” ये आप क्या कह रहें हैं महेश जी..मैंने तो आपसे बस तारीख आगे बढ़ाने की विनती की थी पर आपने तो सगाई का सामान लौटाकर रिश्ते से ही #मुँह मोड़ लिया…एक बार सोचि..।” फ़ोन डिस्कनेक्ट हो गया और प्रदीप जी बात अधूरी रह गई।
एक विवाह-समारोह में प्रदीप और महेश की मुलाकात हुई थी।महेश ने बताया कि वो एक सरकारी दफ़्तर में काम करते हैं।प्रदीप ने भी उन्हें बताया कि उनकी ग्लास की फ़ैक्ट्री है और अपनी बेटी साक्षी के लिये सुयोग्य वर तलाश कर रहें हैं।
महेश अपने बेटे निशांत जो कि एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है,की शादी में मोटी रकम लेना चाहते थे।उन्हें प्रदीप सही व्यक्ति लगे।उन्होंने उसी समय उनका फ़ोन नंबर लिया और घर का पता लेकर दो दिन बाद ही उनके घर पहुँच गये। लड़के-लड़की ने एक-दूसरे को पसंद कर लिया..प्रदीप भी बोले कि एक ही तो बेटी है..
आपकी जो भी इच्छा है, वो सब हम पूरी कर देंगे।बस महेश ने तुरंत बेटे की मंगनी कर दी और अगले महीने की बीस तारीख को शादी का मुहूर्त भी निकलवा लिया।विवाह के कुछ दिनों पहले प्रदीप की फ़ैक्ट्री में अचानक आग लग गई।आग पर तुरंत काबू पा लेने बावज़ूद भी उनका काफ़ी नुकसान हुआ।इसलिये उन्होंने अपने होने वाले समधी से विवाह-तिथि को आगे बढ़ाने की बात कही तो
महेश ने रिश्ता ही तोड़ दिया।पत्नी ने समझाने की कोशिश की कि उनके बुरे वक्त में उनका साथ दीजिये..ऐसे # मुँह मोड़ना ठीक नहीं है.. आपके लालच की सज़ा कहीं हमारे बच्चों को न भुगतनी पड़ जाये।तब वो ढिढ़तापूर्वक बोले,” प्रदीप अब कंगाल हो चुका है..मेरे बेटे को बहुत दहेज़ मिलेगा जिससे मैं अपनी बेटी की शादी धूमधाम से करुँगा।”
महेश के इंकार से निराश प्रदीप ने उनके घर जाकर उन्हें मनाना चाहा तब साक्षी बोली,” आप नहीं जायेंगे पापा..वो लोभी हैं तो उनका बेटा कायर।”
प्रदीप अपनी फ़ैक्ट्री के नुकसान की भरपाई करने में जुट गये और साक्षी एमबीए करने लगी।दो साल बाद प्रदीप की फ़ैक्ट्री फिर से मुनाफ़ा कमाने लगी और साक्षी एक प्राइवेट फ़र्म में नौकरी करने लगी।
इन दो सालों में महेश ने दहेज़ की मोटी रकम पाने के लिये कई लड़कियों का रिश्ता ठुकराया।निशांत की बढ़ती उम्र देखकर अब लड़की वाले उनके बेटे को ठुकराने लगे।एक दिन उन्हें पता चला कि साक्षी ज़ाॅब कर रही है।उन्होंने कुछ सोचा और प्रदीप के घर पहुँच गये।अपने व्यवहार की माफ़ी माँगते हुए बोले,” भाई..अब तो साक्षी बिटिया नौकरी कर रही है तो थोड़ा कम भी दोगे तो चलेगा..विवाह की तिथि..।”
” कैसी तिथि..कल तुमने रिश्ता लौटा दिया था, आज हम तुम्हारे रिश्ते को ठुकरा रहें हैं..दरवाज़ा उधर है..।” हँसते हुए प्रदीप ने हाथ से बाहर की ओर इशारा कर दिया।
कुछ महीनों के बाद प्रदीप ने साक्षी की रज़ामंदी से उसके मित्र शशांक के साथ उसका विवाह करा दिया।महेश को उनके लालच की सजा मिली..वो पहले बेटे के लिये तलाश कर रहे थे, अब बेटी भी सयानी हो चुकी थी तो उन्हें दोनों के लिये लोगों के दरवाज़े खटखटाने पड़ रहे थे।
विभा गुप्ता
स्वरचित, बैंगलुरु
# मुँह मोड़ना