जैसी करनी वैसी भरनी – उमा वर्मा

सुबह से किसी काम में मन ही नहीं लग रहा था ।न जाने क्यो बार बार रोने का मन कर रहा था ।दोपहर का भोजन समाप्त कर के लेटी ही थी कि अजय का मोबाइल बज उठा ।अंतिम शनिवार के कारण अजय आज घर में ही थे।” कब,कैसे?” अजय ने कहा तो मै चौंक गयी।मुझे लगा जरूर कोई अनहोनी हो गई है ।फोन पटना से था ।संदीप भैया नहीं रहे,राहुल का फोन है।अजय ने संक्षेप में कहा ।” जैसी करनी, वैसी भरनी “। मन में उठे विचार को मैंने झटक दिया और वहां जाने की तैयारी करने लगी।अजय ने जाने की ब्यवस्था तुरंत कर दी।मा बाबूजी तो बहुत पहले ही गुजर चुके थे ।तभी से मायके से नाता ही खत्म हो गया था ।संदीप भैया चचेरे भाई थे तो कभी कभार मिलना हो जाता था ।अम्मा बताती  थी कि  वह पेट में थे तभी तभी छोटे काका चल बसे थे ।काका के गुजरते ही छोटी काकी ने लोगों के कहने में आकर घर और जमीन का बंटवारा कर लिया था ।बाबूजी को बंटवारा सहन नहीं हुआ और वह भी सदमे से चल बसे थे ।उनके जाने के साल भर बाद रोती कलपती अम्मा भी दुनिया से चली गई ।कुछ बचा ही कहां था मायके के नाम पर ।शायद अंतिम बार जाना हो।राहुल भी तो किसी बड़े शहर में रहने लगा है शायद ।छोटी काकी के लाड़ प्यार ने कुछ अधिक ही बिगाड़ दिया था भैया को ।वे जो कहते वही होता ।पढ़ाई लिखाई से कोई वास्ता नहीं था उनका।बस दिन भर दोस्तो के साथ आवारा गरदी करते ।किसी  तरह रिश्वत देकर हाई स्कूल पास कर गये थे ।दिनभर घूमना, सिनेमा, शराब और जूए की लत लग गई थी ।




काकी ने सोचा ब्याह हो जायेगा तो सुधर जायेगा ।यही सब सोच कर उनहोंने एक गरीब घर की सीधी सादी कन्या से उनका विवाह करा दिया ।भाभी देखने में साधारण थी अतः भैया को नापसंद थी।उनके पिता दहेज के नाम पर हाथ जोड़ कर खड़े हो गए थे ।कन्या चाहे जितनी भी अच्छी हो, गुणवान हो पैसे के अभाव में कोई गुण नहीं रह जाता ।बस तभी से काकी और भैया की त्योरियां चढ़ी रहती उनपर ।भाभी किसी से शिकवा शिकायत नहीं करती ।बस सुबह उठने से लेकर रात तक सारे काम निबटा देती।अंत में सोने से पहले सास के पैरों में तेल मालिश कर देती ।उसके बाद ही सोने जाती ।तबतक भैया सो चुके होते।पति पत्नी का कोई सुख भाभी जान पाती ,तभी एक रात हल्ला हो गया कि  वे किसी के साथ भाग गई ।मुझे तब समझ में नहीं आ रहा था कि सबकुछ ठीक ही था तो वे भागी क्यों? बहुत दिनों के बाद जब मैं बड़ी हुई तो पड़ोस  की दादी ने बताया था कि वे भागी नहीं थी।बल्कि सोते हुए में चुप से उठा कर बोरे में बंद करके, लाठी से पीट पीट कर उनकी हत्या की गई थी ।और सबसे कहा गया था कि उनका दिमाग शुरू से ही खराब था।इसलिए पागलपन में ही वह भागी थी।दहेज न लाने की इतनी बड़ी सजा? संदीप भैया इतने क्रूर कैसे हो सकते हैं ।तभी से मेरे मन में उनके प्रति सम्मान नहीं रह गया था ।काल चक्र घूमते देर नहीं लगती ।दो वर्ष बीत गए ।फिर से लड़की देखने का  काम शुरू हो गया ।इस बार भाभी सुन्दर मिली और साथ में दान दहेज भी पूरा मिला ।लेकिन आते के साथ  भाभी ने अपना सामान समेट लिया ।और काकी को भी दस बात बोल देती।




