हाउस हसबैंड – डॉ पारुल अग्रवाल: Moral Stories in Hindi

राशि बहुत ही हंसमुख और प्यारी सी लड़की थी। उसका अभी कुछ ही समय पहले अमन के साथ प्रेम विवाह हुआ था। जिसमें दोनों के परिवार की सहमति थी। राशि ने अपनी शिक्षा मनोविज्ञान विषय में पूर्ण की थी और अब वो प्रमाणित काउंसलर थी और अपना खुद का क्लिनिक भी चलाती थी।

शादी के बाद घर के सभी सदस्यों से अपने रिश्तों को प्रागढ़ बनाने के लिए उसने काम से थोड़े दिन का ब्रेक लिया था। शादी के सभी कार्यक्रम सुचारु रूप से निबटने के बाद घर पर अब उसकी सास सुमित्रा जी,ससुर मनोहर जी और पति अमन और वो खुद ही रह गए थे। उसने अनुभव किया कि बाकी सब तो ठीक है

पर उसकी सासू माँ घर में सबसे अलग थलग रहती हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं था कि वो राशि के किसी काम में कमी निकालती हों या रोक टोक करती हों पर कुछ ना कुछ ऐसा था जो उन्हें उदासीन बनाये रखता था। राशि अपनी तरफ से उनसे घुलने मिलने की पूरी कोशिश करती पर वो अपने काम से काम रखती।

पहले तो राशि को ये भी लगा कि शायद वो अभी नई नई इस घर में आई है इसलिए उसको ऐसा लगता है।यहाँ तक की घर में ऐसे कई अवसर आये जब सब लोग साथ साथ खाने और बात करने के लिए बैठें तब भी उसकी सास ने अपने को अलग ही रखा। राशि के बहुत कहने पर भी अकेले ही खाना खाया। इन्ही सब बातों से उसे एहसास हुआ

कि वो ग़लत नहीं सोचती है। उसके संदेह की पुष्टि भी जल्द ही हो गयी एक दिन राशि के ससुर ने बहुत तेज़ आवाज़ में उसकी सास पर चिल्लाना शुरू कर दिया क्योंकि उनके कुछ पेपर्स सास ने कमरे का सामान ठीक करते हुए इधर उधर रख दिये थे। राशि अपने ससुर का इस तरह का व्यवहार देख कर हैरान थी। राशि से रहा नहीं गया

उसने अपनी सास की तरफ से बोलने की कोशिश भी की पर उसकी सास ने धीरे से उसका हाथ दबा दिया। राशि के लिए ये सब बहुत ही असहनीय हो रहा था। अब राशि ने सोच लिया था कि वो अपनी सास के चेहरे पर मुस्कराहट लाकर ही रहेगी।उसने अपने घर में भी अपने पापा को माँ के साथ बहुत सम्मान से बात करते सुना था।

इस बारे में वो सास से भी सारी बातें खुल कर करना चाहती थी। जल्द ही एक दिन उसको मौका भी मिल गया। उसके पति को दो दिन के लिए बाहर जाना था और ससुर भी कुछ काम से अपने दोस्तों के साथ बाहर थे। उस दिन राशि ने एक पल को भी सास को अकेले नहीं छोड़ा वो उनसे बात करने की कोशिश करती रही। राशि ने उनको बोला भी

कि आप मेरे को अपनी बहू के साथ साथ दोस्त भी समझ सकती हो। आपको भी अपने हिसाब से ज़िंदगी जीने का अधिकार है। आप कब तक अपने प्रति सभी का ऐसा व्यवहार झेलती रहोगी। आप अब अकेली नहीं हो मैं आपके साथ हूँ। राशि से इतने अपनेपन की ऊष्मा पाकर राशि की सास सुमित्रा जी फूट फूट कर रोने लगी। फिर चुप होने के बाद उन्होंने उनके साथ जो भी हुआ वो सब बताया।

