खामोशी –  नीलिमा सिंघल

लगभग 12/13 वर्षों के बाद गांव लौटा था। कुछ खास बदलाव नहीं था। हां,कुछ पक्के मकान अवश्य बन गए थे। बाजार जो पहले छोटा हुआ करता था,अब थोड़ा बड़ा हो गया है।

हमारी पुरानी हवेली नुमा घर की शक्ल थोड़ी बदली बदली सी लग रही थी।

परिवार के लोगों के चेहरों में कुछ कुछ परिवर्तन दिख रहा था। उम्र के अनुसार तो यह स्वाभाविक भी था।

ताऊ,चाची, चचेरे भाई बहन सभी की उम्र बढ़ गई थी। कुछ की शादी और कुछ के बच्चे भी थे। इतने वर्षो बाद अचानक मेरे आने से पुराने लोग जो मुझे बचपन से जानते थे,उनके चेहरों पर मिली जुली प्रतिक्रिया थी।

छोटे लोग जो मुझे पहली बार देख रहे थे,उनकी आंखों में एक अजीब सा अजनबीपन दिख रहा था। उनकी नजरों में मैं अपने लिए कुछ अच्छा महसूस नही कर पा रहा था।

ताऊ  जी ने मेरे ठहरने के लिए उपर वाले कमरे को ठीक करने के लिए कह कर कहीं चले गए। उनका अचानक मेरे वर्षों बाद आने के बाद भी बिना ज्यादा कुछ बात चित किए,कहीं चले जाना,मुझे समझ में नहीं आया।

मुझे ऊपर वाले कमरे का रास्ता मालूम था,इस लिए बिना किसी की प्रतीक्षा किए अपना बैग उठा कर सीढियों पर चढ़ गया।

खाने के वक्त एक छोटी सी बच्ची ने दरवाजे से आवाज लगा कर पूछा कि मैं खाना ऊपर ही खाऊंगा या नीचे सब के साथ…?

परिवार के लोगों के साथ मेरा पहला अनुभव अच्छा नहीं था कि सब के साथ खाना खाऊं,मगर अकेले ऊपर में खाना भी अच्छा नही था।

जब मैं नीचे आया तब शयन के पुरानी सी डाइनिंग टेबल पर सभी ने पहले ही खाना शुरू कर दिया था।

मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। चाची ने मेरे प्लेट को मेरी ओर सरका कर इशारा कर दिया दिया कि मैं खुद हीं परोस लूं।

मेरा खाना खत्म भी नही हुआ था कि बाकी लोग प्लेट साफ कर एक एक कर चले गए। मेरी आदत धीरे धीरे खाने की थी।

मैने गौर किया,यहां कोई भी मुझ से बात करने से कतरा रहा था। बस आठ दस साल की एक लड़की थी,जिसको मेरी जिम्मेदारी दी गई थी। वही थोड़ी थोड़ी देर पर आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती थी। बाकी घर के लगभग आधा दर्जन से भी ज्यादा लोग मुझे कोई अहमियत नहीं दे रहे थे। ताऊ जी कभी कभी टुकड़ों में कुछ पूछ लेते,मैं भी उसी अंदाज में जवाब दे देता।

शाम के वक्त मुझे अपने पुराने शहर को देखने की इक्षा हुई। मैं कपड़े बदल रहा था उसी समय वह बच्ची चाय का प्याला लिए कमरे के बाहर से आवाज लगाई। मैने उसे अंदर आ जाने के लिए कहा। मगर वह बाहर ही खड़ी रही। मैं शीशे में अपने बाल संवारते हुए फिर से अंदर आने को कहा तब वह सकुचाई सी अंदर आ गई।




मैने उसे गौर से देखा, उसका चेहरा कुछ जाना जाना सा लगा । मैने उसके हाथ से चाय का कप ले कर पलंग पर बैठते ही पूछा ” तुम कौन हो,क्या नाम है तुम्हारा…?

