क्या लगता है तुम्हारी मां इतनी बुरी है – रत्ना साहू 

एक तो सुबह की चाय समय से नहीं मिली उसकी नाराजगी तो थी ही उपर से बेटी को रसोई में काम करते देख और बढ़ गई। अरे प्रिया बेटा! तुम यहां रसोई में क्या कर रही हो? भाभी कहां गई?”

“मां, चाय बना रही हूं और भाभी फ्रेश होने गई है।

“क्या..!अभी फ्रेश होने गई है?”

“हां मां, उठने में जरा देर हो गई। वही किचन में आ रही थी तो मैंने कहा, चाय बनाती हूं तुम जाकर फ्रेश हो जाओ।”

“तू इस तरह रसोई में काम करेगी तब तो उठने में देर करेगी ही। चल छोड़! आ बाहर बैठ हमारे साथ। फ्रेश होकर आएगी तो चाय बनाएगी। वैसे आज उठने में इतनी देर कैसे हो गई?”

“मां, वो रात में हम लोग बातें करने लगे इसलिए देर हो गई। मैं भी अभी कुछ देर पहले ही उठी हूं।”

दोनों मां बेटी बातें कर रही थी कि बहू रोहिणी भी आ गई।

“दीदी, आप बाहर बैठिए। मैं सबके लिए चाय लेकर आती हूं।”

तभी बरामदे में अखबार पढ़ रहे ससुर जी ने आवाज लगाई। रोहिणी! रोहिणी!! अरे मेरी चाय कहां रह गई? बहुत देर हो गई बेटा आज तो।”

अभी वह कुछ जवाब देती इससे पहले ही पति अमर ने कहा।




कब से गुनगुने पानी के लिए इंतजार कर रहा हूं तुम लेकर आई नहीं। क्या हुआ आज तुम भी देर से सो कर उठी क्या?

रोहिणी ने सास को एक बार कनखियों से देखा और हां में सिर हिलाया।

फिर झटपट सास-ससुर और ननद को चाय देकर पति को एक गिलास गुनगुना पानी दिया।

कल रात रोहिणी की ननद आई उनसे ही बातचीत करते-करते देर रात हो गई इसलिए उठने में थोड़ी देर हो गई।

“वाह! कितनी अच्छी चाय है!! महीनों बाद चाय में वह स्वाद मिला। इससे तो अच्छी चाय बनती ही नहीं।”

“हां कोई बात नहीं मम्मी, सीख जाएगी धीरे-धीरे।”

“अरे क्या सीख जाएगी! सीखने की तो ललक है ही नहीं इसमें। अभी देखो ना गिन कर हम चार लोग हैं बस इतने लोग का खाना बनाने में ही परेशान रहती है। अभी तुम आ गई तो देखो कितनी देर हो रही है। चलो तुम ननद हो, घर की हो तो समझ कर ले लिया लेकिन कोई बाहर के मेहमान आए तो क्या हम पर हंसेंगे नहीं?”

“ओह मम्मी, छोटी सी बात को लेकर कहां से कहां जा रही हो? नई नवेली है घर और काम की जिम्मेदारी अचानक आ गई इसलिए नहीं कर पा रही है, थोड़ा समय दो सब सीख जाएगी।”

तभी रोहिणी आ गई दीदी नाश्ते में क्या बना दूं आपके लिए?

“पूछ क्यों रही हो? जो सबके लिए बनाओगी वही मैं भी खा लूंगी।”

“बहू, मैं तो कहती हूं कुछ हल्का फुल्का नाश्ता बना दो और लंच कि तैयारी जल्दी करो। तुम्हें काफी समय लगता है इसलिए बोल रही हूं और हां, लंच में प्रिया की पसंद का सब बना देना।”

“जी मां।”

“रोहिणी, नाश्ता बना लो फिर लंच हम दोनों मिलकर बना लेंगे।

” नहीं दीदी। मैं बना लूंगी।”

प्रिया कुछ बोलती उससे पहले ही मां ने कहा, चुप कर! तू यहां कुछ दिनों के लिए आराम करने आई है, काम करने नहीं तो आराम कर। आज तू है तो मदद कर देगी कल को कौन करेगा? मुझसे तो नहीं होने वाला।




प्रिया मां की बात सुनकर मुस्कुराने लगी। रोहिणी ने सबके लिए नाश्ता बनाया। लंच बनाने में प्रिया ने भी मदद की। दोपहर को खाते समय सासू मां फिर नाराज हो गई। ना दाल में तड़का बराबर लगा है ना ही कोई स्वाद है। सब्जी भी बेस्वाद है। शादी को 3 महीने हो गए रोज बताती हूं फिर भी आज तक ढंग से खाना नहीं बना। पता नहीं कब सीखेगी? मुझे तो लगता है यह सीखना ही नहीं चाहती।

“मां, अब तुम्हें मेरे हाथ की भी दाल सब्जी बेस्वाद लगने लगी।”

“नहीं.. तो..! सब बढ़िया है, अच्छा है। वैसे मुझे लग रहा था कि रोहिणी के हाथों का बना तो नहीं लग रहा है। बेटी की बात सुन राधिका जी ने तुरंत अपना सुर बदला।”

यह देख बाप बेटी दोनों हंसने लगे।

खाना खाने के बाद जब सब आराम करने लगे तो प्रिया मां के पास बैठी।

मां ससुराल वाले के बारे में गहन पूछताछ करने लगी। “तो बेटा अब तेरी सास का व्यवहार तुम्हारे साथ कैसा है? अब भी ताना मारती है, कमियां निकालती है?”

