कागज का दरवाजा – गीता वाधवानी

#जादुई_दुनिया

तो हुआ यूं मेरे प्यारे प्यारे साथियों, हम केरल घूमने गए। वहां सुंदर-सुंदर मनभावन नजारे, चाय के बागान और कटहल के पेड़ देखकर बहुत ही आनंद आ रहा था। वापस आने का मन ही नहीं था। सोचा वापस जाने से पहले एक बार फिर समुद्र देवता के दर्शन कर लिए जाएं। 

लहरों की आवाजें, उनका एक दूसरे के पीछे भागना, सुबह से लेकर शाम तक सूर्य के अनेकों रंग सब कुछ मैंने मन में समाहित कर लिया था। बस अब होटल वापस जाना था कि तभी मेरी नजर पानी में तैरती एक बोतल पर पड़ी। मैं उसे उठाने गई, तो पतिदेव ने डांट दिया।”इसे क्यों उठा रही हो?” 

मैंने कहा-“इसके अंदर कोई कागज है।” 

पति बोले-“होने दो, फेक दो इसे।” 

मैंने कहा-“अच्छा ठीक है और चुपचाप जल्दी से कागज निकाल कर मुट्ठी में बंद कर लिया।” 

सुबह सामान बांधा और सीधा विमान से दिल्ली वापस और वह कागज मेरे पास पर्स के अंदर। 2 दिन तक तो कागज की याद ही नहीं आई। तीसरे दिन खोला तो उस पर एक दरवाजे का चित्र बना हुआ था। 

सोचा दोपहर में खाली समय होने पर अच्छी तरह देखूंगी। 

दोपहर में फिर से कागज खोला, बहुत ही सुंदर दरवाजा बना हुआ था। उसे देखते ही मन में ख्याल आया कि काश! ये दरवाजा खुल जाता और मैं इस दरवाजे से, जहां मेरा मन करे, वहां घूम आती। 


      मेरे यह सोचते ही न जाने क्या हुआ कागज मेरे हाथ से छूट कर सामने वाली दीवार पर जाकर चिपक गया और बड़ा हो गया। दरवाजा सचमुच खुल गया। मैंने सोचा दरवाजा खुल गया, काश! मैं इस दरवाजे से अपने मायके जाकर अपनी मम्मी को देख आती। ऐसा सोचते हुए मैं दरवाजे में प्रवेश कर गई और अगले ही पल में मायके में थी। 

चुपचाप छुप कर मैं मायके में सब लोगों को देखकर वापस आ गई क्योंकि अगर वह लोग मुझे देख लेते तो बहुत ही ज्यादा हैरान हो जाते और मुझे पूरी बात बतानी पड़ती। बस इस दरवाजे का इतना ही नियम था कि हम किस दिशा से आए हैं इतना याद रखना होता‌ था और हमें उसी दिशा से वापस आना होता था। 

     अब तो मेरी मौज हो गई। दोपहर को  खाली वक्त मिलने पर मैं कहीं ना कहीं घूम आती थी और किसी को पता भी नहीं लगता था। 

     एक बार मैंने एक प्रसिद्ध मॉल में एंट्री ली। अब मुझे तो पता नहीं था कि जादुई दरवाजा मुझे मॉल के किस हिस्से में पहुंचा देगा। मैं तो सीधा डिजाइनर कपड़ों की दुकान में पहुंच गई। इत्तेफाक से दुकानदार ने मुझे दीवार से निकलते देख लिया और उसका मुंह खुला का खुला रह गया ,बेचारा बेहोश होते होते बचा। उसकी हालत देखकर मुझे बहुत हंसी आ रही थी इसीलिए मैं जल्दी से उसकी दुकान से निकल गई और मॉल में घूमने लगी। अब मैं सोच रही थी कि मुझे वापस भी तो उसी दुकान से जाना पड़ेगा तो मैं क्या करूं? 

फिर उस दुकान में मैं कपड़े देखने के बहाने गई और जिस दीवार से मुझे गायब होना था उसके सामने वाली दीवार पर जो डिजाइनर साड़ी टंगी हुई थी, मैंने उसे पास से देखने की इच्छा जताई और दुकानदार से कहा कि वह साड़ी मुझे दीवार से उतारकर दिखाएं। वह बेचारा जैसे ही पलटा और मैं गायब। मैं तो अपने घर पहुंच चुकी थी उसका पता नहीं क्या हाल हुआ होगा। 

      ऐसे ही एक बार मेरा फाइव स्टार होटल जाने का मन हुआ। मैं दरवाजे से अंदर घुसी तो बेचारे दरवाजे से उस दिन गलती हो गई थी। उसने मुझे नई नवेली दुल्हन के कमरे में पहुंचा दिया। वह बेचारी सुहागरात के लिए अपने पति का इंतजार कर रही थी। अच्छा हुआ मैंने समय पर वापसी कर ली। उफ्फ यह दरवाजा भी न जाने क्या-क्या करता है। अच्छा हुआ मुझे दुल्हन ने देखा नहीं। 


फिर एक दिन खयाल आया कि समुद्र के किनारे घूमा जाए। फिर सोचा अरे बाबा! यह मैं क्या करने जा रही हूं। अगर सीधा समुद्र के बीच में पहुंच गई तो, मैं तो डूब जाऊंगी। उस दिन तो बाल-बाल बची। 

      एक रात सब गहरी नींद में सो रहे थे और मुझे नींद नहीं आ रही थी तो सोचा कि क्यों ना, ऐसे ही सड़कों पर घूमा जाए। तो मैं पहुंच गई बीच सड़क पर। वहां चुपचाप कोने में खड़े होकर देखा कि कुछ बदतमीज लड़के, एक लड़की को परेशान कर रहे हैं। उस लड़की को शायद ऑफिस से आने में देर हो गई थी। वह बहुत ही  घबराई हुई लग रही थी। मैंने वापस जाने की दिशा का ध्यान करते हुए उस लड़की की तरफ रुख किया। उसके पास पहुंच कर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। लड़के हंसने लगे और मजाक उड़ाते हुए कहने लगे-“तुम  बचाओगी इसको।” 

मैंने कहा-“हां बचाऊंगी” 

लड़के बोले-“कैसे?” 

मैंने कहा-“भाग कर” 

लड़के अपनी शेखी बघारते हुए बोले-“चलो भागकर दिखाओ।” 

मैंने लड़की का हाथ पकड़कर दरवाजे की दिशा की तरफ दौड़ लगाई और हम दोनों सीधा घर। अब वो लड़की जिसका नाम निशा था वह तो बहुत ही हैरान हो गई और निश्चित ही इसी तरह वे लड़के भी हैरान होकर हमें ढूंढ रहे होंगे। निशा ने अपने पापा को फोन किया और वह उसे लेने आ गए। 

अब एक बार मैंने दरवाजे से पहाड़ पर जाने की ठान ली थी। रात होते ही मैंने सबक सो जाने पर

, कागज का दरवाजा खोला और उसमें से निकलकर पहाड़ पर पहुंच गई। पहाड़ पर स्नोफॉल हो रहा था। बहुत ही अद्भुत मनोरम दृश्य था। उसे देखने में मैं इतना मगन हो गई कि मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि दो कदम आगे गहरी, अथाह खाई है। मैं अनजान आगे बढ़ती गई और उस गहरी खाई में गिर गई। 

यह क्या ,क्या मैं मर गई, नहीं मैं तो अपने पलंग से नीचे गिर गई थी और घर के सब लोग मुझे देख कर हंस रहे थे। 

मौलिक काल्पनिक 

गीता वाधवानी दिल्ली

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