ज़िम्मेदारी सिर्फ़ बड़े भाई की है – के कामेश्वरी

फोन की घंटी बज रही थी । सुषमा रसोई में खाना बनाने में लगी थी क्योंकि सबको टिफ़िन बॉक्स देना था । देव नहाने गए थे । बच्चे दोनों भी कॉलेज के लिए तैयार हो रहे थे । 

अपने कमरे में से सास चिल्ला रही थी कि कोई तो फ़ोन उठाओ । वह बार बार बज रहा है याने कोई अर्जेंट कॉल ही होगा ।

जब किसी ने कुछ नहीं कहा तो वह ही धीरे से कमरे से बाहर निकल कर फ़ोन उठाती और उधर से किसी प्यारे का ही फ़ोन था शायद इसलिए वे चहकते हुए बातें करने लगी अरे मेरा लल्ला क्या बात है अच्छा सबसे छोटे बेटे का फ़ोन आया था । बेटा सुबह सुबह क्यों फ़ोन किया है ।

वहाँ से उन्हें क्या जवाब मिला मालूम नहीं परंतु यहाँ से यह कह रही थी कि अरे ! बेटा मैं बात कर लेती हूँ क्यों नहीं करेगा भाई ही तो भाई के काम आता है ।तुम कल आ जाओ बेटा सब ठीक हो जाएगा फ़िक्र मत करना कहते हुए फोन रख दिया और कमरे में जाकर अपने पति के पास बैठ गई ।

पति राघव ने पूछा– सुलक्षणा किसका फ़ोन था । 

सुलक्षणा ने कहा कि– जी! लल्ला का फ़ोन आया था । वह एक फ़्लैट ख़रीद रहा है डाउन पेमेंट के लिए उसे पैसे चाहिए भाई से माँगना चाहता था । मैंने कह दिया था कि भाई है क्यों नहीं देगा । 

राघव– अरी! भागवान उसे सड़क पर ला दोगे , तुम सब मिलकर । घर का बड़ा बेटा है अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा है इसका मतलब यह नहीं है कि उस पर और बोझ डाल दो । 

उसके भी दो बच्चे हैं । उनकी पढ़ाई का खर्चा भी उस पर ही है । तुम्हारे लल्ला ने ऑलरेडी दो फ़्लैट हैं और कितने फ़्लैट खरीदेगा । उन्होंने कभी भी यह नहीं सोचा है कि उनके बड़े भाई के पास एक भी घर नहीं है । 

जब भी वह घर ख़रीदने के लिए पैसे जोड़ता है और उन लोगों को मालूम नहीं कैसे पता चल जाता है उसके जमा किए हुए पैसे माँग लेते हैं । बेचारा बिना कुछ कहे उन्हें पैसे दे देता है । 

तुम हो कि अपने उन दोनों नालायक बेटों के पक्ष में बोलती रहती हो । इतने सालों में कभी हमें अपने घर ले गए हैं । उन दोनों ने दो दो घर ख़रीद लिया है हमें ले जाकर दिखाया है नहीं ना! फिर भी तुम उन लोगों के प्यार में अँधी हो जाती हो । 




सुलक्षणा सोचने पर मजबूर हो गई थी कि सही तो है मैंने कभी भी उन दोनों बेटों को बड़ा होने ही नहीं दिया । हमेशा उन्हें लल्ला छोटू कहते हुए छोटा ही बने रहने दिया । जब भी उन्हें पैसों की ज़रूरत पड़ी बिना कारण जाने उन्हें बड़े से दिलवाया यह कभी नहीं सोचा था कि बड़े के पास पैसे हैं या नहीं । 

हाँ बड़े को जब भी पैसों की ज़रूरत पड़ी छोटे दोनों भाइयों ने उसको यह कहकर मना कर दिया था कि उनके पास पैसे नहीं हैं । 

बड़े बेटे के पैसों से घर ख़रीद लिया ,बूढ़े माता-पिता को भी उसके पास ही छोड़ दिया खोज खबर भी नहीं ली थी । अब धीरे-धीरे सुलक्षणा की आँखें खुली और उसने दोनों बेटों को फ़ोन कर के दूसरे दिन आने का निमंत्रण दे दिया । 

दूसरे दिन सही समय पर दोनों छोटे बेटे अपने परिवार के साथ यह जानने के लिए आ गए थे कि आख़िर माँ ने फ़ोन करके उन्हें क्यों बुलाया है । 

जब सब आ गए तो माँ ने कहा कि– मैंने आपको यहाँ इसलिए बुलाया है कि — मैंने और तुम्हारे पिता ने यह निर्णय लिया है कि हम दोनों तुम तीनों के पास चार चार महीने रहेंगे । 

आज के बाद तुम्हारा बड़ा भाई पैसों से तुम लोगों की मदद नहीं करेगा । 

दूसरी बात आज तक उसने तुम लोगों को जितना भी पैसा डाउन पेमेंट के लिए दिया है उसे लौटा दो ताकि वह भी एक फ़्लैट खरीदेगा अपने बच्चों के साथ शांति से ज़िंदगी जिएगा । सुलक्षणा की बात सुनकर दोनों बहुओं ने मुँह फुला लिया था । 

सुलक्षणा ने कहा कि — कोई बुरा माने या मुँह फुला ले मेरा निर्णय अंतिम निर्णय है बस । चलिए सब लोग खाना खा लीजिए और हमें किसके साथ पहले आना है बता दीजिए तो हम अपना सामान पैक कर लेते हैं ।

देव और सुषमा ने सुलक्षणा को समझाने का प्रयास किया था । 

सुलक्षणा ने कहा कि– आज तक तुम लोगों के साथ अन्याय हो रहा था और मैं चुपचाप बैठ कर देख रही थी । 

उसी समय देव के दोनों बेटे आ गए और कहा दादी आज हम बहुत खुश हैं कि आप को हमारे माता-पिता की फ़िक्र तो है । एक बात दादी आप दोनों को बँटने की ज़रूरत नहीं है आप हमेशा हमारे साथ ही रहेंगे । 

लल्ला और छोटू ने बड़े भाई से क्षमा माँगी और पैसे भेजने का वादा किया । अपने परिवार के साथ चले गए थे । सुलक्षणा भी पति के साथ कमरे में आई । उनसे कहा कि आपके कारण मेरी आँखें खुल गई हैं । मेरी करनी पर मैं शर्मिंदा हूँ । 




राघव ने कहा कि चलो सुलक्षणा तुम्हें तुम्हारी गलती का अहसास तो हुआ है । मेरे दिल से एक बहुत बड़ा बोझ उतर गया है । 

दोस्तों माता-पिता को सोच समझ कर निर्णय लेने चाहिए । छोटों को हमेशा छोटा ही बने रहने दिया तो वे कभी बड़े नहीं होंगे । 

स्वरचित 

के कामेश्वरी

साप्ताहिक विषय—- ज़िम्मेदारी

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