“नहीं मां अब नहीं। और फिर मैं सब जान गई समझ गई तो उन्हें कुछ बोलने का मौका ही नहीं देती।”

“वही तो मैं भी चाहती हूं बेटा कि ये भी तुम्हारी तरह होशियार हो जाए, सीख जाए।”

“एक बात कहूं मां?”

” हां बोल न बेटा!”

” मैं कल रात से ही देख रही हूं तुम भाभी के हर काम में सिर्फ कमियां निकाल रही हो। मैं फिर एक बार कहती हूं नई शादी है, नया माहौल। अचानक जिम्मेदारी आ गई तो थोड़ा समय दो  सब समझने के लिए।”




“हे भगवान तू भी ना! जब से आई है बस भाभी का पक्ष लेकर बैठी है और सिर्फ मेरी बातों का ही विरोध कर रही है।मैं उसे क्या बात सुनाती हूं, ताना मारती हूं या सूली पर चढ़ा रही हूं? जो भाभी के लिए इतनी चिंता हो रही है, परेशान हो रही हो। क्या लगता है तुम्हारी मां इतनी बुरी है। फिर भूल गई अपना समय? कैसे फोन करके रोती रहती थी।सास ताना देती है, कितना भी अच्छा खाना बना लूं कुछ ना कुछ कमियां निकालती है। कहती है मां ने तो ढंग से खाना बनाना भी नहीं सिखाया। याद कर।”

“मां, मुझे सब कुछ याद है इसलिए बोल रही हूं। और मुझे ससुराल में सुनना पड़ा इसलिए तुम भी भाभी को सुनाओगी? मतलब मेरा बदला भाभी से लोगी। क्या मां आप भी! थोड़ा समय दो, जरा प्यार से पेश आओ। अपना भय उसके मन में मत बैठने दो फिर देखना कितनी जल्दी वो सुघड़ गृहिणी बन जाएगी।”

“बेटा, तुम्हारा बदला क्यों लूंगी।  मैं तो यही चाहती हूं, घर संभालना संवारना सीख जाए। अपने पति के साथ थोड़ा हम दोनों का भी ख्याल रखें। बस और क्या चाहिए मुझे? और तुम बताओ एक सास बहू से इतनी भी उम्मीद ना करें, चाहत ना रखें? इसकी मां तो कहती थी मेरी बेटी को सब काम आता है सारा काम जानती है, सर्वगुण संपन्न है। लेकिन यहां पर तो मुझे कुछ नहीं दिख रहा।”




नहीं मां तुम बिल्कुल गलत नहीं चाहती लेकिन जो पूर्णता, परिपक्वता कि तुम उम्मीद कर रही हो वह थोड़ा गलत है। एक लड़की ब्याह कर ससुराल आते ही सर्वगुण संपन्न कैसे हो जाएगी? रही बात उसके मां की तो सब की मां यही कहती है कि मेरी बेटी सर्वगुण संपन्न है क्योंकि जिस छोटी मोटी गलतियों को मां-बाप नजरअंदाज करते हैं उन्हीं छोटी गलतियों को ससुराल में तिल का ताड़ बना दिया जाता है। मैं इसलिए कह रही हूं कि सब मेरे साथ हो चुका है। फिर एक बहू की भी तो ससुराल से चाहत होती है कि कभी कोई भूल चूक हो जाए, गलतियां हो जाए तो उसे गलती ही माना जाए गुनाह नहीं। कभी जो कदम लड़खड़ा जाए तो सहारा दे ना कि  लड़खड़ाते कदम को गिरा दे। तुम समझ रही हो ना मैं क्या कह रही हूं? बस तुम थोड़ा साथ दो फिर देखो कैसे अपनी गृहस्थी अच्छे से बसा लेती है।”

“वाह बेटा, तुम बिल्कुल अपने बाप पर गई है। मैं यही समझाना चाहता हूं तुम्हारी मां को लेकिन समझने को तैयार नहीं। जब तक तुम्हारी मां थी अच्छी थी लेकिन सास बनते ही पता नहीं किसकी आत्मा घुस गई इसके अंदर रोज किच किच करती है, बड़बड़ करती रहती है। मैं भी परेशान हो गया हूं।”

“तुम दोनों बाप बेटी बस मुझे ही सिखाती रहो, समझाती रहो। उसे कुछ मत कहो।”

“मैं सिखा नहीं रही हूं। तुम खुद बहुत होशियार, समझदार हो। मुझे तो जो गलत दिखा वही बताने की कोशिश कर रही थी। फिर मेरा क्या है मैं तो दो 4 दिनों के लिए मेहमान के तौर पर आऊंगी और चली जाऊंगी। रहना तुम्हें ही है भाभी के साथ जीवन भर। अगर तुम अपना स्वभाव नहीं बदली तो क्या होगा कुछ महीनों या कुछ सालों बाद भैया भी परेशान हो जाएंगे फिर  हो सकता है वह तुम्हें छोड़ पत्नी को लेकर अलग हो जाए फिर क्या करोगी? अकेली पड़ जाओगी। इससे तो अच्छा है थोड़ा सा अपने स्वभाव में बदलाव लाओ और मिलकर रहो।”

अब राधिका जी गंभीर होकर सोचने लगी।

“तुम दोनों ने बिल्कुल सही कहा। मैंने तो कभी इस तरह सोचा ही नहीं। पर अब तुम दोनों चिंता मत करो। मैं सब समझ गई तो अब किसी को एक भी शिकायत का मौका नहीं दूंगी।”

रोहिणी मां की बात सुन मुस्कुराते हुए मां के गले लग गई।

#विरोध 

रत्ना साहू 

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