हाँ हम भी इंसान हैं – स्नेह ज्योति

सैम स्कॉट लैंड मैं अपने परिवार के साथ एक खुशहाल जीवन जी रहा था । तभी खबर आयी कि एक हादसे में सैम की माँ और पिता का निधन हो गया है । सैम की दुनिया वीरान और बेरंग हो गयी…..खुद को सम्भालने के लिए उसने पढ़ाई में अपने आपको व्यस्त कर लिया ।अब उसका बस एक ही ख्वाब था भारत जाकर पढ़ाई करना और उसका ये ख्वाब दिल्ली के एक कॉलेज में एडमिशन ले पूरा हो गया ।

शुरू-शुरू में उसे बहुत दिक़्क़त आयी , लेकिन कहते है “ दिल्ली दिल वालों की है जब किसी को अपनाते है तो दिल से दिल की राह बनाते है “। कॉलेज में सैम के दो दोस्त बने वसीम और हिना कब दिन हुआ कब रात हुई उनके साथ पता ही नही चलता था । धीरे-धीरे सैम के चेहरे की उदासी ,मुस्कुराहट के पीछे खोने लगी । तीनो मिलके कभी गिरजा घर जाते ,कभी मंदिर ,कभी मस्जिद ……

भारत आकर जाना की अलग-अलग धर्म के लोग एक साथ मिलके कैसे खुश रहते है । इस सोच ने मुझे भी बदला, जो पहले दूसरे धर्म की अवहेलना करता था ।आज उनके रंग में ही रंग अपना रंग भी भूल गया था । हल्ला -गुल्ला शोरगुल बस यही जीवन का तराना था ।

इस भरी पूरी दुनिया में अब मैं अनाथ नहीं रहा, दोस्तो के साथ परिवार का भी प्यार मिला । मैं उनसे बेहिचक कुछ भी बोल सकता था । इस ज़िन्दगी में ओर कुछ नहीं चाहिए था ,पर फिर भी ना जाने क्यों कई बार ख़ालीपन चुभ जाता था ।

जैसे ही कॉलेज के इम्तिहान ख़त्म हुए तो हम तीनों ने भारत भ्रमण का प्रोग्राम बनाया । सब कुछ अच्छा बीत रहा था ,कि अचानक से सब बदल गया हिना जो मेरी अच्छी दोस्त थी, उसने मुझ से अपनी मोहब्बत का इजहार किया….ये सुन ! मुझे कुछ अजीब सा महसूस हुआ और कुछ कहे बिना ही वहाँ से चला गया ……

वसीम ने भी खूब समझाया की वो एक अच्छी लड़की है पर मैं संतुष्ट नही हो पा रहा था ।

मन बहुत विचलित हो रहा था । रात के खाने पे भी हम तीनो साथ थे , पर हमारे दरमिया एक सन्नाटा छाया रहा ।खाना खाने के बाद हम तीनो बाहर सैर के लिए निकले ,तभी मैंने देखा की बहुत सारी औरतें झुंड में जा रही थी । मैं भी उनके पीछे चल दिया मेरे दोस्त मुझे आवाज़ दे बुलाते रहे पर मैं उनकी आवाज़ को अनसुना कर भीड़ में खो गया ।




कुछ समय बाद एक औरत ने मुझे देख कर कहा कि तुम हमारी पूजा के बीच में क्या कर रहे हो लड़के !!

मैं कुछ समझ नही पा रहा था ! कि मेरे साथ ये क्या हो रहा है ??

तभी उनकी गुरु माई मेरे पास आयी और बोली व्याकुल क्यों हो बालक !!

मेरे अंदर जो बदलाव है, जो पीढ़ा है मैं ना तो खुद समझ पा रहा था, और ना ही दूसरों को समझा पा रहा था ।

तभी उनकी गुरु माई ने मुझे देखा और मेरे ऊपर हाथ फेरा…..

उन्होंने मेरी व्यथा को सुना और कहने लगी ,कुछ नही बच्चा तुम्हारे साथ ये होना स्वाभाविक है पर आश्चर्य इस बात का है कि तुम आज तक अपनी सच्चाई से अनजान थे …..

मैं तो विदेश से आया हूँ….. कैसी सच्चाई ??

तभी बेटा तुम्हारे अंदर जो बदलाव है वो पूर्णता उचित है पर तुम्हें किसी ने इसका ज्ञान नही दिया ।

वह क्या गुरु माई ??

यही कि तुम एक किन्नर हो !

मतलब ……

ना ही स्त्री हो ,ना ही पुरुष हो…..

फिर मैं क्या हूँ ??

