जिम्मेदारी – मनीषा भरतीया

#ख्बाब

जिन्दगी में ख्बाब हर कोई देखता है… लेकिन सब के ख्बाब पूरे नही होते… और कभी ख्बाब पूरे तो होते है… लेकिन उस रास्ते पर चलकर जिसपर इंसान मजबूरी वश जिम्मेदारियों को ढोने के लिए चलता हैं… हमारी आज की कहानी इसी पर आधारित है… 

चंचल 14 साल की  शालीन और समझदार लड़की…. दीनानाथ जी और सविता जी की सबसे बड़ी बेटी और दोनों छोटे भाइयों की बड़ी बहन….. दोनों छोटे भाई राजेश 10 साल और नीरज 8 साल का…. यू तो दीनानाथ जी गांव की स्कूल के के छोटे-मोटे शिक्षक ही थे….पर वो जो रूखी सूखी लाते उसी में सब घर में बहुत खुश थे…… उन्होंने कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया…भले ही  उनके पास पैसे कम थे….लेकिन गांव में उनका रुतवा बहुत था…. वह चंचल से बहुत प्यार करते थे….. क्योंकि एक तो वह इकलौती थी साथ ही साथ समझदार व गुणी भी थी…. वह 10 साल की उम्र से ही छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ा कर अपने पिता की पैसों से मदद करती थी…… क्योंकि वह पढ़ने में बहुत तेज थी…..उसने बचपन से ही सोते उठते  बस एक ही ख्वाब देखा था…. वह पढ़ लिखकर बड़ी वकील बनेगी और काला कोट पहनकर कोर्ट में दलिल पेश करेगी… गरीब जनता जिन्हें ठेकेदार उनकी जमीन के कागजात पर उनका अंगूठा लेकर जमीन हड़प लेते हैं उन्हें उनका हक दिलाएगी….. 

दीनानाथ जी भी अपनी पत्नी सविता से हमेशा यह कहते सविता यह दोनों बेटे तो मेरे बिल्कुल गधे और निकम्मे है मेरी तो बेटी ही बेटा है मैं इसे खूब पढ़ाऊंगा लिखाऊंगा ताकि यह गरीबों पर होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें और अपने पैरों पर खड़ी हो सके…. इसका वकील बनने का ख्बाब मैं अवश्य पूरा करूंगा….. ये मेरा भी ख्बाब है…. 

लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंजूर था चंचल 15 की पूरी हुई भी नहीं थी कि 1 दिन संध्या की बेला में जब घनघोर बारिश हो रही थी….. अचानक दीनानाथ जी की तबीयत बहुत खराब हो गई उन्हें दिल का दौरा पड़ा….चंचल भागी भागी बारिश मे भींगकर डॉक्टर साहब को लेकर भी आई लेकिन उनके आने से पहले ही दीनानाथ जी अपने प्राण त्याग दिये…. और दुनिया को अलविदा कह दिया….

पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा…घर में खाने के लाले पड़ गए ….यू अचानक  दीना नाथ जी का दुनिया छोड़ देना चंचल की मां को गहरा सदमा पहुंचा गया…. उनकी मौत के गम में 1 महीने के अंदर ही उन्हें बड़ी बीमारी ने घेर लिया… इधर चंचल का रो रो कर बुरा हाल था …कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि यू पिता को अचानक  खो देना पड़ेगा….  पिता की चिता की..अग्नि ने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया था वह पूरी तरह से टूट चुकी थी…. लेकिन फिर उसने हिम्मत जुटाई… अपने आंसू पौंछे…. अपनी जिम्मेदारियों को समझा… एक तरफ बीमार माँ का इलाज कराना था…. जो कि शहर में ही होगा… जिसमें लाख रूपये लगने थे… और दुसरी तरफ छोटे भाइयों की जिम्मेदारी…. जिनका लालन पालन भी अब उसे ही करना था…. उसे कुछ समझ में नही आ रहा था… कि क्या करें??? 




