खडूस चौधरी – आरती झा आद्या

बाबू जी हम शहर जाना चाहते हैं…अभय ने डरते हुए अपने पिता रामरतन चौधरी से कहा।

काहे काहे जाना चाहते हो शहर…अभय की बात सुनते ही रामरतन चौधरी हाथ का निवाला मुंह तक जाने से रोक अभय के जवाब की प्रतीक्षा में अपलक उसे देखने लगते हैं।

बाबू जी वो हम नौकरी करना चाहते हैं…इसीलिए जाना चाहते हैं…अभय रामरतन चौधरी के अपलक देखने से असहज होकर अपनी बात रखने की कोशिश करता है।

पगला गए हो का.. काहे की कमी है यहां…इतनी जमीन है। अरे जमीन छोड़ो आम का गाछी(बगान) ही देखो। आम के बौर (मंजर) से ही इतनी आमद होती है कि सालों भर बैठ कर खाओ तो भी ना कमे। हूं..शहर जाएंगे..मुंह में निवाला रखते हुए रामरतन चौधरी कहते हैं।

बाबू जी शिवम भी चार साल का हो गया है। वहां उसका पढ़ाई लिखाई भी अच्छा से हो सकेगा…अभय नजर नीची किए ही कहता है।

काहे जी तुम कहां पढ़े थे। याद है ना इंजीनियरिंग किए तब के गो ना कंपनी तुमसे प्रभावित होकर नौकरी देने के लिए आगे पीछे घूम रहा था। बेसिक पढ़ाई यही गांव का ही था ना। वैसे ही बचवा भी पढ़ लेगा..रामरतन चौधरी अभय की कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे।

वही तो बाबू जी जब हम बोले थे कि खेती बाड़ी करना चाहते हैं तो आपको इंजीनियरिंग करवाना था, जिससे की आप सीना चौड़ा कर कह सके कि बेटा इंजीनियर है। कितना बढ़िया बढ़िया नौकरी हाथ से निकल गया हमारे।अब जब हम अपनी डिग्री का उपयोग करना चाहते हैं तो आप खेती करवाना चाहते हैं…ऐसे तो नहीं चलेगा ना बाबू जी…अभय अब स्पष्ट रुप से अपनी बात रखते हुए कहता है।

सुन रही हो अभय की मां… ई तुम्हारा बिटवा क्या कह रहा है…रसोई में बहू का हाथ बंटाती आंगन से ही रमा को आवाज़ देते रामरतन चौधरी जोर से कहते हैं।

मां जानती है…अभय धीरे से कहता है।

माने की हम ही कुछ नहीं जानते हैं… मां बेटा सब कुछ पहिने ही विचार लिए हैं। बढ़िया है…जो मर्जी आए करो.. हमरा क्या है…रामरतन चौधरी थाली सरका कर खड़े होते हुए कहते है।

बाबू जी आप समझ नहीं रहे हैं…रामरतन चौधरी को खाना छोड़ कर उठते देख अभय हड़बड़ा कर कहता है।

सब समझ रहे हैं…सब समझ रहे हैं..रामरतन चौधरी कहते हुआ बाहर की ओर जाने लगते हैं।

पर..खाना तो…बोलते बोलते अभय मां के हाथ के चुप रहने के इशारे को देख चुप हो जाता है।

काहे बात बढ़ा रहे हो बिटवा… जब बाबू जी ने कह दिया कि जो मन आए करो तो करो ना… बहू जाने की तैयारी शुरू कर दो…रमा बहू सुधा से कहती है।

पर बाबू जी ऐसे… अभय का मन शायद नहीं मान रहा था।

देख बिटवा सभे को खुश तो नहीं रख सकता ना। अगर कोई दिक्कत लगे तो वापिस आ जाना.. ई में का है। कम से कम जिंदगी भर मलाल तो नहीं होगा ना। तेरे बाबू जी को हम समझा लेंगे.. रमा कहती है।

ये ठीक नहीं की रमा… बच्चों के बिना घर कैसा सूना सूना लग रहा है… रामरतन चौधरी चौकी पर बैठे बैठे कहते हैं।

तुम समझते काहे नहीं हो। अपने सुख के लिए बच्चों को ऐसे बांध कर रखना कहां की अक्लमंदी है..रमा कहती है।

अभी तो दिल्ली गया है। वहां से एगो दिन कहेगा कि विदेश जाना है। अकेले पड़ जाएंगे हम लोग तो.. ओ किशनवा चल गाछी हो आते हैं… रमा से मन की बात बोलते बोलते रामरतन चौधरी गाय के लिए सानी लगाते किशन को आवाज देते हैं।

ऐ कौन है। किशनवा देख तो ई बच्चा सब आम का बौर बर्बाद कर देता है। पकड़ के ला तो…रामरतन चौधरी पैर के पास पत्थर गिरते ही चौक कर कहते हैं।

