काला चिठ्ठा – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

मनोरमा मैंने तुम्हें मना किया था ना कि छोटे के विवाह में सविता बुआ को मत बुलाना……

शीला जी ने अपनी बहू मनोरमा को फटकारते हुए कहा।

परंतु मां जी…..

सविता बुआ क्यों नहीं आ सकतीं हमारे यहां….

ये मायका है उनका….

उन्हें पूरा हक है अपने घर आने का….

मनोरमा ने कहा।

मनोरमा जब ब्याह कर आई थी तो सविता बुआ बिल्कुल जवान थी…

मनोरमा जो कि सविता बुआ के भतीजे की पत्नी थी उसे वो बहुत हीं प्रेम किया करती थी….

जब तक मनोरमा के दादा ससुर और दादी सास जीवित थे सविता बुआ बड़े हीं शान से मैके आया करती थीं….

परंतु मनोरमा की सास यानी शीला को अपनी ननद सविता फूटी आंख नहीं भाती थी…..

एक भरे पूरे परिवार की सबसे बड़ी बहू बनकर शीला जब ससुराल आई तो उसने सबको अपने उंगलियों पर नचा कर रखा….

देवर ननद सास ससुर सब पर हुक्म चलाती रहती थी….

दोनों देवरों की सारी कमाई का हिसाब किताब,ससुर की लाई हुई वस्तुओं की देखरेख और उसमें से किसको कितना और क्या देना है ये शीला हीं तय करती थी…..

घर में शीला जब बड़ी बहू बनकर आई तब उसके सारे ननद देवर कम उम्र के थे….

इसलिए शीला के जब बच्चे हुए तो उसके बच्चों और उसके ननद और देवरों की उम्र में कोई विशेष अंतर नहीं था….

शीला की सास एक सीधी-सादी महिला थी….

उन्होंने शीला का ब्याह होते हीं राजीखुशी घर की जिम्मेदारी शीला को सौंप दिया…..

दोनों देवरानियां जब ब्याह कर आई तब उन्होंने घर की जिम्मेदारियों में कुछ खास रूचि नहीं दिखाई…..

इसलिए शीला की हुकूमत ज्यों की त्यों बनी रही….

सविता का ब्याह हुआ और उसके दो चार साल बाद हीं उसके पिता चल बसे…..

शीला ने रातोंरात सास के सारे गहने और पुश्तैनी जेवरात अपने कब्जे में कर लिया…..

वो दौर ऐसा था जब गाड़ियों के नाम पर बैलगाड़ी और घोड़ा गाड़ी हीं चला करते थे….

जब तक देवर देवरानी और ननद  

मौत की खबर सुनकर पहुंच पाते तब तक शीला ने ये बड़ा कारनामा कर डाला…..

शीला की सास तो बेचारी इस बड़े सदमे से अपना होश हीं गंवा बैठी थी….

सविता जब पिता की तेरहवीं में शामिल होने आई तो बड़ी भाभी के तेवर हीं बदले हुए थे…

अपने मां के अथाह दुःख को देख कर सविता तो जैसे टूट हीं गई….

जिस पिता के दम पर वो चहकते हुए मायके आया करती थी, आज वो पिता भी चल बसे….

सविता फूट-फूटकर रो पड़ी.…

पिता की तेरहवीं का कार्यक्रम संपन्न हुआ तब सविता ने कोशिश किया कि भाइयों से मां के जेवर और पुश्तैनी गहनों का जिक्र करें परंतु तीनों भाइयों ने उसे इशारे से मना कर दिया….

पिताजी के जाने के दो साल बाद मां भी चल बसी…..

सविता का तो जैसे मायका सदा सदा के लिए खत्म हो गया….

अब तो बस अनचाहे मन से मायके के किसी समारोह में सम्मिलित हो जाया करती थी….

सविता जब भी मायके आती तो अपनी मां के जेवरों का जिक्र जरूर किया करती परंतु शीला उसकी बातों को पूरा होने से पहले हीं काट दिया करती थी…

बाकि दोनों भाभियां ब्याह के बाद शहर जा बसी थीं इसलिए उन्हें इन जेवरों के बारे में कुछ भी पता नहीं था…..

कुछ सालों के बाद मनोरमा जब दुल्हन बन कर आई तब सविता ने उससे विशेष आग्रह कर के कहा कि, मनोरमा!! शीला भाभी से पूछना कि, मां के पुश्तैनी जेवर क्या हुए??? 

