इधर भी क्लिीनिक है । – डा. नरेंद्र शुक्ल

पिछले कुछ दिनों से मेरे दोनों पंजों में जलन थी । मित्रों ने सलाह दी कि किसी डॉक्टर को दिखाओ वर्ना कुछ ही दिनों में चलना – फिरना मुश्किल हो जायेगा । मैं एक के पास गया । उन्होंने कहा – यूरिक एसिड हो सकता है । शूगर के भी लक्षण हैं । ब्लड टैस्ट करवा लो । इससे पहले कि मैं कुछ कहता वे मुझे धकेल कर बोले – नैक्शट ।

बहरहाल , शाम को सभी रिर्पाटों के साथ डाक्टर साहब के पास पहुंचा । डॉक्टर साहब अपनी रिसैप्निस्ट में व्यस्त थे । मैंने दरवाज़े के पास जाकर कहा – डॉक्टर साहब , मैं आया – हूं । उन्होंने रिसैप्निस्ट की ओर इशारा किया । वह सिर झटका कर चली गई ।

डॉक्टर ने कहा – बैठिये । मैंने बैठते हुये सभी टैस्ट रिर्पोटें डाक्टर साहब के आगे रख दीं । उन्होने रिर्पोटें देखीं ओर कहा – हूं । नर्व प्राब्लम है । यंगमैन कोई चिंता की बात नहीं है । दवाई लिख देता हूं । दस दिन के भीतर ठीक हो जाओगे । अगर ठीक न हुये बीस दिन बाद मेरे पास आ जाना । मैं आउट आफफ स्टेशन जा रहा हूं । मेरी एबसैंस में यही दवा रिपीट कर लेना । मैंने पूछा – पर , डॉक्टर साहब , रोग क्या है ?

वे अपना चश्मा साफ करते हुये बोले – कुछ खास नहीं । जम कर खाओ । पर , खबरदार कुछ पीना नहीं । जाओ मौज़ करो । उन्होने कार्ड मेरे हाथ में पकड़ा दिया और बोले – नैक्शट । मैंने दस दिन तक दवा खाई । लेकिन , कोई असर नहीं हुआ । पड़ोसी रामलाल रोज़ की तरह अखबार मांगने आये । और सोफे पर बैठते हुये पूछा – शूक्ला जी कैसे हैं ? मैंने कहा – मर रहा हूं । उनके साथ उनके बहनोई भी थे । जो मेरे फोन से अपनी बेटी को अमेरिका में आई.एस.डी. में व्यस्त थे । फोन रखते हुये बोले – ही . ही. ज़रा बेटी का हाल – चाल ले रहा था । हमारे घर से मिलता ही नहीं कमबख़्त । ये कह रहे थे कि आपके पैर सुन्न हो गये है । चला नहीं जाता । आई.एस.डी. कॉल के अनुमानित बिल से मेरा दिल बैठा जा रहा था । मैंने कहा- नहीं अभी तो जलन ही है । वे बोले – एक ही बात है । वे बोले – अंग्रेज़ी दवा ले रहे होगें । मैने हां में सिर हलाया । वे बोले – तभी तो । भैया , ये अंग्रेज़ी दवायें बिजली की तरह शरीर का खून चूस लेती हैं । तैं तो कहता हूं कि किसी होमो पैथी डॉक्टर को दिखाओ । इन नन्हीं नन्हीं गोलियों में गज़ब की ताकत होती हैं ज़नाब । वैसे , मैं एक डॉक्टर को जानता हूं । गज़ब की डॉक्टर है । जिसे छू भर ले । उसके शरीर का दर्द ऐसे गायब हो जाता है जैसे गधे के सिर से सींग । मैं उत्साहित हुआ – पता बताइये । उन्होने पता लिखकर दिया । मैं उनके बताये ठिकाने पर पहुंचा तो देखा ? एक नवयोवना पूरी सजधज के साथ इस प्रकार बैठी हुई थी मानो , वरमाला लिये दुल्हन । वह इतनी सुंदर थी कि उसके सौंदर्य का वर्णन करने में हजा़रों पेज़ भी कम पड़ जायें । वह किसी भी विश्वामित्र की तपस्सा भंग करने कर सकती थी । मैं तो मामूली सा इंसान था । मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ । दुकान का डिस्पले बोर्ड देखा – लिखा था – डॉक्टर कामिनी क्लिीनिक । मैं भीतर गया । डॉक्टर साहिबा बोलीं – बैठिये । बताइये , क्या तकलीफ़ है ? जैसे रात – रानी से फूल झरे हों । मैंने दोनों बांहें फैला दीं । उन्होने पूछा – इनमें क्या हुआ है ?




