ये भी प्रेम ही था ना.. – अर्चना नाकरा

मेट्रो तेज रफ्तार से भाग रही थी और ‘उसी रफ्तार से साधना का मन भी”

आज सुबह प्रेजेंटेशन देनी थी नहीं तो शायद छुट्टी ले लेती!

वैसे, छुट्टियां बची भी कहां थी ?

आए दिन कुछ ना कुछ लगा ही रहता और उसे घर रुकना पड़ता!

पता नहीं कैसे’ खींचतान कर घर और नौकरी’ चला रही थी!

सासु मां सुबह से थोड़ी परेशान लग रही थी

थोड़ा बहुत काम करवा देती थी.. पर जब पस्त हो जाती तो… !

उसे सुबह से लेकर शाम तक का काम करके रख कर आना पड़ता था

बंटी सुबह से ही बार-बार बोल रहा था

मम्मा जल्दी आ जाना…!

4:00 बजे की मेट्रो पकड़ने के लिए निकल पड़ी थी

बॉस को मजबूरी बताई.. ‘प्रेजेंटेशन जमा करा दी थी”

सभी ने वाहवाही भी की! पर दिल तो आह आह कर रहा था

भागती दौड़ती  घर आई थी ,खुद तो  सुबह से पेट में भी दो निवाले नहीं डाले थे

‘बंटी बार-बार री डायल कर रहा था’

मम्मा.. बहुत जोर से भूख लगी है !

मैं  आज..रखा हुआ खाना नहीं खाऊंगा !

दादी सोई हुई है

‘ मन भीतर ही भीतर कहीं रो पड़ा था’




‘पांच साल का बंटी ‘

उफ्फ…वो चाहे कितने भी ढंग से ‘फाइल पेपर और कैसरोल में रोटी बना कर रख दे’

ठंडी तो हो ही जाती है!

सासू मां खाना गर्म कर लेती थी और खुद भी खा कर, बंटी को भी खिला भी देती थी

उन्हें ‘बाई के हाथ की रोटी पसंद नहीं आती थी’

और ना ही ‘उसका दोपहर के आराम में खलल’!

यूं तो भली चंगी थी बस.. साधना ने उन्हें कभी भी काम के लिए नहीं कहा! हां इतना..

सुकून था कि बंटी खुश रहता है उनके साथ!

घर आते ही बंटी की पसंद के  रसगुल्ले निकाले..और सासू मां को चाय के लिए आवाज़ दी ‘केसरोल खाली था’

यानि खाना तो.. खाया जा चुका था

एक तरफ फ्रेंच फ्राइज रखें और ‘चढ़े हुए तेल में फटाफट  पांच सात.. पकोड़े निकाल लिए’

चाय पकौड़े के साथ.. सासू मां मुस्कुराती हुई मेज पर आकर बैठ गई थी

 बंटी खुश दिख रहा था मम्मा ..रोज जल्दी आ जाए करो ना ?

आपका ‘ऑफिस का काम खत्म’

अब आप फ्री !

साधना एकटक उसे देखकर सोच रही थी ..

काम कहां खत्म ?

ऑफिस का खत्म तो.. घर का शुरू ?

“औरत तो दोनों  सिरों  में  उलझती है”

पर कुछ नहीं बोली.. सास ने साधना के हाथों पर हाथ रखा और चौंक पड़ी!

 बहु तेरे तो हाथ जल रहे हैं..’ साधना बोली हां हरारत सी थी’

अभी दवाई लेती हूं !

वह खड़ी हुई और कुर्सी को पकड़कर लहरा कर बैठ गई!

सुबह से खुद भी तो कुछ नहीं खाया था ना.. दवाई कैसे लेती?




 साधना की सास ने साधना के सिर पर हाथ रखा..  बोली रहने दे अब.. !

वो धीरे से बोली, मां जी अभी दवाई लूंगी ठीक हो जाएगा!

पर वो ‘खुद ही गई.. ‘दवाई का डिब्बा लाई’

और फ्रिज में से ब्रेड भी!

 टोस्टर में ब्रेड सेक कर  साधना को पकोड़ो के साथ  दे कर बोली,पहले तू खा!

साधना की आंखें भीग गई… काश थोड़ा सा और सहारा मिल जाता या वो बाई जी के हाथ के खाने के लिए मान  जाती!

‘ तो शाम को उसे फिर से ना  खटना पड़ता’

हो सकता है.

बच्चा ही सुधार दे!

वो दवाई खाकर कमरे में चली गई थी

लगभग 8:00 बजे नींद खुली!

“रात का खाना बाकी था”

बड़ी मुश्किल से घसीटती सी रसोई में पहुंची’

बाई जी काम करके जा चुकी थी.. साधना की सासु मां ने आज पहली बार  उससे ,रोटी सब्जी भी बनवा ली थी

उसे हैरानी से ताकता देख कर बोली,  मैं समझ सकती हूं साधना!

हमने तो सिर्फ घर संभाला ।

तुम दोनों चीजें संभाल रही हो

आइंदा..’ मैं भी ध्यान रखूंगी’.. अच्छा बता अब कैसा लग रहा है?

बस रिश्तों में… खुशबू खिलने लगी थी

लेखिका अर्चना नाकरा

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