जीत लिया दिल – डॉ ऋतु अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

         “मीनल! यहीं आ जाओ, हम सब साथ ही खाना खाते हैं।”माधुरी, मीनल की सास ने पुकारा।

           “जी!” कहकर मीनल ने अपने खाने की प्लेट भी डाइनिंग टेबल पर रख दी पर न जाने क्यों उससे खाते नहीं बन रहा था।

            “खाओ न! क्या सोचने लगीं ?”माधुरी जी ने टोका तो 

बेमन से मीनल खाना खाने लगी।

           शाम की चाय मीनल ने फिर अपने कमरे में अकेले ही पी। माधुरी को समझ नहीं आ रहा था कि मीनल,उनसे एवं परिवार के अन्य सदस्यों से कटी-कटी क्यों रहती है जबकि कोई आपसी मतभेद भी नहीं है। उन्होंने इस बारे में अपने बेटे रोहित से बात की तो उसने भी इस संबंध में अपनी अनभिज्ञता जता दी तब माधुरी ने इस समस्या को वक्त पर छोड़ दिया।

          पति रोहित के साथ अकेले कहीं घूमने जाना हो तो मीनल खुशी-खुशी जाती पर अगर कभी पूरा परिवार कहीं जा रहा होता तो मीनल कुछ न कुछ बहाना बनाकर घर पर ही रुक जाती। इसे मीनल का प्राकृतिक स्वभाव समझकर घर में सब ने इस बारे में चर्चा करना बंद कर दिया था।

                यूँ मीनल घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ तत्परता से निभाती पर परिवार के साथ समय बिताने से बचती थी। इसी क्रम में मीनल के भाई-भाभी की वैवाहिक सालगिरह का न्योता आया तो सपरिवार मीनल अपने मायके पहुँची। मीनल के माता-पिता ने सभी का प्रसन्नतापूर्वक स्वागत किया पर मीनल के भाई-भाभी सिर्फ अभिवादन करके अपने कार्यों में व्यस्त हो गए। मीनल की भाभी अपने मायके वालों एवं मित्रों को अधिक तवज्जो दे रही थी बनिस्पत अपने ससुराल वालों के।

इस कहानी को भी पढ़ें:

डरावना मंजर –  माधुरी राठौर

             यह सब देखकर माधुरी विगत दिनों के मीनल के व्यवहार का कारण समझ गईं। उन्होंने निश्चय किया कि वह मीनल को अपनी भाभी की प्रतिमूर्ति नहीं बनने देंगी। इतना तो वे समझ चुकी थीं कि मीनल स्वार्थी नहीं है, बस अपनी भाभी के संकीर्ण व्यवहार के कारण ससुराल वालों के प्रति अपने व्यवहार में उदारता नहीं ला पा रही है।

         मीनल ने अपनी बेटी रितिका, बेटे रोहित एवं अपने पति जगदीश जी को कुछ समझाया। रात्रि भोजन के पश्चात सभी अपने घर लौट आए। अगले दिन जब मीनल भोजन लेकर अपने कमरे में गई तो पीछे-पीछे पूरा परिवार भी वहाँ आ गया। न चाहते हुए भी मीनल को सभी के साथ खाना पड़ा। अब अक्सर यही होता कि कोई न कोई हर समय मीनल के साथ समय व्यतीत करता। अगर मीनल बाहर जाने से मना करती तो और सब भी अपना प्लान कैंसिल कर देते। मीनल यह सब समझ रही थी पर मायके में भाई-भाभी के संकुचित व्यवहार के कारण मीनल के हृदय में संकोच की जो गाँठ पड़ गई थी, उसे खुलने में वक्त लग रहा था।

          आज मीनल की पहली वैवाहिक वर्षगाँठ थी। परिवारजन सेलिब्रेट करना चाहते थे पर मीनल सबके साथ जाने को राज़ी होगी या नहीं, यह सोचकर सब चुप थे।

             तभी सजी-धजी मीनल कमरे से बाहर आई और अपने सास-ससुर के पाँव छूकर कहा,”मम्मी जी! पापा जी! आज के दिन मैं चाहती हूँ कि हम सब एक साथ खाना खाने बाहर चलें।”

            यह सुनकर माधुरी ने मीनल को गले से लगा लिया और आशीर्वाद देते हुए कहा,” मीनल! तुम हमेशा खुश रहो और इस घर की लक्ष्मी बनाकर घर में भी खुशियाँ बिखेरो। आज मैं बहुत खुश हूँ।”

           “मम्मी जी! मैं भी आज बहुत खुश हूँ। पत्नी तो मैं विवाह होते ही बन गई थी पर बहू और भाभी तो आज बनी हूँ और यह सब आपके प्रेम और धैर्य के कारण ही संभव हुआ है वरना मेरी भाभी के—-।” मीनल के होठों पर हाथ रखते हुए माधुरी ने कहा,”जो बीत गया, उसे भूल जाओ और पत्नी, भाभी और बहू के रूप में अपनी नई भूमिका स्वीकार करो बेटी!”

            “अगर यह मेलोड्रामा ख़त्म हो गया हो तो खाना खाने चलें। मेरे पेट में तो चूहे खुद रहे हैं।” रितिका ने चुटकी ली तो सब हँस पड़े और मीनल ने रितिका को गले से लगा लिया।

           चारों ओर खुशियों की रोशनी जगमगा उठी। मीनल की आँखें कह रही थीं,”सासू माँ! आपने दिल जीत लिया।”

 

स्वरचित 

डॉ ऋतु अग्रवाल

 मेरठ, उत्तर प्रदेश

#”पत्नी तो कब की बन गई थी, पर बहू और भाभी आज बनी…”

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!