रश्मि एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी, उसने बीकॉम तक पढ़ाई की थी| उसके परिवार में उसके माता-पिता, बड़े भाई सुरेश जिनकी शादी हो चुकी थी|
अब रश्मि के लिए रिश्ते देखे जा रहे थे| कुछ लड़के रश्मि को और उसके परिवार वालों को पसंद नहीं आ रहे थे| तो कुछ ने रश्मि को रिजेक्ट कर दिया था| देखते-देखते साल भर गुजर गया| आखिरकार मिस्टर मोदी के बेटे रूपेश से मिलने के बाद श्याम नारायण जी की तलाश पूरी हुई|
क्योंकि लड़का लाखों में एक था…. गुणवत्ता और समझदारी में तो कोई मुकाबला ही नहीं …. पढ़ा लिखा तो था ही साथ ही साथ हर काम में दक्ष और निपुण….. रश्मि के पिता का मानना था ….कि भगवान तकदीर से छीन सकते हैं….लेकिन हाथ का हुनर और विद्या नहीं!!
अगर बुरा वक्त भी आ जाए तो हमारी बेटी को खाने और पहनने की कभी तकलीफ नहीं होगी|
लड़के वालों को भी रश्मि एक नजर में पसंद आ गई……
दोनों परिवारों ने बातचीत करके पंडित से मुहूर्त निकलवा कर बात आगे बढ़ाने का तय किया!!! तब तक
लड़की के पिता श्याम नारायण और भाई सुरेश ने लड़के की छानबीन भी कर ली…. छानबीन में सब कुछ ठीक ही था …..लड़के को किसी प्रकार की नशे की भी कोई लत नहीं थी |
बस एक ही समस्या थी कि घर में लड़की की शादी शुदा बहन की चलती थी…… यह बात आस पड़ोस से पूछने के बाद मालूम हुई……. क्योंकि लड़के की मां नहीं थी इसलिए घर के कोई भी अहम डिसीजन श्रीधर जी अपनी बेटी से पूछ कर ही लेते…… पर यह बात लड़की वालों को इतनी भी ज्यादा बड़ी नहीं लगी….पूरी तसल्ली के बाद उन्होंने पंडित से मुहूर्त निकलवा कर लड़के वालों को फोन कर दिया|
और दोनों की सगाई कर दी|, ठीक 1 महीने बाद शादी थी…. दोनों परिवार शादी की तैयारियों में जुट गए| लड़की के पिता और भाई ने उसके दहेज में कोई कमी नहीं रखी..,.फ्रीज,टीवी, पलंग,अलमारी ,वॉशिंग मशीन सब कुछ दिया| .. ….. अपनी हैसियत से बढ़-चढ़कर किया……. लड़के वालों ने भी अपनी होने वाली बहू के लिए उसके मनपसंद गहने और कपड़े लिए. .. ..शादी में खुब धूम धड़ाका हुआ …..क्योंकि लड़के वाले और लड़की वालों के खानदान में फिलहाल यह आखरी शादी थी|
लड़की के पिता ने जो भी दहेज का सामान दिया….. उस दिन तो लड़के वालों ने रख लिया लेकिन दूसरे दिन ही लड़के की बहन ने कहा कि वॉशिंग मशीन आई है ….वो ठीक है ….लेकिन कपड़े तुम्हें हाथ से ही धोने पड़ेंगे….. अभी रश्मि के हाथों की मेहंदी भी नहीं छुट्टी थी कि उसकी ननंद ने यह फरमान जारी कर दिया……
ससुर जी ने भी अपनी बेटी की बात का समर्थन किया…… कितने सपने ,कितने अरमान लेकर रश्मि अपने ससुराल आई थी……पर पहले दिन ही उसके अरमान टूट गए…….वह मन ही मन सोचने लगी कि अभी तो ससुराल में कदम रखा ही नहीं कि दीदी की दखलअंदाजी शुरू हो गई …..इसी तरह चला तो मैं कैसे अपना जीवन निर्वाह करूंगी.,… आज रश्मि की ससुराल में पहली रसोई की रश्म थी…..तो उसने अपने ससुर जी से पूछा पापाजी मीठे में क्या बनाऊं ???क्योंकि उसकी सास तो थी….नहीं!!