उसने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा ” मेरा नाम तनु है “

” तुम किसकी बेटी हो..” मैने पूछा पर

वह बिना कुछ बोले लगभग भागती हुई कमरे से बाहर चली गई।

मैं आश्चर्य से दरवाजे के हिलते पर्दे को देखता रहा,जो उसके जोर से झटकने के कारण हिल रहा था।

यह शहर मेरे लिए अजनबी नहीं था। यही मेरी जन्मस्थली है। यहां मैने बचपन और आरंभिक जवानी के दिन  बिताए थे। बाबूजी, मां,भाई,बहन के साथ यहां अनेक वर्ष बिताए थे।

फिर बाबूजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया,तब हम लोग वहां शिफ्ट हो गए।

इस शहर में मेरे बचपन के कई दोस्त थे। कई दोस्तों की शक्ल याद थी कुछ का भूल गया था मगर नाम याद था।

इन्ही दोस्तों में एक खास था विनोद।

उसके घर का रास्ता मुझे याद था।

मेरे पांव उसकी ओर बढ़ गए।

विनोद के दरवाजे पर एक बुजुर्ग की पीठ मुझे दिखी। मेरी आवाज पर वह मुड़ा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। विनोद एकदम बूढ़ा हो गया था। ऊसके सफेद बाल,बेतरतीब उजली दाढ़ी,गाल धसे हुए,शरीर बीमारों जैसी। मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था, जबकि उसने पहली नजर में ही मुझे पहचान लिया था।

बात बात में उसने मेरी सेहत की तारीफ की तथा पूछा कि मैं किस तरह अपनी सेहत को मेंटेन करता हूं..?

इसका जवाब मेरे पास सिवाय हंस देने के और कुछ नही था।

हम घंटो बतियाते रहे। बचपन और जवानी को याद करते रहे। उन्ही यादों में उसने एक ऐसी बात याद दिला दी जिसने मुझे बुरी तरह बेचैन कर दिया।

देर रात जब मैं ताऊ जी के घर वापस लौटा तब मेरी नजर घर के चारो ओर किसी को  ढूंढ रही थी। मैं कमरे में आ कर बेचैनी से उस बच्ची का इंतजार कर रहा था जो मेरा खयाल रख रही थी । बाहर थोड़ी सी खटक की आवाज होती तो मैं चौक कर खड़ा हो जा रहा था। रात काफी हो चुकी थी इस लिए कोई नहीं आया। घर से जाते वक्त मैंने ताऊ जी को बोल दिया था कि रात का खाना मैं बाहर ही खाऊंगा। इस लिए किसी के पूछने की जरूरत भी नहीं थी।

मुझे नींद नही आ रही थी। मन बेचैन था। एक अपराध बोध से मैं घिरा जा रहा था।




मुझे विनोद की बात याद आ रही थी,जिसे सुन कर मैं बेचैन हो गया था।

विनोद ने मुझे दस बारह वर्ष पुरानी बातों को याद दिला कर गहरे भंवर में छोड़ दिया था।

उसने बताया कि दस वर्ष की वह बच्ची मनु की बेटी है। मनु जो हमारे पड़ोस में रहती थी। हमारा और उसका छत साथ में जुड़ा था।मनु,कॉलेज के जमाने में मुझसे एक तरफा प्यार करती थी। उस जमाने में प्यार को लोग पाप की नजर से देखते थे। एक रात मैं छत पर मनु से मिल कर समझा रहा था कि हमारा परिवार वर्षों से पड़ोसी की तरह रहा है। इस तरह का रिश्ता किसी के लिए भी उचित या स्वीकार्य नहीं होगा।

तभी पड़ोसी द्वारा देख लेने के बात बात बहुत बिगड़ गई थी।

अगले दिन ताऊ जी ने मुझे मेरे बाबूजी के पास दूसरे शहर भेज दिया।

हम दोनो को रात में छुप कर मिलने की बात आग की तरह पूरे समाज में फैल गई थी। मनु लड़की थी इस लिए उसकी बड़ी बदनामी हुई। उस जमाने में किसी लड़की के दामन में लगे दाग की सजा पूरी उम्र दे कर चुकानी पड़ती थी।

इसी बदनामी के कारण मनु और ताऊ के घर वालों ने आपसी समझौता कर बदनामी के डर के कारण मनु की शादी हमारे चचेरे भाई रजत के साथ कर दी थी।

मनु और रजत की शादी एक धोखे के तहत ताऊ ने करवाया था। रजत को काफी समय से टी बी की बीमारी थी,जिसे ताऊ जी ने छुपा कर रखा था। टी बी के कारण रजत की शादी कहीं हो नही सकती थी। इस लिए मौके का फायदा उठा कर उसकी शादी मनु से कर दी गई। मेरी समझ में आज आ रहा था कि ताऊ ने मुझे शहर से क्यों चले जाने के लिए मजबूर किया था। अगर मैं वहां मौजूद होता तो मनु के साथ यह अन्याय नहीं होने देता।

