हाथ में – कंचन श्रीवास्तव

कहते हैं, ‘ पुरुष शराब और शबाब के पुजारी होते हैं ।’ ये जहां मिले अच्छे अच्छों का मन डोल जाता है।हां सच भी है, यही कारण हैं कि चढ़ती उम्र के साथ उनके पैर कब डगमगा जाते हैं,पता ही नहीं चलता और अपने उद्देश्य से भटक जाते हैं।

और जो संभलते हैं,उसके पीछे भी स्त्री का ही हाथ होता है।वो चाहे तो संभाल ले और चाहे तो खुद के साथ साथ उसकी जिंदगी भी बर्बाद कर दे।

हां अकसर यही होता है कि मोहब्बत के नाम पर खुद को संभाल नहीं पाते देह वेग में बह जाते हैं और जब इसका नशा उतरता है तो पीछे बहुत कुछ छूट चुका होता है।

यही तो बात है – आज दोनों ही उदाहरण सावित्री के सामने प्रत्यक्ष खड़े हैं ।

इसलिए वो समझ नहीं पा रही कि कौन सा सही है और कौन सा गलत।

भाई समझे कैसे, बड़े बेटे ने भी बाहर रह कर पढ़ाई की और छोटे बेटे ने भी।

और दोनों में उन्होंने पैसा बराबर से लगाया।फिर कैसे दोनों के जीवन में इतना परिवर्तन आया , जबकि दोनों ही पढ़ने में तेज थे।

की बार वो पूछना चाहती थी बड़े बेटे से कि आखिर तुम्हारी जिंदगी इतनी अस्त व्यस्त क्यों है आखिर छोटे ने भी तो तुम्हारी तरह अपनी पसंद की शादी की वो दोनों तो बहुत खुश हैं और अच्छे पद पर कार्यरत भी है।और तुम  छोटी सी नौकरी खुद भी कर रहे और बहू भी कर रही और मैं देखकर रही कि तुम लोग खुश भी नहीं रहते।

जबकि पापा के न चाहने के बावजूद भी हमने तुम लोगों की खुशी के लिए तुम लोगों की पसंद से शादी कर दिया।




पर पता नहीं क्यों पूछने की हिम्मत न कर पाती।

फिर एक दिन नहीं रहा गया तो उसने अपने पति से ही इसका जिक्र किया।

तो उन्होंने बताया , इतनी साधारण सी बात तुमको समझ में क्यों नहीं आती।

कि एक खुश और एक दुखी क्यों है।

सुनो!

शराब और शबाब माना पुरुष की कमजोरी होती है पर नियंत्रण भी उनकी जिम्मेदारी होती है।

यदि पसंद के साथ साथ नियंत्रण  रखते हैं तो सफलता के कदम भी चूमते हैं।

जैसा की छोटे ने किया,माना उसने प्यार किया पर कैरियर को साथ लेकर चला। इसलिए आज सबकुछ सामान्य है।

और इसने कैरियर को दांव पर लगा दिया।

इसलिए परेशान हैं।

प्यार मन की चाहत है न कि शरीर की जरूरत।और शराब शौक है न कि लत।

जो जरूरत और लत के साथ रहता है वो बर्बाद हो जाता है।

और जो मन और शौक के साथ रहता है वो खुश।

ये सुन सावित्री सोचने पर मजबूर हो गई कि

इतनी बड़ी बात कितने आसानी से इन्होंने समझा दिया समझा दिया ।

यानि लोग बेवजह ही स्त्री को दोष देते हैं।सच तो ये है कि बहाना और संभलना दोनों ही पुरुष के साथ में होता है।

स्वरचित

कंचन श्रीवास्तव आरजू

 

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