किस्मत – सुमन अग्रवाल “सागरिका”

डोर वेल की आवाज……शायद पूजा होगी शारदा ने जाकर दरवाजा खोला देखा तो सामने बहू (पूजा) ही थी। बहू– माँ जी मेरा सिर दुख रहा है मेरे लिए अच्छी सी अदरक वाली कड़क चाय बना देना साथ में गरमागरम करारे पकौड़े शारदा रसोई में गई पूजा के लिए चाय व पकौड़े ले आई फिर शाम का खाना……

सुबह – माँ जी मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है मुझे अभी निकलना होगा, पूजा जल्दी से चाय नाश्ता करके निकल गई। बेटा प्रांजल भी चाय नाश्ता करके निकल गया बाद में शारदा अपने घर के काम में जुट गई, रोज का यही रूटीन था।

दरअसल पूजा जॉब करती थी और सामाजिक संस्था से भी जुड़ी हुई थी। वृद्धाश्रम, अनाथ आश्रम व गरीबों की सहायता करती सब लोग पूजा की तारीफ़ किये बगैर नही थकते थे बुजुर्ग, गरीब बच्चें उसे बहुत प्यार करते थे उनके लिए तो जैसे पूजा भगवान का रूप है।

मगर ये क्या अपनी बुजुर्ग सास से काम करवाना कहां तक उचित है, उनके भी तो कुछ अरमान है अपनी बहू की सेवा पाने के लिए

अपितु सेवा के नाम पर उल्टा उनके लिए चाय नाश्ता व खाना बनाकर देना होता है।

मतलब बहू सेवा……उल्टी गंगा बहना, किस्मत अपनी अपनी।

बेचारी शारदा दिनभर की थकी कुछ देर ही आराम किया कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी देखा तो पूजा की चार-पाँच सहेलिया….उन्हें सोफे पर बिठाया पूजा तो बस अपनी सहेलिया संग बातें करने में मस्त हो गई।



सास शारदा से कहा आप कॉफी नाश्ता ले आओ।

बेचारी शारदा क्या करती दिनभर काम से थकीहारी फिर से किचिन में लग गई, कॉफी नाश्ता ले आई मगर वो कहां खुश थी माँ जी ये क्या आपको पता नही नलिनी कॉफी नही चाय पीती है वो भी बिना शक्कर बाली बेचारी फिर नलिनी के लिए बिना शक्कर बाली चाय बनाकर ले आई।

सहेलियों के चले जाने के बाद जैसे ही शारदा अपने कमरे में लेटी बेटा प्रांजल भी आ गया पूजा से चाय की कहा तो पूजा बोली मुझे बहुत जरूरी काम है आप माँ जी से कह दो बेटा प्रांजल बोला माँ मेरे लिए चाय बना दो। शारदा किचिन में जाकर उसके लिए कड़क चाय ले आई। कुछ देर बाद शाम हो गई अब फिर वही खाने की तैयारी

प्रांजल व पूजा खाना खाने बैठे माँ जी आज ये कैसी सब्जी बनाई है, ये खाना मुझे नही खाना पूजा तुनककर चली गई और रेस्टोरेंट से खाने का ऑर्डर दे दिया। हालांकि प्रांजल ने तो खाना खा लिया।पूजा को बहुत मनाने की कोशिश की मगर वो कहां मानने वाली थी।पूजा के नखरें तो आसमान छू रहे थे।

शारदा बेचारी खाना खाकर सो गई, अगले दिन सुबह उठी पूजा को चाय दी मगर वो अब भी नाराज थी वो गुस्से में बिना कुछ खाए चली गई ऑफिस।

अकेली बैठी शारदा बस यही सोच रही थी कि बहू सास की सेवा करती है वो तो नसीब नही हुई बल्कि बहू की सेवा करो और ऊपर से सुनो, शारदा के आँखों से अश्रु बह रहे थे सोच रही थी किस्मत अपनी अपनी पहले माँ-पिता का बंदिश, सास- ससुर की सेवा अब बहू सेवा शायद मेरी किस्मत में यही लिखा है। वो अपनी किस्मत को कोसने लगी चेहरे पर उदासी फिर से जुट गई अपने काम में…..

वाह री किस्मत किस्मत भी क्या रंग दिखाती है।

घर की वुजुर्गो की सेवा छोड़ बाहर दिखावटी समाज सेवा यानी घर की मुर्गी डाल बराबर…..

सुमन अग्रवाल “सागरिका”

    आगरा

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