भगवान का एक प्यारा वरदान हो जो हर किसी को नहीं मिलता

मुझे बहुत समय लगा ये सब समझने में , पर आज मैं संतुष्ट हूँ ! बस मलाल है तो इस बात का कि “ मैंने अपने दोस्तों का साथ बीच में ही छोड़ दिया”।शायद वो मेरे इस नए रूप को अपना नही पाते । लेकिन जिस सुकून के लिए मैं दर बदर घूमा आख़िर वो मुझे आज अपने लोगों के बीच अपने अस्तित्व के साथ मिल ही गया ।आज मैं एक किन्नर के नाम से जाना जाता हूँ । जो दूसरों के घर जा, हर ख़ुशी के उत्सव पे नृत्य कर उन्हें दुआ दे , अपने खुदा और ईश्वर से जुड़ने का प्रयत्न करते है ।




मैं आज इनके साथ हूँ पर मेरा पहनावा रहन – सहन पहले जैसा ही है । मैंने इन लोगो के बीच रह कर , ना सिर्फ़ अपने को पाया है बल्कि इनके दुःख तकलीफ़ को बहुत पास से महसूस किया है । हम सब भगवान के बनाए बाशिंदे है पर फिर भी एक दूसरे से नफ़रत करते है ।एक को सही साबित करने के लिए दूसरे को गलत दिखाते है।

यही सोच बदलने के लिए मैंने आज तक ,जो भी शिक्षा हासिल की वोही सब मैं अपने मोहल्ले के बच्चों और अपने साथियो को पढ़ाता हूँ ताकि “वो भी अपनी एक पहचान बनाए यूँ दूसरों के सामने हाथ ना फैलाए “और साथ में कपड़ों के थैले भी बनाते है ,उनसे जो भी पैसा मिलता थोड़ा सा अपने लिए रख बाक़ी यतीम बच्चों को दे देता हूँ। बस यही मेरी ज़िंदगी का सच हैं आज मैं शम्मी हूँ जो अपनो के साथ रहता हूँ ।

इतने वर्षों में जो धूमिल हो गया था । वो पल आज भी तेज हवा के झोंके संग आंखो में किरकिरी चुभा जाते है बीतो दिनों की यादो को ,दिल की संदूक से निकाल आँखों से नमी बन झलका जाते है । आज जब भी कोई बात होती है ,हम दोस्तों की कहानी चलती है ,हमारी तिगड़म बाज़ी की मिसाले याद होती है …..

तभी एक आवाज़ आयी आज शाम को एक शादी में हमें बधाई के लिए जाना हैं तैयार रहना । आज कुछ ठीक नही लग रहा था , लेकिन जाना तो था ,आख़िर ढोल बजाने का काम मेरा ही था,और वैसे भी किसी की नयी ज़िंदगी की शुरुआत हम लोगों के आशीर्वाद के बिना अधूरी होती है ….

हमारी टोली नाचते-गाते हुए पंडाल में पहुँची सब दूल्हा-दुल्हन के लिए बधाई गाने लगे । जैसे ही दूल्हा-दुल्हन सामने आए तो मैं स्तब्ध रह गया । इतने सालो में आज हिना मेरे सामने आयी और मैं उससे मिल भी नहीं सकता था । बस वहाँ से नज़र झुकाए बच के निकलना चाहता था ।लेकिन वो बार-बार मेरी तरफ देख रही थी , शायद पहचाने की कोशिश कर रही थी ।

मै भी उससे बहुत कुछ कहना चाहता था पर मेरा आज उसके आने वाले कल पे भारी ना पड़ जाए। यही सोच मैंने अपने साथियों से जल्दी बाहर चलने को कहा और सदक़ा ले जल्दी से बाहर चल दिए । बाहर आ मेरी जान में जान आयी और पानी की घूँट भरी ,तभी पीछे से गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ आयी और हिना अपना टैटू ,जो हम तीनो ने एक साथ बनवाए थे दिखा अलविदा कहने लगी ।

ये देख मेरी आँखे भी नम हो गयी और दिल पे पड़ा बोझ आँसुओं के साथ बह गया ।मैंने जो उसका दिल दुखाया उसके लिए हाथ जोड़ माफी माँगी और अपने रब से उसके लिए अपार खुशिया मांगी।

रात का पहर था पर एक

नया सा एहसास हो रहा था

हर रश्क से ,हर इश्क़ से

मन आज़ाद हो रहा था

इस कोहरे से भरी रात में

अब सब साफ़ हो रहा था

अपने में ही मगन अपने

रब के साथ बह रहा था

हाँ हम भी इंसान हैं

हमें इल्ज़ाम ना दो

जो हक़ हमारा है उसे

बाजार ना कहो …..

#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

दूसरी स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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