• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

जी भर के रो भी ना पाये, जिम्मेदारियां निभाने में, – सुषमा यादव

 इंदौर के अपोलो अस्पताल में वेंटिलेटर पर लेटे हुए राज ने अपनी पत्नी मीनू को बेबसी और लाचारी भरी डबडबाई आंखों से देखा, वो कुछ कहना चाहते थे,पर कह नहीं सके,मीनू यानि मैं उनका आशय समझ गई, मैंने उनका हाथ अपने हाथों में लेकर उन्हें विश्वास दिलाया कि जो आप कहना चाहते हैं, मैं समझ रहीं हूं।

मैं आपकी अधूरी जिम्मेदारियां बखूबी निभाऊंगी। आपसे वादा है मेरा, भरोसा करिए मुझपर।

घर, बाहर, श्वसुर जी, बेटियों सब की ज़िम्मेदारी का वचन देती हूं।बस आप जल्दी से स्वस्थ हो जाईए। हम सबकी चिंता बिल्कुल भी ना करें,। मेरे इतना कहते ही उनकी आंखों से आंसू बहने लगे,हाथ की पकड़ ढीली होने लगी। शायद उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया था कि मैं वादा किया हुआ अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाऊंगी और उन्होंने अंतिम सांस सकून की लेकर आंखें बंद कर ली।

अचानक हुए इस हादसे से हम सब घबरा गए थे।

मैं और बेटियां अभी जी भर कर रोने भी नहीं पाये कि तीसरे दिन ही छोटी बेटी के मेडिकल कॉलेज से फ़ोन आया,हम आपके दुःख में शामिल हैं, बहुत ही दर्दनाक घटना हो गई है, पर आप हिम्मत और धीरज से काम लीजिए, अपनी बेटी को तुरंत वापस भेज दीजिए,उसका फाइनल एग्जाम होने वाला है, प्लीज़,आप उसका कीमती एक साल ख़राब मत होने दीजिए,।

यह सुनकर मैंने अपने आंसू पोंछ कर अपने मन को कड़ा करके बेटी को वापस जाने को कहा, वो बिलखती हुई मना करती रही पर मैंने उसे भेज दिया।




क्यों कि मुझे तो दिया गया वादा निभाना था। एक जिम्मेदारी तो हो गई,अब अपनी बड़ी बेटी और एक भतीजे के साथ अस्थि कलश लेकर इंदौर से इलाहाबाद संगम जाने के लिए ट्रेन में बैठी, इनके आफिस वालों ने साथ चलने को कहा, पर मैं तैयार नहीं हुई।

सतना में मेरे श्वसुर जी को लाकर मुझे सौंपा गया। अपने बहते आंसू पोंछ कर मैंने उन्हें दिलासा दिया।

वहां पहुंचते ही गांव के रिश्तेदारों के साथ संगम में अस्थि विसर्जन किया, पूजा पाठ करवाने के बाद हम सब अपने गांव आये।

,इकलौते बेटे के कारण अपने सगे कोई नहीं, परिवार के लोगों का स्वार्थ उभर कर सामने आ गया,अब तो ये यहां से बेच बाच कर चली जाएंगी,सब कन्नी काट गए, किसी तरह मायके पक्ष के लोगों की सहायता से तेरहवीं कार्यक्रम निपटाया।

बड़ी बेटी की नई, नई नौकरी थी उसे दिल्ली भेजा।

मैं वापस अपने कार्य स्थल लौट कर आई, वहां से छोटी बेटी के पास गई,उसे मेरे सहारे की बहुत जरूरत थी,।

एक महीने के बाद मैं वापस गांव गई, वहां से अपने पिता और श्वसुर को लेकर शहर आई ।

इसके बाद शुरू होता है संघर्ष मेरा। 




मैं जिस बैंक, पोस्ट आफिस में जाती, ज़बाब मिलता,नामिनी नहीं है, पैसे नहीं मिलेंगे।

आफिस वाले कहते,साहब की बीमा पॉलिसी कहां है, मैं कहती, मुझे नहीं मालूम, उन्होंने लिया था क्या,

