स्वार्थी रिश्तें : Moral Story In Hindi

ज्ञानेश्वर प्रसाद छोटे से प्रदेश के बहुत बड़े पंडित वेदों के ज्ञाता थे । सब काम धर्म अनुसार करने की आदत थी चाहें ठंड हो या तूफान आए ,सब काम अपने समयानुसार होने चाहिए । घर में सब उनसे डरते थे उनके आगे किसी की आवाज़ भी नहीं निकलती थी ।लेकिन उनकी बेटी शहर में पढ़े होने के कारण थोड़े अलग सोच की मालिक थी ।

जब भी घर आती तो यहाँ उसे क़ैद सी महसूस होती थी । जमुना देवी बहुत परेशान रहती थी बेटे की शादी तो अच्छे से हो गई , पर काव्या की शादी कैसे होगी ?? शहर में रहकर वो बहुत आज़ाद ख़्याल की हो गई थी। अपने भाई से तो बिना झिझक बिना सोचे कुछ भी बोल देती थी।

इसलिए जैसे ही काव्या की पढ़ाई समाप्त हुई तो उसकी शादी की तैयारी शुरू हो गई ।ज्ञानेश्वर जी के सामने तो उसकी आवाज़ भी नहीं निकलती थी ,परन्तु अपनी माँ से सब कह देती थी । माँ मुझे शादी नहीं करनी है ! अभी मैं नौकरी करना चाहती हूँ ….. क्या कह रही हो??

तुम्हें शहर जा पढ़ने की आज्ञा मिली इतना ही बहुत है ।नौकरी तो भूल जाओ और अपने बाबू जी के सामने बोल भी मत देना । ज्ञानेश्वर जी ने बहुत से लड़कों की कुंडली देखी लेकिन काव्या के साथ किसी की कुंडली नहीं मिल रही थी ।ऐसे ही तीन वर्ष बीत गया पर काव्या के लिए कोई अच्छा तो छोड़ो कोई रिश्ता तक नहीं आया ।

थक हार कर अपनी बहू शारदा के कहने पे उन्होंने पदमा चाची को रिश्ता करवाने के लिए बुलाया । चाची ने बहुत लडको के फोटो दिखाए । जिसमे से उन्होंने दो लड़कों की जन्म कुंडली माँगी । दो कुंडलियों में से प्रेम नामक युवक की कुंडली काव्या से मैच हुई ।

ये देख काव्या के पिता को राहत मिली आख़िर किसी की कुंडली तो मिली ।ये सब जान काव्या टालमटोल करती हुई अपनी भाभी से बोली आप इतनी जल्दी क्यों मेरी शादी करना चाहती है । क्या मैं आपको घर में अच्छी नहीं लगती ?? ….. तुम्हारी शादी होगी तभी तो ख़ुशिया आएगी , वो उनकी इस बात का मतलब समझ नहीं पायी और चली गई ।

लड़के वालों को घर बुलाया गया और सब बाते अच्छे से तय कर ली गई । दोनों के छत्तीस में से अट्ठाइस गुण मिल रहें थे ।काव्या उन्हें बहुत पसंद आयी और दोनों को अकेले में बात करने का मौक़ा दिया गया । शुरू में तो दोनों को झिझक हो रही थी । लेकिन काव्या कहाँ ज़्यादा देर चुप रहने वाली थी ।

देखो तुम हाँ कहो ! उससे पहले मेरी ये लिस्ट पढ़ लो । अगर तुम्हें मेरी ये सारी शर्ते मंज़ूर है तभी मैं शादी करूँगी ! “ऐसी शर्ते रख वो प्रेम को देखने लगी “। प्रेम अचरज से उसे देखता हुआ लिस्ट खोलने लगा जिसमे लिखा था कि “ वो शादी के बाद नौकरी करना चाहेगी , काम में प्रेम को उसका हाथ बटाना होगा , अगर ख़ाना अच्छा ना बने तो भी चुप खा लेना, मुझे अपने घर आने से रोका नहीं जाएगा ,ऐसी ना जाने कितनी बाते लिखी थी जो वाजिब नहीं थी”। प्रेम को ये सब पढ़ हँसी आने लगी …..

ये सब क्या है ऐसे कौन लिस्ट बना के देता है । मैं काव्या हूँ ! मैं तो ऐसी ही हूँ ! अगर सब मंज़ूर है तो बोलो ….. ठीक है तुम काम कर सकती हो । मैं वैसे भी शहर में रहता हूँ तो तुम भी मेरे साथ ही रहोगी, मुझे कोई दिक़्क़त नहीं है । ये सुन काव्या ने चैन की सांस ली और मेरी दूसरी शर्त….. वो भी मान ही लूँगा !! और जब तुम नौकरी करोगी तो इन सब के लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं होगा । काव्य भी मुस्कुरा के अंदर चली गई । कुछ ही दिनों में दोनों की शादी हो गई ।

शादी के कुछ दिन बाद जब प्रेम की छुट्टियाँ ख़त्म होने लगी ,तो उसने अपने माँ बाबा से जाने के लिए बोला ।

ठीक है तुम चले जाओ ! बहू को हमारे पास रहने दो , लेकिन माँ वो यहाँ कैसे रहेगी ??? कैसे रहेगी मतलब …जैसे हम रहते है । अपने माँ बाबा के सामने वो कुछ बोल नहीं पाया । क्योंकि उसने ये शादी उनके कहने पर ही की थी ।प्रेम जाते वक़्त काव्या को बोल के गया कि वो जल्द ही उसे अपने पास बुला लेगा । काव्या ने भी हस्ते हस्ते प्रेम को अलविदा कहा और अपने कमरे में चली गई ।