सुमित्रा जी ने कहा कि जब वो शादी करके इस घर में आई तब वो संगीत में अपनी शिक्षा पूरी कर चुकी थी। उनके ससुर ने उनको मन्दिर में भजन गाते सुना था तभी सोच लिया था कि उनके बड़े बेटे के लिए वही पत्नी के रूप में उनके घर की शोभा बढायेगी। हालांकि वो गरीब परिवार से थी और उनके बाद उनकी तीन बहनें और भी थी। बेटे की लालसा में घर में बेटियों की लाइन लग गयी थी।

वो तो गनीमत थी कि माता पिता ने बेटियों की पढाई में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इतने बड़े घर से रिश्ता आने और बिना कुछ दान देहज़ के बेटी की शादी निबटने की खुशी में उसके परिवार वालों ने कोई छान बीन नहीं की।उसके पति का अमीर और प्रसिद्ध घर से होना ही उसके माता पिता के लिए बहुत बड़ी बात थी।

उसकी पसंद और नापसंद की तो किसी को भी चिंता नहीं थी। वो भी अपने घर की परिस्थिति से अंजान नहीं थी ऐसे में शादी का विकरने का कोई सवाल ही नहीं था। उसने तो सब कुछ अपनी किस्मत समझ कर स्वीकार कर लिया था। 

इधर ससुराल में वो केवल ससुर जी की पसंद थी जिसे ना चाहते हुए उनको स्वीकार करना पड़ा। यहाँ उसका सुंदर होना और हर कार्य में दक्ष होना सबसे बड़े अवगुण थे। रंगरूप, पढ़ाई, बोल चाल सब में वो पति से इक्कीस ही थी वैसे भी उस समय लड़कों की सूरत और रंग कौन देखता था। इस तरह ये बेमेल शादी तो हो गयी

पर मुँह दिखाई के समय लोग दोनों पति पत्नी की तुलना कर रहे थे। यहाँ तक की पति के दोस्तों ने भी मज़ाक मज़ाक में बोल दिया कि लंगूर के हाथ अंगूर लग गया है। ये बात उसके पति और सास को बहुत नागवार गुजरी। हालांकि उसके मन में ऐसा कुछ भी नहीं था पर इन सब बातों से पति के अहंकारी स्वभाव को बहुत ठेस पहुंची थी।

शादी की पहली रात से ही पति ने अपने अहंकार की तुष्टि उसको शारिरिक प्रताड़ना देकर की थी। उसको मोहल्ले वालों और रिश्तेदारों के सामने नहीं आने दिया जाता। अगर कभी वो गलती से आ भी जाती या कोई पुराना परिचित भी उसके गाने या सुंदरता की तारीफ़ कर देता तो उनके जाने के बाद उसकी शामत आ जाती। यहाँ तक की कई बार उनके चरित्र पर भी उंगली उठाई जाती।

सुमित्रा जी की सासु माँ भी पूरी तरह अपने बेटे का साथ देती। ससुर जी भी उनकी शादी के एक साल बाद ही स्वर्ग सिधार गए थे, उनके जाने के बाद तो ससुराल में पति और सास का बर्ताव और भी खराब हो गया था। कई बार ससुराल से भागने की भी सोचती पर मायके की हालत और तीनों छोटी बहनों का भविष्य का सोचकर कदम रोक लेती।

इसी बीच एक बेटे यानि उसके पति की माँ भी बनी।अब उन्होंने सारा ध्यान उसके लालन पालन में लगा दिया। अपनी दुनिया उसी तक सीमित कर ली। बेटे के बड़े होते होते सास भी चल बसी पर उनके लिए पति के व्यवहार में कोई फर्क नहीं था। उसके बाद उन्होंने कहा कि उसके बाद तो अब तुम भी आ गई पर मेरी दशा में कोई अंतर नहीं आया। 

