हाथी के दाँत – मधु शुक्ला

विभा के पड़ोस में रहने वाली रीमा नौकरी के कारण ज्यादा व्यस्त रहती थी। इस वजह से उससे विभा की बातचीत नहीं हो पाती थी। वह उसको बस आते जाते देखती थी। कभी-कभी मुस्कान का आदान प्रदान हो जाता था। इसके अलावा विभा जरूरत पड़ने पर रीमा से पैसे या घर में घटे सामान माँग लिया करती थी। सुबह या रात के समय जाकर। रीमा ने उसे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया था।

 और न ही उससे कभी कोई सहायता ली थी। विभा सोचती थी। रीमा रोज बाहर जाती है। पैसे कमाती है। तो उसे किसी की सहायता की क्यों जरूरत पड़ेगी। एक दिन  विभा ने रीमा के घर के बाहर एक वृद्ध महिला को बैठे देखा तो वह उनसे मिलने चली गई। पता चला वे रीमा की माँ हैं। बेटी  की देखभाल के लिए आईं हैं। क्या हुआ रीमा को विभा ने आश्चर्य से पूछा। तो उन्होंने बताया बुखार है। 

रीमा तीन दिन से हास्पिटल में थी। आज ही घर लाये हैं उसे। विभा अंदर जाने लगी रीमा से मिलने के लिए। तो उन्होंने रोक दिया और कहा वह अभी सो रही है। वैसे भी डाक्टर ने उसे  अभी चलने फिरने और बोलने के लिए मना किया है। विभा बुझे मन से लौट आई घर पर। उसके दिमाग को यह बात परेशान करती रही “कि रीमा को दो दिन पहले तो उसने ठीक ठाक देखा था। और माँ जी कह रहीं हैं। 

तीन दिन से अस्पताल में भर्ती थी। और ये कैसा बुखार था। जो रीमा को चलने फिरने और बोलने के लायक नही छोड़ा।” दो दिन तक विभा के दिमाग में यही बात चलती रही। इसके अलावा माँ जी भी नहीं दिखाई दीं दुवारा। तो विभा से रहा नहीं गया और वह रीमा के घर पहुँच गई। वहाँ जाकर उसने देखा रीमा के हाथों में और सिर में पट्टियाँ बँधीं हैं।वह कुछ पूछती उससे पहले रीमा की माँ बोल पड़ीं रीमा कल बिस्तर से नीचे गिर गई थी।

 इस कारण उसको चोट लग गई है। विभा का, हमदर्दी भरा स्पर्श पाकर रीमा फूट फूट कर रोने लगी तो उसकी माँ का भी सब्र का बाँध टूट गया। उन्होंने अपनी बेटी का दर्द सुना दिया। जिसका सार यह था। रीमा का पति बहुत शक्की स्वभाव का है। इस वजह से आस पड़ोस में मेल जोल नहीं रखता है । रीमा से उसी की कमाई का हिसाब लेता है । इसके अलावा मारपीट भी करता है। 

परसों गाड़ी खराब होने के कारण रीमा को लौटने में देर हो गई। जिसको उसने बहाना समझा। और मारपीट की। और उसी हालत में छोड़कर घर बंद कर के चला गया। रीमा ने फोन पर बताया तब उन्होंने आकर इलाज करवाया है रीमा का। अब आज फोन आया है। उसका खाना बनाकर रखना मैं आ रहा हूँ। पर रीमा समर्थ होकर भी इतना क्यों सहती है। 

“पैसे कमाने से महिलाएं समर्थ नहीं हो जातीं हैं । उन्हें भगवान ने ही कमजोर बनाया है। उसी का लाभ कुछ नामर्द किस्म के पुरुष उठाते हैं। ” रीमा का जबाब सुनकर विभा सोच में पड़ गई। वह तो सोचती थी कमाने वाली औरतें घरेलू महिलाओं से ज्यादा सुखी होगीं। पर यहाँ तो हाथी के दाँत की कहावत चरितार्थ हो रही है। 

 

स्वरचित मधु शुक्ला . 

सतना, मध्यप्रदेश

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