काफ़ी दिनों के बाद जब काव्या अपने घर से वापस आयी तो कमरे को गंदा देख सफ़ाई करने लगी । तभी उसके हाथ प्रेम की जन्म पत्री लगी जिसे देख वो हैरान रह गई ।इसमें जो जन्म तिथि और समय लिखा था वो उन्हें दी गई पत्री से बिलकुल भिन्न थी । ये देख उसके मन में शंका हुई और उसने अपनी सास से जाकर पूछा कि आपने हमे जो पत्री दी और ये दोनों अलग -अलग क्यों है ?. बताइए मम्मी जी !! प्रेम की माँ उस समय बात को टाल गयीं ।

काव्या की शादी को छ महीने हो गए थे । लेकिन प्रेम उसे लेने नही आया थक हार के उसने अपने घर फ़ोन किया माँ मुझे यहाँ नही रहना है आप लोग आकर मुझे ले जाओं । लेकिन बेटी ऐसे नही होता ! थोड़ा सब्र करो क्या पता कुछ दिन में प्रेम का फ़ोन आ जाए ।माँ के कहने पर काव्या इंतज़ार करने लगी ।

एक दिन घनघोर अंधेरा छाया था ,बत्ती भी नही थी ,बस लौ की रोशनी से ही काम चल रहा था । तभी ट्रिन ट्रिन आवाज़ आयी और काव्या दौड़ के गयी जब उसकी सास ने बात कर ली तो फ़ोन उसे थमा दिया ।पहले तो काव्या ख़ामोश रही फिर धीरे से बोली कब आ रहे हो !! मुझे यहाँ नही रहना बोल….. सुबक सुबक कर रोने लगी …..क्या हुआ काव्या तुम तो इतनी कमजोर नही हो चुप हो जाओं !! मैं कुछ दिनो में आता हूँ बोल फ़ोन रख दिया ।

कुछ दिन बाद प्रेम घर आया और काव्या की उदासी दूर करने की कोशिश की । लेकिन काव्या अब बातों से बहलने वाली नहीं थी । उसने दो टूक कह दिया या तो तुम मुझे अपने साथ ले चलों , नही तो मैं अपने घर चली ! क्या कह रही हो काव्या ??

मैं ऐसा नहीं कर सकता …क्यों नहीं ???

आख़िर कार प्रेम की ज़ुबा पे सच आ ही गया …. देखो मैं यें शादी करना ही नहीं चाहता था पर अपने माँ बाप के कहने पे करनी पड़ी ।अभी मेरे हालात ऐसे नहीं है कि मैं तुम्हें शहर ले जाऊ । तुम्हें उनके पास ही रहना होगा !!

मैंने तुमसे शादी इसलिए नहीं की थी कि सारी उम्र तुम्हारे माता पिता के साथ गुज़ार दूँ ।तुमने मेरी एक भी शर्त नहीं मानी …..

कौन सी शर्ते …..वो बिन सर पैर वाली ….. देखो सब बाते पूरी हो ज़रूरी नहीं और तुम्हारी शादी हो गई यही बड़ी बात है ।

तुम्हारे कहने का क्या मतलब है प्रेम ?????

यही कि तुम्हारे सारे घर वाले तुम्हारी शादी ना होने की वजह से परेशान थे ।इसी लिए तो तुम्हारे भाई – भाभी ने मुझे तुमसे शादी करने को कहा वरना हमारी तो कुंडली भी नहीं मिलती ।

मैंने अपनों पे इतना भरोसा किया लेकिन मेरे रिश्ते कितने खोखलें निकले ! क्या तुमने ग़लत कुंडली दी थी …. तुम्हारी भाभी ने ही बनवाई थी ,मैं तो ये सब बाते नहीं मानता ।

रिश्तों के नाम पे इतना बड़ा धोखा मैं अब यहाँ नहीं रहूँगी !!

देखों काव्या जो हुआ उसे भूल जाओ ! माना मेरी भी गलती थी पर अब मैं तुमसे माफी माँगता हूँ ।तुम बहुत अच्छी हो मुझे एक मौक़ा दे दो ! मैं धीरे-धीरे सब ठीक कर दूँगा । तुम्हें मेरे साथ जाना है तो चलना पर मुझे छोड़ के ना जाना ।काव्या बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई और सुबह जब प्रेम की आँखें खुली तो काव्या कही नहीं थी वो जा चुकी थी ।

बस उसकी लिस्ट रखी मिली जिस पर लिखा था ….ये मेरे आर्मा थे ,आने वाले कल की ख़ुशिया थी जो तुमने चूर चूर कर दी । कुंडली के मिलने ना मिलने से मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ! पर रिश्तों में खोखला पन मैं सह नहीं सकती ।

अपने घर जाकर काव्या ने प्रेम को तलाक़ के दस्तावेज भिजवा दिए । कुछ दिनों बाद वो शहर जाने के लिए सामान बांध रही थी । तभी ज्ञानेश्वर जी उसके पास आए और माफ़ी माँगने लगे बेटा माफ़ कर दो !! मैं तुम्हारे लिए एक अच्छा जीवन साथी भी नहीं ढूँढ पाया । नहीं पिता जी ,इसमें आपकी कोई गलती नहीं है शायद मेरी क़िस्मत में यही लिखा था । यहीं रह लो बेटी ये तुम्हारा भी घर है ….नहीं पिता जी ! अब मुझे जाने दो अपनी शर्तों पे जीने दो !!

#खोखलें रिश्ते

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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