खुद की सैंटा – गीतू महाजन

क्रिसमस की छुट्टियों में अवनि घर आई हुई थी और उसके आने पर घर की रौनक देखते ही बनती थी।अवनि की मां नीलिमा जी और पिता सुबोध जी दोनों ही बहुत खुश नज़र आ रहे थे।अवनि के घर आने से पहले ही नीलिमा जी ने उसके लिए उसकी पसंद के ढेरों पकवान बनाकर रख दिए थे और 2 दिन बाद तो उनका बेटा अनंत भी बेंगलुरु से अपनी छुट्टियों में आ रहा था।

नीलिमा जी और सुबोध जी के दोनों बच्चे अनंत और अवनि पढ़ने में शुरू से ही बहुत होशियार थे।अनंत को तो एमबीए करते हुए ही कॉलेज में एक बहुत अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल गई थी जिसके चलते उसे बेंगलुरु में रहना पड़ रहा था।उसे भेजते वक्त नीलिमा जी बहुत उदास हो गई थी क्योंकि उन्हें लगता था कि उसके जाने के बाद वह अपने लाड़ले के बिना कैसे रह पाएंगी।

अवनि उन्हें अक्सर छेड़ देती,” आपका लाड़ला चला जाएगा तो कोई बात नहीं मां…आपकी रानी बिटिया जो है आपका मन लगाने के लिए” और नीलिमा जी के उदास चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आ जाती।

सुबोध जी भी पत्नी को समझाते कि बच्चों को अब आगे बढ़ने से रोका तो नहीं जा सकता।उनके उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें भारी मन से ही सही यह कदम तो उठाना ही पड़ेगा।नीलिमा जी सब जानती और समझती भी थी पर अपने मन का क्या करती।खैर,बड़े भारी मन से उन्होंने अनंत को बेंगलुरु नौकरी करने के लिए भेज दिया था।

नीलिमा जी शुरू से ही भरे पूरे परिवार में रही थी पहले सास-ससुर और दादी सास भी उन्हीं के साथ रहती थी पर धीरे-धीरे उम्र के साथ वे उन्हें छोड़ भगवान के पास जा चुके थे।फिर जब अवनि को पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए मुंबई भेजने की बारी आई तो नीलिमा जी का तो कलेजा जैसे मुंह को आ गया।उन्हें ऐसा लगता था कि इतने बड़े घर में उन दोनों पति पत्नी का अकेले जीवन कैसे कटेगा और वैसे भी नीलिमा जी ने कभी अपने बारे में तो सोचा ही नहीं था।सारा जीवन उनका सास-ससुर और अपने बच्चों के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा।

एक बार फिर से अपने जी को कड़ा कर बेटी के भविष्य के लिए उन्होंने उसे मुंबई भेज दिया।दोनों बच्चे रोज़ उनके साथ फोन पर बात करते तो उनके दिल को थोड़ी तसल्ली सी रहती।इस बार बच्चों के आने की खुशी तो उनके चेहरे पर देखते ही बनती थी।




अवनि आई तो अगले दिन नीलिमा जी उसके साथ बाज़ार चली गई।बाज़ार में क्रिसमस का बहुत सारा सामान आया हुआ था। तरह-तरह के क्रिसमस केक..क्रिसमस ट्री..सैंटा क्लॉज़ की टोपियां और भी बड़ी तरह सामान से दुकानें सजी हुई थी।

“तुझे याद है अवनि, तू और अनंत कैसे क्रिसमस का यह सारा सामान घर लाते थे और घर में कितना बड़ा क्रिसमस ट्री सजाया करते थे”,नीलिमा जी ने कहा।

“तो कोई बात नहीं मां..इस बार भी ऐसा ही करते हैं” और अवनि ने ढेर सारा सामान खरीद लिया।

अगले दिन अनंत आया तो पूरा घर जैसे खिलती हुई धूप से नहा गया हो।दोनों बच्चों की चहचहाहट जैसे नीलिमा जी के कानों में शहद के रस की तरह घुलती जा रही थी। दोनों बच्चों ने मिलकर क्रिसमस ट्री सजाया और शाम को क्रिसमस का केक भी काटा।रात को सब खाना खाने के लिए बाहर चले गए।

