कोई भी रिश्ता,स्वाभिमान से बड़ा नहीं – डॉ पारुल अग्रवाल

अंजली जिंदगी से भरपूर, हर पल को खुशी से जीने वाली लड़की थी। अपने मम्मी-पापा, दादा-दादी और छोटे भाई के साथ हंसी खुशी दिन बीता रही थी।बहुत अमीर तो नहीं थे वो लोग, पर बिरादरी में अच्छे खाते-पीते परिवार में उनकी गिनती होती थी।

अंजली पढ़ाई में काफी होशियार थी,वो एक सामाजिक संस्था में जॉब के साथ-साथ,सिविल सर्विसेज की तैयारी भी कर रही थी। पर रिश्तेदारों ने उसके पिता से उसकी शादी के बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी थी।

उसके पापा अभी उसकी शादी नहीं करना चाहते थे,पर एक दिन ऐसे अच्छे घर से समीर नाम के लड़के का रिश्ता आया।लड़का इकलौता और बहुत बड़ी कंपनी का मालिक था। शहर के अमीर लोगों में उनकी गिनती होती थी। अंजली के दादा-दादी और रिश्तेदार ऐसे रिश्ते को हाथ से ना जाने देने का दबाव अंजली के पापा पर बनाने लगे।

अंजली ने बहुत कोशिश की, घर पर सबको समझाने की पर सब व्यर्थ गया। अब अंजली को लगा, अभी तो सिर्फ रिश्ता आया है,हो सकता है कि वो लड़के वालों को पसंद ही ना आए,ऐसा सोचकर उसने सब किस्मत पर छोड़ दिया। 

खैर वो दिन भी आ गया जब लड़के वाले उसको देखने आए, उसे पूरी उम्मीद थी कि इतने अमीर घर के लोग उस अपनी ही दुनिया में खोई लड़की को पसंद नहीं करेंगे। पर इन सबसे विपरीत वो लड़के वालों को पसंद आ जाती है।

शादी के लिए अभी थोड़ा सा वक्त था। इस समय को समीर ने अंजली से थोड़ा जान पहचान बढ़ाने के लिए उपयुक्त समझा। उसने अपनी मां से अंजली के घर ये बात कहलवा दी।अंजली के घर वाले भी खुले विचारों के लोग थे, उन्होंने इस सुझाव को मान लिया। इस तरह अंजली और समीर की मुलाकातें शुरू हुई।

पहली ही मुलाकात ही अंजली के लिए कोई बहुत सुकून वाली नहीं थी। असल में जैसे ही,अंजली समीर से मिलने पहुंची,वैसे ही समीर ने उसके पहनावे को लेकर उसका मज़ाक बनाया और बोला लगता है पहले कभी किसी लड़के से नहीं मिली हो,जो बिल्कुल बहन जी टाइप बनकर आई हो।

अब तुम्हारी हाई सोसायटी में रहन-सहन की ट्रेनिंग करवानी पड़ेगी। ये सुनकर अंजली बिल्कुल निशब्द हो गई पर पहली मुलाकात है ये सोचकर चुप रही। घर पर भी सभी लोगों के चेहरे पर उसकी शादी की खुशी को देखकर उसने कुछ नहीं कहा।

पर ये तो सिर्फ शुरुआत थी, समीर को जब मौका मिलता वो उसके रहन-सहन और परिवार के तौर तरीके के लिए कुछ भी बोलता। अंजली अंदर ही अंदर घुट रही थी, उसके चेहरे पर शादी वाला नूर गायब था। कई बार उसने मां से बात करने की कोशिश भी की पर जैसा हमारे भारतीय घरों में होता है कि बस एक बार शादी हो जाए सब ठीक ही होगा ऐसी ही सलाह अंजली को भी थमा दी जाती। 



अंजली को कुछ समझ नहीं आ रहा था, उसका आत्मसम्मान कहीं ना कहीं खो रहा था। आज फिर समीर से उसे मिलने जाना था। वो बेमन से वहां जाती है। आज समीर के साथ उसके दो दोस्त भी थे, जो समीर के साथ अंजली से मिलने आए थे। जब वो मिलने पहुंची तभी समीर का उसके पहनावे को देखकर ही मुंह बन गया।

अब दोस्त अगर अंजली से कुछ भी पूछते तो समीर अंजली के तौर-तरीकों का बातों ही बातों में खूब मज़ाक बना रहा था। खैर किसी तरह से खाना- पीना बीता तो दोस्त कहने लगे कि आज की तो पार्टी होने वाली भाभी की तरफ से होनी चाहिए। ये सुनकर जैसे ही अंजली ने बिल देने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तभी समीर ने बहुत तेज़ आवाज़ में उसे सुनाते हुए कहा कि तुम तो रहने ही दो, पूरे महीने का वेतन तुम्हारा आज ही चला जायेगा।

जितनी छोटी तुम्हारी नौकरी है,उसका पैसा तो तुम अपने एक-दो ड्रेस के लिए बचाकर रखो। ये कहकर वो दोस्तों के साथ खूब जोर से ठहाके लगाने लगा।आज अंजली का आत्म सम्मान को बहुत ठेस पहुंची थी। उसकी नौकरी उसके लिए पूजा के समान थी।

आज उसने साहस करके समीर को बोला कि शादी के लिए रिश्ता लेकर उसका परिवार उनके यहां आया था वो नहीं, माना की उसका परिवार समीर की तरह अमीर नहीं है पर स्वाभिमान और संस्कार उसमें कूट-कूट कर भरे हैं। वैसे भी अगर वो इतने ही अमीर हैं तो क्यों उसके पापा से बहुत अच्छी शादी और एक बड़ी गाड़ी की मांग कर रहे हैं? वो आज ही ऐसे रिश्ते को ठुकराती है,

जिसमे दूसरे इंसान को पल-पल नीचा दिखाया जाता हो,जबकि अभी तो शादी भी नहीं हुई। समीर को अंजली से ये उम्मीद नहीं थी। पर आज अंजली ने उसको आईना दिखा दिया था। अंजली ने उसको बता दिया था कि पैसे के बलबूते पर वस्तुएं तो खरीदी जा सकती हैं, पर किसी का आत्मसम्मान नहीं। आज अंजली अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रही थी, अब बस उसको घर आकर अपने मम्मी-पापा को समझाना था। 

दोस्तों,कोई भी रिश्ता आत्मसम्मान से बड़ा नहीं होता। रोज घुट-घुट कर जीने से अच्छा है कि अपनी बात को स्वाभिमान के साथ सर उठाकर कहा जाए।। 

#आत्मसम्मान

डॉ पारुल अग्रवाल,

नोएडा

 

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