इतना आसान नहीं है उसे भूल पाना – संगीता अग्रवाल 

” स्नेहा कहां हो तुम …स्नेहा …!” निकुंज अपनी पत्नी को आवाज लगाता हुआ घर में दाखिल हुआ।

” लो तुम यहां बैठी जाने कहां गुम हो और मैं तुम्हे घर भर में ढूंढ रहा हूं !” निकुंज पत्नी को बालकनी में गुमसुम बैठे देख बोला।

” आ गए आप … मैं चाय लाती हूं !” निकुंज की आवाज सुन स्नेहा अपने आंसू पोंछती हुई बोली।

” तुम रो रही हो … स्नेहा क्यों नही भूल जाती तुम उसे कब तक खुद को यूं सजा दोगी !” निकुंज पत्नी के दोनो कंधे पकड़ बोला।

उसे भुलाना मेरे बस में नहीं निकुंज …नही भुला सकती मैं उसे मेरे कारण मेरी….!” ये बोल स्नेह फूट फूट कर रो दी तो निकुंज ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

” बस स्नेहा मत दर्द दो खुद को शायद हमारी किस्मत में यही था !” निकुंज ये बोलते बोलते खुद भी रो दिया।

अब तक की कहानी से आप ये तो समझ गए होंगे कि निकुंज स्नेहा को किसी को भूलने को कह रहा है पर क्या ? ये सवाल आपके जेहन में जरूर आ रहा होगा। तो चलिए आपको इस स्वाल का जवाब देने से पहले स्नेहा और निकुंज के अतीत में ले चलते हैं।

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स्नेहा और निकुंज की चार साल की एक प्यारी सी बेटी थी मायरा दोनों अपनी बेटी पर जान छिड़कते थे। मायरा थी भी इतनी प्यारी कि पूरे मोहल्ले की लाडली थी वो। अपनी तोतली जबान में जब वो बातें करती तो लगता था मानो कोयल कूक रही है। आज से दो साल पहले स्नेहा फोन पर अपनी सहेली से बात कर रही थी।




” मम्मा मम्मा मुझे साड़ी पहनाओ ना मुझे मम्मा बनना है !” मायरा स्नेहा के पास आकर बोली उसके हाथ में स्नेहा की साड़ी थी।

” बेटा बाद में अभी मम्मा बात कर रही हैं ना ..आप अपने टॉयज से खेलो !” स्नेहा बेटी से बोली।

” नहीं मम्मा मुझे साड़ी ही पहननी है !” मायरा तोतली जुबान में ज़िद करती बोली।

” बेटा आप बहुत जिद्दी होते जा रहे हो …जाओ अभी टॉयज से खेलो।” स्नेहा थोड़े गुस्से में बोली।

मायरा मम्मी का गुस्सा देख वहां से हट गई और कमरे में आ गई। उसने टीवी खोल कार्टून लगाए पर उसमे उसका मन नहीं लगा क्योंकि उसे तो साड़ी पहननी थी। टीवी को चलता छोड़ वो ड्रेसिंग के आगे आकर  खुद से साड़ी पहनने की कोशिश करने लगी अब बाल मन की जिद वो तो उसे पूरी करनी ही होती है…खैर उल्टी सीधी साड़ी लपेट वो ड्रेसिंग के आगे खड़ी हो मम्मी के मेकअप के सामान में से मेकअप करने लगी पर उसकी साड़ी का पल्लू बार बार गिर रहा था। अचानक उसे ख्याल आया मम्मी तो साड़ी में एक खूबसूरत सा पिन लगाती हैं जिससे साड़ी गिरती नहीं उसने इधर उधर देखा उसे ड्रेसिंग के सबसे ऊपर वाले ड्रॉल में वो पिन झांकता नजर आया अब मायरा तो छोटी सी वो भला पिन तक कैसे पहुंचे। उसने ड्रेसिंग के पास रखा पहियों वाला स्टूल खिसकाया और उसपर चढ़ने लगी जिससे वो पिन तक पहुंच जाए। काफी कोशिश के बाद भी वो पिन तक नही पहुंच पा रही थी क्योंकि उसकी साड़ी उसे परेशान कर रही थी। उसने साड़ी के पल्ले को कई बार अपने गले में लपेट लिया जिससे वो लटके ना।

 

इधर स्नेहा को काफी देर हो गई बात करते हुए तो उसने अपनी सहेली को बाय बोल फोन काटा और मायरा के पास अंदर आई।




अंदर आते ही उसकी चीख निकल गई ….।

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” मायरा बेटा मायरा क्या हुआ तुझे उठ देख मम्मा तुझे साड़ी पहनाने आई है उठ मेरी बच्ची !” स्नेहा पागलों की तरह बच्ची का गाल थपथपाने लगी पर बच्ची नहीं उठी उसकी चीख सुनकर आस पास के लोग इकट्ठा हो गए। सब बच्ची को उठा अस्पताल में भागे पर…. होनी को कुछ और ही मंजूर था मां पापा की जान मोहल्ले भर की लाडली आज बेजान पड़ी थी।

” सॉरी निकुंज जी दम घुटने की वजह से यहां आने से पहले ही बच्ची की मौत हो गई थी !” डॉक्टर ने आकर ये दर्दनाक खबर दी।

क्योंकि मामला संदिग्ध था इसलिए डॉक्टर ने पुलिस को भी खबर दे दी थी। पुलिस ने सबसे पूछताछ की घर पर आकर छानबीन की उससे ये नतीजा निकल कर आया कि साड़ी ड्रेसिंग में कहीं अटक गई होगी और पहिए वाला स्टूल खिसक गया होगा गले में साड़ी लिपटी होने के कारण वो कसती चली गई और बच्ची का दम घुट गया। हो सकता है बच्ची के गिरने से आवाज जो हुई वो टीवी के शोर के कारण स्नेहा तक नही पहुंची।

स्नेहा इस हादसे का जिम्मेदार खुद को मानती है एक किस्म से वो खुद को बेटी की हत्यारिन समझती है क्योंकि उसे लगता है ना वो फोन में लगी होती ना ये हादसा होता।

दोस्तों हादसे जिंदगी का हिस्सा है पर कुछ हादसे हमारी हल्की सी लापरवाही से घट जाते, जो जिंदगी भर का मलाल दे जाते हैं। ये एक सत्य घटना पर आधारित कहानी है। मैं यहां किसी को गलत नहीं ठहराऊंगी क्योंकि जो हुआ अनजाने में हुआ। ना ही मैं आप लोगों को डराना चाहती हूं। पर सभी माता पिता को सावधान जरूर करना चाहूंगी अगर आपके घर में छोटा बच्चा है तो उसके खेलों पर निगाह रखिए ज्यादा देर उन्हे अकेला मत छोड़िए। फोन पर लंबी बात तभी करिए जब बच्चा सोया हो , स्कूल गया हो या घर के किसी और मेंबर के साथ हो। बच्चे जिद्दी और शैतान दिमाग होते वो कब क्या कर जाएं हमे पता भी नहीं होता और जब तक हमें पता चलता है कई बार हादसा हो चुका होता है।

 

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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