जीवन भर संघर्ष – गीता वाधवानी 

मैं आज आपको एक ऐसी महिला की कहानी सुनाने जा रही हूं जिसका पूरा जीवन संघर्ष में ही बीता। रंग गोरा, कद छोटा, चेहरे पर हर समय मुस्कुराहट और काम करने में नंबर वन। कोई भी काम कह दो करने के लिए तुरंत तैयार हो जाती। नाम देवी। पैदा होते ही मां को खा गई, ऐसा लोग कहते थे। पिता ने दूसरी शादी कर ली। सौतेली मां ने 15, 16 वर्ष की होने तक खूब सताया। घर के सारे काम करवाए, खूब मारा पीटा ताने दिए और फिर एक बड़ी उम्र के अंजान शख्स से शादी करवा कर ससुराल भेज दिया। शादी के बाद, 5 साल में 3 बच्चे पैदा हुए और फिर पति टी बी की बीमारी के कारण चल बसा। सौतेली मां ने कभी पढ़ाई करने दी नहीं थी इसीलिए वह अनपढ़ थी। 3 बच्चों को पालने के लिए उसने लोगों के घर में बर्तन झाड़ू पोंछा और खाना बनाने का काम शुरू कर दिया। 

गरीबी में किसी तरह गुजारा करते हुए उसमें दोनों लड़कियों को 12वीं कक्षा तक पढ़ाई करवाई। उसके लड़के ने पढ़ाई में कोई मन नहीं लगाया। इकलौता लड़का राजू लाड प्यार के कारण आलसी और निकम्मा बन गया। 

बड़ी लड़की का विवाह करवाया, तो उसका पति चोर और शराबी निकला। देवी ने उसे बहुत बार जमानत पर छुड़वाया। दूसरी बेटी की शादी करवाई। ईश्वर की कृपा से वह दामाद अच्छा और कमाऊ निकला। अब तक इकलौता बेटा जवान हो चुका था। देवी को पूरा विश्वास था कि बेटा कमाएगा, तो मेरे जीवन में भी कुछ आराम आएगा और मेरा जीवन का संघर्ष समाप्त हो जाएगा। लड़के को सुधारने की खातिर उसने लड़के का विवाह एक गरीब लड़की से करवा दिया। वह लड़की राजू के साथ 6 महीनों तक एडजस्ट करने की कोशिश करती रही और उसे कहती रही कि आप घर से निकलो और कुछ कमा कर लाओ। अभी तक बुढ़ापे में भी आपकी मां दूसरों के यहां खाना बना रही है। ऐसा कब तक चलेगा। लेकिन राजू के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। आखिरकार वह लड़की उसे छोड़कर चली गई। 

देवी अब तक दूसरों के घर में खाना बना रही थी और अब वह बहुत थक चुकी थी। उसने एक दिन अपने बेटे को कहा-“राजू, तू घर से बाहर कमाने नहीं जा रहा और तुमने पढ़ाई में भी मन नहीं लगाया तो अब तू घर बैठकर कम से कम कम कपड़े तो प्रेस कर सकता है।” 




देवी ने उसे एक प्रेस लाकर दी। राजू ने शुरू शुरू में लोगों के कपड़े जला दिए। बहुत से लोग उससे लड़ने और उसे मारने पीटने आ गए। उसकी मां ने ही उसे बचाया। राजू अपनी बहनों को अपने घर में कदम तक नहीं रखने देता था। देवी जहां पर खाना बनाती थी, वे लोग उसकी काफी मदद करते थे। त्योहार पर उसको नए कपड़े देते थे। देवी वह कपड़े अपने बेटे से छुपाकर पड़ोसियों के घर रखती थी और फिर अपनी बेटियों को दे देती थी। वह लोग देवी को खाना-पीना भी देते थे। 

हालातों से लड़ते हुए अब देवी की हिम्मत जवाब दे चुकी थी। उसने सब काम छोड़ दिए। अब वह घर पर ही रहती थी और राजू कपड़े प्रेस करता था। 1 दिन देवी बीमार पड़ गई। राजू ने उसे दवाई ले कर दी  या नहीं, किसी पड़ोसी तक को नहीं पता क्योंकि वह ना तो अपनी मां को घर से बाहर निकलने देता है और ना अपनी बहनों या किसी पड़ोसी को घर में घुसने देता है। कोई अगर देवी का हाल पूछने आता है तो वह कहता है कि तुम्हारा क्या मतलब, तुम अपने काम से काम रखो। 

अब उसके घर से बहुत बदबू आती है। किसी को नहीं पता कि देवी किस हालात में है। उसका बेटा उसे नहलाता धुलाता है या नहीं, उसे कुछ खिलाता पिलाता है या नहीं। एक दिन सारे पड़ोसियों ने उसके घर जाने की कोशिश की लेकिन उसने किसी को आने नहीं दिया। अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ईश्वर देवी के संघर्ष को समाप्त करें और उसे बुरे हालातों से निकालकर अपने चरणों में स्थान दे। 

गीता वाधवानी 

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