दृष्टिकोण – पुष्पा जोशी

  रजनी का सिर चकरा रहा था, उसनें सपने में भी कल्पना नहीं की थी ,कि उसकी अपनी बेटी शिल्पी, उसे,इस तरह जवाब देगी |उसके कानों में शिल्पी के कहे शब्द गूंज रहे थे | ‘ यह क्या माँ ! हर समय साये की तरह,मंडराती रहती हो |खुल कर साँस भी नहीं लेने देती, घुटन होती है मुझे |दिन भर कहती हो,यह खालो, वह खालो ,अब सो जाओ,अब बैठ जाओ |माँ! अब मैं बच्ची नहीं रही, १३ साल की हो गई हूँ |आपसे अच्छी तो रानी की माँ है, जो नौकरी करती है |कम से कम रानी शांति से जीती तो है |आप क्यों नहीं कर लेती नौकरी ? ‘

          रजनी का पूरा शरीर,झनझना रहा था |वह सोच रही थी- “मेंरी क्या गलती है ? मैं तो शिल्पी को ,वे सारे सुख देना चाहती हूँ ,जिनके लिए मैं बचपन में तरसती रही |” उसे अपना बचपन याद आया,जब वो अपनी माँ के लिए तरसती रही |उसकी इच्छा होती कि उसकी माँ,उसके साथ रहै ,उसके साथ खेले, बैठे, उससे बातें करे | कई बार उसने माँ से कहॉ-‘माँ ! आज ऑफिस मत जाओ | ‘मगर,माँ उसे सावित्री (नौकरानी) के पास छोड़कर चली जाती |जाते-जाते हिदायत देती – ‘रजनी का ध्यान रखना |और हाँ ,जब वो ट्यूशन पढ़नें जाए ,तो ड्राइवर से कहना,कि वह रजनी को साथ में वापस लेकर आए |रजनी को बाहर मत जाने  देना ,जमाना खराब है |’

                रजनी के पास सुख- सुविधा के सारे सामान होने के बावजूद ,वह माँ -बाप के प्यार के लिए तरसती रही |सोचते – सोचते, सोफे पर बैठे – बैठे रजनी को एक झपकी आ गई |तभी दरवाजे पर घण्टी बजी ,रजनी चौंककर उठी, उसनें दरवाजा खोला,सामने सुलभा को देखकर ,उसका मन कसेला हो गया |उसे याद आया कि शिल्पी ने इसी का उदाहरण देकर, उसे उलाहना दिया था | सुलभा रानी की माँ थी ,वो कॉलेज में मनोविज्ञान की प्रोफेसर थी |रजनी और सुलभा अच्छी पड़ोसन थी |मगर,आज रजनी के मन में उसके प्रति कड़वाहट भरी हुई  थी |




रजनी ने कहॉ – ‘आओ बैठो ‘सुलभा बैठ गई |रजनी ,बेमन से उसके लिए पानी लेकर आई ,और चुपचाप बैठ गई |

चुप्पी को तोड़ते हुए, सुलभा ने कहॉ -‘क्या बात है रजनी ? क्या तबियत ठीक नहीं है ? परेशान नजर आ रही हो |और, शिल्पी कहाँ है ? दिखाई नहीं दे रही |’

            शिल्पी का नाम, सुनते ही रजनी का आक्रोश फूट पड़ा |कुछ गुस्से से बोली- ‘गई है अपनी सहेली के यहाँ, कहती है मैं बड़ी हो गई हूँ | कुछ सुनती ही नहीं, जो मर्जी होती है ,वही करती है | विद्रोही हो गई है |’

             फिर कुछ रूक कर बोली- ‘बताओ ना सुलभा ! मैं कहाँ गलत हूँ ? तुम्हें ,मेंरा बचपन भी मालुम है ,कि मैं किस तरह माँ के पास रहने के लिए तरसती थी |इस लड़की के लिए , मैंने नौकरी नहीं की|सोचा घर पर रहूँगी ,तो पूरी तरह इसका ध्यान रखूंगी, कोई कमी नहीं होने दूंगी | वही आज मुझसे कह रही थी, कि आप नौकरी क्यों नहीं कर लेती  |’ रजनी की आँखों में नमी आ गई थी ,और उसका गला रूंध गया था |

