इसका क्या दोष? – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“मां,अब मैं इस औरत के साथ एक दिन भी नहीं रह सकता।मैं दूसरे घर में शिफ्ट हो रहा हूं आज ही।पापा से नहीं कह पाऊंगा मैं।तुम बता देना,जब बाजार से आएं।उनसे पूछ लेना कि अपने बेटे के साथ रहेंगे या इस घर में।मेरी तकदीर ही फूटी निकली।मेरी वजह से तुम लोगों को भी जाते जी नर्क झेलना पड़ रहा है।

“,चालीस साल के बेटे,संदीप को रोते हुए पहली बार देखा दीपाली ने।हांथ पकड़कर समझाया”नहीं-नहीं बेटा,ऐसा सोचना भी मत।तू ही नहीं रहेगा तो हम क्या करेंगे इस घर में?रिमी(बहू)नासमझ है तो क्या तू भी बचपना करेगा।कम से कम गुड्डी के बारे में तो सोच।

उसे क्या कहूंगी मैं?”दीपाली की बात समाप्त होने के पहले ही संदीप ने उनका हांथ पकड़ कर अपने सर पर रख कर कहा”तुम्हें मेरी कसम है मां,जाने दो मुझे।”

दीपाली ना जाने साल में कितने व्रत -उपवास करती थी,अपने इकलौते बेटे के लिए।आज उसकी कसम कैसे तोड़ सकती थीं?संदीप ने टैक्सी बुला ली थी,जो दरवाजे पर आकर रुकी हुई थी।एक सूटकेस में अपना सामान ठूंसकर,अपना लैपटॉप वाला बैग लेकर संदीप जा रहा था।एक ही शहर में एक अलग घर में रहेगा अब उनका इकलौता बेटा।हे भगवान!यह दिन भी दिखाना था आपको,इस, उम्र में।

आंचल मुंह में दबाकर धार-धार रोती हुई दीपाली को पता ही नहीं चला कब संदीप के पिता बाजार से आ चुके।एक हांथ में पूजा की सामग्री (फल,फूल, आम की पांच पल्लवी,मीठा,)और दूसरे हांथ में सब्जियों से भरा थैला लेकर हांफते हुए पति ने सामान नीचे फेंका और दीपाली को जोर से झिंझोड़ कर पूछा”क्या हुआ?क्यों रो रही हो ऐसे?

कुछ बुरी खबर आई है क्या?अरे!कुछ तो बताओ।संदीप!ओ संदीप!रिमी,रिमी,कहां हो तुम लोग?देखो तो आकर मां को क्या हो गया है?”दीपाली पति को संदीप और रिमी के कमरे की ओर बढ़ते देखकर लपककर सामने आ गई और रोते हुए कहा “किसे बुला रहे हो?संदीप नहीं है कमरे में।चला गया वह घर छोड़कर।अब नहीं आएगा यहां।

चलो हम भी चलते हैं उसी के पास।शांतनु के फ्लैट में रहने गया है।शांतनु(संदीप का दोस्त)विदेश‌ गया है दो साल के लिए।उसी के घर रहने गया है हमारा संदीप।कुछ करो तुम।या तो उसे वापस ले आओ,या तो चलो वहीं।हाय भगवान!हमारी तो तक़दीर ही फूट गई।यह दिन देखने के लिए ही कलकत्ता में घर लिया था क्या हमने?”

दीपाली की बातें सुनकर सुधांशु जी निस्तेज होकर सोफे में बैठ गए और बोले”तुम्हारे बेटे ने सोच समझकर ही यह फैसला लिया होगा दीपा।हम कहीं नहीं जा सकते इस घर को छोड़कर।””

“क्यों ?क्यों नहीं जा सकते हम?जिस लड़की ने हमारी ये दुर्दशा की,क्या हम उसके लिए पड़े रहेंगे यहां?”

सुधांशु जी ने पत्नी को समझाया”जिस लड़की की बात तुम कर रही हो ना दीपा,वो हमारी पोती (गुड्डी)की मां भी है।रिमी के बिना गुड्डी रह नहीं पाएगी। जैसे तुम तड़प रही हो अपने बेटे के लिए,क्या तुम चाहोगी रिमी भी तड़पे?कानूनी कार्यवाही यदि संदीप करना चाहे तब देखा जाएगा।अभी हम अपनी पोती और जवान बहू को इतने बड़े घर में छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे।”