तभी वो अपने दुर के चाचा सुरेन्द्र के पास गयी… मदद मांगने… जो उसके घर से चार मकान छोड़कर ही रहते थे…. और बहुत बडे़ शराबी भी थे…. लेकिन दिल से बुरे नही थे….. चंचल के पास उनके पास मदद मांगने जाने के अलावा कोई और रास्ता भी नही था…. 

उसने उनसे मदद मांगी तो उन्होंने कहा… तुम तो जानती हो बेटा की मैं बहुत बड़ा शराबी हूं…. मेरे हाथ में पैसे टिकते कहा है… सारे पैसे शराब में उड़ जाते है… घर खर्च ही मुश्किल से चलता है…. 

उसने बहुत मिन्नतें की…. गिड़गड़ायी… चाचाजी कोई तो रास्ता होगा…. मुझे कुछ भी करके एक लाख रुपये की जरूरत है… क्योंकि शहर जाकर मां का आपरेशन कराना पडे़गा…. डॉक्टर ने हिदायत दी है कि अगर जल्द से जल्द ऑपरेशन नहीं हुआ तो हम तुम्हारी मां को नहीं बचा पाएंगे…. 

तब चाचा ने कहा कि मेरी जान पहचान की कमला बहन है जो कि लखनऊ में रहती है और जिनका एक बार है…. मैं एक बार लखनऊ गया था…. तो गाना सुनने के लिए वंहा चला गया था… बस तभी जान पहचान हो गयी… वो तुम्हारी मदद कर सकती है… मुसीबत की मारी चंचल के पास हां कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था इसलिए उसने हां कर दी …मैं कुछ भी कर सकती हूं ….बस मुझे अभी मां को बचाना है…

अब सबाल था… कि सभी की ट्रेन की टिकटों का इंतजाम कैसे हो…. तब उसने अपने पिता की आखरी निशानी अपने सोने के कान के बूंदे बेच दिए…. और चाचा के साथ जाकर ट्रेन की अगले दिन की टिकटें ले ली…. दो दिन बाद वो सबको लेकर लखनऊ पहुँच गयी…. और वंहा जाकर एक सस्ता मंदा किराये का एक कमरा लिया…. सबको घर में छोड़ कर वह चाचा के साथ कमला बहन के पास पहुंची…. 

कमला वह एक बार चलाती थी…जिसमें कई लड़कियां नाचती गाती थी… और लोग उनके नाच गाने देखने आते और उन्हें पैसे देते…. 

चंचल का मन तो कतई नहीं था…. ऐसी जगह काम करने का… लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं था…ऐसा कौन था जो उसे इतनी बड़ी रकम देता…. इसलिए उसने मां की हालत और छोटे भाइयों की जिम्मेदारियों को देखते हुए कमला बहन की बात मान ली….. कमला बहन ने कहा मैं पैसे तो तुम्हें दे देती हूं…लेकिन धीरे-धीरे तुम्हें कमा कर मुझे पैसे वापस देने होंगे चंचल ने कहा जैसा आप कह रही है आंटी बिल्कुल वैसा ही होगा…. 



माहौल देखकर चंचल को  समझते तो देर नहीं लगी कि यहां उसके साथ बदसलूकी भी हो सकती है…. चंचल ने कहा…. आंटी मैं बहुत मजबूरी वश ये काम करने जा रही हूँ…. इसलिए आप इतनी दया करना की मेरे साथ कोई बदसलूकी ना हो…. तब कमला बहन ने कहा बेटी यंहा जितनी भी लड़कियां आती है…. वो मुसीबत की मारी ही होती है…. और यंहा जितनी लडकियां नाचती है… सब मेरी बेटियां है….. मैं किसी के साथ बदसलूकी होने नही देती…. तुम निश्चित रहो… तुम दिन में अपनी पढाई करना और रात में यंहा काम करना…. 