भाग गया सब मालिक…किशन आकर कहता है।

बताओ ई सब छोड़ कर अभयया दुबई में बैठा है। पांच साल हो गया अपना पोता को देखे। दिल्ली गया था तो दुनु साल आया था…एग्यारह(11) बरख का हो गया होगा शिवम त…रामरतन चौधरी किशन से कहते हैं।

अभय की मां आज बड़ी खुश दिखती हो। कोनो लॉटरी लग गया का…रात के खाने में किशन की पत्नी से खीर बनाने कहती रमा को चहकता देख रामरतन चौधरी पूछते हैं।

वहे समझो। तुम तो सुनते ही खीर मांगोगे…अभय बहू पोता साथ ई हफ्ता बाद पूरे पंद्रह दिन के लिए आ रहा है.. रमा खिलखिला कर कहती है।

क्या सच.. जल्दिए खीर खिलाओ तब तो…रामरतन चौधरी खुश होकर कहते हैं।

क्या नाम है तुम्हारा…शिवम गाछी में घूमते अपनी उम्र के एक बच्चे से पूछता है।

बाप रे.. ऊ खडूस चौधरी का पोता है ई तो… बचिए के रहना होगा…वो बच्चा अपने साथ के एक बच्चा से कहता है और दोनों बच्चे सरपट वहां से भाग जाते हैं।

किशन चाचा…वो बच्चे खडूस चौधरी किसे कह रहे थे… शिवम अपनी बाल सुलभ जिज्ञासा से किशन से पूछता है।

बिटवा बच्चा सभ मालिक के खडूस चौधरी कहत हैं..किशन टोकरी में आम रखते हुए कहता है।

लेकिन क्यों…दादाजी तो इतने अच्छे हैं…शिवम फिर से पूछता है।

जभे तू लोग यहां नहीं थे त मालिक के कूछो अच्छा नहीं लगता था…किशन अपनी टूटी फूटी हिंदी में शिवम को समझाने की कोशिश करता है।

दादाजी बगीचे में वो जो बच्चे आते हैं, वो कौन हैं…रामरतन चौधरी की थाली में ही खाना खाते हुए शिवम पूछता है।

बहुते बदमाश बच्चे हैं सभ के सभ… दूरे रहो…रामरतन चौधरी कहते हैं।

पर दादाजी मुझे उनसे दोस्ती करनी है। यहां अकेले अच्छा नहीं लगता है…शिवम जिद्द करता हुआ कहता है।

एकदमे बाप कर गया है। का रे अभयया जाने से पहिने ऐसे ही जिद्द किया था ना..याद है ना…रामरतन चौधरी कहते हैं।

एगो बात त है…हिंदी टनाटन सिखाए हो हमरे पोता को। हम दूनू सोचे थे कि अंग्रेजी ही बोलता होगा खाली…रामरतन चौधरी गदगद स्वर में कहते हैं।

ऐ बच्चा सभ भागो नहीं। इधर आओ मालिक आम खाने खातिर बुलाए हैं… आम तोड़ कर भागते बच्चों को रोकता हुआ किशना कहता है।

काहे हो आज खडूस चौधरी का दिमाग घूम क्या गया… उनमें से एक शरारती बच्चा कहता है और उसकी बात पर सब जोर से हंसने लगते हैं।

अब तो रोज की बात हो गई…किशन का आम तोड़ टोकरी में जमा करना। बच्चों का आना, शिवम का उनके साथ खेलना , खाना , हंसी ठिठोली करना और रामरतन चौधरी मुग्ध होकर सबको देखते रहते और यदा कदा उनके साथ खेल में शामिल भी हो जाते।

दादाजी आप उदास मत होइए…छुट्टी होते ही मैं फिर आ जाऊंगा…रामरतन चौधरी के आंखों में आंसू देख शिवम कहता है।

शिवम के जाने से खंडूस चौधरी बहुते उदास है। क्या किया जाए सोहन…बच्चे आपस में बात कर रहे थे।

चल ना साथ चल कर बैठते हैं…सारे बच्चे आकर रामरतन चौधरी को घेर कर बैठ गए और एक पांच साल का बच्चा बकायदा हक से गोद में बैठ गया।

अरे ओ किशनवा..आम की टोकरी तो ले आ.. हमरे चुन्नू मुन्नू आ गए हैं…रामरतन चौधरी बच्चों को देख किशन को आवाज देते हैं।

आ गया मालिक…

अच्छा चौधरी बाबा…तुम लोग भी बचपन में बदमाशी करते थे क्या…एक बच्चा अपने हाथ पर बहते आम के रस को चाटता हुआ पूछता है।

अरे बिटवा हम त ऐसन बदमाश थे कि…कहानी सुनाते हुए ना रामरतन चौधरी ही और ना ही बच्चे ये जान सके कि प्यार की प्रगाढ़ता ने रामरतन चौधरी को कब खडूस चौधरी चौधरी बाबा बना दिया।

5वां_जन्मोत्सव 

आरती झा आद्या

दिल्ली

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