“उफ्फ!!!इस घर में छुट्टी के दिन भी चैन‌ से सोना नसीब नहीं है।क्या हुआ मां?आपकी पूजा जल्दी खत्म हो गई या शुरू नहीं हो पाई?कौन सा बखेड़ा खड़ा कर दिया आप दोनों ने सुबह-सुबह?”बहू रिमी की कर्कश आवाज सुनकर दीपाली भी चिल्लाते हुए बोलीं”हमने कोई बखेड़ा नहीं खड़ा किया है।तुम जो लगातार प्रताड़ित कर रही थी ना संदीप को,आज वह घर छोड़कर चला गया है।

तुमसे तंग आकर जा चुका है वह।तुमसे शादी करना पाप हो गया उसका सबसे बड़ा।तब कितना समझाया था मैंने और बाबा ने ,कहां माना वह।तुमने जीते जी मार दिया उसे।”

सुधांशु जी दीपाली को चुप करने के लिए बोलने लगे,तभी रिमी दहाड़ते हुए बोली”हां-हां, आपको तो हमेशा से मेरी ही गलती दिखती है।आपका बेटा तो दूध का धुला है ना।उससे शादी करके मेरी तकदीर फूट गई।पापा ने मुझे तभी समझाया था कि ये लोग हमारे स्टैंडर्ड के नहीं हैं।मेरी ही मति मारी गई थी।

भिखमंगे से शादी करना मुझे ही भारी पड़ा।अब तो पापा भी नहीं हैं।एक बात कान खोलकर सुन लीजिए और अपने बेटे को भी बता दीजिएगा।अगर उसने सोचा है कि मैं तलाक देकर उसे आजाद कर दूंगी,तो ऐसा कभी नहीं होगा।उसकी जहां मर्जी वहां रहे।गुड्डी मेरे साथ ही रहेगी।मैं रोज अपने काम पर जाऊंगी।अब यह आप लोगों पर है,गुड्डी की देखभाल आप करेंगे या मैं किसी हॉस्टल में बात करूं?”

रिमी की जली कटी बातें सुनकर दीपाली को हैरानी नहीं हुई।यह लड़की कुछ भी कर सकती है।संदीप के पिता ने कई बार कहा भी था,यह जेल भी भिजवा सकती है झूठी कहानी गढ़कर।हे भगवान!गुड्डी को किसी और की देखरेख में रखना संभव ही नहीं‌ होगा उनके लिए।तेज आवाजें सुनकर आस -पड़ोस के लोग इकट्ठे होने लगे।

दीपाली जी से कुछ पूछते इसके पहले ही रिमी ने जहर उगलना शुरू कर दिया”देखिए काकू,इनके बेटे का किसी और लड़की से अफेयर चल रहा है।अब वह हमारे साथ नहीं रहना चाहते।अब मैं फूटी आंख नहीं सुहाती उन्हें।जब भी कुछ कहती हूं, मां-बाबा उन्हीं का पक्ष लेकर मुझे छोटा साबित कर देतें हैं।आप लोग ही बताइये,अपनी बच्ची को छोड़कर ऐसे कोई बिना कारण जा सकता है क्या?”

रिमी के झूठे आंसू देखकर मोहल्ले वाले दीपाली जी की ओर तन गए और बोलने लगे”बिचारी की तो तक़दीर ही फूट गई।कितने बड़े घर की बेटी थी और अब क्या हालत हो गई है?बाप जब भी आता था बड़ी गाड़ी में भर-भरकर सामान‌ लेकर आता था।आज बाप नहीं‌ रहा तो दामाद ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया।आप लोगों से यह उम्मीद नहीं थी दीपाली जी।शादी के बारह सालों बाद आपका बेटा अपनी पत्नी और बेटी के साथ विश्वासघात कैसे कर सकता है?”

दीपाली जी के कान सुन्न हो रहे थे।माथा अब ठनका कि क्यों संदीप पिछले कई दिनों से बैठक में ही सो रहा था।गुड्डी ने भी बातों-बातों में कहा था अपने मम्मी पापा के मौन झगड़े के बारे में।बेटे से यह पूछना कि बहू के साथ अपने कमरे में क्यों नहीं होता?सही नहीं था।तो कई बार बहाने बनाकर कहा था उन्होंने संदीप से”पापा चार बजे वाक पर जातें हैं,तो तुम्हें बाहर बैठक में सोता देखकर मुझसे पूछतें हैं।कुछ हुआ है क्या रिमी और तेरे बीच?”वह संकोचवश शायद खुलकर नहीं कह पाया कभी।