सुमित्रा जी की सारी बातें सुनने के बाद राशि ने मन ही मन फैसला लिया कि वो अपनी सासू माँ का खोया सम्मान उनको वापिस दिलवायेगी और ससुर जी को उनकी गल्ती का एहसास करवाएगी। उसने सुमित्रा जी से कहा अब आप अकेली नही हो। अपने आत्मसम्मान को वापिस पाने के लिए आपको थोड़ी हिम्मत दिखानी होगी। राशि की बातों से उन्हें बहुत सहारा मिला।

राशि ने अमन से भी बात की पहले तो उसने कहा कि जैसा चल रहा है वैसा चलने दो पर राशि के आगे उसकी एक ना चली। राशि की योजना के अनुसार अमन और राशि ने अपनी नौकरी से घर की दूरी का वास्ता देकर अपने रहने के लिए अलग घर की व्यवस्था कर ली। अब घर पर सुमित्रा जी और उनके पति ही रह गए।

अब सुमित्रा जी ने जब उनके पति कहीं गए होते तब स्टोर में रखे हुए अपने संगीत के वाध यंत्रों पर अभ्यास करना शुरू। कर दिया। थोड़े दिन ही बीते थे एक दिन जब सुमित्रा जी अपने संगीत का अभ्यास कर रही थी तभी उनके पति घर पहुँच गए। सुमित्रा जी को गाता देखकर वो उन पर बहुत तेज़ चिल्लाने लगे। आज सुमित्रा जी चुप नहीं रही उन्होंने भी पूरा प्रतिकार किया जब पति ने कहा कि ये मेरा घर है

मेरी इच्छा के बिना यहाँ का पत्ता भी नहीं हिल सकता। तब सुमित्रा जी ने कहा कि ठीक है अब मैं भी इस घर में नहीं रहूंगी। वैसे भी मैं एक एन जी ओ में संगीत अध्यापिका की नौकरी देख चुकी हूँ। वहाँ पर अनाथ और बेसहारा बच्चों को रहने के लिए आसरा भी दिया जाता है। उन्हें बड़ी उम्र की किसी ऐसी महिला की ही तलाश है जो वहाँ रहकर सब देख सके। मैं आज ही वहाँ के लिए निकल जाती हूँ। 

उनकी ये बात सुनकर मनोहर जी व्यंगात्मक हंसी हँसते हुए बोले कि जाओ जाओ जब बहार की दुनिया का सामना होगा तब अपनेआप अक्ल ठिकाने आ जायेगी। ये सुनकर सुमित्रा जी ने भी पलटवार करते हुए कहा कि जब आप जैसे इंसान के साथ ज़िंदगी के इतने साल निकाल दिये तो बाहर की दुनिया से तो आराम से सामना किया जा सकता है। आज सुमित्रा जी का आत्मविश्वास देखकर मनोहर जी भी दंग थे। 

अपने दो जोड़ी कपड़े रखकर सुमित्रा जी ने घर छोड़ दिया। राशि उनसे दूर अवश्य थी पर वो कदम कदम पर उनकी हिम्मत बढ़ा रही थी। एन.जी.ओ में वो अपने स्वभाव और संगीत से जल्द ही सबकी चेहती बन गयी। उधर मनोहर जी बिल्कुल अकेले पड़ गए। उन्होंने अपने सब कामों के लिए नौकर भी रखा पर वो सुमित्रा जी की तरह से कैसे देखभाल कर पाता।

थोड़े दिन के लिए वो अमन और राशि के पास भी रहने आये पर यहाँ एक तो दोनों की व्यस्त ज़िंदगी और उस पर दोनों का एक दुसरे के प्रति सम्मान देखकर वो दंग रह गए। उन दोनों को एक साथ देखकर उन्हें अपने पुराने दिन याद आते। जब तब वो सुमित्रा जी के प्रति अपने किये गए व्यवहार से आत्मग्लानि से भर जाते। राशि मनोवैज्ञानिक थी उनकी दशा समझ रही थी।