उन जेवरों पर सारी भाभियों का हक है….. 

नयी नवेली मनोरमा भला कैसे सवाल कर सकती थी अपनी सास से….

शीला को जैसे हीं भनक पड़ी कि सविता ने जेवरों का जिक्र छेड़ा था वैसे हीं बातों को बढ़ा-चढ़ाकर घर में बवाल मचा दिया कि सविता बुआ नयी बहुरिया के कान भर रही है…. 

और सविता का मायके आने के सारे रास्ते बंद हो गये……

आज पूरे बाईस वर्ष बाद जब मनोरमा के बेटे का तिलक समारोह था तो उसने विशेष न्योता दे कर सविता बुआ को बुलवाया था…. 

सविता को देख शीला की त्योरियां चढ़ गई और मनोरमा को लताड़ लगा दी… 

परंतु इस बार मनोरमा ने ठान लिया था कि सविता बुआ से उन जेवरों का जिक्र करवा के रहेगी….

और उसने घर के सारे पुरुषों और महिलाओं को इकठ्ठा किया और सबके समक्ष सविता बुआ से कहा कि, बताइए बुआ… 

उन सारे जेवरों के बारे में… 

सबको बताईए कि क्या पुश्तैनी जेवरों पर केवल एक व्यक्ति विशेष का हीं अधिकार होता है?? 

मनोरमा क्रोध और आवेश में बोलती जा रही थी… 

घर के सभी सदस्य आश्चर्य से मनोरमा को देखें जा रहे थे कि आज तक किसी के आगे मुंह तक नहीं खोलने वाली बहू को क्या हो गया…. 

मनोरमा को बोलते देख,आज सविता बुआ में भी हिम्मत आ गई… 

और पूरे घर के सामने कहने लगी – जब पिताजी का देहांत हुआ तब शीला भाभी ने उस दुःख की घड़ी में मां को संभालने की बजाय उसके सारे पुश्तैनी जेवर अपने कब्जे में कर लिया… 

उन जेवरों के विषय में दोनों छोटी भाभियों को तो कुछ पता भी नहीं था…. 

मैंने जब भी इस बात का जिक्र करना चाहा भाभी ने मुझे हर बार रोक दिया और मुझे हीं बुरा बना दिया… 

घरवालों के सामने जाने कैसी-कैसी कहानियां गढ़ दिया कि सब मुझसे नफरत करने लगे… 

और इतने सालों तक मुझे मैके बुलाना तो दूर मेरा हाल ही ना पूछा…

 वो तो गैर थी परंतु सारे भाई तो अपने थे परंतु किसी ने एक बार भी मुझे बुलाना जरुरी नहीं समझा… 

बड़ी भाभी तो इसलिए मुझे नहीं बुलाना चाहती थी कि, कहीं मैं मायके आकर इनका काला चिट्ठा सबके सामने ना खोल दूं…. 

परंतु आप सबने एक बार भी नहीं सोचा कि मुझे भी मायके आने का मन करता है… 

इन मायके की गलियों में घुमने को मन मचलता है… 

वो तो अच्छा हुआ कि मनोरमा बहू का जिसने जाने क्या-क्या जतन कर के मुझे यहां बुला लिया नहीं तो शीला भाभी का ये कच्चा-चिट्ठा कभी नहीं खुलता…  

इतना कहते-कहते सविता बुआ हांफने लगी… 

शीला इधर-उधर मुंह छिपाने लगी…

सारे लोग उन्हें बुरा-भला कहने लगे…. 

शर्मिंदगी और लज्जा से उनका चेहरा काला पड़ गया… 

सास के पुश्तैनी जेवर लाकर आंगन में रख दिया और सविता के पैरों में गिर पड़ी… 

मुझे क्षमा कर दो…. 

ननद तो बहन बराबर होती है परंतु मैंने तुम्हारे साथ बहुत बुरा किया सविता…. 

आज तुमने ये काला चिट्ठा खोलकर मुझे एक बहुत बड़े अधर्म से बचा लिया…. 

सास के जेवरों पर सबका समान अधिकार है….

तुम ना आती तो मैं ये कभी नहीं समझ पाती….. 

डोली पाठक 

पटना बिहार

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