घर का लोन चुकाना है, जबलपुर जाना होगा, आपको ज़मीन की रजिस्ट्री लाना है। साहब ने बहुतों को काफी रुपया उधार दिया है, मैंने कहा,मुझे नहीं बताया गया।

आपको बीमा राशि नहीं मिल सकती, आपका नाम तो इसमें नहीं है, जी ये मेरा घर का नाम है, नहीं हम कैसे मान लें,उनकी दो पत्नी हुई तो।

गांव के पोस्ट आफिस में भी नामिनी नहीं।

, मैं बहुत ही व्यथित और निराश हो गई, आप इतने बड़े अधिकारी होते हुए भी इतनी बड़ी गल्तियां कैसे कर गए। घर में बिलख बिलख कर रोती, बाहर सड़कों पर धूल फांकते सारी परेशानियां एक एक करके दूर किया, कभी अकेले तो कभी इनके आफिस वालों की मदद से।

बीच बीच में छोटी बेटी को एम,डी का एक्जाम दिलाने भी जगह जगह ले कर जाती रही।

बड़ी बेटी की शादी बड़े धूम-धाम से किया। छोटी बेटी दिल्ली के अस्पताल में आ गई।

पहले श्वसुर जी खतम हुए,दो बार अस्पताल में भर्ती कराया, नौकरी करते हुए अस्पताल, घर और स्कूल की ज़िम्मेदारी निभाई।

श्वसुर जी का दाह संस्कार गंगा जी में किया, तेरहवीं निबटाई।

अब मैं भी रिटायर्ड हो गई, एक दिन अचानक पिता जी भी साथ छोड़ कर अकेले कर गए। बेटियां विदेश में हैं, मैंने पिता जी का भी गंगा जी में दाह संस्कार किया,उनकी भी सबके मना करने के बावजूद भी तेरहवीं,हवन पूजन संपन्न कराया।




गांव जाकर अपनी जमीन,खेत मकान सब बेच कर वापस आई ‌।

भयंकर विरोध और बाधाओं,धमकी के बावजूद निडर होकर सब कुछ निबटा दिया,अब मैं सुकून की सांस ले सकतीं हूं।

आज मैं अपने पति की तस्वीर के आगे हाथ जोड़ कर खड़ी हूं,राज,आपकी अधूरी जिम्मेदारियां जो मुझे बिना कहे,सूनी आंखों से सौंप गये थे, वो आपकी छोड़ी हुई अधूरी सारी जिम्मेदारियां मैंने पूरी कर दी।

मैंने अपना वादा,अपना वचन पूरी

ईमानदारी से निभाया।

अब बस एक जिम्मेदारी और बची है, छोटी बेटी की शादी,उस कोशिश में भी मैं लगी हूं।

अब मेरी जिम्मेदारी मेरी बेटियां संभालेंगी, और हां भगवान को भी मेरी जिम्मेदारी लेना पड़ेगा।

,,इन सबकी जिम्मेदारियों ने तो मुझे जी भर कर रोने भी नहीं दिया। अब कभी कभी याद करके आपको बहुत रोती हूं।

पर आप ख़ुश भी बहुत होंगे कि जो मीनू नौकरी के अलावा घर से बाहर पैर नहीं रखती थी,सारे काम बड़ी ही आसानी से सुलझा ली है।

आपको भी मुझ पर गर्व होता होगा ना, जैसे बेटियों को, दामाद जी को, और मेरे सभी हितैषियों को होता है।

मैं अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा गई। शायद आपकी शक्ति से, और भगवान की प्रेरणा से।

आप सबसे निवेदन है कि जो गल्तियां मेरे पति ने और मैंने की है कृपया आप नहीं करेंगे।

पत्नी को भी अपने पति से सब जानकारियां लेनी चाहिए और पति को भी अपनी पत्नी से सब बातें शेयर करना चाहिए। वरना जाने वाले तो चले जाते हैं, पीछे अपनों को बहुत भुगतना पड़ता है।




मैंने ये गल्तियां नहीं की,सब कुछ बेटियों के सामने लेखा,जोखा रख दिया है,अब कभी मौत भी आए तो शांति और सुकून से उसका सामना करूंगी।।

शायद मेरी इस आपबीती से कुछ लोगों को सबक मिले।

#जिम्मेदारी

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!