शादी के दो वर्ष बाद मनु को एक बेटी हुई। उसके एक वर्ष के पश्चात रजत की टी बी के कारण मृत्यु हो गई।

मनु कम उम्र में विधवा और एक बेटी की मां बन कर अपना जीवन ताऊ के रहमो करम पर जीने किए मजबूर थी।

इसी लिए जब मैं पहली बार उस मासूम सी बच्ची को देखा तो उसकी शक्ल पहचानी सी लगी। वह बिल्कुल अपनी मां मनु पर गई थी।

उस रात विनोद से मिल कर लौटने के बाद मेरी आंखों में नींद नही थी। मेरी नजरें घर में प्रवेश करते हीं मनु को ढूंढ रही थी। मनु को या तो ताऊ जी के घर वालों ने मेरे सामने आने से मना कर दिया था,या वह खुद मेरा सामना नहीं करना चाहती थी।

मुझे अफसोस हो रहा था कि मेरी वजह से मनु की जिंदगी बरबाद हो गई थी। मैं खुद को मनु का दोषी समझने लगा था।

मैं कमरे में टहलता हुआ अपनी और मनु की बीती जिंदगी के बारे में सब कुछ याद करने की कोशिश करने लगा।

कॉलेज के दिनो की बात थी। हम सभी दोस्त अभी अभी जवान हुए थे।

मेरे पड़ोस में हमारी हमउम्र मीनाक्षी रहती थी। उसके घर वाले और हम सभी पड़ोसी उसे प्यार से मनू कह कर बुलाते थे। वह थी तो साधारण शक्ल सूरत की मगर उसका व्यवहार,उसके सलीके,बात करने का ढंग और सबसे ज्यादा उसकी तमीज उसे बेहद खूबसूरत बनाती थी।

वह मुझसे ज्यादा लगाव रखती थी,क्योंकि हम नजदीक के पड़ोसी भी थे ।

हम एक ही क्लास में थे। वह पढ़ने में तेज थी,इस लिए मैं उससे हमेशा सहायता लेता रहता था।

एक बार उसकी एक सहेली ने बताया कि मनू मुझे पसंद करती है। मुझे आश्चर्य और गुस्सा दोनो साथ ही आया। क्योंकि मनु को मैने कभी उस नजर से नहीं देखा था। उसका और हमारा परिवार वर्षों से एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहते आए थे। इस लिए मेरे मन में कभी भी मनु के लिए ऐसा ख्याल  नहीं आया।

कई दिनो तक मैं उससे कतराता रहा। कतराने की वजह यह थी कि उसके और हमारे परिवार में गहरे संबंध थे। हम सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे। इस लिए हमारे

परिवारों में यह मालूम होना किसी के लिए ठीक नहीं था।

मनू कई दिनों तक कॉलेज नही आई। मुझे उसको समझाना था पर उसके कॉलेज नही आने से मुझे परेशानी होने लगी।

वह अपने घर के बरामदे या छत पर जहां वह हमेशा दिखती थी,वहां भी आना छोड़ दिया था।

उसके इस तरह अचानक गायब हो जाने से मुझे भी बेचैनी होने लगी थी।

मगर मेरी यह बेकरारी उसे समझाने के लिए नही बल्कि उसके साथ हमेशा बिताने,उसके लगातार संपर्क में आने से मुझे उसकी आदत सी हो गई थी,जो अचानक बंद हो गई थी। यह बेचैनी उस तरह की थी। मुझे लगने लगा था कि कहीं मुझे भी उससे लगाव तो नहीं हो रहा है….?




एक रात मैं छत पर बैठा था। काली रात थी। कुछ साफ साफ देख पाना कठिन था। थोड़ी देर बाद मेरी नजर मीनू के छत की ओर मुड़ी। वह कब से वहां खड़ी थी,मालूम ही नहीं चला।

वह मुझे ही देख रही थी।

कई दिनो से मैं उसे ढूंढ रहा था। हम दोनो का छत लगा हुआ था। मगर उसके लिए बीच की दीवार लांघना संभव नहीं था और तब मैं भी नही चाहता था कि हम दोनो परिवार के बीच मर्यादा की दीवार मनु लांघे।

मगर चुकिं मुझे उसके मन में मेरे लिए बनी इश्क की दीवार गिराना था,इस लिए छत की दीवार लांघ गया।

