उस पर सिर्फ बहू का टेग नहीं लगा है  – पुष्पा जोशी

‘बेटा सुधा रसोई में जाकर भाभी के काम में मदद कर, वह अकेली है, मुझसे आज कुछ करते नहीं बन रहा है’.मीना जी ने कराहते हुए कहा.कल बाथरूम में उनका पैर फिसल गया था और कमर में बहुत दर्द था.सुधा बोली- ‘तो आपसे किसने कहा काम करने के लिए, भाभी है ना वो सब कर लेगी, आखिर इस घर की बहू है.’ ‘ और अगर तू मदद कर देगी तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा, आज नागपुर से तेरे मामा-मामी और मासी, बच्चे सब आने वाले है, काम भी ज्यादा है.मॉं मैंने कह दिया ना कि मुझसे नहीं होगा, आज रविवार है मुझे आराम करने दो.’ और कितना आराम करेगी ८ बज गए हैं.बेचारी श्रुति  ५ बजे से उठी है, आज तो मैं भगवान की पूजा भी नहीं कर पाई, वह भी उसने की.’  मीना जी ने देखा सुधा चिकना घड़ा है उस पर उनकी बातों का असर ही नहीं हो रहा है, तो उन्होंने कमर का पट्टा ठीक से बांधा और धीरे-धीरे रसोई में गई, और पूछा बेटा ला सब्जी मुझे दे दे मैं साफ कर देती हूँ.श्रुति ने उन्हें सहारा देकर बिठाया और कहा मम्मी जी आपकी कमर में दर्द है, आप क्यों आई. आराम कीजिये.पर बेटा इतना सारा काम है और तू अकेली सब कैसे…..’    ‘आप चिंता मत करो मम्मीजी! मैं सब कर लूँगी और जहाँ समझ में नहीं आएगा आपसे पूछ लूंगी, मैं अकेली कहाँ हूँ आपका आशीर्वाद है ना मेरे साथ.’ ‘वह तो हमेशा तेरे साथ है मगर…’,  ‘ मगर…. वगर…. कुछ नहीं आप पलंग पर बैठ कर आराम  कीजिये. श्रुति उन्हें उनके पलंग तक छोड़कर आई.




मीना जी सोच रही थी धन्य है इसकी माँ जिसने अपनी बेटी को इतनी अच्छी शिक्षा दी.और एक मैं हूँ अपनी बेटी को कुछ नहीं सिखा पाई, बी.ए. फाइनल में पहुँच गई है, हर बार समझाती हूँ पर इसपर मेरी किसी बात का असर नहीं होता.पता नहीं किस मिट्टी की बनी है. अपनी भाभी की जरा भी दया नहीं देखती, पता नहीं ससुराल में कैसे निभेगी.यह सोच कर उन्होंने एक लम्बी सॉंस ली.तभी राजेश ने कहा – ‘मॉं मामा का फोन आ गया है वे स्टेशन पहुँचने वाले, मैं उन्हें लेने जा रहा हूँ.’ ठीक है बेटा गाड़ी सावधानी से चलाना.इसे माँ की टोका टोपी नहीं उनकी अपने बच्चों के प्रति चिंता और प्यार कहते हैं. राजेश उनकी भावनाओं को समझता है, और उनके दिए संस्कार को मान देता है.वह बोला ‘ठीक है माँ मैं उन्हें लेकर आता हूँ.मेहमान दो तीन दिन घर पर रूके.श्रुति ने उनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं रखी.स्वादिष्ट नाश्ता, भोजन, समय- समय पर चाय. उनके सोने बैठने की उत्तम व्यवस्था, मीठी बोली,से उसने सबका मन जीत लिया.सब उसी की तारीफ कर रहै थे.सुधा को यह बात बहुत अखर रही थी.उनके जाने के बाद एक दिन वह अपनी माँ से बोली -‘वे सब, बस भाभी की तारीफ कर रहै थे, वे घर की बहू है,तो उन्हें तो काम करना ही चाहिए ना, कोई  नवाई नहीं कर दी.’  मीना जी ने कहा  ठीक है वह बहू है उसको काम करना चाहिए, और उसने तो काम करके अपने आप को सिद्ध भी कर दिया.तू क्या करेगी, कभी रसोई  मे जाकर एक दिन भी पूरा काम सम्हाल कर देख और अपनी जिव्हा पर भी नियंत्रण रखना, बोली मीठी रखना.तब तुझे मालुम पढ़ेगा.’  सुधा बोली- ‘पर माँ मैं क्यों काम करूँ यह मेरा मायका है और भाभी का ससुराल.वे यहाँ की बहू है.’  मीना जी के धैर्य का बांध टूट गया था, वे उसे समझाते-समझाते थक गई थी.उन्होंने जोर से कहा-‘उस  पर कोई टेग नहीं लगा है, कि वह सिर्फ बहू है, वह भी किसी के घर की बेटी है.वह मुझे बेटी जैसी प्यारी है.और न तुझ पर कोई टेग लगा है कि तू सिर्फ बेटी है, तू भी किसी के घर की बहू बनेगी. अपने आचरण सुधारले  वरना मुझसे बात करने की जरूरत नहीं है, अब मैं थक गई हूँ.’उसके बाद मीना जी ने सुधा से बोलना कम कर दिया.




वह समय भी आया जब सुधा की शादी हुई, वह भी किसी के घर की बहू बनने जा रही थी. बिदाई के समय उसने सबके पैर छूकर आशीर्वाद लिए.मीना जी की रूलाई फूट रही थी, मगर उन्होंने बेटी को शिक्षा देने के लिए अपने दिल को कड़ा कर लिया.जब उसने माँ के पैर छूए तो वे कुछ नहीं बोली.सुधा ने कहा ‘ माँ क्या मुझे बिना आशीर्वाद दिए बिदा करोगी? ‘ मीना जी ने कहा-‘ मेरा आशीर्वाद चाहिए तो मुझसे एक वादा करो.’  ‘वह क्या माँ?’

सुधा जी ने कहा तुम अपनी भाभी को सिर्फ इस घर की बहू नहीं समझोगी, वह इस घर का अभिन्न अंग है, उसने पूरे परिवार को सहेज रखा है, जब भी यहाँ आओ  प्यार से उसके हर काम में उसकी मदद करो,आज मैं हूँ, कल को मेरी आँखें बंद हो जाएगी तो मेरी बहू अकेली रह जाएगी,हमेशा उसका साथ देना.और वह भी तुम्हारे हर सुख- दु:ख में तुम्हारे साथ रहैगी उस पर मुझे पूरा विश्वास है.श्रुति की ऑंखें बरस रही थी, इतना प्यार और विश्वास तो सिर्फ माँ दे सकती है.सुधा कुछ कहती उससे पूर्व श्रुति ने आगे बढ़कर उसे दिल से लगा लिया.दोनों की ऑंखों से अश्रु बह रहै थे, सुधा ने भाभी से माफी मांगी तो उसने, उसके उसके मुंह पर हाथ रख दिया.सुधा ने कहा ‘माँ !अब आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’ माँ ने बेटी को आशीर्वाद दिया, और जो ऑंसू बाहर आने के लिए कुलबुला रहै थे, बरस पड़े आखिर बेटी की बिदाई थी, वह एक बेटी से बहु बनने के सफर पर जा रही थी.

#बहू 

प्रेषक-

पुष्पा जोशी

स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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