कल की परछाई – आरती झा : Moral Story In Hindi

बारहवीं में पढ़ने वाला अभय माता पिता का होनहार बेटा।   सबकी मदद करने वाला, दिल का कोमल और अपनी पढ़ाई को ही अपना शौक समझने वाला सीधा सादा बच्चा था । हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहने वाला बच्चा खुद में ही सिमटा रहने लगा।जो किताबें उसकी दोस्त होती थी ..वो भी उसके साथ नजर नहीं आती।

किताबें खोले शून्य में ताकता रहता है। खाने की टेबल पर भी अपनी पसंद की चीजों की तरफ देखता भी नहीं है। मम्मी ने जो सामने दे दिया.. वो बिना बोले चुपचाप आधा अधूरा खा कर उठ जाता। स्कूल से भी काम पूरा ना होने की शिकायतें आने लगी।

मम्मी ने कई बार जानने की कोशिश भी की.. पर अभय सूनी सूनी आँखों से उन्हें इस तरह देखता मानो बताना तो चाहता है.. पर बेबस है। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ दिन पहले तक जिस घर से सिर्फ खिलखिलाने की आवाजें आती थी। आज सबके होते हुए भी वो घर वीराना सा लगने लगा था।

घर में आए अतिथि को देखते ही अभय अपने कमरे में कैद हो जाता था। बस पड़ोस वाले भैया भाभी के बुलाने पर बिना किसी नानुकर के चला जाता और आकर वापस कमरे में बंद हो जाता। देखते देखते बारहवीं की परीक्षा और परिणाम भी आ गया.. जिसमें अभय असफ़ल हो चुका था। अंततोगत्वा अभय के मम्मी पापा ने उसे मनोवैज्ञानिक से दिखाने का फ़ैसला किया।

       शुरूआत में अभय कुछ बता नहीं पा रहा था.. एक डर हावी था उसके ऊपर।जब तक अभय कुछ बताने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होता है.. उसे कहीं भी अकेले नहीं छोड़ने की सख्त हिदायत मनोवैज्ञानिक के द्वारा दिया गया था। कुछ दवाइयों का असर था.. कुछ डॉक्टर के दोस्ताना साथ का असर था..

अभय धीरे धीरे खुलने लगा था। डॉक्टर के साथ जाकर अभय के मम्मी पापा पड़ोस वाले भैया भाभी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हैं। दरवाजे पर अभय के मम्मी पापा के साथ पुलिस को देखकर भाभी और उसके पति चौंकते हैं।

कुछ दिन पहले ही शिफ्ट हुए दोनों पति पत्नी का व्यवहार दोस्ताना होने के कारण सबका आना जाना लगा रहता था। कभी कभी किसी मदद के बहाने या कुछ ना कुछ खिलाने के लिए भाभी बच्चों को अपने घर बुलाया करती थी। अभय से और अभय के परिवार से तो अपनापन का ऐसा रिश्ता बन चुका था कि कहीं भी जाते दोनों परिवार साथ होते।

अभय के माता पिता को तो बड़े भाई भाभी की तरह ही सम्मान देते थे। कोई भी निर्णय लेना हो, अभय के माता पिता से जरूर विचार करते। लोग बाग कहने लगे थे पिछले जन्म कोई रिश्ता अधूरा रह गया था आप लोगों का इसीलिए इस जन्म में ऐसा रिश्ता जुड़ गया है। सबके प्रति सम्मान का भाव लिए मुस्कान उनके मिलनसार व्यवहार को दर्शाता था।

लेकिन इस मुस्कान के पीछे था भोले भाले बच्चों से ड्रग्स की सप्लाई करवाना। इसके लिए खाने में बेहोशी की दवा मिलाकर चंगुल में फँसे बच्चों को खिला कर बेहोश कर उनकी निर्वस्त्र तस्वीरें मोबाइल में उतार ब्लैकमेल किया करते थे दोनों। मना करने पर परिवार को तस्वीरें दिखा कर बदनाम कर देने की तरकीब हमेशा काम कर जाती थी।

कभी परेशान होकर बच्चे आत्महत्या कर लेते.. कभी माता पिता का दवाब.. डर घर छोड़ने पर मजबूर कर देता। लेकिन इस बार अभय के माता पिता के द्वारा समझदारी दिखाते हुए चिकित्सक की सहायता लेना सारी बातों का खुलासा कर गया.. एक खोखले रिश्ते की दीमक लगी दीवार ढ़ह गई।

किसी को विश्वास नहीं हो रहा था उन्होंने प्यार व विश्वास दिखा एक खोखले रिश्ते की नींव रखी थी। ऐसे लोगों को दुरूह सजा मिलना अति आवश्यक हो जाता है। जिससे अभय जैसे कई बच्चे इस घृणित काम से.. कल की परछाई से आजाद होकर सामन्य जीवन में लौट सके।

लेकिन कभी कभी माता पिता इतनी समझदारी नहीं दिखाते। उन्हें हर बात में बच्चों का बहाना बनाना ही नजर आता है.. कभी भी तह तक पहुँचने को अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते।

इस तरह के खोखले रिश्ते को ढ़ोते रहते हैं। ऐसे माता पिता के बच्चे क्या अपने बीते कल की परछाई से कभी भी मुक्त हो पाते होंगे या उस कल की परछाई की काली साया को ही अपनी नियति मान अंधकारमय जीवन जीने को मजबूर होते होंगे। ऐसे बच्चों को हर रिश्ता क्या खोखला ही नजर नहीं आता होगा।

आरती झा आद्या

दिल्ली

#खोखलें रिश्ते

1 thought on “कल की परछाई – आरती झा : Moral Story In Hindi”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!