मेरे मायके का था : Moral Story In Hindi

” कमली! ये तूने क्या कर दिया।मेरे मायके का टी-सेट तोड़ दिया।सत्यानाश हो तेरा।भइया ने कितने प्यार-से मेरी सालगिरह पर दिया था।इसके पैसे तो मैं तेरी तनख्वाह से ही काटूँगी,सुन रही है ना तू।” फ़र्श पर टूटे हुए कप के टुकड़े देखकर मानसी अपनी चालीस वर्षीय कामवाली पर ज़ोर- से चिल्लाई।

” दीदी.., वो गलती से…हाथ से…।” कमली हकलाने लगी।

” बस-बस..,रहने दे। ये सब तेरे बहाने हैं।अब जल्दी-से समेट इन्हें।” कहकर वह अपने बेडरूम में चली गई।

पिछले छः महीने से ही कमली मानसी के यहाँ काम कर रही थी।छह महीने पहले तक तो उसकी ज़िंदगी बड़े मज़े में कट रही थी।काम करना तो दूर, वह तो सामान लाने भी अपने पति के साथ ही निकलती थी।उसका पति एक फ़ैक्ट्री में फ़ोरमैन था।उसके पति को जितनी तनख्वाह मिलती थी, उसमें दोनों पति-पत्नी का गुज़ारा मजे-से हो जाता था।

विवाह के चार बरस बाद जब कोई संतान नहीं हुई तो दोनों ने डाॅक्टर को दिखाया, कुछ महीनों के इलाज के बाद भी डाॅक्टर साफ़ से कुछ नहीं जवाब दिये तो कमली ने पति से दूसरी शादी कर लेने को कहा।तब तो उसकी सास भी थी,पोते का मुँह तो वो भी देखना चाहती थीं लेकिन उसका पति नहीं माना,बोला, ” औलाद का सुख लिखा होगा तो तेरे साथ ही मिलेगा।वरना समझ लूँगा कि बुढ़ापे में औलाद से मिलने वाला दुख मेरी किस्मत में नहीं है।” उसके इस तर्क के आगे तो कमली और उसकी सास निरुत्तर हो गये।

कुछ साल बाद उसकी सास भी गुज़र गई,अब तो दो व्यक्ति ही रह गयें थें।उम्र भी हो रही तो उसके पति ने अब ओवरटाइम करना छोड़ दिया।समय पर घर आ जाता,दोनों साथ बैठकर चाय पीते और दुनिया-समाज की बातें करते।पर जैसे दिन के बाद रात आती है वैसे ही जीवन में खुशियों के बाद दुखों के बादल भी छाने लगते हैं।कमली की खुशी को भी ग्रहण लग गया।

एक दिन उसका पति फ़ैक्ट्री में मेन स्वीच ऑफ़ करके किसी मशीन की सफ़ाई कर रहा था।फिर न जाने कैसे,किसी ने आकर स्वीच ऑन कर दिया और…..।मशीन में उसका दाहिना हाथ आ गया,वह दर्द से चीखा।लोग आते,मेन स्वीच बंद करते,तब तक में तो उसका हाथ…उसके धड़ से अलग हो गया था।उफ्फ़! उसकी पीड़ा…..।

तुरंत उसे हाॅस्पीटल ले जाया गया,कमली साये की तरह अपने पति के साथ रही।दिन-रात उसके जीवन की प्रार्थना करती रहती।पंद्रह दिन तो उसका पति हाॅस्पीटल में रहा जिसका पूरा खर्चा फ़ैक्ट्री के मालिक ने उठाया लेकिन फिर घर आने के बाद भी ज़ख्म भरने में समय लगा।शरीर के घाव तो धीरे-धीरे भरने लगे थें लेकिन मन के घाव…?

उसके पति के सामने पूरा जीवन पड़ा था।उसे हर वक्त यही चिंता खाये जाने लगी कि अब आगे क्या होगा?उसका अपाहिज जीवन कैसे चलेगा? कमली अकेले सब कैसे करेगी?मालिक से मिली मुआवजे की रकम भी अब खत्म होने लगी थी, तब कमली ने पति से कहा कि मुझे काम करने की इजाज़त दे दो।

उसका पति निराश होकर बोला कि तू क्या काम करेगी।अब तक तो मैंने तुझे रानी की तरह रखा था और अब तू…कैसे..? तब वह हँसते हुए बोली थी कि हम औरतों को भगवान ने बहुत शक्ति दी है और फिर तुम तो हो ना मेरे साथ।यही कहकर उसने पहली बार अपने घर से बाहर कदम निकाला था।

