किराए का घर – रीटा मक्कड़ : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : कितनी खुशी खुशी वो आयी थी उस घर मे रहने। ससुराल में संयुक्त परिवार में बहुत साल रहने के बाद जब उसको अपना घर अलग बसाने का मौका मिला तो उसको लगा कि अब वो अपनी ज़िंदगी सकून से जी सकेगी।

ससुराल का घर छोटा था और परिवार बड़ा इसलिए एक दिन उसके पतिदेव ने आखिर अलग घर मे रहने का फैसला ले ही लिया जिसकी उम्मीद उसको खाबो ख्याल में भी नही थी।

और वो अपना घर छोड़ कर किराए के घर मे आ गयी अपनी गृहस्थी जमाने।

अपने घर के अधूरे सपने को पूरा करने की चाहत मन मे लिए।

वो कहते हैं न कि औरत ही होती है जो एक मकान को घर बनाती है। उसने भी कितने प्यार से उस खाली वीरान पड़े फ्लैट को अपना घर बना लिया था।कितने प्यार से घर की एक एक चीज को सजाया ओर सँवारा था।

कितनी बार उस घर मे दोनो बच्चे  एक साथ खेले और एक साथ लड़ाई  भी की।कितनी बार उस घर मे उसने अपने बच्चों की शादियों के सपने देखे। वो कितने बेहिसाब पल होंगे जो उसने पति के साथ कभी प्यार और कभी नोकझोंक करते हुए गुजरे होंगे।


उसी घर मे उसने अपने बच्चों को जवांन होते देखा।

इसी घर मे तो उसकी बिटिया की शादी के शगुन मनाए गए थे और उसको दुल्हन बनी देखने और विदा करने का सपना भी इस घर मे ही तो पूरा हुआ था।

लेकिन उसका दिल कितना दुखता जब सोसाइटी के ही कुछ लोग उन्हें दूसरों से कमतर समझते। कई  मौके उनके हाथ से इसलिए छूट जाते क्योंकि वो किराए के घर मे रहते थे। क्यों कुछ लोग किराए के घर मे रहने वालों को अपने से कम आंकते हैं।

और आखिर एक दिन वो दिन भी आ गया जब उन्हें उस घर को भी छोड़ने का फैसला लेना पड़ा। अंदर से उसका मन बहुत उदास था इसलिए किसी को बताने की भी हिम्मत नही पड़ रही थी ।

उन्होंने शिफ्टिंग के लिए मूवर्स ओर पैकर्स को बुलाया।कैसे वो उसकी लगाई एक एक चीज को उखाड़ रहे थे और कार्टून्स में डाल रहे थे। कैसे देखते ही देखते कल तक जो एक प्यारा सा घर था फिर से एक खाली  मकान ओर वीरान दीवारों में बदल गया।

जितनी बार उसके बच्चों के बचपन की तस्वीरें, उनके कमरे से बहुत से यादें उठा उठा कर डब्बों में बंद की जा रही थी उतना ही उसका दिल बैठता जाता था ।लग रहा था कोई उसके कलेजे के टुकड़े करे जा रहा है।


सोसाइटी से उसकी सखियां उसका समान जाता देख कर बहुत हैरान हो गयी और नाराज भी हो गयी कि इतना प्यार और दोस्ती कर के क्यों उसने यहां से एक दम जाने का फैसला ले लिया।

लेकिन…..यही तो ज़िन्दगी है न..जब हमें बहुत से फैसले दिल से नही दिमाग से लेने पड़ते हैं।भले ही उसके लिए हमे हमारे दिल पे कितने जख्म  झेलने पड़े। चाहे दिल के कितने ही टुकड़े हो जाएं।

बस इसी तरह खुद को समझाते हुए वो निकल पड़ी एक नए सफर पर..फिर से एक खाली पड़े वीरान मकान को अपने आशियाने मे तब्दील करने।

मौलिक रचना

रीटा मक्कड़

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