चाहत पिया मिलन की-अभिलाषा कक्कड़

आज घर में सुबह से खूब चहल पहल थी । हो भी क्यूँ ना आख़िर इस घर की बेटी जो आ रही थी । इस बार शीतल दीदी और मनोज जीजा जी बहुत सालों के बाद इंडिया आ रहे है …. सोफ़े के कुशनों को ठीक करती हुई इन्दु पति अजय से बोलीं । हाँ तुम ठीक कह रही हो, दीदी लगभग दस साल के बाद आ रही है । जब बच्चे छोटे थे तब तो दो तीन बार आई थी । 

फिर बच्चे स्कूल जाने लगे, घर नौकरी खर्चे सब देखना पड़ता है । आख़िर हमारी तरह पति पत्नी वहाँ नौकरी ही तो करते हैं । अब बच्चे कमाने लगे हैं तो अब दीदी जीजा जी काफ़ी ख़ुद को चिन्ता रहित महसूस करते होंगे । वो तो है ,कह कर इन्दु रसोई में चली गई । थोड़ी देर में बाहर गाड़ी के हॉर्न से सब बाहर की ओर भागे । माँ शारदा जो सुबह से ही बेटी दामाद के आने का इन्तज़ार कर रही थी , आज उसके भी दर्द से भरे पाँवों में जान आ गई थी । 

बहुत प्यार से शीतल और मनोज सबसे मिले । देर रात तक इन्दु शीतल अजय बातें करते रहे । सुबह शीतल की आँख बहुत देर से खुली । बाहर उठकर आई तो दिसंबर की ठण्ड ने कंपकंपी छुड़वा दी । दीदी शाल ओढ़ लो और छत पर चले जाओ बड़ी अच्छी धूप निकल आई है… मैं चाय बनाकर उपर ही ले आऊँगी, दीदी को शाल ओढ़ाती इन्दु बोली । 

साथ बैठी माँ भी बोली हाँ हाँ ठीक कह रही है बहु  उपर चली जा .. धूप के साथ साथ बहुत अच्छा तुझे एक सरप्राइज़ भी मिलेगा । सरप्राइज़!! कैसा सरप्राइज़ माँ ?? अरे कुछ ख़ास नहीं दीदी आप जाइये, इन्दु ने बात को बहुत हल्के में लेते हुए कहा । छत पर आकर शीतल इधर-उधर देखने लगी कि क्या बदलाव लाये हैं ये लोग उपर वाले हिस्से में लेकिन उसे तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया । सामने पड़ी कुर्सी पर बैठकर आसपास के घरों को देखने लग गई । 

तभी शीतल ने गौर किया कि सामने जो ख़ाली प्लाट पड़ा था वहाँ एक आलीशान सुन्दर मकान बना हुआ था । शीतल उस घर को देख ही रही थी कि माँ उपर आ गई । माँ सामने वाला मकान तो बहुत सुंदर बनाया है किसी ने  .. यही तो सरप्राइज़ है कहकर माँ अपने कमरे में चली गई । शीतल छत की छोर पर आकर दीवार पकड़ कर देखने लगी और सोचने लगीं .. माँ भी ना यह भी कोई सरप्राइज़ है । तभी शीतल की नज़र उस घर की महिला जो तार पर कपड़े सुखाने डाल रही थी उस पर पड़ी और वो उसको देखती ही रही । तभी वो महिला भी मुड़ी उसकी नज़र भी शीतल पर पड़ी तो वो ओर क़रीब आ गई । दोनों अपनी अपनी छत से एक दूसरे को साफ़ देख रही थी । बचपन की सहेलियाँ आज सालो के बाद एक दूसरे को देख रही थी । शीतल !! सन्ध्या !! दोनों एक साथ कहकर हंसने लगी । तू कब आई शीतल सच में तुझसे मिलने की बड़ी तमन्ना थी । तभी शारदा भी पीछे आकर खड़ी हो गई और कहने लगी यही सरप्राइज़ था और वो भी दोनों सहेलियों के लिए  । शीतल शाम को घर आजा बैठते पहले की तरह फिर से एक बार संध्या ने आँखें मटकाते हुए कहा,शीतल ने भी मुस्कराते हुए हाँ मैं सिर हिलाया ।




शाम को शीतल एक सुन्दर सा तोहफ़ा लेकर संध्या के घर पहुँच गई। बरसो बाद दोनों सहेलियाँ बड़े प्यार से गले मिली । सामने ही संध्या की सासु माँ भी बैठी थी । संध्या ने शीतल का परिचय करवाते हुए कहा … अम्मा जी ये शीतल है मेरी बड़ी प्यारी सहेली, हम लोग पहली से बारहवीं कक्षा तक एक साथ थी । फिर मेरी शादी हो गई और ये कालेज पढ़ने दूसरे शहर चली गई । अब ये अमेरिका में रहती है । शीतल ने झुककर प्रणाम किया । 