मैंने उनकी झील सी आंखों में उतरते हुअे कहा – दर्द है । तीन दिन से सो नहीं सका हूं । उन्होंने हाथ पकड़ कर नब्ज़ देखी । मेरा मुंह सूखने लगा – डॉक्टर साहिबा , मर्ज़ क्या है ? वे मुस्कराते हुए बोलीं – सूजन तो नहीं है । शायद , हवा लग गई है । मुझे अचानक याद आया कि दर्द तो पैरों में है । मैंने धीरे से कहा- डॉक्टर साहिबा , पैर के पंजे भी जलते हैं । मैंने पसर्नल होने की कोशिश की । उन्होंने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया । वे अपनी ड्रा से एक मोटी सी किताब निकाल कर पढ़ने लगीं । मैंने मुंह फेर लिया । मोटही – मोटी किताबें देखकर मेरा जी घबराता है । उल्टी होने का खतरा हो जाता है । वे बोलीं – दवाई लिख देती हूं । परॅंच – सात दिनों में ठीक हो जायेगा । एक शीशी में कुछ कैमिकल सा डालते हुये वे बोलीं – तेल है । दिन में दो बार मालिश करवाइये । आराम आयेगा । मैंने पूछा – कैसे ? वे दोनों हाथों से पैर के उपर से नीचे की ओर मालिश करते हुये बोलीं – ठीक ऐसे ही । बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे । मैंने मन मे कहा – अब ठीक कोन् कमबख़्त होना चाहता है । मैंने पूछा – डाक्टर साहब , फीस ?

वे मैथ में कमज़ोर थीं । कैलकुलेटर की मदद से हिसाब लगाकर बोलीं – चार सौ पचत्तर रूपये । मेरे सारा उत्साह ठंडा हो गया । वे मुझे सचमुच डाक्टर लगने लगीं । मैं रूपये देकर घर आ गया । बीस दिन तक बराबर इलाज़ होता रहा । लेकिन ? सिवाय , जेब खाली होने के कोई फरक नहीं पड़ा । हां एक बात ओर । इलाज के दौरान मुझे एक सज्जन से ज्ञात हुआ कि डॉक्टर साहिबा मेरे पड़ोसी रामलाल के बहनाई की धर्मपत्नी हैं । ये दोनों मिल-जुल कर क्लिीनिक चलाते हैं । उन्हीं सज्जन ने बताया कि उनके मोहल्ले में भी एक काबिल डाॅक्टर रहता है । हडिडयों का स्पैलिस्ट है । सरकारी दवाइयां मार्किट में बेचने के आरोप में इधर सस्पैंड चल रहा है । लेकिन , बेहद ज़हीन है । मरीज़ की शक्ल देखकर ही मर्ज़ बता देता है । मैंने सोचा , यह भी सही। उनके घर जाकर घंटी बजाई । डाॅक्टर साहब बाहर निकले । जरा जल्दी में थे । मैंने कहा – डाक्टर साहब , मिस्टर कपिल ने आपका रैफरेंस दिया था । उन्होंने पूछा – कौन कपिल ? मैंने बताया – वही जो पिछले दो सालों से आपसे अपनी रीढ़ की हडडी का ईलाज़ करवा रहे हैं । वे बोले – हूं । तकलीफ बताइये ? मैंने कहा – क्या बताउॅं डाक्टर साहब , पिछले महीने से दोनों पैरों के पंजों में दर्द है । जलन भी है । नींद नहीं आती । वे कुछ सोचते हुये पूछा – तुम कल नहीं आ सकते ? मैं हैरानी से उनके मुंह की ओर देखने लगा। वे बोले – दरअसल , मैं अब सैर करने जा रहा हूं । पूरी तरह नहीं देख पाउॅंगा । मैंने हाथ जोड़ कर निवेदन किया – क्षमा करें डाक्टर साहब । किंतु मैं बहुत दूर से आया हूं । उन्हें दया आ गई । लेकिन बेमन से बोले – अंदर चलो । अंदर जाते ही , सामने पड़े तख्त की ओर इशारा करते हुये बोले – लेट जाओ । मैं लेट गया । वे मेरा पैर दबाने लगे । मुझे राहत महसूस हुई । सोचा , बस ऐसे ही पैर दबाते रहे तो नींद आ जायेगी । लेकिन दो ही मिनट के बाद उन्होने कहा – बस , अब नीचे आ जाओ । वे मेरी मंशा जान चुके थे । बोले – देखो , पांच दिन की दवाई लिख रहा हूं ले लेना । विटामिन के इंजैक्शन भी लगवा लो । ठीक हो जाओगे । अगर , पांच दिनों में ठीक नहीं हुये तो कई टैस्ट करने पड़ेगे । बीस – पच्चीस हज़ार रूपये लग जायेंगे । मैं रूआंसा सा हो गया । पूछा – डॉक्टर साहब , आपकी फीस ? वे बोले – चार सो रूपये । मैंने मन में कहा – लेकिन , पूरा तो देखा नहीं । खैर , फीस देकर मैं घर चला आया । पांच दिनों के बाद भी जब पैरों की जलन ठीक नहीं हुई तो मैंने सोचा , क्यों ना आर्युवेद अपनाया जाये । अखबारों में कितना विज्ञापन रहता है । कुछ तो बात होगी । मैं आर्युवेद की एक डिसपैंसरी पहुंचा । अंदर , डॉक्टर साहब अपने बच्चों को स्कूल का लैसन याद करवा रहे थे । एक घंटे के बाद , जब नाम पुकारा गया तो मैं अंदर गया । डॉक्टर साहब ने पैंसिल – काॅपी एक ओर रखकर पूछा – क्या तकलीफ है ? मैंने कहा – अब बताने की हिम्मत नहीं रही डाॅक्टर साहब कि मेरे दोनों पैरों के पंजों में पिछले दो महीनों से जलन है । सभी टैस्ट करवर के देख लिये । लेकिन , कुछ निकलता ही नहीं । दर्ज़नों डाक्टरों को दिखा चुका हूं पर कोई आराम नहीं मिला । वे मुस्कराये – घबराने की कोई आत नहीं है । विटामिन इ की कमी है । दवा लिख रहा हूं । इन चार दवाओं को आपस में मिलाकर , दिन में दो बार शहद के साथ और इस पीने वाली दवा को दिन में तीन बार , खाना खाने के बाद ले लेना । ठीक हो जाओगे । मैं, पिछले डाॅक्टर द्वारा दी गई दवाइयों के रैपर लेता गया था । दिखा कर बोला – डॉक्टर चुघ ने तो ये दवायें दी थीं । वे दवाओं को देखते हुये बोले – लक्षण तो विटामिन इ की कमी के हैं । पता नहीं क्यों उन्होंने विटामिन सी की दवायें दी हैं । वे कुछ बुदबुदाये और फिर सिर झटक दिया – खैर , तुम ये दवायें लो । भगवान ने चाहा तो कुछ ही दिनों में दौड़ने लगेंगे । मैं जुए में अपना सब कुछ हार बैठे युधिष्ठिर की तरह बोला – धन्यवाद डॉक्टर साहब । जीता रहा तो फिर आउंगा । वे मेरी बात को अनसुना करते हुये भीतर के कमरे में चले गये ।