मैं उसके बिलकुल पास खड़ा था। वह पहली बार एक टक मेरी आंखों में झांक रही थी। उसकी आंखों का तेज  मेरे हौसले को कमजोर करती महसूस होने लगी थी। जल्द ही उसकी पलकों के पोर गीले हो गए। मैं समझ गया कि उसकी सहेली ने मेरी नाराजगी के बारे में बता दिया था। वह बिल्कुल खामोश थी। हां आंसुओं ने अब पलकों के बांध को तोड़ दिया था।

मुझसे कुछ कहा नहीं जा रहा था। उसे कैसे समझाऊं कि जो उसके दिल में है,उसे हम दोनो के परिवारों को किसी भी तरह मंजूर नहीं होगा। मैं उसे समझा नही पा रहा था कि थोड़ी देर पहले तक मेरे दिल में उसके लिए वह नहीं था,जो उसके दिल में है।

मेरी जुबान भी धोखा देने लगी थी। उसकी आंखों में अपने लिए सिद्दत, मुझे कमजोर कर चुकी थी।

फिर भी जो मुमकिन नहीं था उसे पालना उचित नहीं था।

मैने ज्यों ही कुछ कहने के लिए अपनी जुबान खोलनी चाही,उसने उंगली के इशारे से रोक दिया।

थोड़ी देर बाद उसने सिसकती हुई आवाज में कहा ” मैं जानती हूं,आपके लिए मेरी सोच एक तरफा है। मैं ही पागल हो गई थी। आपकी कोई गलती नहीं है। आप सोचते होंगे कि यह मेरा बचपना है,मगर सच तो यह है कि मैं आपको बचपन से ही चाहती रही हूं। मुझे मालूम है कि आपका दिल साफ है,आपने कभी मुझे उस नजर से नहीं देखा। इस लिए आप अपनी नजरों में कभी शर्मिंदा नहीं होना “। इतना कहते कहते अपनी हथेली से चेहरा छुपा कर रो पड़ी।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मनु ने जो कहा,इस वक्त वह कितना सच था..?

क्या मैं अब भी मनु को चाहने से खुद को मना कर सकता था…?

मैने धीरे से उसके चेहरे से उसकी हाथों को हटा कर सिर्फ इतना कहा ” तुम्हारी सारी बातें सही नहीं है। तुम एक अच्छी लड़की हो। हमारे परिवार के संबंध वर्षो पुराने हैं। थोड़ी देर पहले तक मैं इसी सोच से परेशान था कि यह हमारे लिए उचित नही है। मगर…….

तभी एक खटके की आवाज पर हम दोनो की नजर सामने की छत की ओर गई। वहां हम दोनो कि पड़ोसन बिंदु चाची पता नहीं कब से यह सब देख रही थी।

हम दोनो घबरा कर अलग हो गए। मनु जल्दी जल्दी सीढ़ियों की तरफ चली गई। वह जाते जाते इतना कह गई कि ” आप घबराना नहीं। अगर बात बढ़ी भी तो मैं सब कुछ अपने सर पर ले लूंगी ,आप कुछ मत कहना “

मैं भी अपनी छत पर लौट आया।

अगले दिन हमारे घर में दोनो परिवारों की पंचायत लगी थी। मुझसे पूछा गया तो मैंने ना हां किया और न ना कहा,बस खामोशी अख्तियार कर ली। वैसे भी मनु से मिलने के बाद मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।




अगले दिन मेरे ताऊ जी ने मुझे शहर छोड़ कर मेरे बाबूजी के पास चले जाने का फरमान सुना डाला।

मुझे भी लगा कि मनु की इज्जत के लिए यही ठीक है।

मैं वहां से हमेशा के लिए चला गया।

रात के किस पहर तक मैं अपनी बीती जिंदगी को याद करता रहा,पता ही नहीं चला।

सुबह नींद खुली तो दिन चढ़ आया था। आंख खुलते ही मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। मुझे मनु की बेटी की प्रतीक्षा थी। मुझे लग रहा था कि मेरे लिए सुबह की चाय वही ले कर आयेगी। काफी वक्त बीत जाने के बाद जब वह नहीं आई तब मैं खुद ही नीचे उतर कर ताऊ जी के पास आ गया। ताऊ जी के कमरे तक पहुंचने के रास्ते में हर जगह मेरी नजर मनु को ढूंढ रही थी। मगर न तो मनु दिखी और न ही उसकी बेटी।

मैं ताऊ जी के पास बैठा था। ताऊ जी अखबार पलट रहे थे,मगर उनका ध्यान मेरी तरफ था। वह और मैं दोनो ही कुछ बोलना चाह रहे थे।

अंत में ताऊ जी ने ही खामोशी तोड़ी। उन्होंने कहा ” तनु अपनी मां के साथ नानी के पास गई है। थोड़ी देर में नौकर को बुलाया है,वही चाय और नाश्ता बना देगा। कुछ देर इंतजार कर सकते हो न..?

