जीवन में पति के साथ ही खुशी न ढूंढ पाई !!! – अमिता कुचया

आज मौसम भी खुशगवार हो गया काफी उमस के बाद मौसम में ठंडक आ चुकी थी।  उसने बालकनी से  देखा बाहर काफी लोग टहल रहे हैं ,उसका मन भी हुआ।

वो भी टहले।पर पहले उसे लगा कि  घर के काम पहले जरुरी है।वो कर लें। फिर उसने  देखा उसके पति ने सुबह से चाय पी ली है। अब तो नाश्ता बनाना है उसने मन ही मन सोचा चलो कल से घूमने जाऊंगी।वो साधारण सी रहने वाली महिला ही रही है। उसे दिखावा करना नहीं आता। उसके पति  मनोहर जी प्रतिष्ठित कंपनी में उच्च पद आसीन हैं। गीता छोटे शहर से होने के कारण बड़े शहर के तौर तरीके से अनभिज्ञ थी। उसे गिटर पिटर अंग्रेजी बोलना नहीं आता था। वह घरेलू महिला ही थी।सिलाई कढ़ाई करना उसे आता था। लगभग घर के हर काम में पारंगत थी। पर मनोहर जी को एक ऐसी पत्नी चाहिए थी जो ताल पर ताल मिलाकर  चले।पर गीता उन पर निर्भर रहने वाली घरेलू महिला ही थी।

मनोहर जी को उसकी खूबियां कभी नजर ही नहीं आती।वे उसके हर काम में नुक्स निकालते रहते उसे जो जिंदगी से मिला उसमें वो खुशी ढूंढ  नहीं पाई।

एक दिन की बात है उसने पति के हाथ में पार्टी का कार्ड देखा।तो  गीता जी ने उनसे कहा -कहीं पार्टी में जाना है क्या ? कब की पार्टी है!

तभी मनोहर जी ने कहा- “तुम कोई पार्टी में नहीं जाओगी । तुम्हें कोई तौर तरीका ही नहीं है । तुम्हें ले जाकर अपना मजाक नहीं बनवाना।” इतना सुनते ही वह उदास हो गई। मनोहर जी की बेरुखी भरे जवाब ने उसे अंदर तक तोड़ दिया था। जिंदगी का हर दिन  अच्छा ही हो वह जान चुकी थी।ऐसा नहीं हो सकता है।




अब उनकी कहीं भी जाने की इच्छा नहीं रहती।वो धीरे- धीरे शांत रहने लगी।उनकी बीच संवाद हीनता भी बढ़ने लगी। मनोहर जी अपने आफिस के काम में उलझे रहते।  वो अपने आप में ही खोई रहती। उन्हें दूसरों से बात करने में भी हिचकिचाहट होने लगी।  जब भी मनोहर जी को देखती तो वो  और सहम सी जाती। उन्हें लगता कहीं चूक न हो जाए। और अनजाने में ही कोई न कोई ग़लती कर बैठती।इसी तरह दिन की कही हुई बात  रात में भूल जाती।इसी कारण से उन्हें चार बात और सुननी पड़ती।खैर•••

एक दिन तो मनोहर जी ने कह डाला कि तुमसे तो  खाना भी बनाना नहीं आता। इतना बेस्वाद खाना बना  है , कि नमक, मसाले का कुछ पता ही नहीं, और  उन्होंने थाली  जोर से ही फेंक दी। और उन पर जोर से चिल्लाने लगे- “एक काम भी ढंग से नहीं होता। आजकल ध्यान  कहां रहता है जो खोई रहती हो।”

कुछ तो बोलो मुंह में दही जम गया है क्या?