तब भी ननंद तपाक से बोली तुम दाल का हलवा बना लो…. .. रश्मि का गुस्सा तो इतनी जोर आया….लेकिन फिर भी वह खून का घूंट पीकर चुपचाप चली गई ….और दाल का हलवा बनाने लगी…. सब ने हलवा खाया और उसकी बहुत तारीफ की… . .ससुर जी ने
नेग में क्या दूं यह भी अपनी बेटी से पूछा? ? तो बेटी ने कहा कि 2 सिक्के दे दीजिए…. अब तो काटो तो खून नहीं… रश्मि को मन ही मन बहुत गुस्सा आ रहा था….. कि हर छोटी से छोटी चीज में ननंद से क्यों पूछना ……क्या वह हमारे घर की मालकिन है? ??
अब तो यह रोज का ही हो गया….. सुरभि (रश्मि की ननद) महीने में 15 दिन अपने पति और बच्चों को छोड़कर यही पड़ी रहती…… हर बात में रोकना टोकना बढ़ते ही जा रहा था ….सारा दिन हाथ धोकर रश्मि के पीछे पड़ी रहती…… एक भी काम में हाथ में बंटाना तो दूर बस उपदेशों की गाथा हमेशा चालू रहती…… ऐसे मत उठो..ऐसे मत बैठो…पापा जी के सामने घूंघट करके जाया करो… .. इतना ही नहीं शादी के एक हफ्ते बाद ही सारे गहने लेकर अलमारी में रख दिए ….एक गहना भी रश्मि के पास नहीं छोड़ा|
रश्मि को बुरा तो बहुत लग रहा था ….फिर भी वह चुपचाप थी…. नई नवेली दुल्हन के कानों में और गले में कुछ तो होना चाहिए|
रश्मि के पिता ने भी सोने की फूल सेंट डाली थी और उसके ससुराल वालों की तरफ से भी उसे डेढ़ सेट मिली थी…… लेकिन उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह कोई काम वाली बाई हो!
धीरे-धीरे सुरभि(रश्मि की ननद) की दखलअंदाजी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी….. उसे रश्मि का अपनी पसंद का बना कर खाना या बाहर से मंगवा कर खाना भी पसंद नहीं आ रहा था….. जब वह कुछ बाहर से मंगवाती या घर में बनाती तो कहती ….जो सब खाएंगे वही तुम भी खाओगी|
और जब रश्मि कहती की दीदी क्या मैं खाना भी अपने पसंद का नही खा सकती??तो कहती की रश्मि ये सब मैं तुम्हारे भले के लिए कह रही हूँ….. तुम फास्ट फुड खाओगी तो मोटी हो जाओगी| रश्मि का जीना मुश्किल हो गया था….. बस सारा दिन नोकरानी तरह काम करो और घर में पड़े रहो|
न अपने मन का खा सको और न अपने मन का पहन सको| कहीं पास – पडो़स में किसी से बात नहीं करने देती….. रिश्तेदारों का फोन आता तो टालमटोल कर बात नहीं करवाती…… हर समय सास बनकर रश्मि पर अपनी हुकूमत चलाती|
अभी शादी को 2 महीने ही हुए थे…पर रश्मि इस तरह मुरझा चुकी थी….मानों शादी को 5-6 साल हो गए हो| रश्मि अब पूरी तरह से उंधिया चुकी थी…..