अच्छा अच्छा !! बहुत ख़ुशी हुई मिलकर बेटा सदा ख़ुश रहो … तुम दोनों बैठकर बातें करो मैं चाय नाश्ते का बन्दोबस्त करती हूँ कहकर अम्मा रसोई घर की तरफ़ चल दी । थोड़ी देर में बहुत ही प्यारी नाज़ुक सी लड़की हाथ में पानी के दो गिलास लेकर आई , जिसने दोनों हाथों में लाल रंग का चूड़ा पहन रखा था । पानी मेज़ पर रखकर उसने शीतल के पाँव छूते हुए कहा पैरीपोणा आंटीजी!! शीतल ने दोनों हाथों से उसे उठाकर प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए प्रश्न भरी निगाहों से संध्या की ओर देखने लगी । ये छवि है हमारी बहुरानी , अभी दो हफ़्ते पहले ही शादी हुई है .. छवि बेटा तू जा जाकर पैकिंग कर मैं चाय बना लूँगी ।

 छवि के जाने के बाद संध्या शादी की कहानी सुनाने लगी । मेरी दूर की रिश्तेदारी से है इसके पापा,पिछले पाँच साल से इसकी माँ कैंसर से लड़ रही थी । पिता की सारी जमा पूँजी माँ के इलाज में चली गई । बीमार माँ की बस यही तमन्ना की बेटी को दुल्हन के रूप में देख सके । इत्तफ़ाक़ से मेरा बेटा वरूण छुट्टी पर घर आया हुआ था । मेरी दीदी ने वरूण के लिए छवि के लिए पूछा तो हम सब गाड़ी करके छवि को देखने गये हमें लड़की बहुत पसन्द आई और बस वही चुनीं चढ़ाकर ले आये ।

शीतल -यह तुमने बहुत पुण्य का काम किया , अब कैसी है इसकी माँ ??

संध्या- वो तो दो दिन बाद ही चल बसी

शीतल – ओ नो तभी फूल सा चेहरा थोड़ा उदास लग रहा है




संध्या- हाँ वो तो है और फिर साथ में कल वरूण वापिस जा रहा है मुम्बई उसकी छुट्टी ख़त्म हो गई

शीतल- और ये??

ये यही हमारे पास रहेगी झट से दूसरी ओर से आती संध्या कीं सासु माँ बोली । उनकी बात सुनकर शीतल बोली , अभी वरूण के पास पत्नी को रखने का उचित प्रबंध नहीं होगा वहाँ ?? उस बात पर संध्या झट से बोली, नहीं हमारा बेटा तो बहुत बड़े ओहदे पर लगा है यहाँ तक कि दो बेडरूम का फ़्लैट भी कम्पनी ने दिया हुआ है । 

 

शीतल थोड़ा सोच कर फिर बोली.. बहू घर के काम वग़ैरह नहीं जानती होगी ?? काम की तो तुम पूछो ही मत हर काम में निपुण हैं, रसोई सम्भालने से लेकर पुरा घर सम्भालने तक , माँ कीं बीमारी यही तो थी जो सबका  ख़्याल रख रही थी , बहू की तारीफ़ों के पुल बांधती हुईं संध्या बोली । शीतल को सोचो में डूबा देख सासु माँ झट से बोली… बेटा ये रिवाज है नई बहू कुछ दिन ससुराल रहती है फिर आयेगा जब अगली बार तो ले जायेगा अपनी बीवी को । अब शीतल कहे बिना रह ना पाई , ये कैसा रिवाज है आंटीजी जो ख़ुशी देने की बजाय उदास ही कर दे । 

शादी के बाद पति पत्नी के जीवन का सबसे सुनहरा समय होता है । एक दूसरे के साथ मौज मस्ती का ही नहीं बल्कि एक दूसरे को अच्छे से समझने का भी .. आप को इसे साथ भेज देना चाहिए  । इन्हें एक दूसरे से दूर रखना सही नहीं है ।

शीतल ने संध्या की ओर देखते हुए बोला बहू ना सही एक बार अपने बेटे की आँखों में झांक कर देख लेना कि उसकी चाहत क्या कहतीं हैं । थोड़ी देर में शीतल चली गई । अगले दिन शीतल बाहर भाभी के साथ खड़ी गली में सब्ज़ी ख़रीद रही थी तो उसने देखा कि गाड़ी में नौकर सामान रख रहा है । फिर सब लोग भी बाहर आ गये हैं । 

वरूण माता-पिता दादी से आशीर्वाद ले रहा है । तभी शीतल एकदम से एक टक देखती रही ये क्या !! यह तो बहुरानी भी पीछे पीछे सबके पाँव छू रही हैं । पाँच मिनट में वो दोनों निकल गये । संध्या सामने खड़ी शीतल को मुसकरा कर देखने लगी और फिर आकर उसके पास आकर बोली …. तू सही कह रही थी उदास तो मेरा बेटा भी था । 

मैंने अपने पति को तुम्हारा विचार बताया तो उन्होंने कहा ठीक ही तो कह रही है तुम्हारी दोस्त ख़ुशी पहले हैं रिवाज बाद मे है और ये रिवाज तो मुझे पहले भी कभी समझ नहीं आये ।हमारे पास बाद में रह लेगी अभी इसे वरूण के साथ भेज देते हैं । अम्मा भी इनके आगे कुछ बोल ना पाई और बेटे ने आते जाते हमारी बातें सुनकर टिकट भी बुक करवा ली ।सच में शीतल तू जैसे हमारे घर में कल इन दोनों की चाहत बनकर ही आई थी बस ऐसे ही हर किसी के जीवन में ख़ुशियाँ बिखेरती रहना

स्वरचित कहानी

अभिलाषा कक्कड़

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