माँ तुम मेरे बच्चों से दूर ही रहो  – प्रियंका सक्सेना

“पिंकी बेटा, सोने का समय हो गया है। दूध पीकर सीधे अपने रूम में जाना, सुबह स्कूल है।” रीना ने किचन में दूध छानते हुए अपनी छह वर्षीय बेटी से कहा|

“आई मम्मा।”

पिंकी कूदती फांदती आई और दूध पीकर दादी के रूम में चली गई। अंदर से पिंकी और उसकी दादी दमयंती जी के हंसने और बातें की आवाज़ सुन कर रीना दमयंती जी के रूम में पहुॅ॑ची। पिंकी दमयंती जी के बेड पर बैठ कर अपनी प्यारी प्यारी बातें दादी को  बता रही थी और दादी पूरे ध्यान से सुन रही थीं। बीच बीच में दादी का कोई मज़ेदार किस्सा सुनकर पिंकी खिलखिला कर हंस रही थी।

रीना ने पिंकी को गोद में लेकर कहा, “पिंकी सोने चलो नहीं तो सुबह लेट हो उठोगी।”

दमयंती जी की ओर मुड़कर बोली,” मम्मी जी आपको तो ख्याल रखना चाहिए। एक तो वैसे ही आप दिन भर खांसती रहती हो और ऊपर से पिंकी को इतने पास बिठा रखा है। कितनी बार आपसे कहा है कि पिंकी से दूर रहें। “

“पर बहू पिंकी आ गई तो मैं मना नहीं कर पाई।” दमयंती जी ने बेचारगी से कहा

“अरे! वो तो छोटी है पर आप की अक्ल को क्या हुआ? आप तो खुद पिंकी से बात करने का मौका तलाशती रहती हों।”  ऐसा कह रीना ने अपने पति रोहन को आवाज़ लगाई,” रोहन, अब तुम ही समझाओ अपनी माॅ॑ को।”

रोहन ने आते ही दमयंती जी को कहा,” मम्मी, क्या लगा रखा है ये हर दिन का? पिंकी से दूर रहा करो।”

और फिर रीना पिंकी को गोद में लेकर भुनभुनाती हुई चली  गई।

रोहन भी पीछे पीछे चला गया।

दमयंती जी की ऑ॑खों में आंसू भर आए। मन ही मन में कहने लगी कि क्यों रमेश जी , उनके पति, बुढ़ापे में उन्हें छोड़कर चले गए। रमेश जी का तीन साल पहले अचानक से हृदय गति रुकने के कारण देहांत हो गया था। रीना व रोहन, मम्मी पापा के साथ ही रहते थे। पापाजी के गुजर जाने के बाद भी सब साथ ही रहते हैं।

इधर ठण्ड बढ़ जाने से दमयंती जी को खांसी हो गई। घरेलू इलाज करते काफी दिन हो गए। खांसी जाने का नाम ही न लें। आखिरकार परेशान हो कर छह सात दिन पहले रोहन डाॅक्टर को दिखा कर लाया। डाॅक्टर साब ने परहेज़ के साथ कुछ दवाइयां दीं।



इधर रीना की माॅ॑ ने खांसी लम्बी चलने का सुनकर टीबी का शक जताया। बस फिर क्या था टोका-टाकी शुरू हो गई।  पिंकी को दादी के पास नहीं जाने को कह दिया। दमयंती जी यूं ही खांसी में पिंकी से दूरी रखकर बात किया करती थीं कि बच्ची छोटी है, उसको भी खांसी न हो जाए। परंतु जब से रीना के दिलो-दिमाग पर उसकी मम्मी ने टीबी का कीड़ा डाला तबसे पिंकी का तो दादी के कमरे में प्रवेश ही बंद हो गया। हां, पिंकी छोटी है तो उसका दिल नहीं मानता तो वो मौका देख कर दादी के रूम में चली जाती है। दमयंती जी , हालांकि उसे प्यार से समझा कर दूर दूर से ही बात करती हैं।