उसका जीना पूरी तरह से मुश्किल हो चुका था….. उसने उसने रुपेश से कहा कि मैंने पिताजी को फोन कर दिया मैं अपने मायके जा रही हूं…… दीदी की ज्याद्तियां दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है … अब और बर्दाश्त नहीं होता…… पापा जी भी उन्हें कुछ नहीं कहते …… हर समय मुझ पर जूल्म ढा़हती रहती है|
ना मुझे चैन से कुछ खाने देती है….और ना ही पहनने देती है….आते ही मेरे सारे गहने रख लिए|
कोई नई नवेली दुल्हन के साथ भला ऐसा करता है….. मुझे किसी से बात नहीं करने देती….हर वक्त चाहती है कि मैं घर चारदीवारी में बंद रहूं|
रुपेश ने कहा तुम ठीक कह रही हो मैंने भी देखा है…. दीदी को बहुत समझाने की कोशिश भी की लेकिन वह समझने के लिए तैयार ही नहीं है…..अब कुछ ना कुछ कड़ा कदम उठाना ही पड़ेगा|
मैं बस चुप इसलिए था…. क्योंकि मैं अपने पिताजी का इकलौता बेटा हूं….. आज अगर मैं उन्हें बुढ़ापे में अकेले छोड़ कर जाऊंगा तो दुनिया मुझे भी बुरा भला कहेगी और उन्हें भी….. लेकिन अब बहुत हो गया मेरा आखिर तुम्हारे प्रति भी तो कोई फर्ज है… . तुम अकेली इस घर से नहीं जाओगी…मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगा|
तुम चलो मेरे साथ आज पापा से बात कर ही लेता हूं ….. पापा अब बहुत हो गया आप अपने आंखों पर कब तक पट्टियां चढ़ा कर रखेंगे….. आपको सही या गलत कुछ समझ में नहीं आ रहा इतने दिनों से क्या हो रहा है घर में?? अब आप यह सोच कर बता दे कि आपको बुढ़ापे में अपने बेटे बहु के साथ रहना है ….या बेटी की बात सुनकर बसे बसायें घर को उजाड़ना है….. तो श्रीधर जी(रूपेश के पापा) ने कहा ऐसा क्या हो गया जो तुम इस तरह बात कर रहे हो मुझसे….. क्या हुआ क्या नहीं हुआ यह पूछिए दीदी ने मेरी पत्नी की क्या हालत कर दी है….??.. अरे इतना बुरा व्यवहार तो कोई जानवर के साथ भी नहीं करता है जो वह मेरी पत्नी के साथ कर रही है…… आते इसके सारे गहने ज्बत कर लिए मेरी पत्नी को देखकर ऐसा लगता है कि कोई काम वाली नौकरानी हो……. न मन का खाने देती है ना ही पहनने देती है….और ना ही किसी से बात करने देती है….. अरे उनको तो यह सोचना चाहिए कि नई नवेली दुल्हन सजी संवरी अच्छी लगती है……. अगर उनके ससुराल मैं उनकी ननद भी उनके साथ ऐसा ही करती तो…… यह सब सुनकर (सुरभि) रुपेश की बहन बोली! मुझे क्या पड़ी है वह तो घर में मां नहीं है … इसके लिए पापा ने ही मुझे सब जिम्मेदारी दी हैं…… इसलिए मैं तो बस अपनी जिम्मेदारी निभा रही थी|
आप इसे जिम्मेदारी निभाना कहती है.. आप जिम्मेदारी नहीं निभा रही थी आप तो जुल्म कर रही थी|
खैर छोड़िए….पापा , दीदी ज्यादा बकवास करने का कोई फायदा नहीं है….. जब तक दीदी की दखलअंदाजी यहां चलेगी हमारा रहना मुश्किल है … आप मेरी पत्नी के गहने दे दीजिए और सोच कर बता दीजिएगा …..मैं आपको 1 महीने का वक्त देता हूं कि आप हमारे साथ रहेंगे या नहीं…. इतने में रश्मि के पापा भी आ जाते हैं और कहते है.. की दामाद जी बिल्कुल सही कह रहे है ं….जिस घर में बेटियों की चलती हैं.. ..वो घर कभी नहीं बसतें|