काम करने की आदत तो उसे नहीं थी,धीरे-धीरे काम करने पर मानसी उसे कभी एक घुड़की दे देती थी,फिर भी सब ठीक चल रहा था।काम करके घर जाती तो पति मुस्कुराकर वैसे ही उसका स्वागत करता जैसे पहले वो किया करती थी और तब उसकी सारी थकान दूर हो जाती थी।

पिछले महीने उसे बुखार हो गया था,दो दिनों की छुट्टी लेने के बाद वह काम पर लौटी तो थी परन्तु कमज़ोरी थी जिसकी वजह से उसके हाथ से एक काँच का गिलास गिरकर टूट गया था और अब ये टी-सेट का कप….।दीदी तनख्वाह में से पैसे काट लेगी तो महीना कैसे चलेगा? उसके खुद के इलाज में ही काफ़ी रुपये खर्च हो गये थें,

अभी तो उनकी दवा भी लानी है।कैसे होगा? सोचकर उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।अपनी आँखों के कोरों को पोंछते हुए उसने कप के टुकड़ों को उठाया और सिंक में पड़े बाकी बरतनों को वह धोने लगी।

” क्या बात है मानसी, क्यों उस बिचारी पर चिल्ला रही थी?” मानसी के पति मनीष ने पूछा तो बिफ़रे हुए अंदाज़ में बोली, ” चिल्लाऊँगी नहीं, आज फिर उसने एक कप तोड़कर मेरा एक नया टी-सेट खराब कर दिया है।जानते हैं,वो टी-सेट मेरे भाई ने दिया था।मेरे मायके का था,उसका पैसा तो ज़रूर काटूँगी तभी उसकी अक्ल ठिकाने आयेगी।”

” यह ठीक नहीं है मानसी,एक कप के लिये…,तुम तो जानती हो कि उसका पति…।”

” बस-बस, ज़्यादा तरफ़दारी करने की ज़रूरत नहीं है।”

दो दिन के बाद कमली ने मानसी से कहा कि कल उसे पति को लेकर अस्पताल जाना है,इसलिए थोड़ी देर से आयेगी।अगले दिन सैर से लौटते हुए मनीष अपने दो मित्रों को भी चाय पीने के लिए घर ले आयें।कमली देर से आएगी और बरतन जूठे पड़े थें तो मानसी चाय पीने के लिये नया सेट निकालने लगी।उसने पहले चार कप निकालें,फिर प्लेट निकालने लगी तो एक प्लेट हाथ से फिसलकर गिर पड़ी।

छन्…की आवाज़ सुनकर मनीष किचन में आयें और ज़मीन पर प्लेट के टुकड़े देखकर उनका पारा चढ़ गया,बोले, ” मानसी! ये क्या किया तुमने।मेरी दीदी ने गिफ़्ट किया था और तुमने तोड़ दिया। तुमसे तो कोई भी काम ठीक से होता ही नहीं है।”

पति के मुँह से अपने लिए नकारात्मक बात सुनकर मानसी को रोना आ गया।अपने आँसू पीकर उसने चाय बनाई।मेहमानों के जाने के बाद वह फूट-फूटकर रोने लगी।मनीष ने पूछा कि क्या हुआ?, तो पति पर बिफ़र पड़ी, ” एक प्लेट के लिये कितना सुना डाला तुमने।ये भी न सोचा कि घर में मेहमान बैठे हैं।”

” अरे भई, मेरे मायके का टीसेट था।”

” तो क्या हुआ, सेट तो फिर से आ….”

” यही तो मैं भी कह रहा हूँ मानसी।मेरी ज़रा-सी बात तुम्हें बुरी लगी तो ज़रा सोचो कि दो दिन पहले एक कप टूट जाने पर तूने कमली को कितना सुना दिया था।

ये भी नहीं सोचा कि उसकी तनख्वाह के आधे पैसे तुम रख लोगी तो वो दुखियारी कैसे….।मानसी, कप हो या प्लेट,टूटने की चीज थी,टूट गई।वह तो किसी से भी टूट सकती है,उसके लिये…।

” साॅरी मनीष, सच में मैंने कमली साथ बहुत बुरा किया है।” कहते हुए उसने कमली को फ़ोन करके कहा कि आज तू मत आ।अपने पति का अच्छे-से चेकअप करा ले।

” नहीं दीदी, आप पैसे काट लोगी तो….।”

” चिंता मत कर कमली,पैसे नहीं काटूँगी। तुझे पूरी पगार दूँगी।” हँसते हुए मानसी बोली तो कमली को बहुत तसल्ली हुई।मनीष ने देखा कि मानसी के चेहरे पर सुकून के भाव थें।

विभा गुप्ता

स्वरचित 

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