घर का सारा काम अब काकी के उपर था ।भाभी देर तक सोती ।और उठकर अपने कमरे में खाना खा लेती।रोज रोज भैया को तंग करती कि कहीँ बाहर नौकरी खोजे ।यहां उनका दम घुटने लगा है ।लाचार भैया दिल्ली चले गये और वही एक फैक्ट्री में लग गये ।काकी गांव में अकेली हो गई ।फिर राहुल का जन्म हुआ तो काकी को पोते को देखने की लालसा हुई ।बोली ” बेटा, मुझे भी ले चलो।पोते को देखने का मन है ।” हाँ, अम्मा, इस बार जरूर ले जाउँगा।” भाभी की सख्ती से भैया डरते रहे।भैया बीच बीच में आकर अम्मा से मिल लेते और अगले बार ले जाने का दिलासा दे देते ।लेकिन वह दिन कभी नहीं आया ।अब राहुल बड़ा हो गया था ।उसकी शिक्षा भी पूरी हो गई तो उसी की कम्पनी के मैनेजर की बेटी से ब्याह तय हो गया ।फिर धूम धाम से बड़े घर की बेटी राहुल की पत्नी बन गई ।उधर काकी का दिमाग खराब रहने लगा ।रोज दरवाजे पर बैठ कर रट लगाती ” मेरा बेटा आ रहा है, मुझे ले जाने ।मुझे रानी के तरह रखेगा ।बहुत बड़ा आदमी बन गया है वह ।और मैंने पोते को भी नहीं देखा है ।अब उसकी भी बहू आ गयी होगी ।कैसी होगी वह? गांव के लोग काकी को खाना खिला देते वर्ना भूखी ही सो जाती।




और फिर एक दिन खबर आई कि काकी अपने कुएँ में गिर गई और मर गई ।संदीप भैया को खबर मिली तो आकर श्राद्ध निबटा दिया ।भाभी भी साथ आई थी ।कभी बहुत कठोर मिजाज की भाभी एक दम शान्त हो गई थी ।राहुल की बहू उनसे भी तेज थी।अपनी अमीरी का रोब हमेशा दिखाती थी।भैया भाभी को अम्मा के साथ किए बर्ताव का पछतावा होता लेकिन अब समय बहुत आगे भाग गया था ।बहू ने साफ कह दिया कि वे अब गांव चले जायें ।भैया रिटायर भी कर गये थे ।सारा पैसा राहुल की शिक्षा और वहां घर बनाने में लगा दिया था तो अब हाथ खाली हो गया ।खाली हाथ को बहू बर्दाश्त नहीं कर पायी और वे गांव आ गये।फिर एक दिन भाभी भी पानी भरते हुए  कुएँ में गिर गई और खत्म हो गई ।शायद काकी के आत्मा का श्राप रहा हो।अब संदीप भैया अकेले हो गये थे तो राहुल अपने साथ लिवा गया ।कोई चारा भी नहीं था ।रोज भोजन के साथ चार बात बहू सुना देती।” शहर में अपना ही खर्चा चलना मुश्किल होता है ।उपर से इनकी बीमारी? मुझसे तो सेवा नहीं होगी ।ऐसा करो इनको गांव भेज दो।वहां बहुत मिल जायेगा सेवा करने के लिए ।संदीप भैया ने सुना तो उसी दिन जब राहुल आफिस गया हुआ था तभी अपना थैला लेकर निकल पड़े ।एक सप्ताह पहले ही तो आये थे ।और पानी भरते हुए कुएँ में गिर गये।अपने किए का फल कभी न कभी तो भोगना ही पड़ता है कुएँ में ही उनके प्राण निकल गये थे ।और आज राहुल का फोन मन को बेचैन कर गया ।मुँह से निकल गया ” जैसी करनी वैसी भरनी ” शायद मेरा जाना अंतिम बार हो ।मायके से लगाव ही खत्म हो गया था ।” 

उमा वर्मा, नोएडा ।” स्वरचित, अप्रसारित व मौलिक रचना ।

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