वो जान बूझकर उनके सामने सुमित्रा जी का जिक्र छेड़ देती। एक दिन मनोहर जी अपने आपको बहुत अकेला और थका अनुभव कर रहे थे पर राशि और अमन की जरूरी मीटिंग थी तो उनका जाना आवश्यक था। वैसे तो वो लोग रुक भी सकते थे पर राशि उन्हें उनकी गल्ती का एहसास करवाना चाहती थी। आज रह रह कर मनोहर जी को सुमित्रा जी का अपनापन, देखभाल और बिना कहे ही सब बातों का ध्यान रखने की आदत याद आ रही थी। उन्हें ये भी महसूस हो रहा था कि बुढ़ापे में ही जीवन साथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। शाम को राशि के आते ही वो उसके सामने बच्चों की तरह फूट फूट कर रोने लगे।

उससे सुमित्रा जी से मिलवाने की मिन्नत करने लगे। राशि का तीर निशाने पर लग चुका था। राशि और अमन मनोहर जी को लेकर सुमित्रा जी के पास एन.जी.ओ में पहुँचे। वहाँ मनोहर जी सुमित्रा जी से हाथ जोड़कर अपने अब तक किये कृत्यों की माफ़ी मांगने लगे।

उन्होंने कहा कि मेरे पुरषोचित् अभिमान ने ज़िंदगी के बहुत साल यूँही व्यर्थ निकाल दिये।इतना सब सहने के बाद भी तुमने अमन को जो संस्कार दिये उससे मेरी आँखें खुल गयी। सुमित्रा जी ने कहा मेरा मन तो नहीं है और अब ज़िंदगी के कुछ ही दिन बचे हैं पर भगवान् ने स्त्री को माफ़ करने के लिए पुरुष की तुलना में विशाल हृदय दिया है।

वैसे भी जिसके हिस्से में ईश्वर ने राशि जैसी बहू दी हो वो तो अपनेआप में ही बहुत भाग्यशाली है। यही सब सोचते हुए मैं आपको माफ़ करती हूँ पर अब मैं बचे हुए दिन अपनी शर्तो पर जीना चाहती हूँ। मैं जब तक हाथ पैर चलेंगे इस एन.जी.ओ में काम करूँगी। तब मनोहर जी ने कहा कि तुम यहाँ देखो घर में संभालूँगा। अमन और राशि ने मुझे भी बहुत कुछ सिखाया है।

फिर वो राशि की तरफ देखते हुए बोले कि अपनी सास को बता दे बेटा कि आज से मै हाउस हसबैंड की भूमिका निभाऊँगा। उनकी ये बात सुनकर। वहाँ उपस्थित सब लोग हँस पड़े। सुमित्रा जी राशि को गले लगाकर बोली कि मेरे कुछ पिछले जन्म के अच्छे कर्म होंगे जो तू बहू के रूप में मुझे मिली। बस अब तो ऊपर वाले से यही प्रार्थना है कि रिश्तों की डोरी टुटे ना।

हम सब ऐसे ही स्नेह के धागे से बंधे रहे। आज राशि की कोशिश कामयाब हो गयी थी। उसने भी कहा माँ ये रिश्तों की डोर कभी नहीँ टूटेगी क्योंकि आपके ही दिये संस्कार हैं जो मुझे अमन जैसा पति मिला और अब तो आपके पास भी पापा जी जैसे हाउस हसबैंड हैं। 

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? कई बार हम सहते जाते हैं और सामने वाले की ज्यादती को बढ़ाते जाते हैं। विरोध करना भी जरूरी होता है यहाँ तो सुमित्रा जी के पास राशि जैसी बहू थी जिसने रिश्तों की मजबूत डोर से उनको बांध लिया था। भगवान् किसी ना किसी रूप में मददगार भेजते हैं बस पहचान हमें करनी होती है। 

#रिश्तों की डोरी टुटे ना

डॉ पारुल अग्रवाल, 

नोएडा

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