चंचल ने ठीक है…. आंटी कहकर वंहा से चली गयी…

फिर चंचल जल्दी से घर आकर चाचा की मदद से मां को हास्पिटल लेकर गयी… और आपरेशन के पैसे भरे…. ईश्वर की कृपा से आपरेशन कामयाब रहा…. और सबिता जी चार पांच दिन में घर बापस आ गयी… एक महीने के दोरान तो घर के रोजमर्रा के काम भी करने लग गयी…. अब चंचल को भी थोड़ी राहत मिली…. वरना खुद पढना.भाइयों को देखना, मां को सभालना, खाना पकाना और फिर रात को बार में काम करना आसान नही था…. आखिर चंचल भी तो बड़ी नही थी… थी तो बच्ची…. बस हालात ने उसे उम्र से पहले ही बड़ा बना दिया…. धीरे धीरे एक साल में सब कुछ ठीक होने लगा… तब उसने तय कर लिया की वो अपना वकील बनने का ख्बाब भी जरूर पूरा करेगी… क्योंकि ये सिर्फ उसका नही उसके पिता का भी ख्बाब था…..उसे पता था… कि पैसे जिस रास्ते पर चलकर आ रहे थे… वो सही नही था…. लेकिन जिम्मेदारियों को पूरी करने के लिए इसके अलावा और कोई रास्ता भी नही था…. इसलिए उसने सोचा कि जब सब काम इन पैसों से हो रहा है….. तो ख्बाब भी यही पैसे पूरा करेगा..,.इसलिए   करीब 6 साल उसने वंहा काम किया…. तब तक वह ग्रेजुएट हो गयी…. तब उसने बड़ी बड़ी कम्पनी में अपना इन्टरव्यू दिया…. लेकिन हर जगह से उसे निराशा मिली…. क्योंकि जंहा भी जाती लोग उसे पहचान लेते… उस पर बार डान्सर का धब्बा लग गया… लेकिन वो निराश नही हुई…. 5 साल और उसने बार में काम करके अपनी पढाई कम्पलिट की…. और सफल वकील बन गयी…. 




आज उसने अपनी एक अलग पहचान बनाई है…. वो एक सफल वकील है…. जिसके हाथ में बहुत सारे केस है…. 

आज उसका समाज में रूतबा है…. अब उसके माथे से वो बार डान्सर के कंलक का टीका हट गया है… 

लोंगो को भी समझ में आ गया है… कि उसने अपने शौक पुरे करने के लिए बार में कदम नही रखा…. बल्कि उसकी मजबूरी उसे वंहा ले गयी थी… 

आज वो अपने परिवार के साथ बहुत खुश है… दोनों भाई भी जांब कर रहे है… और माँ भी ठीक है….

अपने पिता की फोटो के सामने काला कोट पहनकर आशीर्वाद ले रही है…. आंखों में आंसू है.. 

पापा मुझे आशीर्वाद दीजिये… कि मैं हमेशा सही के रास्ते पर चलूँ…. और आपका नाम रौशन करू.. 

पापा मैं आपसे वादा करती हूँ… कि मैं गरीबों पर हो रहे अत्याचारों का बहिष्कार करूगी…. और उन्हें न्याय दिलाऊँगी… 

तब ही फोटो पर से एक फूल उसके ऊपर गिर जाता है…. और उसे अपने पिता का आशीर्वाद मिल जाता है… 

 दोस्तों आपको क्या लगता है… चंचल ने अपने माँ को बचाने और जिम्मेदारियों को उठाने के लिए जो कदम उठाया क्या वो गलत था??? 

मुझे तो लगता है… कि गलत नही था…  क्योंकि उसके पास उस समय और कोई चारा नहीं था आप अपने विचार मेरे साथ साझा जरूर करें…. 

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आपकी दोस्त

@ मनीषा भरतीया

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