इंदौर में पढ़ाई कर रहा था संदीप,तभी सुधांशु जी ने बिलासपुर में घर लेने के लिए लोन लेने की सोची।आगे एम बी ए की पढ़ाई के लिए बहुत रुपए लग गए,तो घर हो नहीं पाया। रिटायरमेंट के बाद लेंगे निश्चित किया ,तो सुधांशु जी की चाची ने मृत चाचा जी का वास्ता देकर कलकत्ता बुलवा लिया।उनका इकलौता बेटा जर्मनी में सैटल हो चुका था।

कलकत्ते में बड़ा सा घर था उनका।घर की और चाची की जिम्मेदारी संभालने के लिए पुत्रवत सुधांशु जी को ही लायक समझा था चाची ने।दीपाली जी का मन ना होने पर भी सुधांशु जी की जिद के चलते कलकत्ता आना पड़ा।इसी बीच संदीप का लास्ट इयर में पैर टूट गया।कैम्पस सेलेक्शन में शामिल नहीं हो पाया।एक ही जगह(एस ई सी एल) दोनों के पिता नौकरी करते थे।

एक ही विद्यालय(के वी) से पढ़ाई भी की थी दोनों ने।जब संदीप इंदौर में पढ़ता था,तब रिमी भोपाल में पढ़ती थी। छुट्टियों में दोनों मिलते रहे तो बचपन का प्रेम परवान चढ़ गया।एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी लगते ही रिमी ने दवाब बनाकर शादी कर ली संदीप से।रिमी के पिता ने बहुत सारा दहेज मना करने पर भी जबरदस्ती दिया था।

रिमी शुरू से ही सनकी थी।किस बात पर कब भड़क जाए पता नहीं चलता था।संदीप हंसमुख और शांत।विपरीत प्रवृत्ति के पति -पत्नी के बीच मां -बाप पिसते रहे।इसी बीच चाची जी ने अपना रवैया बदल लिया।उनका बेटा जर्मनी से हमेशा के लिए वापस कलकत्ता आ गया।

बेटे के आ जाने से या उसके दवाब से चाची का व्यवहार सुधांशु और दीपाली के प्रति कठोर होता गया।एक दिन आखिर सुधांशु जी ने वह घर छोड़ वहीं एक फ्लैट खरीद लिया। रिटायरमेंट की सारी जमापूंजी लग गई घर खरीदने में।बेटा वहीं नौकरी करता था।बहू (रिमी)भी साइक्लॉजी की क्लास लेती थी बड़े स्कूल में।

अब संदीप को कोई अच्छे पैकेज की नौकरी मिल नहीं रही थी,और रिमी को चाहिए थे पैसे,खूब पैसे। रोज-रोज के तानों से संदीप अंदर से खोखला होता जा रहा था।किसे दोषी ठहराए?ख़ुद ही तो पसंद की थी लड़की, माता-पिता की मर्जी ना होने के बाद भी शादी की थी उससे।आज साइक्लॉजी पढ़ाते-पढ़ाते रिमी जाने किस दिशा में दिमाग भटका दी।पति पर झूठे आरोप लगाने लगी वह।

सोचते-सोचते दीपाली जी ने तय किया कि वह अब इस घर में तो नहीं रह पाएंगी।जाकर बेटे के साथ रहेंगी फिलहाल।बैग पैक करते हुए पति की बात भी अनसुनी कर दी उन्होंने।

तभी उनके कमरे के दरवाजे पर आंख मलती हुई गुड्डी ने पूछा”दीदू,दादू,कहीं जा रहें हैं आप लोग?मैं भी जा रहीं हूं ना?मुझे जल्दी क्यों नहीं उठाया?तारा पीठ जा रहें हैं क्या हम?”

नन्ही बच्ची का मुंह देखकर सुधांशु जी ने दीपाली को समझाया”हम सब ने तो अपने तकदीर को कोस लिया कई बार।इस बच्ची का क्या दोष है?ये तो मतलब भी नहीं समझती इन शब्दों का।

उसे प्यार से समझा दो।समझ जाएगी।छुट्टी वाले दिन इसे लेकर हम संदीप के पास चले जाया करेंगे।उसे भी अच्छा लगेगा अपनी गुड्डी के साथ।दीपाली यहां सब अपने ही हैं।जो खून के रिश्ते हैं वो भी और जो संबंधों से जुड़े वो भी।हम कमजोर पड़ गए तो दोनों के मिलने की उम्मीद भी मर जाएगी।तकदीर फूटी है,मैं नहीं मानता।पर मानता हूं कि तकदीर बदलती भी है।चलो गुड्डी के लिए मछली बना दो जल्दी।”

शुभ्रा बैनर्जी 

#तकदीर फूटना

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