दो दिन पहले रीना ने दमयंती जी के खाने के बर्तन भी अलग कर दिए। उनका वाशरूम तो रूम से अटैच्ड है ही, बस खाना उनके कमरे में मुंह ढककर रीना पहुॅ॑चा आती। घर में झाड़ू-पोछा व बर्तन के लिए कामवाली बाई लगी थी। कपड़े वाशिंग मशीन में धुलते थे। अभी भी बाकी सबके वाशिंग मशीन में धुलते हैं परंतु दमयंती जी के लिए धोबिन लगा दी है।

बिना किसी टेस्ट के दमयंती जी को अपरोक्ष रूप में टीबी का मरीज मानकर व्यवहार किया जा रहा ‌है।

यह सब छुपा थोड़े ही रहता है। जैसे ही दमयंती जी को आभास हुआ कि घरवाले उनसे छुआछूत कर रहे हैं वो स्वयं ही अपने अंदर सिमटने लगी। और पिंकी तो उनकी जान है तो उसका बुरा वो सपने में भी नहीं सोच सकती, खुद ही इस बात का ख्याल रखने लगी।

इन बातों से उनका बेटा रोहन भी अनभिज्ञ नहीं था। या यूं कहें कि सब रोहन की सहमति से उसकी ऑ॑खों के सामने हो रहा था। दमयंती जी अब जरूर दिन में कई बार अपने पति रमेश जी को याद करके रो लेती हैं।

दस दिन बाद दोबारा दिखाने पर रोहन ने डाॅक्टर साब से टीबी का शक जताया। डाॅक्टर साब ने कुछ और टेस्ट कराए। । सभी नार्मल आने पर उन्होंने दमयंती जी के ब्लडप्रेशर को हर दिन दो बार माॅनीटर कर उसका चार्ट बनाकर दस दिन बाद फिर चेकअप के लिए आने को कहा। घर में दमयंती जी से छुआछूत बदस्तूर जारी रहा।

दस दिन बाद उनका ब्लडप्रेशर ( बीपी) का चार्ट देखकर डाॅक्टर साब ने कुछ मेडिसिन बीपी के लिए दी और फिर दस दिन बाद दिखाने को कहा।

अब जब रोहन दमयंती जी को दिखाने आया तो उसने बताया खांसी काफ़ी कम है, दवाई से बहुत फायदा है।

डाॅक्टर साब ने रोहन को बताया कि ब्लडप्रेशर की वजह से भी खांसी आती है। दवाइयों से ब्लडप्रेशर रेगुलेट करने से ही खांसी में कमी आई है। अब आप बीपी की दवाई बीस दिन और दें फिर दिखाएं।

बीस दिन बाद रोहन ने दमयंती जी को दिखाया। बीपी भी सही  निकला और खांसी तो यूं गायब जैसे कभी हुई ही नहीं थी। बस दमयंती जी को बीपी की दवाई मिल गई जो अब से उन्हें रोजाना खानी होगी।



घर पहुॅ॑चकर रोहन ने सब कुछ रीना को बताया। दमयंती जी के टीबी नहीं निकला सुनकर उसे राहत मिली। उसने अपने पूर्व में किए व्यवहार के लिए कोई पछतावा नहीं जताते हुए बस इतना ही दमयंती जी से कहा कि पिंकी को उसकी भलाई के लिए दूर रख रही थी।

फिर से पिंकी दादी के पास बेरोकटोक खेलने लगी। जिन्दगी पुनः ढर्रे पर लौट आई।

एक दिन सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी। पिंकी के स्कूल में ‘रेनी डे’ घोषित कर दिया और छुट्टी कर दी गई।

शाम को रीना की मम्मी रीना से मिलने आईं। बहुत दिनों से उनका आना जाना नहीं हुआ था। ऑटो से उतरकर घर तक जाने में ही वो काफी भीग गई। रीना ने तौलिया दिया और फटाफट तुलसी अदरक की चाय बनाने के लिए किचन में चली गई।

