निशा ने शिकायत किया । कर सकती हो बाबा। मेरा मतलब यह नहीं था। आप ही को सुबह समय नहीं रहता है, इसलिए पूछी।आज बच्चे स्कूल नहीं गए है तो काम नहीं था,तो सोचा आपसे बात कर लू निशा ने बोला।
आज रविवार तो नहीं है फिर बच्चे स्कूल क्यों नहीं गए? विभा ने सवाल किया।मेरी तबियत ठीक नहीं थी तो बच्चो को तैयार नहीं कर पाई। निशा ने जबाब दिया। क्या हुआ आपकी तबियत को? काम ज्यादा बढ़ गया है? अनुज जी की भी देखभाल करनी होती है। अब तो दुकान भी आपको ही संभालना होता है।
इतना कैसे करती है। विभा जी ने चिंतित होते हुए लगातार सवाल पर सवाल कर दिया।अरे भाभी इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है। ज्यादा कुछ नहीं हुआ है।थोड़ा सर दर्द कर रहा था तो देर से जगी और अभी चाय बिस्किट के साथ दवा भी खा ली। फिर सोचा कि आपसे बात करूंगी तो अच्छा लगेगा। आप तो सुबह ही उठकर नहा धो लेती हो,फिर तो फ्री रहती हो यह सोचकर फोन लगा ली,निशा ने बताया।
वैसे आप क्या कर रही थी? नहा धो ली हो ना? फिर निशा ने पूछा। हाँ नहा ली हूँ, पूजा पाठ भी हो गया, बस चाय बनाने जा रही थी, विभा जी ने बताया। चाय आप क्यों बना रही है,निशा ने पूछा।नौकरानी बीमार है विभा ने कहा। तो नाश्ता खाना सब आप ही बनाओगी। निशा ने फिर पूछा। अरे नहीं झाड़ू पोछा वाली नौकरानी आएगी
तो उससे कुछ काम करवा लुंगी और कुछ खुद भी कर लुंगी।अब पूरा काम तो मुझसे नहीं होता है,विभा ने कहा। ठीक है भाभी तब आप जाओ जाकर चाय बनाओ भैया इंतजार कर रहे होंगे, मै फोन रखती हूँ निशा ने कहा। ऐसी कोई बात नहीं है आपके भैया अब स्वयं चाय बना लेंते है आप फोन नहीं रखिए।
आज कैसे कैसे तो आपको समय मिला है बात करने का विभा ने फोन नहीं रखने को कहते हुए पूछा अनुज जी कैसे है? माँ थी तो आपका हाल चाल भी मिल जाता था पर जबसे माँ गईं तबसे तो आपका कोई समाचार भी नहीं मिलता है।आप तो कभी बात करती नहीं है। कभी कभी किसी रिश्तेदार से कुछ खोज खबर मिल जाती है।
ऐसी कोई बात नहीं है भाभी समय ही नहीं मिल पाता है बात करने का। माँ थी तो किसी तरह समय निकालकर फोन करती थी नहीं करने पर माँ उलाहना देने लगती थी कि इस बूढ़ी की कोई क्यों फ़िक्र करेगा सभी अपने मे व्यस्त रहोगे । अब इस बुढ़िया की किसी को क्या जरूरत है। अब यह सुनकर फोन नहीं करो तो अच्छा थोड़ी ही लगेगा।
माँ थी हमारी , हमलोगो के लिए अपना पूरा जीवन लगा दी थी, निशा ने कहा। निशा की बात सुनकर विभा ने मन ही मन कहा और मेरा भी। लेकिन यह सामने से कहने पर बेकार का झगड़ा होता इसलिए उसने कुछ नहीं कहा। सारी जिंदगी इसी झगड़े से बचने के कारण विभा ने अपने आप को बीमार कर लिया था। उसने सामने से कहा हाँ दीदी वो तो है ही माँए तो अपना जीवन बच्चो मे ही खपा देती है।
छोड़ीए इन बातो को माँ का कर्ज तो नहीं चुक सकता। आप बताए बच्चे कैसे है। अब तो काफ़ी बड़े हो गए होंगे। जमाने से देखा नहीं है। हाँ भाभी ओ तो है ही, माँ तो माँ होती है।बच्चे ठीक है कितने दिनों से कह रहे थे इस गर्मी की छुट्टी मे मामा के घर जाएंगे निशा के जुबान पर फोन करने का असली मकसद आ गया।
हाँ दीदी जरूर आइये विभा ने भी आने का निमंत्रण दिया।मै कहाँ आ पाऊँगी इनके बीमारी के कारण दुकान भी तो मुझे ही देखना होता है। ये ज्यादा देर तक काम नहीं कर पाते है। फिर इनका खाना पीना भी देखना होता है। थोड़ी सी बदपरहेजी से बीमारी बढ़ जाती है। बच्चे जाएंगे, निशा ने अपनी मजबूरी बताई।
