बड़ी बुआ जी की शान शौकत और रुतबा समाज में तो था ही साथ में परिवार में भी खूब चलती थी।जो देखो उनका गुणगान करते नहीं थकता था। बुआ जी को भी अपनी अमीरी पर बहुत घमंड था।
जब भी मायके आती सब के लिए कीमती तोहफे लातीं और पैसे भी बताया करती कि फला चीज इतने की है। अहसान जताना खूब आता था। छोटी बुआ जी के पति यानि फूफा जी अच्छे पद पर थे पर बहुत इमानदार थे, तो खाना – पहनना साधारण ही था। मायके में भी सम्मान साधारण सा ही मिलता था उनको।
सच मानिए अगर रिश्ते को अमीरी – गरीबी के तराजू से तौलना शुरू कर देते हैं लोग तो रिश्ता कमजोर पड़ने लग जाता है और साफ जाहिर होता है कि ” इज्जत इंसान की नहीं पैसे की होती है।”
एक बार दोनों बुआ जी आईं थीं और मामी जी के बेटी के रिश्ते की बात चल रही थी तो मामी जी बड़ी बुआ को आगे करके तारीफों के पुल बांधे जा रहीं थीं और छोटी बुआ जी को रसोई के काम में लगा दिया। यहां तक की लड़के वालों से परिचय भी नहीं कराया। खैर छोटी बुआ जी के लिए नई बात नहीं थी वो तो अपनी मां से मिलने के लालच में सारी बेइज्जती भी बर्दाश्त कर लेती थी।
उन्हें फूफा जी की नौकरी पर गर्व था क्योंकि वो सम्मान की रोटी कमाते थे और समाज में सभी उनका बहुत आदर करते थे। यहां तक की उनके खाने-पीने में भी भेदभाव होता था।जाते समय साधारण सी साड़ी दे कर विदाई की जाती थी और उधर बड़ी बुआ जी के लिए तो पसंद करा कर उनकी हैसियत के अनुसार तोहफे दिए जाते थे।
मायका तो मां – बाप से होता है, इसलिए सबकुछ जानते हुए भी छोटी बुआ जी छुट्टियों में मायके जरूर आतीं थीं।उनका मानना था कि उनको धन दौलत का मोह नहीं है उनके लिए तो रिश्ते ज्यादा मायने रखतें हैं। कुछ ही महीनों बाद बड़ी बुआ जी के बेटे की शादी पड़ी, सभी खूब उत्साहित थे और बुआ जी की हैसियत के अनुसार सभी ने खूब महंगे-महंगे कपड़े खरीदे और बहुत खुश थे
सारे लोग की शानदार शादी में जाने का मौका मिलेगा।जब मामीजी का सारा परिवार शादी में पहुंचा तो बुआ जी का व्यवहार कुछ अच्छा नहीं था।ना तो किसी मेहमानों से वो परिचय करवाईं और ना ही विषेश आदर सम्मान किसी को मिला।सब हैरान थे कि वो तो बुआ जी का कितना सम्मान करते हैं और बुआ जी के लिए हमारी कोई कीमत नहीं है।
शानदार शाही शादी थी, खूब अच्छा खाना – पीना था, लेकिन मामीजी के परिवार को कुछ भी नहीं भा रहा था। उनको समझ में आ गया था की हमलोग बुआ जी की हैसियत से मेल नहीं खाते हैं इसलिए बुआ जी ने हमें कहीं भी सम्मान नहीं दिया। यहां तक की होटल में भी साधारण सा कमरा दिया था। ऐसा लगता था कि वो मामीजी के परिवार को जानतीं ही नहीं है
कोई दूर के रिश्तेदार से प्रतीत हो रहे थे सब लोग। जितने उत्साह से तैयारी की थी शादी की सब ठंडा पड़ चुका था।उस पर बुआ जी ने टोक भी दिया था अरे कुछ अच्छा कपड़ा खरीद लेते,ये क्या पहन रखा है तुम सबने? क्या सोचेंगे हमारे घर वाले और मेहमान की कितना गरीब मायका है मेरा। सभी का मन खराब हो गया था। किसी तरह शादी निपटी तो बुआ जी ने कुछ तोहफे और मिठाई के डिब्बे देकर विदा किया।
घर आकर सब दुखी थे कि उनके साथ बड़ी बुआ जी का व्यवहार बहुत खराब था। ऐसा नहीं करना चाहिए था उनको हम लोग कितना करते हैं उनके लिए। कहते हैं ‘जैसी करनी वैसी भरनी ‘ आज उनको अपनी गलतियों का एहसास हो चुका था
जो वो वर्षों से छोटी बुआ के साथ करते आ रहे थे।आज उनकी हैसियत पर जब सवाल उठे थे तब उनको उस दर्द का एहसास हुआ था की छोटी बुआ जी को कैसा लगता होगा। जब इंसान खुद किसी चीज से गुजरता है तब उसे सही बात का ज्ञान होता है।
दूसरी बार जब छोटी बुआ जी आईं तो उनको सबके व्यवहार में बहुत बदलाव दिखाई दिया। सही मायने में अब उनको मायके जैसा सम्मान और लाड़ प्यार मिला था।आज इन रिश्तों के बीच दौलत नहीं बल्कि प्यार था
जो सही मायने में होना चाहिए था। छोटी बुआ जी बहुत खुश थीं लेकिन इतना बदलाव कैसे आया था उनको भी समझ में आ गया था। सभी के दिमाग से पैसे का फितूर उतर गया था और साथ ही बड़ी बुआ जी का भी। बड़ी बुआ जी के आने पर भी सभी ने अपनी हैसियत के अनुसार ही आवाभगत किया था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी