जीवन की शाम – नीरजा कृष्णा

मीता सुबह चाय लेकर आई…जगत बाबू आँखों पर बाँह फैलाऐ चुपचाप लेटे थे…आँखें नम थीं…वो चिंतित होकर पुकार बैठी,”पापा चाय…क्या बात है…अभी तक लेटे हैं…आप तो बहुत जल्दी उठ जाते हैं।”

वो चौंक कर उठ बैठे और नज़रें चुराते हुए चाय का कप थाम लिया… वो वहीं कुर्सी खींच कर बैठ गई,” पापा, जब से आप रिटायर हुए हैं…बहुत उदास और शांत रहने लगे हैं… ऐसी क्या बात हो गई… हमसे कोई गलती हुई हो तो डाँटिए ना…पर इस तरह दुखी और उदास मत रहिए…रवि तो अपने काम में बिज़ी हो जाते हैं पर मैं तो हूँ।”

मीता बहू की स्नेह भरी बातों से उनका दिल भर आया… बहुत भावुक हो गए…”क्या कहूँ बिटिया रानी! नौकरी थी तो रोज समय पर ऑफिस पहुँचने की आपाधापी रहती थी…वहाँ सबका बॉस था…सब इज्जत भी करते थे…शारदा नही रही पर किसी तरह मन को समझा लिया… अब जीवन में क्या रखा है…अब ना साथी संगी..ना कोई काम…दिन काटे नही कटता… जीवन की शाम आ गई है… शरीर भी ढल रहा है… आगे क्या होगा…बस यही सोच सोच कर दिल घबड़ाता रहता है।”

वो भी सोच में पड़ गई… पर फिर सीधी तन कर बैठते हुए बोली,”ये क्या बात कह दी आपने…आप रिटायर हुए हैं..तो क्या जीवन का अंत हो गया… नही पापा… जीवन की शाम आई है …तो शाम को गीत संगीत की महफ़िल सजाइए…अपने मित्रों को  चाय पर बुलाइए…चिरागों की रोशनी भी तो शाम को ही तो होती है… आप भी शाम को प्यार और खुशहाली का दिया जलाइए।”




उनके उदास चेहरे पर मुस्कान फैल गई… वो मुस्कुराते हुए बोले,”अरे बाप रे…हमारी बहू तो पूरी फिलॉसफर हो गई है… हमें तो पता ही नही था।”

“जी पापा, कैसे पता चलता… लेकिन अब रोज नए नए रहस्योद्घाटन होंगे… वैसे आज आपकी भी पोल खुली है… आप हारमोनियम बहुत अच्छा बजाते हैं और गाते भी है… पर मम्मी के जाने पर सब छोड़ दिया।”

“हाँ बेटा, उसके जाने के बाद फिर मन ही नही किया… पर पर।”

वो अचानक चुप हो गए… मीता ने ही बात बढ़ाई,”तो पापा प्लीज़! आज   ही मम्मी जी की स्मृति में गीत संगीत की महफिल सजाई जाए और शाम को चाय पकौड़ों की पार्टी हो जाए।”

वो चुप रहे पर थोड़ी देर बाद उसकी जासूसी निगाहों ने बरसों से धूल खा रहे हारमोनियम को अनलॉक होते देखा… वो मुस्कुरा कर रसोई में घुस गई।

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