हाँ जरूर आप के भैया जाकर ले आयंगे, बस कब से छुट्टी हो रही है आप बता दीजिएगा, विभा ने कहा। भाभी आपने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी। मै सोच रही थी कि छोड़ने जाउंगी तो कम से कम दो दिन दुकान बंद रखना होगा, एक तो पहले ही लोगो के ऑनलाइन शॉपिंग के कारण दुकान मंदा है अब बंद करुँगी तो और भी दिक्कत हो जाएगी।
अगले सप्ताह से छुट्टी हो रही है,निशा ने कहा। ठीक है दीदी आपके भैया को भेज दूंगी।अब फोन रखती हूँ झाड़ू पोछा वाली आ गईं है,जा रही हूँ काम करवाने,विभा ने कहा। ठीक है भाभी मै भी जा रही हूँ नाश्ता बनाने,भैया को जरूर भेज देना , यह कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।
तब तक विभा के पति चाय लेकर आए और मुस्कुराते हुए पूछा किसका फोन था? बड़े प्यार से बात कर रही थी। लग रहा है मेरी साली साहिबा का फोन था। ज़रा मुझसे भी बात कराना था मैंने कोई पाप नहीं किया है।आप भी,आपको हर समय मज़ाक ही सूझता है, मेरी नहीं आपकी बहन का फोन था, विभा ने जबाब दिया।
निशा का, उसने किसलिए फोन किया था। आश्चर्य से उसके पति ने पूछा।बात करने के लिए और क्या विभा ने कहा।आज हमारी याद कैसे आ गई, उसके पति ने पूछा।हमारी याद नहीं आई, मेरे बेटे के पैसे ने और उनकी मजबूरी ने उन्हें हमारी याद दिला दी।विभा ने कहा। हूँ,क्या बोल रही थी? पति ने पूछा।बोलेगी क्या, कह रही थी बच्चो को मामा घर जाने का मन है,विभा ने बताया ।
करना क्या है पति ने फिर पूछा।बच्चो की गर्मी की छुट्टी हो रही है तो उन्हें जाकर लाना है और क्या करना है विभा ने जबाब दिया।बच्चे यहाँ आयेंगे? आज मामा को इतना सम्मान किस ख़ुशी मे दिया जा रहा है। माँ के मरने के बाद एक बार भी यहाँ नहीं आई और आज एकाएक बच्चो को भेज रही है और तुम भी कह रही हो जाकर लाने को।
भूल गईं तुम्हे कितना परेशान करती थी यह कह कर की मेरे पापा की कमाई पर पल रहे हो तो मेरी और मेरी माँ की तो सुननी ही होंगी और माँ के मरते ही सोचा की अब माँ का पेंशन तो आएगा नहीं, फिर तो हमें घर चलाने मे दिक्कत होंगी, इसलिए कही हम उससे मदद ना माँग ले, इस डर से आना छोड़ दिया। इतना बेगैरत भाई सोच लिया मुझे।
जब आना जाना छूट गया था तो अब क्यों आना चाह रही है।विभा के पति का सारा दर्द दुख हरा हो गया था।पति के कम कमाने के कारण जब कोई माँ या बहन पत्नी को सुनाते है तब वे यह नहीं सोचते है कि इस तरह से वे अपने बेटा और भाई का अपमान करते है, बहु और भाभी का नहीं।मेरी कमाई कम होने के कारण तुम्हे उन्होंने कितना सुनाया है।
उसके पति ने दर्द भरे आवाज मे कहा।भूल जाइये उस बात को दुनिया की यही रीत है।यहाँ इंसान की नहीं बल्कि पैसो की इज्जत होती है। आज जब देख रही है कि हमारी बेटी बड़ी अफसर बन गईं है, बेटा का भी बिजनेस अच्छा चल रहा है, कल को दामाद भी बड़े पोस्ट वाला आएगा तो फिर से रिश्ते बनाना चाह रही है। क्या करेंगे जैसी भी हैआपकी बहन है।बच्चो की शादी विवाह होगा तब नहीं आएगी
तो अच्छा भी नहीं लगेगा। अब जब अपने से आगे बढ़कर रिश्ता चलाना चाह रही है तो हमें भी सब भूल कर रिश्ता बरकरार रखना चाहिए। खून के रिश्तो मे भले ही गांठ पर जाए पर टूटते नहीं है, विभा ने अपने पति को दुनियादारी बताते हुए समझाया। ठीक है तुम कहती हो तो चला जाऊंगा पर मन से रिश्ता निभाना अब सम्भव नहीं होगा।
वाक्य – इज्जत इंसान की नहीं पैसे की होती है
लतिका पल्लवी