आप एक बार ठंडे दिमाग से सोचिए गा जरूर कि आप गलत कर रहे हैं . … या सही|
समधी जी आप यंहा अचानक…. अचानक नहीं… मेरी बेटी ने मुझे बुलाया है, मैं तो बहुत पहले ही आना चाहता था….. पर मेरी बेटी ने मुझे रोक दिया…… क्योंकि हमने अपने बच्चों को संस्कार ही ऐसे दिए है.. . कि वो जब तक पानी सर से ऊपर ना हो जाए बर्दाश्त करते हैं… .. आप लोंगो ने मेरी बेटी की क्या हालत कर दी हैं…. सिर्फ दो महीने में….. अरे हमारे घर में भी बहु है…… लेकिन हमारे भगवान जानता है…..हमने हमेशा उसे अपनी बेटी ही माना हैं| आपने तो बहू को बेटी समझना तो दूर उसे बहू भी नहीं समझा उसे नौकरानी बनाकर रख दिया|
मुझे तो शर्म आती है समधी जी आपकी सोच पर…… खैर छोड़िए आप से कुछ आशा करना ही बेकार है| रश्मि बेटा चल जल्दी से अपनी पैकिंग कर लें, मैं तेरा बाहर इतंजार कर रहा हूँ|, तब रूपेश ने कहा पापा आप मुझे अपने साथ नहीं ले जायेंगे?? तो श्यामनारायण जी ( रूपेश के ससुर) ने कहा क्यों नहीं बेटा ये तो हमारी खुशनसीबी हैं…की हमारी बेटी को इतना अच्छा पति मिला है जो उसके सुख सुख में उसके साथ है…. तो पापा जी बस दस मिनट का वक्त दीजिये…… सिर्फ आपकी बेटी ही नही बेटा भी आपके साथ चलेगा|
ठीक है…… बेटा
रूपेश अपने पिता से …,पापा मैं आपसे आखरी बार पूछ रहा हूँ….. क्या आप दीदी को घर का प्रधान बनाकर घर को तोड़ेगें या अपने बेटे बहु के साथ रहेंगे??? तो श्रीधर जी ने कहा की जो जैसे चल रहा है….. वैसे ही चलेगा!
ठीक है जैसे आपकी मर्जी! मेरी पत्नी के गहने दे दीजिए| तो श्रीधर जी ने अपनी बेटी से कहा कि बहु जो अपने मायके से लाई थी वो रूपेश को दे दो| तो रूपेश ने कहा कि सिर्फ मायके वाले ही क्यों…. ससुराल वाले क्यों नहीं?? तो श्रीधर जी ने कहा ज्यादा सवाल जबाब मत करो| कहा ना नहीं मिलेंगे तो रूपेश ने कहा ओ! ये आग भी दीदी की लगाई हुई होगी|
खैर छोड़िये जब भी आपको लगे कि आपने गलत किया.. अपने बेटे बहु के साथ….. और आपको प्रायश्चित करना हो तो हमारे घर के दरवाजे हमेशा आपके लिए खुले है|
चलता हूँ|
यह कहानी नहीं हकीकत है अक्सर बहुत से घरों में ऐसा होता है जहां बेटियों की चलती है जिसके कारण घर टूट जाते है| माता पिता को हमेशा यह सोचना चाहिए कि काम हमारे बहू बेटे ही आएंगे इसलिए उनके साथ संबंध प्रेम पूर्वक बनाए रखें ना की बेटी के बहकावे में आकर बिना किसी कारण बेटे बहू के साथ ज्यादती करनी चाहिए|
दोस्तों कैसा लगा आपको मेरा ब्लांग, कमेंट करके अपने विचारों से अवगत जरूर कराइएगा|
सुरभि ने जो अपनी भाभी के साथ किया क्या वह सही था? ? श्रीधर जी ने क्या अपने बेटे बहु के साथ सही किया? ??
पढ़ने के लिए धन्यवाद
स्वरचित
@ मनीषा भरतीया