मैने ” हां ” में सर हिलाया और थोड़ी देर में लौटने की बात कह कर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर बाद मैं मनु के पिता दरवाजे पर खड़ा सोच रहा था कि कॉल बेल बजाऊं की तभी दरवाजा अपने आप खुल गया। सामने सफेद साड़ी में मनु खड़ी थी। हम दोनो एक दूसरे को गुनहगारों की तरह देख रहे थे। हम में से कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। थोड़ी देर हम यूं ही खड़े रहे। फिर मनु को एहसास हुआ और वह दरवाजे से हट कर मुझे अंदर आने दिया। मैं ड्राइंग रूम में आ कर कुर्सी पर बैठ गया, जबकि मनु दरवाजे के पास ही सर झुकाए खड़ी रही।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद मैने पूछा ” तुम कैसी हो मनु…?”

उसने धीरे से कहा ” आप देख तो रहे हैं,अच्छी भली हूं “

मैने इधर उधर देखते हुए पूछा ” कोई दिख नही रहा है। चाचा चाची सब कहां हैं “?

” पापा को गुजरे पांच साल हो गए और मां बाजार गई है ” उसने जवाब दिया।

मैने उसे बैठने के लिए कहा मगर वह खड़ी ही रही।

मैने फिर पूछा ” तुम्हारी बेटी बिलकुल तुम्हारी तरह दिखती है,कहां है “?

उसने एक कुटिल मुस्कान के साथ मेरी आंखों में  देखते हुए कहा ” आपको मेरी शक्ल याद थी,जो आपने अंदाजा लगा लिया..? वह भी मां के साथ ही गई है “

उसके इस कटाक्ष का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं शर्मिंदा भी था।




मैने फिर मनु से पूछा ” बिना कॉल बेल बजाए ही तुमने दरवाजा खोल दिया “

उसने सकुचाते हुए कहा ” मैं जानती थी,आप आयेंगे “

मैं थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर पूछा ” तुम अचानक ताऊ जी के घर से यहां क्यों चली आई ?”

उसने कोई जवाब नही दिया मगर उसकी खामोशी ने सब कुछ बता दिया। ताऊ जी ने ही उसे और तनु को अपने घर से मनु की मां के पास भेज दिया था,ताकि उसका सामना मुझसे ना होने पाए।

थोड़ी देर रुकने के बाद वह अंदर जा कर ग्लास में पानी ले आई।

इस बार मेरे एक बार कहने पर वह सामने के कुर्सी पर बैठ गई।

उसने पूछा ” आपकी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुन कर बहुत दुख हुआ “

मैने उससे पूछा ” तुम्हे कैसे मालूम हुआ ..?

” खानदान तो एक ही है। भले ही आपको किसी की खबर की जरूरत नही पड़ी हो,मगर सभी आपकी तरह नहीं होते हैं…”

मैं समझ रहा था कि मनु ने मुझ पर तंज किया है। मगर मैने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने फिर पूछा ” आपके तो बच्चे भी नहीं हैं,फिर जिंदगी कैसे कटती है..?

मैने धीरे से कहा ” शायद मुझे तुम्हारी आह लगी थी “

मैने नजरें उठा कर उसकी और देखा। उसकी आंखे गीली हो रही थी।

मुझसे और बैठा नही जा रहा था। मैने उसे कहा ” चाची को मेरा प्रणाम कहना ” और मैं कमरे से बाहर निकल गया।

ताऊ जी मुझ पर नाराज हो रहे थे। मै उन्हे बिना बताए ही मनु से मिलने चला गया था। उनसे मेरी लंबी बहस हुई। दुनियादारी की,संबंधों की,।

उन्होंने ने मुझे मनु की बरबाद हो गई जिंदगी का दोषी ठहराया।

मैने भी रजत के टीबी होने की बात छुपा कर मनु की जिंदगी तबाह करने का ताना दिया।

लड़ाई घंटों चली। इस युद्ध के बीच में मनु की मां को भी शामिल किया गया।

अंत में एक नायाब फैसला हुआ।

उस फैसले के एक हफ्ते के बाद हमारी गाड़ी जिसमे मैं अकेला यहां आया था,अब लौटते वक्त मेरे साथ मनु और हमारी बेटी तनु भी थी……

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