बड़ी जिज्जी – डा.मधु आंधीवाल

बड़ी जिज्जी ४.११” लम्बाई पीठ पर छोट सा कूबड़ था पर बाल तो भगवान ने थोक में देदिये थे । यही उनकी सुन्दरता थी । हम लोगों  का भरा पूरा परिवार था । सम्मिलित परिवार बहुत सारे भाई बहन थे। जिज्जी सबसे बड़ी थी ,अपने मां बाप की बहुत लाड़ली और हम सब बच्चों को धमकाने में बहुत होशियार पर गलतियो पर डांटने से बचाने वाली । धन का कोई अभाव ना था । बड़े पापा उनकी शादी के लिये लड़का ढूंढ रहे थे । वह चाहते थे परिवार उनके स्तर का ना हो पर लड़का उनकी बेटी को बहुत प्यार से रखे । बहुत ढूढ़ने पर परिवार भी मिला पैसा नहीं था पर जीजाजी बहुत अच्छे थे अच्छी नौकरी थी । जिज्जी की शादी बहुत धूमधाम से हुई । जिज्जी ससुराल चली गयी एक खालीपन सा घर में आगया ।

        समय अपनी गति से चल रहा था । शादी हुये बहुत समय निकल गया पर जिज्जी को मां बनने का सौभाग्य नहीं मिला । हम लोगो की भी शादियाँ होगयी । अब मिलना कम ही होता था ।  जब मायेके जाते तब ही सूचना मिल जाती थी । मां से पता लगा जिज्जी जीजाजी की दूसरी शादी करा रही हैं । बहुत धक्का लगा बहुत समझाया सबने कि किसी को गोद रख लो । वह नहीं मानी कहने लगी अपना खून ही होना चाहिए । मैं जिससे शादी करवाऊगी उसको सौत नहीं बहू बना कर लाऊंगी  और उन्होंने हट करके एक गरीब परिवार की लड़की से जीजाजी की शादी करा दी । बहुत खुश थी जैसे सारे जहां की जागीर मिल गयी हो । सब मेहमान लौट गये । अपने पति की दूसरी पत्नी को उन्होंने अपना सब कुछ सौंप दिया । एक रात वह पानी लेने उठी बराबर कमरे में से जब अपने पति की आवाज सुनी तो रुक गयी। जीजाजी अपनी नयी पत्नी से बोल रहे थे सुधा तुम्हे इस घर में लाने के लिये बहुत नाटक करने पड़े इससे तो शादी करना मेरी मजबूरी थी । मेरे पास पैसा नहीं था । वह तो इसके बच्चा ही नहीं हुआ और ये इसकी कमी तुम्हारे लिये वरदान बन गयी । जिज्जी ने सुना इतना बड़ा धोखा जिस पति को वह अपना सर्वस्व मानती थी उसने ही खेल रच डाला । 

    वह कमरे में आई रात भर रोती रही सुबह ही वकील को बुला कर तलाक के कागज तैयार कराये ।अपने नाम की जायदाद जो मायके से मिली थी उसको अपने मरने के बा्द बच्चो के स्कूल के लिये दान की घोषषा कर दी ।

स्वरचित —

डा.मधु आंधीवाल एड.

अलीगढ़ उ.प्र

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