“और अनंत तुम्हारी नौकरी कैसी चल रही है”, सुबोध जी ने पूछा।

“बहुत अच्छी चल रही है पापा..मेरे बॉस भी मेरे काम से बहुत खुश हैं और मैं दिल्ली में ही अपनी ट्रांसफर कराने की कोशिश भी कर रहा हूं”,अनंत के यह कहने पर नीलिमा जी के चेहरे पर जो चमक आई वह अवनि से छुपी ना रह सकी।

खैर बच्चों को तो वापिस जाना ही था नया साल मना कर दोनों बच्चे अपने-अपने गंतव्य की ओर निकल गए। नीलिमा जी ने अपनी आदत अनुसार उनके लिए बहुत ज्यादा सूखा नाश्ता बनाकर उनके साथ पैक कर दिया।

बच्चों के जाने के बाद नीलिमा जी बहुत उदास सा महसूस कर रही थी।सुबोध जी उन्हें समझाते हुए दफ़्तर निकल गए। उन्हें भेजने और नाश्ता करने के बाद नीलिमा जी थोड़ी देर बालकनी में आई धूप में बैठी रही और फिर कामवाली बाई के आने पर उन्होंने भी अपना काम शुरू कर दिया और जैसे ही उन्होंने बिस्तर झाड़ने के लिए अपना तकिया उठाया तो उसके नीचे उन्हें एक इनवेलप मिला जिसके ऊपर ‘मां’ लिखा हुआ था और उस इनवेलप के अंदर एक चिट्ठी थी।




नीलिमा जी ने उत्सुकता से वह चिट्ठी निकाली और उसे पढ़ना शुरू किया।चिट्ठी अवनि ने लिखी हुई थी और उसमें उसने उन्हें संबोधित करते हुए चिट्ठी की शुरुआत की थी। 

उसने लिखा था,”मां, मैं जानती हूं कि आप हम दोनों को बहुत याद करती हो और सारा दिन हमें याद करते हुए ही उदास भी रहती हो।आपका बार-बार हमारे कमरे में जाकर हमारी चीज़ो को छूना और हमारे कपड़ों को गले लगाकर अपनी आंखे भर लेना..यह सब अच्छी तरह से मुझे पता है।मैं अक्सर पापा से आपके बारे में पूछती रहती हूं और जानती हो वह भी आपके लिए कितने चिंतित रहते हैं।

आप सोच रही होगी कि मैं यह चिट्ठी आपको क्यों लिख रही हूं।मैं आपसे यह सारी बातें खुद ही कहना चाहती थी लेकिन आपकी आंखों में बार बार आई नमी को देख मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैंने इस चिट्ठी को लिखना ही ठीक समझा।

 मां, मैं इतनी बड़ी तो नहीं हुई कि आपको गलत कह सकूं लेकिन जो आप अपने साथ कर रही हैं वह भी ठीक नहीं है।आपने हमेशा दूसरों की चाहत के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी।मैंने हमेशा आपको दूसरों के लिए फिक्र मंद होते ही देखा।कभी दादा दादी की किसी इच्छा को पूरी करते हुए..कभी बड़ी दादी की और कभी पापा या हम दोनों भाई बहनों की।आपने अपनी चाहत कब कहीं पूरी की होगी मुझे नहीं पता।

घर में हमेशा आप हमसे हमारी पसंद का खाना ही पूछ पूछ कर बनाती।मुझे याद नहीं कि कभी आपने खुद के लिए भी अपनी पसंद की कोई सब्ज़ी बनाई होगी।अपनी सहेलियों के साथ घूमने की अपनी चाहत को आपने हमेशा दबाया ताकि दादा दादी को कभी कोई मुश्किल ना आ सके।मुझे याद है पार्क में खेलते हुए हम सब बच्चों की मांए आपस में ग्रुप बनाकर किट्टी पार्टी या घूमने का कोई प्रोग्राम बना लेती थी लेकिन आपने खुद को हमेशा इन बातों से दूर रखा।क्या मुझे नहीं पता कि आप भी यह सब करना चाहती थी लेकिन आपने अपनी चाहत को अंदर ही अंदर कहीं दबा दिया था।