आर्युवैदिक मैडिकल स्टोर में चार हज़ार का बिल देखकर मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा । कुछ ही देर में , मैं चक्कर खाकर , वहीं गिर गया । पास खड़े एक नौवजवान ने मुझे सहारा देकर उठाया और पूछा – भाई साहब क्या हुआ ? बड़े कमज़ोर दिख रहे हैं । बीमार हैं क्या ? मैंने कहा – नहीं । पैरों में जलन है । मैं कैसे कहता कि इतनी मंहगी दवाइयों के कारण मुझे चक्कर आया है । वह बोला – भाई साहब , आप पढ़े – लिखे होकर कहां बकरी की लेंडी में फंस गये हैं । ये दवाइयां खानी तो बहुत दूर । देखते ही घिन आने लगती है । एलोपैथिक इलाज करवाइये । एलोपैथिक । इधर , पास में ही एक क्लिीनिक है जहां डॉक्टर झटका प्रसाद एक ही झटके में पूराने से पुराना मर्ज़ भी एक ही झटके में ठीक कर देते हैं । वह पर्ची लिखने लगा । मैंने कहा – भाई साहब , आप मुझे बिना र्जुम़़ के हवालात ले चलिये । मैं खुशी – खुशी चल दूंगा । धूल फांकने के लिये कह दीजिये । मैं उफ़ तक न करूंगा । लेकिन , अगर क्लिीनिक चलने के लिये कहंगे तो मार बैठूंगा । नौजवान दूर खिसक गया । उसे मेरी आंखों में हिंसा नज़र आने लगी । मैंने ठान लिया कि अब कोई दवाई नहीं खाउॅंगा और अब भगवान की दया से प्रतिदिन दो घंटे सैर करने से ही मैं भला चंगा हो गया हॅूं ।

– डा. नरेंद्र शुक्ल

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