जीना इसी का नाम है – मधु वशिष्ठ 

आन्टी जी पड़ोस के घर में ही रहती थीं। 80 साल की उम्र में भी उन्होंने कोई काम वाली नहीं रखी थी। उनके बेटे और बेटी दोनों अमेरिका में रहते थे। आंटी और अंकल दोनों काॅलेज से रिटायर्ड थे। सुबह उठकर दोनों मिलकर घर की सफाई करते, फिर काफी देर तक पार्क में एक्सरसाइज करते। इसके बाद सब से बातचीत करते हुए ,घर आने के बाद कभी अंकल चाय बनाते कभी आंटी।

फिर उनकी दिनचर्या शुरू होती, अंकल लैपटॉप पर अपना काम करते और आंटी घर में ही कुछ करती रहतीं। पास की धोबी की लड़की को ही उन्होंने इतना अच्छा पढ़ाया कि वह अपनी क्लास में प्रथम आई। वह हमेशा कहती थी कि मैं आपके घर का काम कर दूंगी पर आन्टी अपना काम खुद ही करना पसंद करतीं थीं। लंच में भी एक फुल्का गर्म ,अंकल, आंटी के लियें बनाते थे और आंटी, अंकल के लियें। दोनों ही गर्म खाना खाते थे।

आन्टी जब भी मेरे पास आतीं मुझे कोई न कोई नई रैसिपी सिखाती थीं। मैं भी कुछ न कुछ बना के उन्हें जरूर दिखाती थी। किसी भी कीर्तन या संगीत समारोह में उनके गानों के बिना समा ही न बंधता था। कोई भी काम वाली को कपड़े छोटे करवाने हों या बड़े,  उनकी मशीन, उनका घर, उनका दिल सबके लिए खुला था। वह खुद भी कपड़ों को उनके नाप के कर देती थीं और उन्हें सिलाई सिखाती भी थी। अमेरिका में कई बार बच्चों ने बुलाया पर वो कुछ दिन रहकर वापस आ जाते थे। क्योंकि आंटी कॉलेज में भी अपने विभाग की हेड थी तो अनुशासनप्रियता उनकी आदत में ही शुमार था। दोनों पति पत्नी की पेंशन कि आय से वो  दोनों आराम से रहते थे।



मैंने आंटी को कभी गुस्सा होते हुए या कभी खाली बैठे नहीं देखा था। पर उस दिन आन्टी बहुत दुखी और परेशान लग रही थीं। मेरे पूछने पर लगभग रुआंसी सी होकर बोलीं ,कुछ औरतें क्या समझती हैं ,अगर उनका आदमी कमाता न हो, या परमात्मा न करें , दुनिया में न रहे, तो उनकी जिंदगी क्या हो? वह कमाता है और यह घमंडी औरतें, हर काम के लिए कामवाली रखकर ,किसी को भी अपमानित करने में अपना बड़प्पन समझती हैं। न इन्हें अपनी सेहत का ध्यान है न दूसरे के सम्मान का। सिर्फ पैसे हैं  इनके पास, वे भी न कमाने आते हैं, न बचाने।       

   मुझे मालूम है आंटी क्यों गुस्सा थी। अपनी आदत के अनुसार उन्होंने पड़ोस के बड़े घर के नालायक बेटे को अपना बच्चा समझ कर के बहुत अच्छे से पढ़ाया, और आज जब वह अच्छे अंक से पास हो गया तो उस घर की मतलबी मालकिन को अब आंटी की जरूरत नहीं थी। आंटी को देख कर उसने अपनी कामवाली से कहलवा दिया कि घर में अभी सब व्यस्त हैं, और आस पड़ोस में भी सब को यह और कह दिया कि यह आंटी सिर्फ दूसरों के घर में खाना खाने के लिए ही घूमती रहती है। हालांकि आंटी ने उनके पढ़ाई में नालायक बेटे को पढ़ाने में कभी दिन और रात भी नहीं देखा। उस समय वह बड़े घर की मालकिन अपने बेटे को पढ़ाने के लिए हर वक्त आंटी को बुलाती ही रहती थी। शायद यही कारण था कि उनका फेल होने वाला बेटा भी 80 परसेंट नंबर लेकर दसवीं में पास हुआ था।आंटी ने तो मुझे क्या, किसी को भी कुछ नहीं बतलाया होगा, पर क्या इतना मतलबी होना ठीक है?

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लेखिका : मधु वशिष्ठ 

 

 

 

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