मुझे अच्छी तरह याद है आपकी सहेली सुषमा आंटी के डांस क्लास ज्वाइन करने पर और उनके लाख कहने पर भी आप उस डांस क्लास को ज्वाइन नहीं कर सकी थी। हालांकि आप वह करना चाहती थी लेकिन घर की ज़िम्मेदारियों ने आपको बांध रखा था।आपको किताबें पढ़ने का कितना शौक था। बाज़ार से कभी मैगज़ीन खरीद कर भी लाती तो वह कई कई दिन अछूती ही रह जाती थी और उसे पढ़ने की आपकी चाहत बहुत मुश्किल से ही आधी अधूरी पूरी हो पाती।




अपनी अधूरी चाहतों के बीच आपने हमारी चाहतों को हमेशा पूरा किया और अब समय आ गया है कि आप उन अपनी उन अधूरी चाहतों को पूरा कीजिए।मैं और भाई हमेशा आपके साथ थे और हमेशा आपके साथ ही रहेंगे चाहे हम कितनी ही दूर क्यों ना चले जाएं लेकिन हम हमेशा आप में ही समाए रहेंगे इस चिट्ठी के साथ ही एक और कार्ड है जिसमें मैंने और भाई ने आपको एक डांस क्लास ज्वाइन करा दी है जो कि हमारी सोसाइटी के बिल्कुल पास ही है।

आपको याद होगा कि जब हम छोटे थे तो कैसे आप बड़ी चालाकी से क्रिसमस से बहुत दिन पहले ही हमसे हमारी चाहत पूछ लेती थी और फिर क्रिसमस से पहले रात को हमारे तकिए के नीचे वही सामान लाकर रख देती और हम सुबह उठकर यह सोचते कि यह सैंटा क्लॉज ने हमें तोहफा दिया है। 

मां,अब आपको खुद अपना सैंटा बनना है और खुद को वह सब तोहफे देने हैं जिनकी कभी आपने चाहत तो की थी लेकिन उन्हें कभी पूरा ना कर पाई।अब आपके पास समय है और ज़िम्मेदारियों का कोई बंधन नहीं इसीलिए अभी से शुरुआत कीजिए…खुद की सैंटा बनिए और अपनी उन दबी हुई सारी चाहतों को पूरा कर खुद भी खुश रहिए और पापा को भी चिंता मुक्त कीजिए।अगर आप खुश रहेंगी तो हम सब जहां भी हो वह खुशी अपने अंदर महसूस कर पाएंगे”।

चिट्ठी पढ़कर नीलिमा जी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उनके बच्चे कब इतने सयाने हो गए थे उन्हें पता ही नहीं चला था और उन्होंने मन ही मन यह सोचा कि अब वो वही करेंगी जो उनके बच्चों ने उनसे करने के लिए कहा है।अब वह अपनी उन सारी चाहतों को पूरा करेंगी।

सुबोध जी ने भी उन में यह परिवर्तन देखा तो वह भी बहुत खुश हुए।कुछ ही दिनों में नीलिमा जी ने वो डांस क्लास ज्वाइन कर ली थी और अपनी सहेलियों के साथ भी वक्त बिताने लग पड़ी थी। सुबह का समय वह योगा क्लास चली जाती और शाम को उन्होंने एक एनजीओ में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया था जिससे उनका अच्छा वक्त भी कटता और उनके मन को भी खूब तसल्ली मिलती।

 दो महीने के बाद उनके डांस की परफॉर्मेंस थी।अपने डांस परफॉर्मेंस की वीडियो उन्होंने अपने दोनों बच्चों को भेजी और नीचे लिखा,” शुक्रिया मेरे बच्चों.. मुझे ‘खुद की सैंटा’ बनाने के लिए…ढेर सारा प्यार।

कुछ ही देर में उनके मोबाइल पर बच्चों के ढेर सारे प्यार भरे इमोजी वाले मैसेज आ गए थे। जिन्हें देखकर उन्होंने अपने मोबाइल को ही अपने सीने से चिपका लिया था जैसे दोनों बच्चों को अपने गले लगा लिया हो पर इस बार उनकी आंखों में नमी नहीं बल्कि होठों पर ढेर सारी मुस्कुराहट थी।

#चाहत

#स्वरचित 

गीतू महाजन।

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