             सुलभा ने रजनी के कंधे पर हाथ रखा और बोली- ‘तुम गलत नहीं हो रजनी | तुम तो हर पल, उसका, ध्यान रखती हो ,तुम उसे , वह सब देना चाहती हो जो तुम्हें नहीं मिला |’




           कुछ रूक कर सुलभा ने कहॉ – ‘रजनी बच्चे एक पौधे की तरह होते हैं |पौधे तेज धूप में झुलस जाते हैं |उन्हें, छाया भी चाहिये ,उन्हें पानी भी चाहिये ,जिससे उसका पोषण हो सके |उनकी गुड़ाई, भी करनी पड़ती है |व्यर्थ खरपतवार को निकालना पड़ता है |मगर ज्यादा छाया में भी पौधे मुरझा जाते हैं|

             इसी तरह बच्चों के ऊपर माँ-बाप के विश्वास की छाया होनी चाहिये ,प्यार का जल हो |वे उच्छृंकल न हो जाए इसलिए एक अंकुश होना चाहिये जो समय-समय पर उनकी गल्तियों को सुधारे |साथ ही एक खुला आकाश होना चाहिये, ताकि, वे खुलकर सोच सके ,अपना विकास कर सके, आगे बड़ सके |

बुरा न मानना रजनी ,तुम सिर्फ अपने दृष्टिकोण से देखती  हो,और उस हिसाब से शिल्पी को ढालना चाहती हो |मगर, क्या तुमनें कभी सोचा कि शिल्पी क्या चाहती है ? क्या तुमनें, कभी जानने की कोशीश की,कि शिल्पी के अन्दर कौनसा कलाकार छिपा बैठा है ? उसकी रूचि क्या है ? कल रानी के पास शिल्पी की एक कॉपी थी |उसमें लिखा, एक लेख मैंने पढ़ा |कितनी सुन्दर लेखनी है उसकी, शब्दों का चयन भी उसनें बहुत सुन्दर किया है |वह बता रही थी, कि तुम उसे डॉक्टर बनाना चाहती हो ,  उसकी रूचि साहित्य में है  |’

             सुलभा की बात करनें की शैली कुछ ऐसी थी,कि रजनी मंत्र मुग्ध सी ,उसकी बातें सुन रही थी उसे आश्चर्य भी हो रहा था |




सुलभा ने फिर कहना शुरू किया- ‘तुमनें अपनी माँ के बारे में भी, एक धारणा बना ली है|कभी ,एक नए दृष्टिकोण से ,देखने की कोशीश करो |तुम्हीं ने बतलाया था ना, कि तुम्हारे पापा एक मील में काम करते थे | एक दुर्घटना में उनका बांया हाथ कट गया था ,और वे सिर्फ ऑफिस में लिखा-पढ़ी का काम कर पाते थे | अगर उस समय तुम्हारी माँ ने ,नौकरी नहीं की होती , तो क्या तुम इतना पढ़ पाती ? तुम्हारी इतनी अच्छी परवरिश हो पाती ? क्या इतने अच्छे घर में तुुुम्हारी शादी हो पाती ?’ कुछ देर रूक कर सुलभा ने कहॉ – ‘जीजाजी I.A.S. अफसर हैं, इसलिए, तुम्हें मालुम नहीं पड़ रहा |हो सकता है, नौकरी करना तुम्हारी माँ की मजबूरी रही हो, वह चाहकर भी तुम्हारे लिये समय नहीं निकाल पाई |मगर ,क्या उन्होंने तुम्हारा भविष्य बनाने में कोई कसर रखी ? वह चाहती थी, तुम नौकरी करो |मगर क्या तुमनें की ? नहीं ना! तुम आज भी, उस माँ से रूठी हुई हो |बताओ ,कितने साल हो गए, तुम्हें उनके पास गए ?अब तो तुम्हारे पापा भी नहीं रहे |आज वे वृद्ध हैं,अकेली हैं |क्या ,उनकी इच्छा नहीं होती होगी कि तुम उनसे मिलो ? हर इन्सान की परिस्थिति अलग होती है, मानसिकता अलग होती है, सोच अलग होती है |किसी के बारे में कोई धारणा बनाने से पहले, हमें हर पहलू पर विचार करना चाहिये | एक बार अपने को माँ के स्थान पर रख कर सोचना | फिर ,शिल्पी के स्थान पर रख कर सोचना  |तुम्हारी दुविधा दूर हो जाएगी और मन भी शांत हो जाएगा |

