फैसला – रीटा मक्कड़

“मीरा..ये देख सासू मां के कितने सुन्दर और नए नए सूट रखे हैं..जितने चाहिए ले जा और सुन पूनम तू भी ले ले और अपनी अम्मा और बहन के लिए भी ले जाना..और सुनो तुम दोनो अगर ये स्वेटर और शॉल वगैरह भी लेने तो वो भी ले लेना..!”

आज नीलम का मन बहुत ज्यादा उदास था। सासू मां को गए एक साल हो गया था और उनकी अलमारी ज्यों की त्यों कपड़ों से भरी पड़ी थी।कितने नए नए सिल्क के और कोई बनारसी सिल्क के और भी पता नही कितने गर्मी के और ठंडी के नए नए सूट दुप्पटे करीने से हैंगरों में टंगे पड़े थे।

सब रिश्तेदारों ने तब भी बोला था कि जाने वाले के कपड़े गरीबों में बांट देने चाहिए।लेकिन उसका ना तो मन ही मानता ना ही हिम्मत पड़ती कि उनकी अलमारी से कपड़े निकाले।अभी तो उनकी दो अटैचियां अलग से रखी थी जिनमें बहुत से ऐसे कपड़े रखे थे जो कि सिले ही नही थे या फिर इस्तेमाल नही हुए कभी भी।

अलमारी में से वो जैसे जैसे कपड़े निकाल रही थी उसकी आंखें बार बार भर रही थी सासू मां की बातें याद कर के…

कितना संभाल संभाल के रखती थी वो अपने कपड़ों को..

जब भी कहीं जाना होता नीलम उनको कोई अच्छा सा नया सूट निकाल के पहनने को देती..लेकिन वो मानती नही और कहती,”ये रख दे बहू..क्या जरूरत है नया सूट खराब करने की,ये फिर कभी काम आयेगा,अभी तो और कितने पुराने सूट रखे हैं वो ही पहन लेती हूं।

मोहल्ले में एक बार किसी के घर कीर्तन था तब नीलम ने उनको सिल्क का सूट पहनने को बोला तब भी नही मानी, कि सिल्क का किसी शादी में पहनने के काम आयेगा यहां तो कोई भी चल जायेगा।




दीपावली में एक बार उनको बनारसी सिल्क का सूट पहनने को दिया तो बोली,”ये तो मैं अपने पोते की शादी में पहनूंगी ,दीपावली में तो कोई भी पहन लूंगी,घर पर ही तो रहना है।”

आम दिनों में घर पर तो वो पुराने कपड़े और स्वेटर ही पहने रहती कि घर में पहन कर नए कपड़े खराब हो जाते हैं।

कितने सूट उनको मिलते रहते थे..कभी बेटों के ससुराल से,कभी उनके अपने मायके से,कभी बहू बेटों से किसी तीज त्योहार पर। परन्तु क्या मजाल कि उन्होंने जल्दी किसी कपड़े को इस्तेमाल किया हो।

और आज नौबत ये है कि उनके कपड़े घर पर तो किसी को फिट आयेंगे ही नही तो इससे अच्छा है किसी जरूरतमंद के काम तो आएं।

यही सब सोच कर आज नीलम ने मन ही मन खुद को इस बात के लिए  तैयार कर लिया कि  उनके सब कपड़े गरीबों में बांट ही देने चाहिए।

कपड़े सब को देते हुए नीलम ने मन ही मन एक फैसला और भी किया… कि जो उसके खुद के कपड़ों से अलमारियां और बेड के बॉक्स भरे पड़े हैं ..उनमें जो सालों से इस्तेमाल में नही आ रहे वो अपने हाथ से ही  बांट देगी क्योंकि बाद में कौन सा बहू या बेटी वो कपड़े पहनेगी। फिर वो कपड़े भी या तो हरिद्वार भेज दिए जाते हैं या फिर किसी को भी उठा कर दे दिए जाते हैं।उससे तो अच्छा यही है कि वो ये दान खुद अपने हाथों ही करे। कम से कम पुण्य  भी तो मिलेगा न…!!

स्वरचित एवम मौलिक

रीटा मक्कड़

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