आज मैं अपने पसंदीदा शहर पहुँची तो लगा कि ये गलियाँ ,ये हवायें और यन्हा की ख़ुशबू मेरा स्वागत कर रही है और मैं भी उन पुरानी यादों को तरोताज़ा करने के लिए बहुत उत्सुक थी । क़रीब पाँच दशक पूर्व विवाह के बाद इस धरा पर कदम रखा था । घर की बड़ी बहू के रूप में मेरा स्वागत हुआ ।
नए सपने नए लोग और खुशियों ने मेरा साथ दिया । दिन प्रतिदिन नई खाने की डिश बनाती और सभी का मन लुभाती ।घर में सास ससुर दो बड़ी ननदे और एक देवर थे , सभी ने शुरू में बहुत ध्यान रखा लेकिन धीरे-धीरे सभी ने मुझ पर अपेक्षाओं की पोटली खोल दी और काम का बोझ बढ़ाते गए ।मेरी ननद और देवर की प्राथमिकता कम होने पर उन लोगों ने मेरी उपेक्षा करनी शुरू कर दी ।मेरा मजाक उड़ाना मेरी ग़लतियाँ निकालना और मेरे ख़िलाफ़ मेरे सास ससुर को भड़काने के कारण मैं बहुत दुखी हो गई ।
कोई मेहमान आए या ननद की शादी का काम, उनके बच्चे की डिलीवरी का काम हो सब कुछ मुझे ही संभालना था । मेरे पति की नौकरी कुछ दूरी पर ही थी लेकिन मैं नहीं जा सकती थी क्यों कि मैं घर की बड़ी बहू थी 😒
ननदों की शादी में अपने जेवर कीमती साड़ियाँ और अन्य सामान जो मुझे मायके से मिला था वह सब मुझ से बिना पूछे दे दिया गया तो भी मैंने संतोष बनाये रखा क्यों कि मैं बड़ी बहू थी ।
जब मेरे बच्चों की पढ़ाई और भविष्य की बात आई तो कहा गया कि अपने काम अपने ख़र्चे ख़ुद ही देखो । इसी रवैये से हैरान परेशान मैं चिड़चिड़ी सी हो गई । किसी को कोई परेशानी नहीं थी बस मैं दिन रात दुखी होती और मेरे पति भी कुछ नहीं बोलते थे । एक दिन गुस्से में ससुर जी को सामने जवाब दे ही दिया तो घर में भूचाल आ गया और उन्होंने तुरंत ही घर से निष्कासित करने का हुकुम सुना दिया
“काटो तो खून नहीं “जैसी परिस्थिति में अपने बच्चों को ले कर किसी दोस्त की मदद से एक छोटा सा घर ले कर रहने लगे । लेकिन ना तो सामान था ना ही पैसा था ऊपर से ससुर जी ने अपनी सम्पत्ति से भी बे दखल कर के ही दम लिया ।
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जीवन के इस मोड़ पर अकेले और ठगे से रह गए लेकिन हिम्मन नहीं हारी ।बड़ी बहू को मोहरा बना कर काम लिया किंतु जब उसके लिए कुछ करने की बारी आई तो किनारा कर लिया जिसने सभी की ज़िम्मेदारी उठायी और मदद की लेकिन उसे क्या मिला । “जो सब की मदद करे उसकी मदद ईश्वर करे “। आज सभी बच्चे सुखी और खुश है लेकिन जो टीस मन में घुल गई है वह कभी भी नहीं धुल सकती ।
आज के समय की सभी बहुएँ बहुत ज़्यादा समझदार हो गई है किसी की बातों में नहीं आती और पहले अपने आप को सुरक्षित कर के ही किसी की मदद करती है ।
आज मैं समाज से ये प्रश्न करना चाहती हूँ कि क्या बड़ी बहू होना उसका अपराध था या परिवार के लिए अपनी खुशियों की बलि देना उसका क़सूर था ?
जब छोटी बहुएँ आ जाती है तो क्या बड़ी बहू की प्राथमिकता समाप्त हो जाती है???
जीवन की एक गलती ने पूरा भविष्य ही बदल दिया क्या ऐसा होना चाहिए था ?
छोटे छोटे मासूम बच्चों का बचपन छीन कर उन दादा दादी को क्या मिला जब कि कहा जाता है कि मूल से ज़्यादा ब्याज प्यारा होता है !!!!!!
मुझे अपने किए पर कोई पछतावा भी नहीं है अपने बच्चों का भविष्य संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उन्हें उस मुकाम पर पहुँचने में ईश्वर ने मेरी पूरी मदद की ।
ससुराल की उन गलियों में मैं बिंदास घूम रही थी और खट्टी मीठी यादों में अपनी ख़ुशियाँ , अवहेलना और दुख भी महसूस कर रही थी । मेरी कहानी की नायिका आज बेहद ख़ुशी से जीवन व्यतीत कर रही है ।
आदरणीय पाठकों को मेरी रचना कैसी लगी ??
#बड़ी बहू
उर्मिला मोहता