        अगर, मेंरी कोई बात बुरी लगी हो ,तो मुझे माफ करना मेंरी प्यारी सखी |’ सुलभा ने रजनी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहॉ |’और क्या आज चाय नहीं पिलाओगी ? तुम्हारे  हाथ की अदरक वाली | इतना बोली हूँ , कि गला ही दुखने लगा | ‘

                    रजनी का मन अब शांत था, उसके दिल पर, सुलभा की बातों का कॉफी असर हुआ था |उसकी आँखे खुल गई थी, और उसकी सोच को एक नई दिशा मिली थी |उसने सुलभा को धन्यवाद दिया और कहॉ – ‘बनाती हूँ ना ,अदरक वाली चाय ,बहुत दिनों से साथ मैं चाय नहीं पी |’ चाय पीकर सुलभा घर चली गई |थोड़ी देर बाद शिल्पी घर पर आई |उसका चेहरा मुरझाया हुआ था ,वह डरी हुई थी ,उसे पछतावा भी था, कि वह आज माँ को पता नहीं क्या-क्या बोल गई|




                   रजनी ने कहॉ – ‘आ गई बेटा ! ‘

          ‘हाँ माँ ‘ शिल्पी ने सहमते हुए कहॉ -‘माँ मुझे माफ कर देना ,मैंने आपका मन दु:खाया है , आगे से ऐसा नहीं होगा |’

                   रजनी ने कहॉ – ‘और मैं ऐसा होने भी नहीं दूंगी तू मेंरे पास आ ,और जो तेरे मन में है, तू मुझे बता सकती है | आज से मैं तेरी दोस्त हूँ |और हाँ, तेरे पापा १० बजे मिटिंग से आ जाएंगे |आज खाना हम दोनों बनाऐंगे, तेरी पसन्द का |’

 ‘सच माँ !’

     ‘हाँ बेटा !’ रजनी को शिल्पी के चेहरे पर प्रसन्नता नजर आई |

              शिल्पी ने कहॉ – ‘माँ कल से तो मैं ,घर पर ही रहूँगी ,आप जो कहेंगी वही करूंगी | ७ दिन की छुट्टियाँ है ,मेंरी सब सहेलियाँ अपनी नानी , दादी के यहाँ जा रही हैं |अब तो खुश हैं न, आप ?’  ‘तेरी सहेलियाँ जा रही है तो, हम भी तो जा रहे हैं ,तेरी नानी के यहाँ |’

            ‘माँ ! क्या हम भी गाँव जा रहे हैं ?

     रजनी ने कहॉ – ‘हाँ ,कल शाम को हम भी गाँव जाऐंगे ,पूरे ७ दिन रहेंगे |रविवार को तेरे पापा भी , गाँव आ जाऐंगे, तो हम उनके साथ वापस आ जाऐंगे|’

             ‘बहुत अच्छा माँ | मैं अपने कपड़े रात में ही जमा लूंगी | मेंरी प्यारी माँ !’ शिल्पी रजनी के गले में बाहें डालकर उससे लिपट गई | घर में जो तनाव था, दूर हो गया |

                रजनी को समझ में आ गया था,कि न माँ गलत थी न शिल्पी गलत है | गलत है ,तो उसका,अपना दृष्टिकोण जिसने , उनकी स्थिति का सही आकलन किये बिना, उनके बारे में अपनी धारणा बना ली थी |

#5वां_जन्मोत्सव  

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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