सिर पोंछते पोंछते रीना की मम्मी को दो-चार छींके आईं और कुछ देर बाद उन्हें थोड़ी खांसी आई।

नन्ही पिंकी दौड़कर किचन में गई। वहां रीना चाय छानने ही जा रही थी कि पिंकी ने वो कप हटा दिया और बोली,” मम्मी, नानी को चाय इस कप में नहीं दो।”

रीना ने आश्चर्य से पूछा,”क्यों बेटा?”

पिंकी एक कोने में नीचे रखें कुछ बर्तनों की ओर इशारा करते हुए बोली,” नानी खांस रही हैं। इस कप में दो चाय नानी को। मम्मी, आप जिसमें दादी को देती थीं। और अब मैं नानी से बात भी नहीं करूंगी। उनके पास भी नहीं बैठूंगी।”

रीना सुनकर सन्न रह गई। वो समझ गई कि पिंकी ने कितने ध्यानपूर्वक देखा है उसे दमयंती जी के साथ गलत बर्ताव करते हुए।

रीना ने पिंकी को बताया कि ऐसा कुछ नहीं है और दादी के साथ उसने सही नहीं किया था, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी।

उसने तुरंत ही ड्राइंग रूम में आ कर दमयंती जी से अपने बर्ताव की माफ़ी मांगी। रीना की मम्मी बीच में कुछ बोली तो उसने उन्हें ये कहकर चुप करा दिया कि बिना बात के ही मैंने मम्मी जी को बहुत कष्ट दिया। आपकी बातों में फालतू में आकर बहुत दुखी दिया मम्मी जी को मैंने, अब और नहीं!

दमयंती जी अपनी बहू में आए इस सकारात्मक बदलाव से हैरान भी हुईं और उन्हें खुशी भी हुई।

उधर रीना को पछतावा भी हुआ अपनी करनी का और मन ही मन में उसने सोचा कि अगर बड़े होकर पिंकी मेरे साथ ऐसा व्यवहार करती तो मुझे कितना बुरा लगता। अच्छा हुआ कि पिंकी ने मुझे सही राह दिखा दी।



छोटी पिंकी भी खुश थी और खुश रोहन भी हुआ अपनी माॅ॑ के प्रति रीना के बदले व्यवहार को देखकर। रीना के तीखे तेवरों के आगे रोहन की चलती नहीं थी। हालांकि दिल ही दिल में माॅ॑ के लिए वो परेशान रहता था। माॅ॑ के इलाज को करवाने में उसने कोई कोताही नहीं बरती थी। बहुत खुश हुआ था वो जब माॅ॑ की रिपोर्ट निगेटिव आई थी।

आज पिंकी ने अपनी मम्मी रीना को अनजाने में ही सही आईना दिखला दिया था। जब अपनों पर यानि रीना की खुद की मम्मी पर वो बात उल्टी आ पड़ी और बच्ची ने सीख दी तब जाकर रीना की ऑ॑खें खुली और अपने किए पर पछतावा हुआ। सही ही कहा गया है -जाके पाॅ॑व ना फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई!

दोस्तों, मेरी यह कहानी अनुभव जन्य कथानक पर आधारित है। वृद्धावस्था एक ना एक दिन सभी पर आती है यह ध्यान में रखें और बुजुर्गो के संग अच्छा बर्ताव करें।आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। यदि कहानी पसंद आई है तो कृपया लाइक, शेयर और कमेंट कीजिए। ऐसी ही दिल को छूने वाली रचनाओं के लिए आप मुझे फाॅलो करना न भूलें।

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धन्यवाद।

-प्रियंका सक्सेना

(मौलिक व‌ स्वरचित‌)

#अन्तर्राष्ट्रीय_वृद्ध _दिवस

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