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हर बार पत्नी ही समझौता क्यों करें – नूतन योगेश सक्सेना 

आज सुनंदा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था , आखिर उसे इतने महीनों से दिन रात की गई अपनी मेहनत का फल मिल ही गया था। वो जिस प्रोजेक्ट पर पिछले कई महीनों से कार्य कर रही थी, उसका एप्रूवल हो गया था ।

      सुनंदा आज के जमाने की पढी – लिखी होशियार लडकी थी जो अपने व्यक्तिगत और व्यवसायिक जीवन मे तालमेल बैठाना बखूबी जानती थी । अभी कुछ माह पहले ही उसका विवाह अभय से हुआ था । दोनों एक – दूसरे के साथ काफी खुश और संतुष्ट थे । अभय भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था । ये विवाह दोनों परिवारों की आपसी रजामंदी से हुआ था । अभय का परिवार पुरानी मान्यताओं को मानने वाला ही था जहाँ बहू का काम सिर्फ वंश बढाना और घर के काम करना ही होता है । तो कहीं ना कहीं अभय पर भी उस सोच का असर था ही । पर आधुनिक कहलाने की चाह में उसने अपनी पत्नी को नौकरी करते रहने की ( जो कि वह शादी से पहले से ही कर रही थी ) हामी भर दी थी ।

       पर अब सुनंदा को अपने इस प्रोजेक्ट को स्वतंत्र रूप से करने के लिए पदोन्नति देकर दूसरे शहर भेजा जा रहा था जो कि एक समस्या वाली बात थी, क्योंकि एक अन्जान शहर में अकेले रहकर नौकरी करने की स्वीकृति तो परिवार से मिलने की कोई उम्मीद सुनंदा को नहीं दिख रही थी , बस उसे अभय ही से आशा थी कि वो उसका साथ देगा । इसी उम्मीद को लेकर आज सुनंदा अभय से बात करने वाली थी ।

      ” ये कैसे मुमकिन है, तुमने ऐसा सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें दूसरे शहर अकेले जाने दूँगा ।” अभय ने गुस्से में कहा…..”अकेले क्यों आप भी मेरे साथ चलना ।” सुनंदा बोली ।

    “मैं कैसे जा सकता हूँ, मेरी नौकरी यहाँ है । …..” तो आप स्थानांतरण करवा लीजिए, आपकी कंपनी की एक शाखा उस शहर में भी तो है…..सुनंदा ने कहा ।




         “ये बढिया है बीबी के पीछे मैं अपने प्रमोशन को भूल जाऊं, तुम्हें पता है मेरा बौस मुझसे बहुत खुश है अबकी बार मेरा प्रमोशन आना तय है …..नहीं… नहीं तुम ये प्रोजेक्ट छोड दो ।” अभय तेज आवाज में बोला ।

    “आपको जो प्रमोशन अभी मिला भी नहीं है उसके लिए आप मेरे अच्छे खासे प्रमोशन को छोडने की सलाह दे रहे हैं ।”  कसैले स्वर में सुनंदा बोली ।

      “पत्नी का फर्ज है पति की तरक्की में उसका साथ देना और मैं तुम्हें नौकरी छोडने को तो नहीं कह रहा “। अभय बोला ।

      यही तो वो पूर्वाग्रह हैं कि हमेशा पत्नी ही पति की तरक्की के लिए अपनी नौकरी छोडे या अपनी उडान को थाम ले, क्या पति का कोई फर्ज नहीं होता कि वह भी कभी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए कुछ बलिदान करे,  पत्नी तो पति के साथ रहने के लिए, नौकरी तो क्या अपना देश तक छोड देती हैं ।

     पर क्या हमेशा ऐसा ही चलता रहेगा, सोचिए जरा आप सब भी 

       खैर अपनी कहानी की ओर वापस आते हैं । आखिर कार सुनंदा को अपना प्रोजेक्ट खुद सँभालने का अवसर मिला, अभय को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने बीच का रास्ता निकाला एक सप्ताहांत पर वो चला जाता था सुनंदा के पास व एक पर वो आ जाती थी और कुछ महीनों बाद अभय का भी प्रमोशन व स्थानांतरण हो गया और वो दोनों एक साथ रहने लगे ।

#दर्द 

नूतन योगेश सक्सेना 

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