इस तरह उनके नुक्स और गुस्सा के कारण वो तनाव में रहने लगी।वो कोई कालोनी वालों से बात करती न ही किसी के यहां उनका आना जाना हो रहा था। उसने आशा करनी  ही  छोड़ दी।वो अंदर ही अंदर टूट रही थी।तनाव का शिकार होने की वजह से चिड़चिड़ी हो रही थी। उनकी याददाश्त पर भी असर हो रहा था।अब मनोहर जी को अब उनकी चिंता होने लगी। जिंदगी से वह निराश हो चुकी थी।उसे लगता जिंदगी में कुछ नहीं बचा है।

वो जब भी बात करने की कोशिश करते ,वो चुप हो जाती । उन्हें लगता मुंह से कुछ का कुछ न निकल जाए।कब गुस्सा उन पर फट पड़े। इसलिए कम से कम बोलती।

उनके पति प्यार तो करते थे पर कद्र नहीं करते थे। इसी कारण गीता जी बेसुध सी रहने लगी।




उन्होंने  डाक्टर को भी दिखाया, पर दवाई गोली का कोई असर नहीं हो रहा था। वो परेशान होने लगे।  उनके पति हमेशा सोचते क्या करु, उन्हें समझ नहीं आ रहा था। कहां उनसे चूक हो रही है!

इस तरह उन्होंने दोस्त की सलाह से मनोचिकित्सक को दिखाया ,तब समझ आया कि चिड़चिड़ी क्यों हो रही है।

मनोचिकित्सक के  अनुसार मनोहर  जी के व्यवहार और प्यार से इनकी हालत में सुधार हो सकता है। यदि आप अपना व्यवहार पहले से हटकर करें।कभी -कभी तारीफ भी करें।ताकि वे  किसी बात से काफी हताश हो चुकी है।तो उनकी निराशा दूर हो जाए।और मनोबल बढ़ाने की कोशिश करें और देखें कि क्या बदलाव आ रहा है । इसकी आप मुझे रिपोर्ट करें।

कुछ ही दिनों में गीता का व्यवहार में परिवर्तन आने लगा। और पहले जैसे रहने लगी।

अब  मनोहर जी  उन्हें बाहर घुमाने ले जाने लगे। और प्यार से बात करने लगे। और कभी किसी से कोई तुलना ही नहीं करते।

फिर मनोहर जी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ कि मैं गीता पर बिना वजह किस तरह चिल्लाता था। हां मैं भी उसकी इस हालत के लिए जिम्मेदार हूं। अब कभी ऐसा उसके साथ व्यवहार नहीं करुंगा। जिससे मेरी गीता की ऐसी स्थिति हो।

फिर मनोहर जी मनोचिकित्सक का धन्यवाद किया कहा – “मेरी गुमसुम होती गीता में आपने नयी जान फूंक दी।मानो ऐसा लग रहा है जैसे गीता में नयी ऊर्जा का संचार हो गया है।

तब मनोचिकित्सक ने समझाया मेरी वजह से कुछ नहीं हुआ बल्कि आपके बदले व्यवहार की वजह से उनमें परिवर्तन आए हैं।

अब  जैसे दबी सी रहने वाली गीता पति के बदले व्यवहार की वजह  से सबसे घुलने मिलने लगी। उसकी आवाज में पहले जैसी भी खनक सी आ गई।जो उन्हें शादी के बाद महसूस होती थी। अब वो आत्मविश्वास से भर गई।इस तरह उनकी गृहस्थी भी खुशियों से भर  गई।

दोस्तों -घर परिवार में केवल पति पत्नी ही अकेले क्यों न हो, पर एक दूसरे को  प्यार और सम्मान न दे तो पत्नी भी हताश हो सकती है ,और तनाव का शिकार हो सकती है। इसी लिए जीवनसाथी को हमेशा सम्मान दे ,बार- बार बेइज्जत न करें। इससे परिवार में खुशियां तो प्रभावित होती ही है। साथ ही सामने वाला जीवनसाथी का मनोबल गिरता है।कभी दूसरों से न तुलना करें।न ही अपने जीवन साथी को बदलने की कोशिश करें।जो जिसका स्वभाव है उसे उसी रूप में स्वीकार करें।

दोस्तों- हम सब में कुछ न कुछ कमी  होती है।हर वक्त हम बार- बार चिल्ला कर कुछ बदल नहीं सकते। इसीलिए प्यार से समझाए। यदि पति पत्नी एक दूसरे को सम्मान दे। तभी जीवन की गाड़ी  में संतुलन हो सकता है।

दोस्तों -ये रचना कैसी लगी? कृपया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें और अपने विचार से अवगत कराए।साथ ही लाइक ,शेयर करने के साथ मुझे फालो भी करें।

धन्यवाद 

आपकी अपनी दोस्त 

अमिता कुचया

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